NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
नज़रिया
शिक्षा
समाज
भारत
राजनीति
बिहार में क्रिकेट टूर्नामेंट की संस्कृति अगर पनप सकती है तो पुस्तकालयों की क्यों नहीं?
मौजूदा समय में बिहार में केवल 51 पब्लिक लाइब्रेरी हैं। यानी तकरीबन 20 लाख की आबादी पर एक पब्लिक लाइब्रेरी। इसी तरह से गांव के स्तर पर 1970 के दशक तक तकरीबन 4 हजार लाइब्रेरी थी। जो घटकर मौजूदा समय में केवल 1004 के आंकड़े तक रह गई हैं।
अजय कुमार
15 Jan 2021
bihar

जैसा कि आप सब ने देखा होगा गांव-देहात के इलाके में आजकल क्रिकेट टूर्नामेंट खूब हो रहे हैं। क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन भी बहुत सारे कर्मकांड के साथ होता है, ताकि खेलने वालों और देखने वालों सबको लगे कि केवल खेल नहीं हो रहा। खेल के नाम पर केवल आनंद मकसद नहीं है, बल्कि वह दिखावा भी मकसद है कि देखने और खेलने वालों को लगे कि वह क्रिकेट टूर्नामेंट का हिस्सा है। लाउडस्पीकर होता है। टूटी-फूटी हिंदी में कमेंट्री होती है। एक अजीब किस्म के राष्ट्रवाद को भरने के लिए मैदान के बीचो-बीच भारत का झंडा लगा होता है। जिन लड़कों के पास किताब और कलम खरीदने तक के पैसे नहीं होते वह जैसे-तैसे कर एक स्पोर्ट्स शूज खरीदते हैं। एक टी-शर्ट बनवाते हैं। जिस पर तिरंगे के साथ उनके गांव और उनका नाम लिखा होता है। यह सब केवल आस-पास के लड़के ही नहीं करते बल्कि इसमें उनकी बहुत अधिक भागीदारी होती है जो पंचायत, जिला परिषद और विधायकी का चुनाव लड़ने की तमन्ना पाले रहते हैं। क्रिकेट टूर्नामेंट में बकायदे इन भावी उम्मीदवारों के बैनर टंगे होते हैं। मैच खत्म होने के बाद यह लड़कों को संबोधित भी करते हैं। एक ऐसे ही क्रिकेट आयोजन को मैं चुपचाप एक दर्शक की तरह देख रहा था। और सोच रहा था कि काश गांव-देहात की यह सामुदायिकता जीवन और समाज के दूसरे जरूरी पहलुओं से भी इस तरीके से जुड़ पाती तो कितना अच्छा होता। 

यह सोचते हुए मैंने अपने फेसबुक टाइम लाइन को स्क्रॉल करते हुए बिहार के सीपीआई (एम एल) से जुड़े पालीगंज के नौजवान विधायक संदीप सौरभ की पोस्ट देखी।

पोस्ट में बिहार विधान सभा की पुस्तकालय कमेटी की बैठक का जिक्र था। जिसमें बिहार के पुस्तकालय के भयावह बदहाली के बारे में बताया गया था। और सरकार द्वारा इसे सुधारने के लिए किए जाने वाले कोशिशों की चर्चा की गई थी। यह पोस्ट पढ़कर खुशी हुई। एक निराशा जो क्रिकेट टूर्नामेंट देखते हुए हो रही थी तो एक आशा संदीप सौरभ की फेसबुक पोस्ट पढ़कर हो रही थी। संदीप सौरभ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता रह चुके हैं। इसलिए यह भी लगा कि जब अपने जमाने के जुझारू विद्यार्थी राजनीति का हिस्सा बनते हैं तो राजनीति से सार्थक काम होता हुआ लगता है।

