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'मेक इन इंडिया' के वास्ते रेलवे निजीकरण के रास्ते!
सरकार गठन के कुछ ही दिनों बाद ख़बरों में ये बातें आने लगीं थी कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले सभी प्रमुख सरकारी उपक्रमों का क्रमशः निजीकरण किया जाना है। इसी क्रम में सरकार ने अपने नीति आयोग के माध्यम से भारतीय रेलवे की काया कल्प हेतु ‘100 दिन का ऐक्शन प्लान' जारी किया है।
अनिल अंशुमन
04 Jul 2019
'मेक इन इंडिया' के वास्ते रेलवे निजीकरण के रास्ते!

सावधान! बहुत जल्द जब आप ट्रेन में सफ़र के बाद किसी भी बड़े स्टेशन पर उतरेंगे तो रेलवे के टीटीई की बजाय वहाँ तैनात निजी कंपनियों के ‘बाउंसरनुमा कर्मी‘ आपसे टिकट वसूलेंगे। ख़बर है कि प्रयोग के तौर पर कुछ बड़े स्टेशनों पर यह प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। इस बार देश को ‘सुरक्षित' बनाने के लिए भारतीय रेलवे को निशाना बनाया जाएगा। सरकार ने इसके संचालन के सभी आंतरिक ढांचों में रद्दो बदल करने के लिए नीतिगत प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसके तहत नए जनादेश से पुनः सत्तारूढ़ हुई केंद्र की सरकार ने, भारतीय रेलवे का निगमीकरण कर उसकी बागडोर को निजी कंपनियों के हवाले करने का फ़ैसला किया है। यह पुनीत राष्ट्रीय धर्म निभाया जाएगा ‘मेक इन इंडिया‘ के हाईटेक विकास के वास्ते निजीकरण के रास्ते पर चलकर। सरकार गठन के कुछ ही दिनों बाद ख़बरों में ये बातें आने लगीं थी कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले सभी प्रमुख सरकारी उपक्रमों का क्रमशः निजीकरण किया जाना है। इसी क्रम में सरकार ने अपने नीति आयोग के माध्यम से भारतीय रेलवे की काया कल्प हेतु 100 दिन का ऐक्शन प्लान जारी किया है। जिसमें रेलवे की ट्रेनों को चलाने, स्टेशनों के रखरखाव तथा उसकी सुरक्षा समेत सारे काम-काज संभालने का ठेका निजी कंपनियों को देने के टेंडर मंगवाया जाएगा।

रेल प्रोटेस्ट 3.jpg

पिछली प्रचंड बहुमत की सरकार के समय तो रेलों की साफ़-सफ़ाई तथा केटरिंग जैसे कुछ कार्यों को ही निजी एजेंसियों को दिया गया था। लेकिन जब इस बार चमत्कारिक बहुमत की सरकार बन गयी तो सत्ता संभालते ही भारतीय रेल को ‘वर्ल्ड क्लास सर्विस‘ लायक बनाने के नाम पर रेलवे को निजी कंपनियों को देने का नीतिगत फ़रमान जारी कर दिया गया। इसी जून माह में विवेक डोबराय रेलवे पुनर्गठन कमेटी और नीति आयोग द्वारा जारी फ़ैसलों के प्रस्तावों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि रेल यात्रियों से सरकार की सब्सिडी पूरी तरह से छोड़ने के लिए कहा जाएगा। साथ ही रेलवे को घाटे से उबारने के लिए इसका निगमीकरण किया जाएगा। जिसके लिए जारी किए गए ‘100 डे एक्शन प्लान‘ में प्रस्ताव है कि सर्वाधिक मुनाफ़ा देने वाली राजधानी, शताब्दी व अन्य कई ट्रेनों को निजी कंपनियों से चलवाया जाएगा। रेलवे के ‘नॉन कोर फंक्शन‘ यानी रेलवे के सभी अस्पतालों, स्कूलों, उत्पादन केन्द्रों, वर्कशॉप तथा रेलवे पुलिस इत्यादि सभी कार्यों को भी 10 साल के क़रार पर निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जायगा। इसके अलावा देश के 50 चिन्हित बड़े स्टेशनों को भी निजी कंपनियो को देने का प्रस्ताव है। प्रस्ताव में रेलवे के सभी सात बड़े उत्पादन कारखानों को सरकार पहले एक अलग कंपनी के रूप में एक निगम बनायेगी और फिर इसमें निजी कंपनियों को साझीदार बनाने का भी फ़ैसला लिया गया है। मालगाड़ियों के आवागमन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। सभी बड़े रेलवे स्टेशनों को एयरपोर्ट शैली में बदलकर यात्रियों से आवागमन और ठहरने का विशेष शुल्क वसूला जाएगा और यह काम भी निजी कंपनियां करेंगी।

