NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लिंचिंग; जो आज एक सार्वजनिक तमाशा बन गया
आज सामूहिक हिंसा का वास्तविक इरादा देश को उच्च जाति के प्रभुत्व के तहत एक हिंदू बहुसंख्यकवादी राज्य की ओर धकेलने का है।
प्रबीर पुरकायस्थ
05 Jan 2019
Translated by महेश कुमार
सांकेतिक तस्वीर

भारत में घृणा से भरे अपराधों का उदय - गाय से संबंधित हिंसा और लिंचिंग - को सोशल मीडिया के व्यापक उपयोग के जरिये जोड़ा जा रहा है। जबकि फेक न्यूज़ (झूठे समाचार) और फेक वीडियो (नकली और झूठे वीडियो) ने अक्सर इस तरह की  सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने में मदद की है, वे उनकी अपनी प्रकृति में "उत्सव" से भरे भी रहे हैं: जिसमें प्रतिभागी लिंचिंग और हिंसा में शामिल भीड़ का हिस्सा होने के बारे में डींग मारते देखे गए हैं।

कई टिप्पणीकारों के लिए, ये उपकरण यानी - सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी – दोनों को ही सांप्रदायिक हिंसा और हिंसक भीड़ की बीमारी की जड़ बताते हैं, न कि हिंसा के पीछे की राजनीतिक ताकतों को। उनके लिए, आरएसएस-भाजपा और हिंदुत्व ब्रिगेड के अन्य घटक इसके जिम्मेदार नहीं है, लेकिन सेल फोन को इस समस्या की जड़ बताया जाता है।

यह सेल फोन को अपराधी बनाने का प्रयास है, न कि इसमें शामिल लोगों को, जिसने मुझे हिंसक भीड़ और हिंसा के साथ उसके संबंधों में प्रौद्योगिकी की बड़ी भूमिका के बारे में सोचने के लिए मज़बूर किया। मैंने इतिहासकारों के एक हिस्से के शानदार काम को याद किया, जो किसी अन्य स्थान और किसी और समय में हिंसक भीड़ और सार्वजनिक लिंचिंग पर केंद्रित है: यू.एस., वहां नीग्रो, जैसा कि उन्हें तब कहा जाता था, 1877 से 1950 के अंत तक बड़ी संख्या उन्हें इसी तरह हिंसक भीड़ के जरिये कत्ल किया गया था। और अब हमारे सामने लिंचिंग का सार्वजनिक तमाशा चल रहा है।

पुस्तक, विदआउट सैंक्चुअरी, ने 100 से अधिक तस्वीरों और पोस्टकार्ड को दर्ज़ किया है, जिनमें से कुछ प्रतिभागियों में कुछ पेशेवर फोटोग्राफर थे जिन्होंने, हिंसा की प्रकृति और इस तरह के "आयोजनों" में सार्वजनिक भागीदारी की थी और तस्वीरें ली थी। फिर से, प्रौद्योगिकी इन घटनाओं का एक हिस्सा थी। उन्हें समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचारित किया गया, कैमरे पर रिकॉर्ड किया गया, और घटनाओं की तस्वीरों के साथ मुद्रित पोस्टकार्ड के उपयोग से यह दूर-दूर तक फैल गया था। व्हाट्सऐप और फेसबुक संदेशों का उपयोग मॉब इकट्ठा करने, सेल फोन के कैमरे पर हिंसा को कैप्चर करने और सोशल मीडिया पर इसे प्रसारित करने के रूप में किया जाता है, जैसा कि अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय के खिलाफ, विशेष रूप से दक्षिणी अमेरिका में किया गया था, जो गुलामी और कपास के बागान के मज़दूरों का केंद्र था।

गुलामी में शामिल हिंसा और अमेरिका में पूंजीवाद के मूल में निहित बर्बरता अपने आप में एक कहानी है। यह वह कहानी नहीं है जब गृहयुद्ध ने दक्षिणी संयुक्त राज्य में दासों को मुक्त कर दिया था। दक्षिण में श्वेत आबादी को उनके दासों को मुक्त करने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन नस्लों के बीच समानता को स्वीकार नहीं किया गया था। उनका उत्तर नस्लीय अलगाव था - अश्वेतों को श्वेत आबादी से अलग करना, उन्हें उस स्थान से अलग करना जहां वे किसी भी सार्वजनिक स्थान पर रह सकते हैं, अध्ययन कर सकते हैं या यात्रा कर सकते हैं। यह अलगाव का "नया आदेश" था जिसे गुलामी की जगह लगाया गया था।

