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महज जिहाद शब्द का इस्तेमाल करने पर किसी को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता: अदालत
‘‘बेशक उसने ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया। लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचना दुस्साहस होगा कि महज ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने को लेकर उसे आतंकवादी करार देना चाहिए।’’
भाषा
19 Jun 2019
Court

महाराष्ट्र की एक अदालत ने आतंक के आरोपियों को बरी करते हुए कहा है कि महज ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने को लेकर किसी व्यक्ति को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता है। 

अकोला स्थित अदालत के विशेष न्यायाधीश एएस जाधव ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए), शस्त्र अधिनियम और बॉम्बे पुलिस एक्ट के तहत तीन आरोपियों के खिलाफ एक मामले में यह टिप्पणी की।  

अकोला के पुसाद इलाके में 25 सितंबर 2015 को बकरीद के मौके पर एक मस्जिद के बाहर पुलिसकर्मियों पर हमले के बाद अब्दुल रजाक (24), शोएब खान (24) और सलीम मलिक (26) पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। 

अभियोजन के मुताबिक रजाक मस्जिद पहुंचा, एक चाकू निकाला और उसने ड्यूटी पर मौजूद दो पुलिसकर्मियों पर वार कर दिया तथा उसने हमले से पहले कहा कि बीफ पर पाबंदी के कारण वह पुलिसकर्मियों को मार डालेगा। 

आतंकवाद रोधी दस्ता (एटीएस) ने दावा किया कि ये लोग मुस्लिम युवाओं को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए प्रभावित करने के आरोपी थे। 

जाधव ने कहा, ‘‘यह प्रतीत होता है कि आरोपी रजाक ने गो-हत्या पर पाबंदी को लेकर हिंसा के जरिए सरकार और कुछ हिंदू संगठनों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बेशक उसने ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया। लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचना दुस्साहस होगा कि महज ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने को लेकर उसे आतंकवादी करार देना चाहिए। ’’ 

उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि ‘जिहाद’ अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ ‘संघर्ष’ करना है...इसलिए महज जिहाद शब्द का इस्तेमाल करने को लेकर उसे आतंकवादी बताया जाना उचित नहीं है। 

पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाने को लेकर रजाक को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी। चूंकि, वह 25 सितंबर 2015 से जेल में था और कैद में तीन साल गुजार चुका है इसलिए अदालती आदेश के बार रिहा कर दिया गया।

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Maharashtra
maharashtra court
law and order
terror charges
Terrorism

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