NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मध्यप्रदेश: उपचुनाव के नतीजों में दर्ज सन्देश
मध्यप्रदेश विधानसभा की इन दोनों सीटों के उपचुनावों में जीत का जश्न मनाने और उसके लिए श्रेय बटोरने की जल्दबाजी , वोटों की कमी के लिए इधर उधर के बहाने तलाशने की बजाय असली कारण देखने चाहिए और नया सारथी और रथ ढूंढने की बजाय रास्ते और मंजिल के बारे में सोचना चाहिए।
बादल सरोज
01 Mar 2018
मध्य प्रदेश

कल बुधवार को गिनती हो गयी और 24 फरवरी को हुये मध्यप्रदेश विधानसभा की दोनों सीटों - शिवपुरी जिले की कोलारस और अशोक नगर जिले की मुंगावली - के नतीजे आ गये । दोनों सीट कांग्रेस विधायकों की मृत्यु के चलते खाली हुयी थीं । दोनों पर एक बार फिर कांग्रेस उम्मीदवार विजयी हुये हैं ।

मगर चुनाव परिणाम सिर्फ जीत या हार के द्वैत में नहीं देखे जाते । खासतौर से वहां जहां सिर्फ नौ महीने बाद प्रदेश की विधानसभा के आमचुनाव होने जा रहे हों।  यहां के उपचुनावों के नतीजों का विश्लेषण कुछ अधिक आयामों से किये जाने की दरकार रखता है । तब और भी जब ये उपचुनाव उस नेता की संसदीय सीट में हुये हों जिसे भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये जाने की तैयारी हो, जिसे पूरी कांग्रेस अपना तारणहार माने बैठी हो ।

कोलारस सीट पर कांग्रेस 8086 के अंतर से जीती है, जबकि मुंगावली में उसकी जीत का अंतर सिर्फ 2124 है । पिछले आमचुनाव 2013 में यही अंतर क्रमशः 24953 और 20765 था । लोकसभा के 2014 के चुनाव में इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की बढ़त काफी अधिक थी ।

जीत के अंतर का घटकर कोलारस में एक चौथाई और मुंगावली में दसवां हिस्सा रह जाना इन उपचुनावों का असली सन्देश है । क्योंकि ऐसा तब हुआ है,  जब ; 2014 की मोदी लहर नहीं है : कि शिवराज सिंह सरकार के असाधारण भ्रष्टाचार और चौतरफा विफलताएं जाहिर उजागर हैं : कि आबादी के सभी तबके उनके खिलाफ असंतोष से उबले पड़े हैं : कि ग्रामीण इलाकों (दोनों ही सीट्स ग्रामीण हैं) में किसानो की तबाही में कोई कसर बाकी नहीं रही है: कि कर्मचारियों, मजदूरों का एक भी महकमा ऐसा नहीं है जो आन्दोलनरत न हो ।

और ठीक यही बातें चुनाव अभियान से गायब थीं । भाजपा का इनसे मुंह चुराना स्वाभाविक था । मगर कांग्रेस भी इन्हें छू तक नहीं रही थी । असल में तो कांग्रेस लड़ ही नहीं रही थी - लड़ रहे थे स्थानीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्होंने इसे स्वयं की प्रतिष्ठा का चुनाव इस हद तक बनाया हुआ था  कि एकाधिक सभाओं में उन्होंने कहा भी कि "यह चुनाव मेरे और शिवराज सिंह के बीच है ।" सारी लड़ाई व्यक्तिकेंद्रित थी । 

शिवराज सिंह ने अपनी पूरी ताकत और सारी प्रशासनिक मशीनरी झोंकी हुयी थी और हर संभव-असंभव तिकड़म आजमाई जा रही थी । इसके लिए उन्हें और उनके दो मंत्रियों को चुनाव आयोग की फटकार भी मिली । वोटरलिस्ट की धांधली पकड़ी गयी । अशोकनगर के कलेक्टर को हटाया भी गया । सिंधिया का पूरा अभियान इस प्रशासनिक दुरुपयोग के खिलाफ था । असली मुद्दे गायब थे, राजनीति नदारद थी ।

