NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
फांसी पर चढ़ने से पहले लिखे गए ख़त
एक किताब के कुछ हिस्से जो कश्मीरी राष्ट्रवाद और अफ़ज़ल गुरू को मिली फांसी के केस पर बात करती है।
हुमरा कुरैशी
22 Jan 2020
फांसी पर चढ़ने से पहले लिखे गए ख़त

राज्य द्वारा अफ़ज़ल गुरू को फांसी दिए जाने पर सवाल उठाने के लिए करता हमें इतना वक़्त लेना चाहिए था। आख़िर इस फांसी पर सवाल उठाने के लिए हमने पिछले हफ्ते पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह की गिरफ्तारी का इंतज़ार क्यों किया?  आख़िर हम इतनी देर से यह विमर्श क्यों कर रहे हैं कि क्या‌ अफ़ज़ल गुरू के केस को दोबारा खोला जाना चाहिए या नहीं? 
 
जिन लोगों ने प्रोमिला प्रकाशन द्वारा बिबलियोफाइल साउथ एशिया के सहयोग से प्रकाशित नंदिता हस्कर की किताब "हैंगिंग अफ़ज़ल: पेट्रियोटिज्म इन द टाइम्स ऑफ टेरर" पढ़ी है, वे इनमें से कुछ सवालों के जवाब दे सकते हैं।  इसे पढ़ने से पता चलता है कि अफ़ज़ल गुरू पीड़ित था, आतंकवादी नहीं। उसे जांच एजेंसियों और देविंदर सिंह जैसे पुलिस वालों द्वारा फंसाया गया था।
 
अपनी किताब में हस्कर हमेशा की तरह सीधे और निष्कपट ढंग से अपनी बात रखती हैं। उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे देविंदर सिंह ने अफ़ज़ल गुरू और उसके परिवार को बर्बाद कर दिया गया। उन्होंने पूरी घटना में शामिल दूसरे खलनायकों के नाम भी बताए हैं।
 
हस्कर ने विस्तार से लिखा है कैसे अफ़ज़ल गुरू को कस्टडी में बुरी तरह टॉर्चर और प्रताड़ित किया जाता था। यह सब उसे दिल्ली में लोदी रोड स्थित स्पेशल सेल में लाने के साथ ही शुरू हो गया था। यहां उसे बुरे तरीक़े से मारा- पीटा गया। हस्कर की किताब से पता चलता है कि "पुलिस वालों ने उसके मुंह में पेशाब किया"। उसके तिहाड़ जेल में पहुंचने के बाद यह टॉर्चर और ज्यादा बढ़ गया। इस दौरान उसके परिवार को भी नरक को यातना से गुज़रना पड़ा।
 
हस्कर ने "द मेनी फेसेस ऑफ़ कश्मीर नेशनलिज्म: फ्रॉम द कोल्ड वार टू द प्रेजेंट डे" नाम से एक और किताब लिखी है। इसे स्पीकिंग टाइगर ने प्रकाशित किया है। इसमें अफ़ज़ल गुरू के खतों, खासकर हाथ से लिखे एक १० पेज के ख़त  पर गहराई में बात की गई है। इन  ख़त में कश्मीर की स्थितियों पर बनी अवधारणाओं की बात है। अफ़ज़ल गुरू के किसी भी ख़त में आतंकी विचारों या भावनाओं का प्रभाव नहीं झलकता। बल्कि इसके उलट वो काफी दार्शनिक समझ आता है, जिसकी मुद्दों पर साफ राय है। उदाहरण के लिए, हस्कर बताती हैं, "हालांकि अफ़ज़ल गुरू तिहाड़ में बंद और बेहद मानसिक तनाव देने वाली जेल में बंद रहता है, पर उसका दिमाग अभी भी खुला हुए है और वो काफी अध्ययन करता है। उनकी पत्नी तबस्सुम बताती है कि उनके बेटे ग़ालिब की पैदाइश के बाद अक्सर अफ़ज़ल शिकायत में कहता कि उसकी इच्छा है अब उसे पढ़ने के लिए एक गुफा मिल जाए। "  उसके जेल जाने के बाद तबस्सुम उसे चिढ़ाते हुए कहती - मिल गई गुफा? जिसके जवाब में अफ़ज़ल कहता - बहुत जबरदस्त गुफा मिली है।
 