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भारतीय रेलवे को देश की ‘लाइफ़ लाईन‘ कहा जाता है। दुनिया के कई छोटे राष्ट्रों की कुल आबादी से भी अधिक लगभग 2 करोड़ 3 लाख की आबादी प्रतिदिन भारतीय रेलों में सफ़र करती है। सूत्रों के अनुसार भारतीय रेलवे को दुनिया के 7वें सबसे बड़े रोज़गार देने वाले सार्वजनिक उपक्रम की मान्यता मिली हुई है। जिसमें आज भी लगभग 13 लाख कर्मचारी काम कर रहें हैं।

सरकार द्वारा रेलवे के निगमिकरण/निजीकरण के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सीएलडब्ल्यूईयू, आईआरईएफ़ तथा एआईसीसीटीयू समेत रेलवे की अधिकांश ट्रेड यूनियनों ने एकजुट होकर ‘करो या मारो‘ का मोर्चा खोल दिया है। 1 जुलाई को देश के सभी रेल मंडलों और सातों रेल उत्पादन कारखानों में रेल कर्मियों ने काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन निकाले। जिसके तहत चितरंजन लोको मोटिव वर्क्स, नार्थ वेस्टर्न रेलवे ईंपलाइज़ यूनियन, जयपुर और रेल कोच फ़ैक्टरी कपूरथला इत्यादि प्रमुख रेल केन्द्रों के हज़ारों रेल कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन किया। एआईसीसीटीयू व अन्य सभी रेल यूनियन के नेताओं के अनुसार यह मामला रेलकर्मियों के साथ साथ देश की आम जनता के हितों से भी जुड़ा हुआ है इसलिए वे इस मुद्दे को जनता के बीच भी ले जाएंगे।

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मोदी सरकार के ‘100 डे एक्शन प्लान' का मुखर विरोध करते हुए अधिकांश रेल यूनियनों और आंदोलन कर रहे रेलकर्मियों ने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी है कि "निजी कंपनियों के फ़ायदे के लिए भारतीय रेलवे को नष्ट करने वाला फ़ैसला वापस लें। निगमिकरण के बहाने रेलवे को निजी कंपनियों के हवाले करने की मंशा को पूरा नहीं होने दिया जाएगा। रेलवे बोर्ड को महज़ एक रबर स्टैम्प बनाकर तथा इसे छोटे छोटे टुकड़ों में बांटकर किया जा रहा निजीकरण, बीएसएनएल वाला हश्र करेगा। आज रेलवे में 2 लाख से भी अधिक रिक्तियाँ हैं लेकिन उसे भरने की बजाय हर जगह पर रेलवे में कार्यरत कर्मचारियों की भारी छंटनी की तैयारी चल रही है।"

'गोदी मीडिया' रेलकर्मियों के विरोध की ख़बरें सेंसर कर दुनिया के कई देशों की महंगी रेल व्यवस्था की महिमा गाथा परोस रही है। भारतीय रेलवे को वर्ल्ड क्लास सर्विस की ऊंचाई पर ले जाने का झांसा दिखाकर निजीकरण को ज़रूरी बता रही है। साथ ही जनता को यह भी संदेश दे रही है कि लोग एक बार फिर से अपना दिमाग़–आँख बंद कर मोदी जी पर भरोसा करें और निजी कंपनियों के मुनाफ़े की तिजोरी भरने को असली राष्ट्रहित और विकास मानकर अपनी जेबें ख़ाली करें। राष्ट्र की आर्थिक संप्रभुता के संवेदनशील मुद्दों पर लोगों का ध्यान न जाये, इसके लिए सुनियोजित मौबलिंचिंग जैसे कांडों का जारी रहना भी स्वाभाविक बना रहेगा।

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