पिछले पांच-छह दशकों में बिहार के तकरीबन 500 से अधिक पब्लिक लाइब्रेरी धराशाई हो गई हैं। पुस्तकालय के पेशे से जुड़े लोगों की मानें साल 1950 में बिहार में तकरीबन 540 लाइब्रेरी थी। विधायक संदीप सौरभ द्वारा बिहार विधान सभा को सौंपी गई पुस्तकालयों से जुड़ी रिपोर्ट की माने तो मौजूदा समय में जिला अनुमंडल और पंचायत स्तर को मिलाकर बिहार में केवल 51 पब्लिक लाइब्रेरी हैं। यानी तकरीबन 20 लाख की आबादी पर एक पब्लिक लाइब्रेरी। इसी तरह से गांव के स्तर पर 1970 के दशक तक तकरीबन 4 हजार लाइब्रेरी थी। जो घटकर मौजूदा समय में केवल 1004 के आंकड़े तक रह गई हैं। बहुत पहले जब भारत में नीति आयोग की जगह योजना आयोग का जमाना हुआ करता था तब की योजना थी कि बिहार के तकरीबन एक हजार की आबादी पर एक लाइब्रेरी होनी चाहिए। लेकिन तब से लेकर अब तक का विकास यह हुआ है कि एक लाख की आबादी पर भी एक लाइब्रेरी नहीं है।

इन सारे विषयों पर बिहार विधान सभा में पुस्तकालय कमेटी के मेंबर और पालीगंज से विधायक संदीप सौरभ से बातचीत हुई। मेरा पहला सवाल यही था कि चुनाव जीतने के बाद बहुत सारे नेता तात्कालिक फायदों से जुड़े काम करते हैं ताकि उनके वोटर उनसे दूर न जाए लेकिन आप पुस्तकालय पर इतना अधिक जोर क्यों दे रहे हैं? 

इस पर संदीप सौरव का जवाब था कि तात्कालिक फायदे और नुकसानों की बजाए तात्कालिकता की प्रकृति समझने की जरूरत है। जहां पर जीवन-मरण का सीधा-सीधा संकट दिखे वहां पर तो तात्कालिकता को ध्यान में रखकर ही कदम उठाने की जरूरत होती है। उसके साथ बहुत लंबे समय की योजना नहीं बनाई जा सकती है।

लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि लंबे समय को ध्यान में रखकर काम न किया जाए। बहुत सारी जगहों पर नीतिगत हस्तक्षेप करने के लिए दूर का सोच कर कदम उठाने ही पड़ते हैं। आजादी के बाद से लेकर अब तक फंड, संचालन देखरेख और तमाम तरह की दूसरी तरह की कमियों की वजह से बिहार के ज्यादातर पुस्तकालय बर्बाद हो गए और इस मसले पर कोई काम नहीं हुआ। जबकि इस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। 

इसके बाद मेरा दूसरा सवाल था कि एक नेता होने के नाते एक पंचायत में इन सारी बातों पर लोगों से संवाद करना बहुत मुश्किल काम होता है। लोग सरकार से मिले पैसे जैसी योजनाओं पर ज्यादा गौर करते हैं ऐसे मुद्दे उन्हें अपने काम के लायक नहीं लगते। तो आप उनसे संवाद कैसे करते हैं? 

संदीप सौरभ का जवाब था कि हां यह बहुत मुश्किल काम है। लोगों ने ऐसे मुद्दों को ज्यादा तवज्जो देना नहीं सीखा है। लेकिन एक नेता होने की वजह से हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने कामकाज से लोगों के बीच भरोसा पैदा करने वाली सभी तरह की संभावनाएं पैदा करें। अगर हमारे कामकाज से भ्रष्ट आचरण जैसी कोई तस्वीर लोगों के मन में नहीं पैदा होती है। तब जनता और नेता के बीच का रिश्ता बहुत गहरा होता है। अगर हम अपने काम से जनता के साथ ऐसा रिश्ता बना पाते हैं तो बड़े-बड़े नीतिगत मसले पर जनता को अपने साथ पा सकते हैं। पुस्तकालय बनवाने से जुड़ा मुद्दा भी ऐसा ही है। लोग इसे हाथों-हाथ स्वीकारेंगे अगर प्रशासन के दूसरे पहलुओं पर हमारा काम काज बढ़िया रहता हो तो.....

तीसरा सवाल यह था कि बिहार में पुस्तकालयों की स्थिति ठीक करने के लिए आप लोगों ने किस तरह की रूपरेखा तैयार की है? 

