NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मध्य प्रदेश: चार साल बाद भी खरक बांध के विस्थापित आदिवासियों को मुआवज़े का इंतज़ार
मध्य प्रदेश के खरगोन में आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन जारी। दस दिन गुज़रने के बाद भी अधिकारी ख़ामोश।
सुमेधा पॉल
15 Sep 2018
MP Kharak Dam

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम के  एक छोटे शहर खरगोन में चिलचिलाती गर्मी में पैदल मार्च करते हुए अदिवासी महिलाएं "गरीब सरकार को भीख  दो"  के नारे लगाती रहीं। ये महिलाएं अधिकारियों के उस बयान से नाराज़ थीं जिसमें कहा गया था कि उनके पुनर्वास के लिए धन की "कमी" है, इन आदिवासियों ने मिलकर शिवराज सरकार के लिए 440 रुपए "भीख" के तौर पर इकट्ठा किया। इन्होंने कहा "ग़रीब शिवराज सरकार के लिए आदिवासी मलिकों की ओर से ये भीख है"। उन्होंने भीख के तौर पर शिवराज सरकार को खिलौने वाला हेलीकॉप्टर भी दिया कि और यह भीख देते हुए यह नारा लगाया "हेलीकॉप्टर तुम्हारा, ज़मीन हमारी"!

आदिवासियों के इस क़दम से परेशान ज़िला प्रशासन ने इस "भीख" को स्वीकार करने से इंकार कर दिया, इस पर आदिवासियों ने यह जानना चाहा कि जब सरकार अदानी और अंबानी जैसे कॉर्पोरेट घरानों से भीख लेती है, तो उन्हें जनता से स्वीकार करने में क्या परेशानी हो रही है? नाराज़ आदिवासियों के एक क़रीबी ने बताया कि आदिवासियों ने कलेक्ट्रेट के गेट पर भीख दिए जाने वाले पैसे को छोड़ दिया।

साल 2012 से कर रहे हैं विरोध प्रदर्शन

यह मध्यप्रदेश राज्य के अधिकारियों के ख़िलाफ़ विरोध का एक हिस्सा है जो 10 वें दिन में प्रवेश कर चुका है। जगृत आदिवासी दलित संगठन (जेएडीएस) के बैनर तले विरोध कर रहे बरेला आदिवासियों ने 2012 से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं जब खड़क बांध के लिए ज़मीन पहली बार अधिग्रहित की गई थी। राज्य के अधिकारियों से बैठक के बाद कोई नतीजा न निकलने और मुख्यमंत्री की चुप्पी के चलते राज्य प्रशासन के निरंतर नज़रअंदाज़ किए जाने के बाद ये विरोध किया जा रहा है।

खारक बांध के निर्माण के चलते विस्थापित हुए गांव के लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवज़ा देने का आदेश दिया था। दो साल बाद भी मुआवज़ा न मिलने से ये विस्थापित ग्रामीण निराश और खफा है और कुछ लोग मुआवजे की उचित राशि मिलने की उम्मीद में इंतजार कर रहे हैं। खड़क बांध के निर्माण के कारण पांच गांवों के 300 से अधिक परिवार विस्थापित हुए, वहीं कुछ क्षेत्र बांध से आने वाले पानी से डूबने लगे हैंI 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए जेएडीएस की माधुरी बेन के नाम से मशहूर माधुरी कृष्णास्वामी ने कहा, "बांध के निर्माण के कारण उनके खेतों में पानी भर गए, घर बर्बाद हो गए और परिवार विस्थापित हो गए और अब अधिकारी इन आदिवासियों को मुआवज़ा देने से इंकार कर रहे हैं, विरोध प्रदर्शन ही हमारा आख़िरी उपाय है।" सरकार ने बार-बार कहा है कि आदिवासियों को मुआवज़ा देने के लिए हमारे पास पर्याप्त धन नहीं है। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, उन्होंने कहा, "अगर सरकार चाहती तो वह आसानी से सभी प्रभावित परिवारों को मुआवजा मुहैया करा देती, लेकिन सरकार के पास सरकार के नेताओं के चाय पार्टियों पर खर्च करने के लिए करोड़ों पैसे हैं ... पर उन लोगों के लिए नहीं, जिनकी सरकार है?"