हिंसक भीड़ और सार्वजनिक लिंचिंग इस जातीय अलगाव के मुख्य उपकरण थे। सार्वजनिक तमाशे के रूप में लिंचिंग ने दो काम किए। इसने बहुसंख्यक गोरे समुदाय को एक समुदाय के रूप में संगठित किया; और सार्वजनिक हिंसा के संख्यात्मक स्वरूप के तहत छोटे काले समुदाय में भय पैदा किया, अगर उन्होंने "अपनी हद पार की तो" इसका अंज़ाम मौत था। कई कस्बों में लिंचिंग के लिए विशेष स्थान थे। दर्शक लाशों या रस्सियों के टुकड़ों की तस्वीरें खरीदकर क्रूरता और खून की वासना को याद करते थे जिन्होंने पीड़ितों की गर्दन काट दी थी। स्कूलों और व्यवसायों को बंद कर दिया जाता था, ट्रेन लिंचिंग साइटों पर विशेष भ्रमण के लिए चलाई जाती थी, और समाचार पत्र लिंचिंग के स्थानों की घोषणा कर भीड़ को गारंटी देते थे। इन तस्वीरों को पोस्टकार्ड पर छापा जाता था, और उन्हें उनके द्वारा माता-पिता, दोस्तों, भाई-बहनों को दिया जाता था, जो अक्सर लेखक को भीड़ के एक हिस्से के रूप में पहचानते थे। और ये छोटी घटनाएं नहीं थीं: डलास - शहर जहां कैनेडी की 1963 में हत्या कर दी गई थी – जिसकी 92,000 आबादी थी, उसके 5,000 लोगों ने 1910 में कोर्टहाउस के बाहर एक लिंचिंग में भाग लिया था।

इन तस्वीरों के बारे में चौंकाने वाली बात है कि यह उन लोगों के अपराध की भयानक संगीनता है। वे जीवन के सभी क्षेत्रों से आए: पुरुष, महिलाएं और बच्चे। अधिकांश लोगों के लिए, यह एक सार्वजनिक कार्यक्रम था, कई अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों जैसे कि परेड आदि, ये गुंडे नहीं थे, लेकिन गोरों ने यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया कि अमेरिका में उनका वर्चस्व रहेगा, एक ऐसी भूमि जिसे उन्होंने मूल जनसंख्या के नरसंहार के माध्यम से जब्त की थी, ताकि दूसरा कोई उन्हे चुनौती नहीं दे सके। द डॉगवुड ट्री नामक कविता के साथ एक फार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा मुद्रित पोस्टकार्ड, और व्यापक रूप से प्रसारित, इसके बारे में बखूबी बयान करता है। यह सब श्वेत वर्चस्व के बारे में था, जो कि सार्वजनिक लिंचिंग का उपयोग करके अश्वेतों को सबक सिखाने के लिए किया गया था।

यदि अलगाव और लिंचिंग दक्षिण में (अमेरिका के) गुलामों को मुक्त करने के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी, तो आज भारत में जो सामूहिक हिंसा और सार्वजनिक हिंसा देखने को मिल रही है, उसका कारण क्या है? और यहाँ फिर से, उत्तर स्पष्ट है। यह बहुसंख्यक समुदाय के ऊपरी जाति आधिपत्य को एक चुनौती है जो सार्वजनिक लिंचिंग की जड़ में है।

स्वतंत्रता आंदोलन सिर्फ भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए नहीं था, बल्कि इसने एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की भी घोषणा की थी। इसने दुनिया में पहला सकारात्मक कार्रवाई का कार्यक्रम बनाया था- शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण - उन समुदायों के लिए जिन्हें प्रमुख ब्राह्मणवादी आदेश द्वारा बहिष्कृत घोषित किया गया था। योजना और नियोजित विकास केवल उद्योग और कृषि में उत्पादक शक्तियों के विकास के लिए नहीं था। संविधान को अपनाने के दौरान, अंबेडकर और नेहरू दोनों ने राजनीतिक और आर्थिक लोकतंत्र के महत्व पर जोर दिया था। आरक्षण और योजना और विकास और आर्थिक लोकतंत्र के उपकरण थे।

पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए, एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत लक्ष्य था। यह भारतीय संविधान में निहित है, जिसे हम गणतंत्र दिवस पर मनाते हैं। इस भारतीय संविधान का आर.एस.एस. द्वारा कड़े शब्दों में विरोध किया गया था (द ऑर्गनाइज़र, 30 नवंबर, 1949) कि भारत में मनुस्मृति पर आधारित संविधान होना चाहिए, भारत का प्राचीन कानूनी पाठ, वही मनुस्मृति जो जाति-विभाजित समाज का मूल पाठ है। एक ऐसा पाठ जो जातियों और पुरुषों के बीच असमानता को अपने मूल में शामिल करता है।

यह एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भारत का विचार है जो आज दांव पर है। यही कारण है कि मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा और आरक्षण के खिलाफ "नए" जातीय आंदोलन हो रहे हैं। गौ रक्षा केवल गोलबंदी की रणनीति है, लक्ष्य नहीं है। जैसे अलगाव ही वास्तविक सामग्री थी, आज सामूहिक हिंसा का वास्तविक इरादा देश को उच्च जाति के प्रभुत्व के तहत एक हिंदू बहुसंख्यकवादी राज्य की  ओर धकेलने का है। यही कारण है कि हमारे पास एक सार्वजनिक तमाशा मौजूद है, जिसे सेल फोन पर रिकॉर्ड किया जाता है और व्यापक रूप से प्रसारित किया जाता है। इसका प्रमुख तत्व है: बहुसंख्यक को समरूप बनाना, और अल्पसंख्यक समुदाय के इरादों को तोड़ना। तकनीक तब और अब, नफ़रत के इस संदेश को बढ़ाने का साधन रही है; लेकिन इसका कारण नहीं।

(यह लेख 16 नवंबर, 2018 को मई दिवस कैफे में दिए गए सफ़दर हाशमी मेमोरियल लेक्चर पर आधारित है।)

 

mob lynching
Hate Crime
Hindutva
Hindutva Agenda
hindutva terorr
Hindu Nationalism
attacks of minorities
minorities
mob violence

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत
    14 May 2022
    देश में आज चौथे दिन भी कोरोना के 2,800 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। आईआईटी कानपूर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मणींद्र अग्रवाल कहा है कि फिलहाल देश में कोरोना की चौथी लहर आने की संभावना नहीं है।
  • afghanistan
    पीपल्स डिस्पैच
    भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी
    14 May 2022
    आईपीसी की पड़ताल में कहा गया है, "लक्ष्य है कि मानवीय खाद्य सहायता 38% आबादी तक पहुंचाई जाये, लेकिन अब भी तक़रीबन दो करोड़ लोग उच्च स्तर की ज़बरदस्त खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यह संख्या देश…
  • mundka
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?
    14 May 2022
    मुंडका स्थित इमारत में लगी आग तो बुझ गई है। लेकिन सवाल बरकरार है कि इन बढ़ती घटनाओं की ज़िम्मेदारी कब तय होगी? दिल्ली में बीते दिनों कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग रही है, जिसमें कई मज़दूरों ने…
  • राज कुमार
    ऑनलाइन सेवाओं में धोखाधड़ी से कैसे बचें?
    14 May 2022
    कंपनियां आपको लालच देती हैं और फंसाने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर कहेंगी कि आपके लिए ऑफर है, आपको कैशबैक मिलेगा, रेट बहुत कम बताए जाएंगे और आपको बार-बार फोन करके प्रेरित किया जाएगा और दबाव…
  • India ki Baat
    बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून
    13 May 2022
    न्यूज़क्लिक के नए प्रोग्राम इंडिया की बात के पहले एपिसोड में अभिसार शर्मा, भाषा सिंह और उर्मिलेश चर्चा कर रहे हैं बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून की। आखिर क्यों सरकार अड़ी हुई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License