 पुस्तकालयों को लेकर शिक्षा विभाग और बिहार सरकार की लापरवाही भयावह है! आजादी के समय बिहार में बहुत सारे पुस्तकालय खोले गए थे। लेकिन वह सब अब खत्म हो चुके हैं। जिन्होंने लोगों के बीच अलख जगाने का काम किया था। बिहार के प्रशासन की लापरवाही की वजह से उन्हें ही तिलांजलि दे दी गई है। यहाँ तक कि इन्होंने आज तक पुस्तकालयों के प्रबंधन-संचालन के लिए कोई गाइडलाइन भी नहीं बनाई है! 

गाइडलाइन का मतलब यह कि जब प्रशासन से यह पूछा गया कि बिहार में किस तरह के गाइडलाइन को फॉलो करके पुस्तकालयों का रखरखाव किया जाता है तो इस पर प्रशासन का कोई जवाब नहीं था। बहुत मुश्किल से बताया कि वह कोलकाता के किसी लाइब्रेरी के रखरखाव को फॉलो करते हैं। कहने का मतलब यह है कि अभी तक बिहार की लाइब्रेरी में किस तरह की किताबें होंगी? सरकारी और स्वतंत्र किताबें रखने की क्या व्यवस्था होगी? कैसे इन का इंतजाम किया जाएगा? इनसे जुड़ी बातों पर अब तक कोई गाइडलाइन नहीं बनी है। इसलिए पुस्तकालयों के प्रबंधन-संचालन के लिए सरकार द्वारा एक गाइडलाइन बनाने की बात तय हुई! 

2010 से लेकर अब तक सभी पुस्तकालयों को दिए गए फंड और उसके खर्च का 'ऑडिट' करने का निर्णय लिया गया! बिहार में एक राज्यस्तर का नया पुस्तकालय पटना में निर्मित करने का निर्णय लिया गया है जो अपने आप में अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो!

अभी बिहार में प्रमंडल स्तर के, जिला स्तर के 19 और अनुमंडल स्तर के  पुस्तकालय हैं। हमने निर्णय लिया है कि सभी प्रमंडलों, जिलों और अनुमंडलों में ऐसी पुस्तकालयों का निर्माण किया जाए!

भविष्य में प्रखंड और गाँव स्तर पर पुस्तकालयों की स्थापना करने की योजना निर्मित की जाएगी! 

अभी बिहार सरकार अपने शिक्षा बजट का सिर्फ 0.01% फंड पुस्तकालयों पर खर्च करती है, जबकि केरल में यह 3% है। भविष्य में हमें पुस्तकालयों पर बजट बढ़ाना है!

पुस्तकालय कमिटी अपने प्रस्तावों को विधानसभा अध्यक्ष को अनुमोदित करती है, फिर उसे सदन में रखा जाता है! अब देखिए इस पर आगे क्या होता है। हमने अपनी तरफ से एक रूपरेखा तैयार करके तो भेज दी है। 

इन सारे सवालों के बाद मेरा विधायक संदीप सौरभ से अंतिम सवाल था कि बिहार में जब छठ आता है तो बहुत सारे गांव-देहात के माननीय लोग घाट पर माटी डालने का पोस्टर छपवाते हैं। लेकिन आपस में मिलकर एक पुस्तकालय नहीं बनवा सकते हैं। तो क्या यह कहा जाना सही है कि बिहार में पढ़ने लिखने की संस्कृति नहीं है?