न किसानों की आत्महत्यायें,  मन्दसौर में गोली चलाकर की गयी उनकी हत्यायें इस अभियान का मुद्दा थीं, न उपज के दाम और कर्ज के फंदों का जिक्र था । ग्रामीण विकास के पैसे में भ्रष्टाचार और उसका दुरूपयोग, शिक्षा-स्वास्थ्य-बिजली के निजीकरण से जनता पर बरपा कहर चर्चा में नही था । महंगाई, रोजगार, कामकाज की अर्ध-गुलामी सरीखी दशायें उल्लेख तक में नहीं थी। मामला "गुड़ खाएंगे गुलगुलों से परहेज करेंगे" भर का नहीं था।  उससे आगे - मेरा गुड़ तेरे गुड़ से ज्यादा रवेदार है, का था।  

 

जो प्रदेश, उसमे भी जो इलाका, दलित और महिला यातनाओं का कॉन्सट्रेशन कैंप बना हो वहां इस अमानवीय अत्याचार का चुनावी भाषणों  में जिक्र  तक न करने की कार्यनीति इस बीच "समझदार" हो गयी कांग्रेस की उस समझदारी का हिस्सा है, जिसके चलते अब उसने साम्प्रदायिकता का नाम तक लेना बन्द कर दिया है । उस कांग्रेस का जिसने अपना यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार करके खुद को व्यावहारिक रूप से हिन्दू पार्टी बनाने का निर्णय ले लिया है । हिन्दू के उनके पैमाने हिंदुत्व पर आधारित हैं । जब आधार ही मनु बन जायें तो फिर कहाँ दलित और कैसी औरत और काहे का साम्प्रदायिकीकरण !! 

कुलमिलाकर कारणों पर सोचीसमझी चुप्पी मारकर परिणामों पर बुदबुदाने भर से जनता में भरोसा पैदा नहीं होता । बर्बादी लाने वाली नीतियों को चन्दन की तरह धारण कर उन्हें बदलने की जगह नेता भर बदलने की दवाई लेकर जाने से मर्ज ठीक करना तो दूर मरीज में विश्वास तक पैदा नहीं किया जा सकता ।

भाजपा राज्य सरकार के पिछले तीनों पंचवर्षीय कार्यकाल में कांग्रेस इनमे से किसी भी जनमुद्दे पर सड़क पर नहीं निकली।  व्यापमं और मंदसौर से पूरा प्रदेश हिल गया कांग्रेस की नींद नहीं खुली। लगभग हर जंगल हर जमीन बिक गयी मगर कांग्रेस की तंद्रा नहीं टूटी। मैदान सिकुड़ता गया, दलदल फैलता गया, कांग्रेस अपने गुटों के बीच खो-खो, कबड्डी खेलती रही।   

गंभीर राजनीति गंभीर विश्लेषण मांगती है।  हार में जीत की सम्भावनायें  - जीत में हार की आशंकायें देखने का शऊर सिखाती है।  मध्यप्रदेश विधानसभा की इन दोनों सीटों के उपचुनावों में जीत का जश्न मनाने और उसके लिए श्रेय बटोरने की जल्दबाजी , वोटों की कमी के लिए इधर उधर के बहाने तलाशने की बजाय असली कारण देखने चाहिए और नया सारथी और रथ ढूंढने की बजाय रास्ते और मंजिल के बारे में सोचना चाहिए। 

मगर कांग्रेस से ऐसा करने की उम्मीद करना कुछ ज्यादा ही होगा। 

मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान
बीजेपी
कांग्रेस
ज्योतिरादित्य सिंधिया

Related Stories

मध्य प्रदेश: 22% आबादी वाले आदिवासी बार-बार विस्थापित होने को क्यों हैं मजबूर

झारखंड चुनाव: 20 सीटों पर मतदान, सिसई में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक ग्रामीण की मौत, दो घायल

झारखंड की 'वीआईपी' सीट जमशेदपुर पूर्वी : रघुवर को सरयू की चुनौती, गौरव तीसरा कोण

मध्यप्रदेश: रीवा में बस हादसा ,नौ की मौत, 23 घायल

मध्यप्रदेश: एक और आश्रयगृह बना बलात्कार गृह!

हमें ‘लिंचिस्तान’ बनने से सिर्फ जन-आन्दोलन ही बचा सकता है

''सिलिकोसिस बीमारी की वजह से हज़ारो भारतीय मजदूर हो रहे मौत के शिकार''

यूपी-बिहार: 2019 की तैयारी, भाजपा और विपक्ष

असमः नागरिकता छीन जाने के डर लोग कर रहे आत्महत्या, एनआरसी की सूची 30 जुलाई तक होगी जारी

एमरजेंसी काल: लामबंदी की जगह हथियार डाल दिये आरएसएस ने


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License