NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महापड़ाव में कोयला मजदूर
न्यूज़क्लिक की कोयला खदान मजदूरों से बातचीत.
सिद्धांत ऐनी
11 Nov 2017
Translated by महेश कुमार
mahapadav

सन २००० से लेकर आज तक भारत में कोयले का उत्पादन दोगुना हो गया लेकिन वह फिर भी घरेलू खपत के लिए कम पड़ता है. इस कमी और बढ़ती खपत को पूरा करने के लिए सरकार ने 2020 तक वार्षिक उत्पादन का कोटा डेढ़ अरब मैट्रिक टन का रखा है. इस तस्वीर से झलकता है कि इस क्षेत्र के मज़दूर काफी खुश हैं क्योंकि उत्पादन बढ़ रहा है तो वेतन भी बढ़ रहे होंगे. लेकिन सच्चाई इससे इससे अलग और डरावनी है. 

“15 वर्ष पहले भारत में मात्र 6 लाख मज़दूर थे.” ये बातें हमें कोलफील्ड मज़दूर यूनियन के माहासचिव राघवन रघुनन्दन ने बतायी. यह आंकड़ा आज आधा हो गया है. रघुनन्दन कोयला और स्टील क्षेत्र में पिछले 30 वर्षों से काम कर रहे हैं और साथ ही वे आंगनवाडी और निर्माण कार्य से जुड़े मज़दूरों के संगठन का भी काम कर रहे हैं. कोलफील्ड मज़दूर यूनियन का कोलफील्ड कार्य क्षेत्र जो कि उत्तर में रांची दक्षिण में गिरडीह पूर्वी के बेरमो से होते हुए पश्चिम के डाल्टगंज तक जाता है. बिना नए मज़दूरों को रोज़गार दिए या उनकी संख्या में बढ़ोतरी किये उत्पादन में बढ़ोतरी इसलिए हुयी क्योंकि सरकार ने ज्यादातर खदानों को निजी हाथों में सौंप दिया और वे मज़दूरों को ठेके पर रख के काम लेते हैं.

इस स्थिति ने ज़मीनस्तर पर हतोत्साहित करने वाला माहौल पैदा कर दिया. रघुनन्दन ने बताया कि “दो विभिन्न खदानों में काम कर रहे मज़दूरों को जो वेतन मिल रहा है उसमें ज़मीन आसमान का फर्क है”. ए श्रेणी में कार्यरत पहले मज़दूर को जो कोयला क्षेत्र के सबसे नीचे के पायदान पर काम कर रहा है उसे 26,000 प्रति माह मिलता है साथ ही अन्य सेवा लाभ भी मिलता है. और वहीँ काम कर रहे एक ठेका मजदूर को मात्र 6,000 प्रतिमाह मिलता है और उसे कोई सेवा लाभ भी नहीं है. मजदूरों में इस असमानता को लेकर काफी "निराशा और चिंता का माहौल है," रघुनन्दन के मुताबिक़ यह एक त्रासदी तो है साथ ही एक विस्फोटक स्थिति भी है और इसके लिए देश को खामियाजा भुगतना पड़ेगा.   