इस पर संदीप सौरभ का जवाब था कि बिहार के पुस्तकालयों कॉलेजों और स्कूलों सभी शिक्षण संस्थानों से जुड़े पैमानों के अध्ययन के बाद अगर यह निष्कर्ष निकाला जाए कि बिहार में पढ़ने लिखने की संस्कृति विकसित नहीं हो पाई है तो इसमें कोई गलत बात नहीं होगी। लेकिन संस्कृति विकसित करने का काम समाज के अगुवाओं का होता है। लोकतांत्रिक समाज में सरकार से बनी सिस्टम का होता है। इसके लिए जनता को दोष नहीं दिया जा सकता है? अगर सिस्टम सही होगा तो संस्कृतियां भी जनवादी सरोकार से जुड़ी हुई बनेंगी।

इसके बाद भागलपुर के प्रोफेसर डॉक्टर योगेंद्र महतो से बात की। जैसे ही पुस्तकालय से जुड़ा सवाल पूछा तो उन्होंने हंसकर कहा कि क्या सवाल पूछ लिया? आज के जमाने में भला कोई ऐसे भी सवाल पूछता है? अब क्या बताऊं? मैं खुद जिस विश्वविद्यालय में पढ़ाता हूं। वहां एक बड़ी लाइब्रेरी है। लेकिन लाइब्रेरी से क्या होता है? कोई पढ़ने ही नहीं आता। किताबें नई आती हैं। अलमारी में रखी जाती हैं। फिर से नई आती है और अलमारी में ही रखी रह जाती हैं। पढ़ना लिखना तो जैसे हमारा समाज भूल ही गया है।लोग कहते हैं इंटरनेट की वजह से किताबों का मोल कम हुआ है। यह बात मुझे सही नहीं लगती। इंटरनेट की वजह से सभी तरह की सूचनाएं एक जगह मिलने की संभावना बनती है। लेकिन यह किताबों में लिखे सिलसिलेवार अध्ययन को पूरी तरह से विस्थापित नहीं कर सकता। बिहार जैसे राज्य में तो कतई नहीं। हाल फिलहाल दिल्ली में हुआ सर्वे बताता है कि दिल्ली के 80% घरों में कंप्यूटर नहीं है। तो बिहार की बदहाली के बारे में हम सोच सकते हैं। स्वाध्याय के साथ ही ज्ञान की लगन बढ़ती है। बिना इस स्वाध्याय के समाज नहीं समझ सकता। 

और पढ़ने लिखने को कभी भी उपयोगितावाद ही नजरिए के साथ नहीं देखना चाहिए। हमारे समाज में पढ़ने लिखने का मतलब हमेशा नौकरी से जुड़ा जाता है। यह गलत है। समाज के कई तरह की परेशानियां तभी ठीक होती हैं जब व्यक्ति की निजी समझ ठीक होती है। इसका औजार अभी तक तो मुख्य तौर पर केवल पढ़ना लिखना है। गांव में आग जलाकर आग तापते हुए सर्दी की पूरी दोपहर लोग आपसी बातचीत में बिता देते हैं। यह अच्छी बात है। लेकिन जरा सोचिए ऐसे ही बैठकी लागाने के लिए गांव में पुस्तकालय होता तो कितना अच्छा होता। कई परेशानियां आने से पहले ही दम तोड़ देती। 

कई सालों तक भारत की प्रतिष्ठित सरकारी सेवा से जुड़े रहे बगहा निवासी सुरेश यादव से बात की। उन्होंने बताया कि भारत में कहां कोई पढ़ता है? पढ़ने की संस्कृति कुछ ऊंची जातियों तक ही सीमित लगी है मुझे। अब मुझे ही देख लीजिए स्कूल की किताबों के अलावा दुनिया में दूसरी तरह की किताबें भी होती हैं और पुस्तकालय जैसी कोई चीज होती है, यह पहली बार तब पता चला जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिला। नहीं तो बिहार के जिस गांव और कस्बे में पढ़ाई हुई, वहां तो ऐसा कुछ भी एहसास नहीं हुआ कि एक दुनिया ऐसी भी होती है। लिखना पढ़ना बहुत अच्छी बात है। लेकिन पता नहीं क्यों कभी कभार इसका खूब आग्रह एक विलासी किस्म का आग्रह लगता है?  लिखना-पढ़ना तभी ठीक है जब इसके साथ नाइंसाफियों के साथ लड़ने वाला जज्बा भी जुड़ा रहता है। समाज से कुछ लेकर समाज में ना लौटाने की वजह से हमारी जिंदगी में बहुत सारी परेशानियां पनपती हैं। पुस्तकालय से जुड़ी परेशानियां भी ऐसी ही है। इन गांवों से पढ़-लिखकर बड़ा नाम कमाने वाले लोगों ने भी अगर इसके बारे में ध्यान से सोचा होता तो हर गांव में पढ़ने लिखने की जगह होती। 