आदिवासियों को मुआवज़ा देने की अनुमानित राशि 20 करोड़ रुपए है वहीं इतना ही राशि मध्य प्रदेश सरकार अपने मंत्रिमंडल में नेताओं को चाय पिलाने पर खर्च करती है।

अपने आंदोलन को तेज़ करते हुए इन आदिवासियों ने अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सवाल पूछते हुए पत्र लिखा है कि "क्या आदिवासी नागरिक नहीं हैं, क्या यह हमारी सरकार नहीं है?"। प्रभावित परिवार 2013 से मध्य प्रदेश की पुनर्वास नीतियों के तहत पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। उनके विरोधों का गंभीर रूप से दमन किया गया जिसमें इन आदिवासियों पर बुरी तरह लाठी बरसाए गए। विरोध कर रहे आदिवासियों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थें। इन आदिवासियों पर की गई कारर्वाईयों में महिलाओं सहित 27 लोगों को गिरफ्तार किया गया। ये मामला उच्च न्यायालय में  पहुंचा। अदालत ने इनके दावों का समर्थन किया और जुलाई 2016 में पुनर्वास के लिए आदेश दिया। जनवरी 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि उन्हें 2002 की एमपी पुनर्वास नीति और 2008 की नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा तय नीति के प्रावधानों के तहत पुनर्वास किया जाए।

अभी तक कोई मुआवजा भुगतान नहीं मिला

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर तीन शिकायत निवारण प्राधिकरण भी आदिवासियों के दावों की जांच के लिए स्थापित किए गए थे, और इन प्राधिकरणों ने मई-जून 2018 में 129 मामलों में 3.50 लाख से 11.50 लाख रुपए का भुगतान करने के लिए आदेश दिया था। हालांकि मध्य प्रदेश  सरकार अब भुगतान करने से इंकार कर रही है, और वरिष्ठ अधिकारी मुक़दमे में आदिवासियों को फंसाने की धमकी दे रहे हैं। 97 परिवारों के संबंध में आदेश पारित करने से पहले प्राधिकरणों ने भी उनकी परेशानी को समझा। साफ तौर पर इंकार करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करने के बाद आदिवासी पिछले 10 दिनों से खारगोन में कलेक्ट्रेट के बाहर धरना पर बैठे हैं।

न्यूज़़क्लिक से बात करते हुए जागरूक आदिवासी दलित संगठन  की एक सदस्य तेजस्विता ने बताया कि सुनवाई ख़त्म होने के बाद आदिवासियों को मुआवजे में एक पैसा भी नहीं मिला। उन्होंने कहा कि विस्थापित लोगों के आकलन के तौर तरीकों में कई विसंगतियां थीं। उन्होंने कहा, "क़ायदे से आदिवासियों को बांध निर्माण से छह महीने पहले मुआवजा दिया जाना चाहिए था और कई लोगों को खुद को विस्थापित लोगों के रूप में साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था, वहीं कुछ मामलों में बच्चों को इस सूची का हिस्सा बनाया गया था जबकि माता-पिता को इसमें शामिल नहीं किया गया था"।

राज्य की तरफ से किए जा रहे लापरवाही को लेकर अदालत ने राज्य सरकार से मुआवज़े की प्रक्रिया को तेज़ करने को कहा। हालांकि, राज्य सरकार ने अभी तक लोगों के लिए कोई ठोस समाधान नहीं किया है। माधुरी ने कहा, "अदालत के आदेशों का पालन नहीं करना अदालत की अवमानना नहीं है, वे (सरकार) क़ानूनी तौर पर हमारे लिए उत्तरदायी है।"

वर्तमान में प्रदर्शनकारी राज्य के अधिकारियों से जवाब लेने के लिए कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं। शनिवार को कलेक्टर पर जबर्दस्त दबाव बनाने के बाद आदिवासियों ने उनका ध्यान अपनी आकर्षित किया, फिर भी उन्हें कोई उचित जवाब  नहीं मिला ।