एक हद तक कोयला युनियनों ने अपने कुछ मकसदों को हासिल करने में कामयाब तो रही हैं. अन्य क्षेत्रों के अलावा संगठित कोयला मजदूरों ने मैनेजमेंट के साथ बातचीत एवं समझौतों के जरिए मजदूरी काफी हद तक न्यूनतम से ऊपर रखी है. इस अक्टूबर में कोयला श्रमिक संघों ने कोल इंडिया प्रबंधन से वेतन बढ़ोतरी की वार्ता ख़त्म कर ली है. इस वार्ता में यूनियन ने मैनेजमेंट के उस दबाव को मानने से इनकार कर दिया जिसमें उनसे 10 वर्ष के लिए वेतन स्वीकार करने के लिए कहा गया लेकिन  आधे दशक के बाद फिर वार्ता का रास्ता खुल गया है. इस्पात उद्योग के मजदूरों को ऐसी जीत हासिल नहीं हुई जबकि इस्पात के मजदूर हमेशा इस तरह के आंदलनों के अग्रणी रहे हैं. रघुनन्दन ने बताया कि कोयला यूनियन ने मई 2017 में मैनेजमेंट को एक नोटिस भेजा और अक्टूबर तक एक समझौता हो गया. हालांकि इसके लिए कोई बड़ा आन्दोलन नहीं करना पडा लेकिन यूनियन द्वारा समझौता वार्ता के दौरान जुझारू रुख अपनाने से मैनेजमेंट को झुकना पडा. वर्तमान में कोयला मजदूरों के लिए प्रोविडेंट फण्ड और दयालु रोजगार आदि का जो प्रावधान है उसके विरुद्ध सरकार सामाजिक सुरक्षा के सभी नियमों को ताक़ पर रखना चाहती है.       

यूनियनों की ताकत को ताक़ पर रखने के लिए सरकार उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. पिछले 15 वर्षों में इस क्षेत्र में कोई भी नयी भर्ती नहीं हुयी है. केवल वैधानिक पद जैसे ‘खदान सरदार’ जैसे पदों पर नियुक्ति होती है. अन्य नयी नयी भर्ती वे ही हैं जिनकी मुवावजे के बदले भर्ती होती है. बाकी सभी युवा मजदूरों की भर्ती ठेका मजदूर के रूप में होती है. सरकार बूढ़े होते हुए मजदूरों के बहार जाने का इंतज़ार कर रही है. यह इसलिए ताकि सरकारी कम्पनियां कम मजदूरों के साथ ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बना सके. दुनिया जानती है कि जो मजदूर खदान में काम कर रहे हैं वे काफी कम वेतन कमा पाते हैं.

मौत के मामले में, जहाज़ को तोड़ने के बाद कोयला क्षेत्र भारत में दूसरा सबसे खतरनाक औद्योगिक व्यवसाय है. यह एक कारण है कि संगठित कोयला मजदूर स्वयं के लिए एक सभ्य वेतन के लिए बातचीत करने में सक्षम रहा हैं. दिल्ली में इकट्ठे हुए ट्रेड यूनियनों के विरोध के मूलभूत मामलों में से एक यह है कि देश में स्थायी रोज़गार को ठेका श्रम में परिवर्तित करने की बड़ी साजिश है और इसके लिए विभिन्न राजनितिक मान्यताओं से जुड़े होने के बावजूद मज़दूर एक साथ आयें हैं ताकि इस साजिश का पुरजोर विरोध हो सके. संगठन की कमी के कारण मज़दूरों को एक ऐसे स्थिति में घिर जाते है जहां उन्हें कम कमाई करते हुए अपनी जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है. मज़दूर का जीवन स्तर लगातार गिरता है और यही मॉडल भारत कि बढ़ती अर्थव्यवस्था कि तस्वीर है. रघुनन्दन कहते हैं कि अगर सड़क पर चलते आप किसी भी व्यक्ति से बात करेंगे तो पायेंगे कि वे यहाँ से कहाँ जाना चाहेगे तो उनका एक ही जवाब होगा कि वे किसी भी विकसित देश में जाना चाहेंगे. व्यन्तिगत चाहत के हिसाब से ज्यादातर लोग फ्रांस, जर्मनी या फिर सिंगापुर जाना चाहेंगे. ये देश बुनियादी तौर पर उच्च वेतन देते हैं. इन देशों में नीचे के स्तर पर काम करने वाले मज़दूरों को काफी उच्च स्तर के वेतन मिलते हैं. बिना मज़दूरों को जीने लायक वेतन दिए कोई भी देश खुशहाल नहीं हो सकता है. महापडाव ने अगले संघर्ष कि तैयारी कर ली है. 

mahapadav
woker 's protest
BJP
Modi
Coal workers

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License