NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
मौतें तभी रुकेंगी जब अस्पताल, डॉक्टर और बजट पर बात होगी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बिहार भारत के उन चार राज्यों में है, जहाँ स्वास्थ्य कर्मियों की बहुत चिंताजनक कमी है। एलोपैथिक डॉक्टरों की उपलब्धता के मामले में भी बिहार सबसे नीचे है। नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के मुताबिक, बिहार में 28,391 लोगों पर एक डॉक्टर है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
17 Jun 2019
Hospital
फोटो साभार: Telegraph India

बिहार में क्या हो रहा है, हम सब देख रहे हैं। एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से बीमारी से बच्चे मरते चले जा रहे हैं। यूपी में भी ऐसा ही होता है। और ये लगभग हर साल होता है। कुछ दिन इस पर बात होती है और फिर हालात सामान्य होने पर बात ख़त्म हो जाती है।  

एक सरकारी तंत्र हमें यह अपने भाषणों से समझाने की कोशिश में लगा रहता है कि जो संपन्न है, वह ठीक-ठाक जीवन जी सकते हैं। जबकि असल सच्चाई  यह होती  है कि सरकारी तंत्र ऐसा माहौल बनाने में लगा रहता है जिसमे योग्यता की बजाए लूट का बोलबला रहता है। सरकारी अस्पताल, सस्ते डॉक्टर, सस्ती दवा के बजाय महंगे प्राइवेट हॉस्पिटल, महंगी दवा और महंगे डॉक्टर से इलाज करवाने वाला माहौल खुद ब खुद बनता चला जाता है। और अंत में बचा हमारा समाज उसके दिमाग को मीडिया अपने सस्ते मनोरंजन से कुंद करती रहती है। 

साल 2017-18 में स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का केवल 2.5 फीसदी खर्च किया गया। जबकि इस साल में सारी मौतों में से 90 फीसदी मौतें स्वास्थ्य क्षेत्र यानी बीमारियों से जुड़ी थी।

आइए हम बिहार के स्वास्थ्य से जुड़े बजट पर बात करते हैं और जानते हैं कि असली ख़ामी कहां है? 

शायद यह तथ्य बहुत चौंकानेवाला हो सकता है, पर निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भरता के मामले में बिहार समूचे देश में अव्वल है। साल 2016 में द टेलीग्राफ़ द्वारा प्रकाशित नेशनल सैंपल सर्वे के आधार पर ब्रूकिंग्स इंडिया के विश्लेषण पर नज़र डालते हैं-

– बिहार में स्वास्थ्य पर औसतन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष ख़र्च 348 रुपये है, जबकि राष्ट्रीय औसत 724 रुपया है। 
– निजी अस्पतालों में भर्ती का अनुपात राज्य में 44.6 फ़ीसदी है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 56.6 फ़ीसदी है। 
– निजी अस्पतालों में दिखाने का अनुपात बिहार में 91.5 फ़ीसदी है। इसमें राष्ट्रीय अनुपात 74.5 फ़ीसदी है।
– बिहार की सिर्फ़ 6.2 फ़ीसदी आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा है। इसमें राष्ट्रीय औसत 15.2 फ़ीसदी है। 
– स्वास्थ्य पर बहुत भारी ख़र्च के बोझ तले दबे परिवारों का आँकड़ा 11 फ़ीसदी है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 13 फ़ीसदी है।
– वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के बाद सालाना 10 फ़ीसदी बजट में बढ़ोतरी की ज़रूरत को बिहार सरकार ने लागू नहीं किया है।

हालाँकि 2014-15 में बजट का 3.8 फ़ीसदी हिस्सा स्वास्थ्य के मद में था और यह 2016-17 में 5.4फ़ीसदी हो गया, लेकिन 2017-18 में यह गिरकर 4.4 फ़ीसदी हो गया। इस अवधि में कुल राज्य बजट में 88 फ़ीसदी की बढ़त हुई थी।