हस्कर आगे लिखती हैं, "गुरू ने अपने दोस्तों को लंबे ख़त लिखे। कई बार वो उनकी प्रतियां बना लेता और एक मुझे दे देता या अपने किसी माध्यम से मुझ तक पहुंचा देता। ज्यादातर ख़त अंग्रेजी में होते। ख़त में वो राष्ट्रवाद और धर्म पर अपने विचार रखता। ज्यादातर कश्मीरी मुस्लिमों की तरह अफ़ज़ल का भी राष्ट्रवाद से मोह भंग हो गया और वो इस्लामिक विचारों की तरफ मुड़ गया। अफ़ज़ल के लिए, भारत और पाकिस्तान, दोनों ने ही कश्मीर को धोखा दिया। वो नई पीढ़ी के अतिवादी होने को लेकर चिंतित भी था।
 
तिहाड़ की जेल नंबर दो से एक कश्मीरी दोस्त को लिखे ख़त में उसने इस पर चिंता भी जताई है। वह लिखता है,"हमारा घर नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक अराजकता की स्थिति में है। वह दो विरोधी ताकतों के बीच फंसा है। एक देश इन भोले भाले बच्चों को अतिवादी विचारों की तरफ ढकेल रहा है। वह अपने अस्तित्व के लिए इन अनपढ़ और गैर जागरूक बच्चों की भावनाओं को भड़का कर अपनी ओर कर रहा है। वो लोग एक तरफ की बेहद बड़ी सेना, जिसके पास बहुत बड़ा बजट है, उससे लड़ने के लिए प्रेरणा से भरे इन कुछ लोगों का सहारा लेना चाहता है। वहीं उस दूसरे देश की सेना यहां आराम फरमाना चाहती है, ताकि वो अपना विलासिता भरा जीवन जी सकें। इस दोहरे रवैये के चलते आज कश्मीर उबल रहा है।
 
यह उबल चुका है। पर दुर्भाग्य से दोनों देशों ने इससे कोई सबक नहीं लिया। बजाए इसके वे लोगों को शांति से जीने नहीं दे रहीं हैं। दोनों देश इसी उबाल के किनारे खड़े हैं। मैंं अकेला नहीं था। मैंं किसी संगठन से संबंधित भी नहीं था। मेरा ताल्लुक़ तो उन लोगों की भावनाओं और विचारों से है, जिन्हें जबरदस्ती चुप कराया जा रहा है और उन्हें नीचा दिखाया जा रहा है। इन भावनाओं को वैश्विक स्तर पर महसूस किया जाता है।"
 
 इन खतों  से पता चलता है कि अफ़ज़ल काफी पढ़ा लिखा आदमी था, जो लगातार अपने भीतर झांककर सवाल पूछता था। अफ़ज़ल राष्ट्रवाद और धर्म के विचारों से जूझ रहा था। 8 जनवरी, 2008 को मुझे लिखे एक ख़त में वो लिखता है, "आदरणीय नंदिता, जब नागालैंड के विवाद को क्रिश्चियन विवाद करार नहीं दिया जाता, तो कश्मीर विवाद को मुस्लिम विवाद कहकर प्रचारित क्यों किया जाता है? मूलभूत तौर अपनी प्रकृति में पर यह राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक रॉबर्ट ए पापे की किताब में  1980 से 2003 के बीच हुए आत्मघाती हमलों पर अच्छा विश्लेषण किया गया है। इनमें से 76, LTTE ने किए। इनकी मुख्य वजह राजनैतिक और सामाजिक अन्याय, सत्ताधारियों और कब्ज़ा किए बैठी ताकतों द्वारा किया गया दमन और उनकी कड़ी नीतियां रही हैं।
 
एक दूसरे ख़त में अफ़ज़ल, राज्य की मूर्खतापूर्ण नीतियों पर लिखता है। उसके मुताबिक, "लगातार अपमान और मानसिक प्रताड़ना विवाद को सिर्फ बढ़ाएगी। इन नीतियों से मिलिटेंट और अतिवादी संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, जो बढ़ती ही जाएगी। पुलिस स्टेशन आज आतंक के घर और कत्लखाने बन चुके हैं। मारे गए लोगों के परिजन अब पुलिस स्टेशन नहीं जाते, क्योंकि पुलिस स्टेशन ने ही लोगों के में में आतंक का बसेरा करवाया है। तुम्हें यह सब बढ़ा चढ़ाकर बताई गई बातें लग रही होंगी। पर संवैधानिक उपनिवेश कश्मीर की यही सच्चाई है।"
 