पुस्तकालय के मुद्दे पर इन सभी लोगों से बात कर मैं फिर से अगले दिन क्रिकेट टूर्नामेंट देखने पहुंचा। वहां खड़े एक लड़के से पूछा कि क्या यहां कोई पुस्तकालय है? उसने जवाब दिया कि यह पुस्तकालय क्या होता है?

library
Bihar
CPIML

Related Stories

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

पटना : जीएनएम विरोध को लेकर दो नर्सों का तबादला, हॉस्टल ख़ाली करने के आदेश

बिहार: 6 दलित बच्चियों के ज़हर खाने का मुद्दा ऐपवा ने उठाया, अंबेडकर जयंती पर राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया

बिहार: विधानसभा स्पीकर और नीतीश सरकार की मनमानी के ख़िलाफ़ भाकपा माले का राज्यव्यापी विरोध

बिहार में आम हड़ताल का दिखा असर, किसान-मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता

पटना: विभिन्न सरकारी विभागों में रिक्त सीटों को भरने के लिए 'रोज़गार अधिकार महासम्मेलन'

बिहार बजट सत्र: विधानसभा में उठा शिक्षकों और अन्य सरकारी पदों पर भर्ती का मामला 

बिहार : सीटेट-बीटेट पास अभ्यर्थी सातवें चरण की बहाली को लेकर करेंगे आंदोलन


बाकी खबरें

  • indian student in ukraine
    मोहम्मद ताहिर
    यूक्रेन संकट : वतन वापसी की जद्दोजहद करते छात्र की आपबीती
    03 Mar 2022
    “हम 1 मार्च को सुबह 8:00 बजे उजहोड़ सिटी से बॉर्डर के लिए निकले थे। हमें लगभग 17 घंटे बॉर्डर क्रॉस करने में लगे। पैदल भी चलना पड़ा। जब हम मदद के लिए इंडियन एंबेसी में गए तो वहां कोई नहीं था और फोन…
  • MNREGA
    अजय कुमार
    बिहार मनरेगा: 393 करोड़ की वित्तीय अनियमितता, 11 करोड़ 79 लाख की चोरी और वसूली केवल 1593 रुपये
    03 Mar 2022
    बिहार सरकार के सामाजिक अंकेक्षण समिति ने बिहार के तकरीबन 30% ग्राम पंचायतों का अध्ययन कर बताया कि मनरेगा की योजना में 393 करोड रुपए की वित्तीय अनियमितता पाई गई और 11 करोड़ 90 लाख की चोरी हुई जबकि…
  • covid
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 6,561 नए मामले, 142 मरीज़ों की मौत
    03 Mar 2022
    देश में कोरोना से अब तक 5 लाख 14 हज़ार 388 लोगों अपनी जान गँवा चुके है।
  • Civil demonstration in Lucknow
    असद रिज़वी
    लखनऊ में नागरिक प्रदर्शन: रूस युद्ध रोके और नेटो-अमेरिका अपनी दख़लअंदाज़ी बंद करें
    03 Mar 2022
    युद्ध भले ही हज़ारों मील दूर यूक्रेन-रूस में चल रहा हो लेकिन शांति प्रिय लोग हर जगह इसका विरोध कर रहे हैं। लखनऊ के नागरिकों को भी यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों के साथ युद्ध में मारे जा रहे लोगों के…
  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी चुनाव : पूर्वांचल में 'अपर-कास्ट हिन्दुत्व' की दरार, सिमटी BSP और पिछड़ों की बढ़ी एकता
    03 Mar 2022
    यूपी चुनाव के छठें चरण मे पूर्वांचल की 57 सीटों पर गुरुवार को मतदान होगे. पिछले चुनाव में यहां भाजपा ने प्रचंड बहुमत पाया था. लेकिन इस बार वह ज्यादा आश्वस्त नहीं नज़र आ रही है. भाजपा के साथ कमोबेश…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License