- बिहार में स्वास्थ्य ख़र्च का लगभग 80 फ़ीसदी परिवार वहन करता है, जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 74 फ़ीसदी है। 
- बिहार में एक भी ऐसा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जो स्थापित मानकों पर खरा उतरता हो।
- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव के मामले में भी बिहार पहले स्थान पर है। साल 2015 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ने जानकारी दी थी कि हर एक लाख जनसंख्या पर एक ऐसा केंद्र होना चाहिए। इस हिसाब से बिहार में 800 केंद्रों की दरकार है। पर राज्य में 200 ही ऐसे केंद्र हैं।
- राज्य में 3,000 से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपेक्षित हैं, लेकिन ऐसे केंद्रों की संख्या सिर्फ़ 1,883 है।
- एक ग्रामीण स्वास्थ्य उपकेंद्र के तहत लगभग 10 हज़ार आबादी होनी चाहिए, लेकिन बिहार में ऐसा एक उपकेंद्र 55 हज़ार से अधिक आबादी का उपचार करता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बिहार भारत के उन चार राज्यों में है, जहाँ स्वास्थ्यकर्मियों की बहुत चिंताजनक कमी है।

एलोपैथिक डॉक्टरों की उपलब्धता के मामले में भी बिहार सबसे नीचे है। नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के मुताबिक, बिहार में 28,391लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि दिल्ली में यही आँकड़ा 2,203 पर एक डॉक्टर का है। 
- नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल, 2018 के अनुसार, बिहार की 96.7 फ़ीसदी महिलाओं को प्रसव से पहले पूरी देखभाल नहीं मिलती है। 
- यूनिसेफ़ के अनुसार, बच्चों में गंभीर कुपोषण के मामले में भी बिहार देश में पहले स्थान पर है। साल 2014-15 और 2017-18 के बीच पोषण का बजट भी घटाया गया है। 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. नफ़ीज़ कहते हैं कि साल 1995से यह बीमारी गर्मियों में सैकड़ों लोगों  की जान ले लेती है। ऐसा तो है नहीं कि यह बीमारी अचानक से आती है और सैकड़ों बच्चों का जान ले लेती है। यह पूरी तरह से सरकारी तंत्र की बर्बादी की कहानी बयान करता है।

इतना होने के बाद भी इस बीमारी से लड़ने की दवाई नहीं है। इस बीमारी से परेशान होने वाले बच्चे समाज के सबसे निचले तबके से आते हैं। जिनमें कुपोषण का स्तर बहुत ऊँचा होता है। यह स्थिति होने के बाद भी बिहार के स्वास्थ्य बजट की खस्ताहाली से हम परिचित ही हैं। अगर प्रशासन चौकन्ना होता तो बहुत सारे बच्चों को बचाया जा सकता था।   

ये भी पढ़ें : बिहार : कुशासन की भेंट चढ़ते बच्चे और ख़ामोश विपक्ष!

Bihar
bihar hospitals
bihar govt.
Nitish Kumar
bihar deaths
children death
poor condition of hospitals in bihar

Related Stories

बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’

समाज में सौहार्द की नई अलख जगा रही है इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

क्या बिहार उपचुनाव के बाद फिर जाग सकती है नीतीश कुमार की 'अंतरात्मा'!

ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी पर ‘विकास का बुलडोजर‘ रोके बिहार सरकार 

बिहार में क्रिकेट टूर्नामेंट की संस्कृति अगर पनप सकती है तो पुस्तकालयों की क्यों नहीं?

बिहार चुनाव : नब्बे के पहले और बाद में जाति

‘सुशासन राज’ में प्रशासन लाचार है, महिलाओं के खिलाफ नहीं रुक रही हिंसा!

क्या ग्राम पंचायतें सच में न्याय कर रही हैं?

ख़ास रिपोर्ट: घाटी से लौटे बिहारी कामगारों की कश्मीरियों पर क्या राय है?


बाकी खबरें

  • असद रिज़वी
    CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा
    06 May 2022
    न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
  • नीलाम्बरन ए
    तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है
    06 May 2022
    रबर के गिरते दामों, केंद्र सरकार की श्रम एवं निर्यात नीतियों के चलते छोटे रबर बागानों में श्रमिक सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया
    06 May 2022
    इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
  • लाल बहादुर सिंह
    यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती
    06 May 2022
    नज़रिया: ऐसा लगता है इस दौर की रणनीति के अनुरूप काम का नया बंटवारा है- नॉन-स्टेट एक्टर्स अपने नफ़रती अभियान में लगे रहेंगे, दूसरी ओर प्रशासन उन्हें एक सीमा से आगे नहीं जाने देगा ताकि योगी जी के '…
  • भाषा
    दिल्ली: केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद : न्यायालय ने मामला पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा
    06 May 2022
    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License