NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महिलाओं से जुड़े यह 5 कानून भी बदलें
ये पांच कानून हैं-वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना, पति व उनके रिश्तेदारों की ओर से की गई क्रूरता की परिभाषा स्पष्ट करना, दहेज विरोधी कानून में त्रुटियों को दूर करना, शादी के लिए महिला और पुरुष की एक समान उम्र तय करना और शादी के मामले में दखल देने वाली खाप पंचायतों को गैरकानूनी करार देना।
आईएएनएस
16 Jan 2018
Triple Talaq

तीन तलाक विधेयक को तत्काल कानूनी जामा पहनाना जरूरी है। ऐसा लगता है कि सरकार महिलाओं से संबंधित पांच आपराधिक कानून जिन्हें 2015 में सरकार की एक समिति की ओर से चिन्हित किया गया था उसकी अनदेखी की जा रही है।

ये पांच कानून हैं-वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना, पति व उनके रिश्तेदारों की ओर से की गई क्रूरता की परिभाषा स्पष्ट करना, दहेज विरोधी कानून में त्रुटियों को दूर करना, शादी के लिए महिला और पुरुष की एक समान उम्र तय करना और शादी के मामले में दखल देने वाली खाप पंचायतों को गैरकानूनी करार देना।

इसी तरह की एक समिति के गठन के लगभग 25 साल के अंतराल के बाद 2013 में गठित समिति ने महिलाओं और आपराधिक कानून के संबंध में अपनी समीक्षा में कई सिफारिशें कीं, जो सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी महिलाओं को कानून और न्याय प्रणाली के माध्यम से मदद करने को लेकर की गई हैं। इनमें कुछ ही सिफारिशों को अमल में लाया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, "महिलाओं के कानूनी दर्जे में सुधार के तहत बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल है, जिसमें सबसे पहले कानून संबंधी दुर्बलताओं, सरकार की नीतियों और योजनाओं का गहराई से परीक्षण किया जाता है। उसके बाद राज्य, पुलिस और अदालत द्वारा कानून के अनुपालन में कमी होने पर उस पर ध्यान दिया जाता है।

वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना : मौजूदा कानून में वैवाहिक दुष्कर्म के शिकार के लिए कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद में रखा गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद मानना विवाह की पुरानी धारणा परिचायक है, जिसके तहत पत्नियों को उनके पतियों की जायदाद समझा जाता था। इसलिए सहमति का मूल्यांकन करते समय अपराधी और पीड़ित के बीच संबंध अप्रासंगिक होना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता करुणा नंदी ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाने की वकालत की है। उनका कहना है कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले पति व उनके रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दायर किया जाना चाहिए।

इंडियास्पेंड से बातचीत में नंदी ने बताया, " हालांकि वैवाहिक दुष्कर्म की पीड़िताओं को इन कानूनों के तहत अन्य पीड़ितों से अलग बताया गया है और दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए अनिवार्य मुफ्त स्वास्थ्य सेवा व कानूनी सहायता का प्रावधान सीमित है। इन मामलों में न्याय का दायरा संकीर्ण है, क्योंकि इस तरह के दुष्कर्म के दोषी गैर-दुष्कर्म के दंड के अधीन होते हैं, जोकि अपेक्षाकृत बहुत कम होता है।"

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरपी) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2016 में महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के कुल 32,25,652 मामलों में से 1,10,378 मामले आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज किए गए थे, जोकि कुल मामलों का लगभग 34 फीसदी है।

महिला आयोग की वकील फ्लेविया एग्नेस ने कहा, "अपराध के मामलों की यह संख्या उन मामलों की अपेक्षा कम है जो कि दर्ज ही नहीं हुए, क्योंकि पुलिए विधि प्रकार के शोषण की शिकार महिलाओं वापस भेज देती है बशर्ते उनको शारीरिक चोट नहीं पहुंची हो।"

समिति की ओर से क्रूरता की परिभाषा की समीक्षा कर उसमें महिलाओं के खिलाफ घरों में होने वाली हिंसा के विविध रूपों को शामिल करने की सिफारिश की गई है। समिति ने यह भी कहा कि इसका प्रावधान घरेलू हिंसा से महिला का बचाव कानून (पीडब्ल्यूडीएवी) 2005 के तहत घरेलू हिंसा की परिभाषा के समान होना चाहिए।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सव्रेक्षण-2015-16 के आंकड़ों में 31 फीसदी विवाहित महिलाओं को शारीरिक यौन या मानसिक रूप से पति की प्रताड़ना (स्पाउजल वॉयलेंस) का शिकार बताया गया है, जिसमें सबसे ज्यादा शारीरिक हिंसा 27 फीसदी है।