इन घटनाओं से पहले राज्य सरकार ने भी इनकार कर दिया था कि एक तंत्र मौजूद है जिसके अंतर्गत आदिवासियों को मुआवजा दिया जा सकता है। सरकार के इन दावों को नर्मदा बचाओ आंदोलन  और जेएडीएस दोनों ने ख़ारिज कर दिया क्योंकि उन्होंने बताया कि 2002 की राज्य नीति और 2008 की नर्मदा नीति के तहत ये आदिवासी उचित मुआवजे और पुनर्वास के पात्र हैं। अदालत के आदेशों के कार्यान्वयन न होने पर अब जेएडीएस अदालत की अवमानना को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ एक नई याचिका दायर करने की सोच रही है।

'खड़क बांध का बलपूर्वक निर्माण'

कुछ समय पहले जारी की गई एनबीए की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, खड़क बांध का निर्माण बलपूर्वक शुरू किया गया था। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, "एसडीएम जितेंद्र सिंह चौहान अपने 150 पुलिसकर्मियों के साथ ज़मीन खुदाई करने वाली मशीन के साथ चौखांडे गांव पहुंचे और जबरन बांध के लिए काम शुरू करने की कोशिश की, जब ग्रामीणों ने एसडीएम से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने पुलिस को लाठी चार्ज करने का आदेश दे दिया।" नर्मदा बचाओ आंदोलन  ने ज़मीन के अवैध अधिग्रहण की भी चेतावनी दी थी क्योंकि उक्त बांध को वन संरक्षण अधिनियम के तहत मंज़री और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली थी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने साल 2011 में बांध के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू किया; इसके अलावा, नर्मदा बचाओ आंदोलन  ने भी डर व्यक्त किया था कि इस निर्माण से बदवानी और खरगोन ज़िलों में सात गांवों डूब जाएंगे।

जुलाई 2012 से खरगोन ज़िले के जुना बिल्वा, कनियापनी और चौखंद में कुछ लोगों को कलेक्टर के दिशानिर्देशों के ख़िलाफ़ 40,000 रुपए प्रति एकड़ (0.4 हेक्टेयर) बेहद कम मुआवजे को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। क्लेक्टर के दिशानिर्देश में ग़ैर-सिंचित भूमि के लिए मुआवजे की राशि 1.60 लाख रुपए थी और सिंचित भूमि के लिए 3.20 लाख रुपए। लोगों को कहा गया कि उन्हें तीन क़िस्तों में मुआवज़े का भुगतान किया जाएगा और यदि उन्होंने विरोध किया तो उन्हें परियोजना के पूरा होने तक जेल भेज दिया जाएगा।

साल 2013 के चुनाव के बाद से इस साल के अंत में राज्य में होने वाले चुनावों तक आदिवासियों को मुआवज़ा देने और पुनर्वास करने का मुद्दा नहीं सुलझा है। राज्य सरकार अपने रुख बदलने से इंकार कर रही है, प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री से कुछ कठिन सवाल पूछ रहे हैं - क्या सरकार क़ानून के शासन से ऊपर है? क्या मध्य प्रदेश आदिवासियों का राज्य नहीं है? ग्राउंड पर कई लोग मानते हैं कि यह मुद्दा खड़क बांध तक ही सीमित नहीं है, सरकार द्वारा मुआवज़े का साफ तौर पर अस्वीकार करना अदिवासी लोगों को उनके भूमि के अधिकार और जीवनयापन के अधिकार का व्यवस्थित तरीक़े से इंकार करने के एक तंत्र के रूप में है और साथ ही आदिवासियों को भूमिहीन करने का प्रमुख उदाहरण  हैI

Madhya Pradesh
Kharak Dam
bhoomi adhigrahan
land acquisition
tribals

Related Stories

परिक्रमा वासियों की नज़र से नर्मदा

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  

भारत को राजमार्ग विस्तार की मानवीय और पारिस्थितिक लागतों का हिसाब लगाना चाहिए

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License