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भारत
राजनीति
मानवाधिकार दिवस पर 100 जनसंगठनों ने मनाया “जश्न-ए-संविधान”
10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर एनएपीएम, पीयूसीएल, किसान मजदूर शक्ति संगठन, किसान संघर्ष समन्वय समिति के साथ तकरीबन 100 जन संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर “जश्न-ए-संविधान” का आयोजन किया।
मुकुंद झा
10 Dec 2018
जश्न-ए-संविधान

पिछले चार वर्षों के राजनीतिक सफर और बहस ने हमारे देश के संवैधानिक ढांचे और उसके चरित्र को ख़त्म करने, उसे तोड़ने की कोशिश की। इस ख़तरे को देश की तमाम बौद्धिक और प्रगतिशील ताकतों ने महसूस किया और इसके खिलाफ लगातार संघर्ष किया जा रहा है। इनका कहना है कि वर्तमान सरकार और उनके मित्र संगठन और संघ परिवार नारों, जुमलों, ट्रोल आर्मी और हिंसक भीड़ के माध्यम से लोगों का ध्यान अपने कट्टरपंथी, कॉरपोरेट और जन विरोधी आर्थिक नीतियों से हटाने की कोशिश कर रही है। 

इस दौर में हमने देखा कि मुखर आवाज़ों को दबाने की खूब कोशिश हुई और उन पर हमले किए गए। दलित, अल्पसंख्यको खासतौर पर मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं। किसानों और श्रमिकों की स्थिति और खराब हुई है। छात्र, बुद्धिजीवी या कोई और वर्ग से कोई प्रश्न करता है तो उन्हें चुप कराने के लिए उन्हें देशद्रोही साबित कर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। इसलिए एक्टिविस्ट इसे एक अघोषित आपातकाल बता रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारा समाज इससे अनभिज्ञ है। वो इस खतरे को समझ रहा है। इसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रतिरोध कर रहा है।

अभी 6 दिसंबर को देश के तमाम वाम दलों ने देशभर में “संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ” मार्च निकाला। इससे पूर्व  बिहार में पटना के गाँधी मैदान में “भाजपा भगाओ-लोकतंत्र बचाओ” रैली की थी, जिसमें लाखों की संख्या में लोगों ने भागीदारी की।

इसी क्रम में आज 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर नेशनल एलायंस फॉर पब्लिक मूवमेंट (एनएपीएम) , पीयूसीएल, किसान मजदूर शक्ति संगठन, किसान संघर्ष समन्वय समिति के साथ तकरीबन 100 जन संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर “जश्ने संविधान” का आयोजन किया। इसमें देश भर के किसान, मजदूर, महिला, मनरेगा मजदूर समेत छात्रों ने हजारों की संख्या में भाग लिया। ये लोग पहले रामलीला मैदान में जमा हुए जहां से मार्च करते हुए जंतर-मंतर पहुंचे।  

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संविधान स्वाभिमान यात्रा

इससे पहले नेशनल एलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम) की ओर से संविधान स्वाभिमान यात्रा 2 अक्टूबर को दांडी से शुरू होकर 26 राज्यों से 65 दिन में चलकर दस दिसंबर को दिल्ली पहुंची। इसने सभी राज्यों में  स्थानीय जनसंगठनों के साथ मिलकर मजदूर किसानों की आम सभा का आयोजन किया गया। जिसमें सैकड़ों संख्या में स्थनीय लोगों शामिल हो रहे थे।

एनएपीएम का कहना है की "यह यात्रा देश के हज़ारों-लाखों किसानों, मजदूरों, महिलाओं और नौजवानों को साथ लाने के लिए चल रही है। हम लोग तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात और असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के जैसे राज्यों में संविधान सम्मान यात्रा कर के दिल्ली आए हैं। हज़ारों साथी अब हमारे साथ हैं। आने वाले चुनावों के पहले ये हम सबके लिए एक मौका है कि सरकार से सवाल करें।"

एनएपीएम के विजय ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस यात्रा में मूल भावना यह थी कि संविधान के मूल्यों के रक्षा की जाए जिस पर से वर्तमान सरकार ने बीते चार सालों में लोगो के बोलने पर प्रतिबन्ध लगाया है। पत्रकारों की हत्या हुई है, दाभोलकर से लेकर पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश ऐसे पत्रकार और बुद्धिजीवियों की हत्या कर दी वो भी केवल इसलिए क्योंकि वो एक विचारधारा के खिलाफ लिखते और बोलते थे। इसके साथ ही गाय के नाम पर जिस तरह से लोगों को मारा जा रहा है, ये हमारे देश के संविधान पर हमला था।  इन सबके खिलाफ  पूरे देश में 65 दिनों की यात्रा देश के 26 राज्यों में हुई इस दौरान हमारे सामने अलग अलग मुद्दे आये। चाहे वो किसानों, मज़दूरों का  मुद्दा हो या महिलाओं का मुद्दा हो या फिर मछुआरों का हो या विकास के नाम पर जिस तरह से आदिवासियों का विनाश किया जा रहा है। इन तमाम मुद्दों को लेकर आज हम यहाँ आए हैं। 

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सीतापुर  से आये मनरेगा मजदूर ने कहा कि न उन्हें काम मिल रहा है, न ही समय पर पैसा मिलता है। कई बार 6-6 महीने तक भुगतान नहीं होता है। लेकिन हमारी सरकार रोजगार कि जगह हमें मंदिर में उलझा रही है, लेकिन हमें रोजगार चाहिए, मंदिर नहीं।

अररिया से आई तकरीबन 80 वर्षीय वृद्ध महिला शबाना ने बताया कि बिहार में उन्हें पेंशन बहुत ही कम मिलती है और जो मिलती है वो भी समय पर नहीं मिलती है। पिछले 8 महीने से उन्हें किसी भी तरह कि राशि नहीं मिली है। सर्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाला राशन भी नहीं मिल रहा है।

बिहार के किसान रामप्रवेश ने कहा कि आज भारत में सबसे गहरा किसान संकट है। पूरे बिहार में सूखा आये पर नीतीश सरकार ने किसी भी तरह की न तो आर्थिक मदद दी और न बीमा का पैसा मिला है।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि नेता आज भारत के संविधान की शपथ ले रहे हैं लेकिन वो ही संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं। वो किसान और मजदूरों के पक्ष में कानून नहीं बदल रहे बल्कि ये इनके खिलाफ बदलाव कर रहे हैं। इसके खिलाफ हमारा संघर्ष है, इसलिए हम आज दिल्ली आए हैं। हम सर्वधर्म सद्भाव और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन हम आज देख रहे हैं कि देश में जातिगत हिंसा, धार्मिक हिंसा और अन्याय बढ़ रहा है जिसके खिलाफ प्रतिरोध जरूरी है।

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मेधा आगे कहती हैं कि संविधान का सम्मान होना चाहिए और वो तभी होगा जब सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य का लाभ मिले। गाँव सभा को जल, जंगल और जमीन पर अधिकार होना चाहिए पर हमारी सरकार इन पर काम न करके जाति-धर्म के नाम पर लोगों को बाँट रही है, जो संविधान की मूलभावना के खिलाफ है।

 


 

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“जश्न-ए-संविधान”
संविधान सम्मान यात्रा
Medha patkar

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