दहेज रोधी कानून में संशोधन : वर्तमान में दहेज निरोधक कानून 1961 के तहत दहेत देने या लेने पर रोक है। इस कानून को तोड़ने वालों के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है। समिति ने एनसीडब्ल्यू की ओर से दहेज रोधी कानून में संशोधन के प्रस्ताव को दोहराया, जिसमें इसकी परिभाषा को व्यापक बनाने की बात कही गई है। समिति ने स्त्रीधन को दहेज की परिभाषा में शामिल करने की सिफारिश की। साथ ही स्त्रीधन का वारिश पति को बनाए जाने वाले प्रावधान को हटाने को कहा।

उधर, जुलाई 2017 में शीर्ष अदालत ने 498-ए के तहत दहेज के मामले में पति और उसके परविार को तत्काल गिरफ्तार करने के प्रावधान को हटा दिया। अदालत ने यह फैसला दहेज के ज्यादातर मामलों में आरोपी के बरी करार दिए जाने की रिपोर्ट के मद्देनजर लिया था।

हालांकि एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 से 2015 के दौरा 88,467 महिलाओं की मौत दहेज से संबंधित मामलों में हुआ, जिससे जाहिर है रोजाना 22 महिलाओं की मौत दहेज को लेकर हुई।

शादी की समान न्यूनतम उम्र : बाल विवाह निषेध कानून 2006 के तहत बाल विवाह को गैर-कानूनी करार दिया गया है और लड़के के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की के लिए 18 साल रखी गई है। समिति ने दोनों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र एक समान रखने की सिफारिश की है। शहरी इलाकों में लड़कियों की कम उम्र में शादी की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है जबकि इसके उलट ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शादी अब ज्यादा उम्र में होने लगी है।

ऑनर किलिंग के फतवे जारी करने वाले खाप को अपराध की श्रेणी में लाना : महिलाओं का असमान आर्थिक, सामाजिक और राजनीति स्थिति व दर्जा पितृसत्तात्मक समाज के कारण है जहां महिलाओं के बारे में रूढ़िवादी सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण देखने को मिलता है। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है-"ऑनर किलिंग महज सजा नहीं है, बल्कि निर्मम हत्या है। आमतौर पर लड़कियों की हत्या की जाती है।"

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2016 के बीच ऑनर किलिंग के मामलों में दोगुना इजाफा हुआ। वर्ष 2015 में ऑनर किलिंग के 192 मामले दर्ज किए गए।

समिति ने रिपोर्ट में कहा, "महिलाओं प्रति हिंसा को कठिन सामाजिक व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके जरिये महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है। इस प्रकार महिलाओं के गुणात्मक अधिकार का उल्लंघन होता है।"

(आलेख में अभिव्यक्त विचार इंडियास्पेंड का है, जो बिना किसी लाभ के मकसद से आंकड़ों पर आधारित जनहित की पत्रकात्रिता का मंच है। अलिसन सल्दाना इंडिया स्पेंड के सहायक संपादक हैं)

triple talaq
Supreme Court
sexual violence

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • सत्येन्द्र सार्थक
    आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?
    25 Apr 2022
    सरकार द्वारा बर्खास्त कर दी गईं 991 आंगनवाड़ी कर्मियों में शामिल मीनू ने अपने आंदोलन के बारे में बताते हुए कहा- “हम ‘नाक में दम करो’ आंदोलन के तहत आप और भाजपा का घेराव कर रहे हैं और तब तक करेंगे जब…
  • वर्षा सिंह
    इको-एन्ज़ाइटी: व्यासी बांध की झील में डूबे लोहारी गांव के लोगों की निराशा और तनाव कौन दूर करेगा
    25 Apr 2022
    “बांध-बिजली के लिए बनाई गई झील में अपने घरों-खेतों को डूबते देख कर लोग बिल्कुल ही टूट गए। उन्हें गहरा मानसिक आघात लगा। सब परेशान हैं कि अब तक खेत से निकला अनाज खा रहे हैं लेकिन कल कहां से खाएंगे। कुछ…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,541 नए मामले, 30 मरीज़ों की मौत
    25 Apr 2022
    दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच, ओमिक्रॉन के BA.2 वेरिएंट का मामला सामने आने से चिंता और ज़्यादा बढ़ गयी है |
  • सुबोध वर्मा
    गहराते आर्थिक संकट के बीच बढ़ती नफ़रत और हिंसा  
    25 Apr 2022
    बढ़ती धार्मिक कट्टरता और हिंसा लोगों को बढ़ती भयंकर बेरोज़गारी, आसमान छूती क़ीमतों और लड़खड़ाती आय पर सवाल उठाने से गुमराह कर रही है।
  • सुभाष गाताडे
    बुलडोजर पर जनाब बोरिस जॉनसन
    25 Apr 2022
    बुलडोजर दुनिया के इस सबसे बड़े जनतंत्र में सरकार की मनमानी, दादागिरी एवं संविधान द्वारा प्रदत्त तमाम अधिकारों को निष्प्रभावी करके जनता के व्यापक हिस्से पर कहर बरपाने का प्रतीक बन गया है, उस वक्त़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License