 गुरू इस बात पर भी ध्यान दिलाता है कि क्यों सिर्फ आर्थिक पैकेज से समस्या का निदान नहीं होगा। उसके मुताबिक, " मैंरी के बेटे जीसस ने कहा.... आदमी सिर्फ रोटी से जिंदा नहीं रह सकता। इसी तरह सिर्फ आर्थिक पैकेज कश्मीर में शांति नहीं ला सकते। जो लोग अपमान और डर के साये में रह रहे हों, उन्हें रोटी की चिंता नहीं होती। दरअसल लोगों को एक ऐसे राजनैतिक ढांचे की जरूरत है, जिसमें उन्हें आतंकित या अपमानित महसूस ना हो....  लोकतांत्रिक तरीकों पर बंदिशों से शिक्षित युवा भी अतिवाद की ओर ही मुड़ेगा।
 
"नोऑम चॉमस्की  कहते हैं कि अगर हम नापसंद की जाने वाले लोगों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं रखते तो हमें इसमें किसी भी तरह का विश्वास नहीं है।  RSS की विचारधारा और इसके राजनैतिक, सामाजिक और मिलिटेंट संगठन साम्प्रदायिकता फैलाते हैं और समाज, राजनीतिक ताने बाने में ध्रुवीकरण को बल देते हैं। इससे नफरत फैलती है। संस्थानों, जिनमें तिहाड़ जेल भी शामिल है, उन तक भी यह जहर पहुंचता है। इसमें कोई शक नहीं है कि ISI भी नफरत फैलाने में अपना काम कर रही है। बल्कि यह भारत विरोधी भावनाओं को भड़का रही है।"
 
 8 जनवरी 2008 को अफ़ज़ल द्वारा लिखे इस ख़त को पढ़ने के बाद कोई भी मौत की सज़ा पर सवाल खड़े करने पर मजबूर हो जाए। अफ़ज़ल ने हस्कर को आगे लिखा"आखिर में, मैंं दरख़्वास्त करता हूं कि मेरे शब्दों को किसी भी तरह का रंग या पहनावा ना दिया जाए, इन्हें सिर्फ मानवता के लिए चिंता मानी जाए.... मैं इस ब्रह्मांड में इस तरह से हूं, जैसे मैंं ही ब्रह्मांड हूं।"
 
राज्य ने मोहम्मद अफ़ज़ल गुरू को फांसी पर लटका दिया। शायद उसे जानबूझकर चुप कराया गया। शायद राजनीतिक खिलाड़ियों और उनके अंदर काम करने वाली मशीनरी ने अपने हितों के लिए ऐसा किया हो। हमें सज़ा कर रहे लोगों को फांसी पर चढ़ाए जाने से रोकना होगा। सैकड़ों लोग इनमें से बेगुनाह हो सकते हैं। चूंकि आजकल पूर्वाग्रह हावी हैं, इसलिए कश्मीरी कैदियों के लिए आज का वक़्त खासतौर पर मुश्किल भरा है। जैसा हस्कर ने लिखा, "गलत गिरफ्तारियां की भयावह वास्तविकता,अंधकार भरी काल कोठरियों, यातनाओं की बर्बरता और एक बच्चे का अपने पिता को फांसी पर चढ़ने के इंतज़ार का दर्द, ऐसी ही डरावनी दुनिया में कश्मीरी जीते हैं।
 
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनकी निजी राय है।

Afzal Guru
death penalty
Letters from Afzal Guru
Nandita Haksar
Kashmiri nationalism
Indian state
ISI
Delhi Police Special Cell

Related Stories

भारत को अफ़ग़ानिस्तान पर प्रभाव डालने के लिए स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की ज़रूरत है

क्या मोदी का हिंदुत्व-कॉरपोरेट गठजोड़ दरक रहा है?

परमाणु हथियार : ज़रूरी या विनाश का रास्ता?

भारतीय राष्ट्र, माओवादी और आदिवासी

भारत में पत्रकारिता और लोकतंत्र की परवाह करने वाले सभी लोगों को न्यूज़क्लिक पर हो रहे हमले का विरोध करना चाहिए : नंदिता हक्सर

आतंकियों के साथ पकड़े गए निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह को ज़मानत मिली

दिल्ली हिंसा: मृतकों की संख्या बढ़कर 20 हुई, दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश

पाकिस्तानी जासूसों पर गोदी मीडिया की ख़ामोशी

निर्भया मामले के चार दोषियों को 22 जनवरी को दी जाएगी फांसी

पुलिस-वकील टकराव में कौन गुनहगार-कौन मासूम!


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License