NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मजदूरों का महापड़ाव – 9-11 नवम्बर 2017
एक मज़दूर के परिवार को जीने के लिए न्यूनतम कितना वेतन चाहिए? निराशा होकर मजदूर बस यही कहता है कि इतना हम ज़िन्दा रह सकें इतना तो मिले!
सुबोध वर्मा
02 Nov 2017
Translated by महेश कुमार
minimum wages

9 से 11 नवम्बर को लाखों मज़दूर दिल्ली में कई मुद्दों को सरकार के सामने पुरज़ोर तरीके से उठाने के लिए इकठ्ठा हो रहे हैं. उनकी एक माँग न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी भी है. मज़दूरों की माँग है कि सरकार पूरे देश के मजदूरों के लिए 18,000/- रूपये प्रति माह न्यूनतम वेतन घोषित करेI उनकी माँग यह भी है कि सरकार इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़े. इसका मकसद है कि वे जो भी वस्तु बाज़ार से खरीदते हैं और यदि उन वस्तुओं का मूल्य बढ़ता है तो उनके वेतन में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए.

पूरे देश एवं सभी क्षेत्रों से यह खबर है कि मजदूर और कर्मचारियों को लगातार बढ़ती महँगाई के चलते अपने पारिवारिक बजट में काफी कटौती का सामना करना पड रहा है. सरकार की पनाह में चलने वाले लेबर ब्यूरो द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण की प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ 57 प्रतिशत मज़दूर 10,000 रूपए या उससे भी कम एक महीने में कमाते हैं. दरअसल, 20 प्रतिशत या पाँच में एक मज़दूर महीने में पाँच हज़ार या उससे भी कम कमाते हैं.

ज़्यादातर राज्यों में, राज्य सरकारों द्वारा घोषित वैधानिक न्यूनतम वेतन केवल कागज़ों पर ही मौजूद है क्योंकि अधिकतर मालिक इन्हें लागू ही नहीं करते. यद्यपि यह कानून का खुला उल्लंघन हैI कानून लागू करने वाली मशीनरी निष्क्रिय है और अगर मज़दूर किसी तरह कानूनी तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर अपने अधिकारों के लिए लड़ते भी हैं तो मालिक रिश्वत के जरिए उनसे निजात पा लेते हैं. न्यूनतम वेतन पाना तभी संभव है जब मज़दूर मज़बूत ट्रेड यूनियनों के साथ संगठित हों.

यहाँ तक कि संगठित क्षेत्र में भी वेतन की स्थिति दयनीय है. इंडस्ट्रीज के एक सर्वेक्षण (ए.एस.आई.), जिसे सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने जारी किया है, के मुताबिक़ 2014-15 में प्रति मज़दूर औसत मज़दूरी केवल 10,000 रूपये प्रति माह है.

लाखों ठेका और अनियमित मज़दूरों की दशा तो और भी भयानक है क्योंकि इनका वेतन केंद्र और राज्य सरकारों के वैधानिक न्यूनतम वेतन से नहीं जुड़ा है. लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक़ 87 प्रतिशत ठेका मजदूर प्रति माह 10,000/- रूपए या उससे कम वेतन पाते हैं. पिछले वर्ष सीटू द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि सभी बड़े औद्योगिक क्षेत्र जिसमें स्टील, कोयला, परिवहन, वृक्षारोपण, बंदरगाह और डॉक शामिल हैं, उनमें ठेका या अनियमित मज़दूर स्थायी मज़दूरों के मुकाबले केवल आधा वेतन ही पाते हैं. मालिकों द्वारा ठेके पर ज़्यादा मज़दूर रखना एक आम चलन हो गया है ताकि वे कम वेतन दे सकें और साथ ही श्रम कानूनों से भी छूटकारा पा सके. अनियमित मज़दूर की स्थिति, जो भारत के कार्यबल का एक तिहाई हिस्सा है, के हालत और भी खराब हैं क्योंकि उनका 96 प्रतिशत हिस्सा 10,000 से भी कम प्रति माह वेतन कमाते हैं.

ज़्यादातर जगहों पर, मज़दूरों को 10 से 12 घंटे के लिए काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, वह भी साधारण वेतन दर पर (न कि दोहरी दर पर जैसा कि ओवरटाइम के लिए निर्धारित नियम है) जिससे कि वे किसी तरह बस जिंदा भर रह सकें. दूसरे शब्दों में, भारत में बहुमत मज़दूरों का यह कठोर शोषण ‘8 घंटे काम' की धारणा की पूरी धज्जियाँ .

यह कैसे निश्चित होगा कि एक मज़दूर के परिवार को जीने के लिए न्यूनतम कितना वेतन चाहिए? न्यूनतम ज़रूरतों का पता लगाया जाना संभव हैI निराशा होकर मजदूर भी कहता है इतना तो मिले कि हम ज़िन्दा रह सकेंI इसके लिए 1957 में मज़दूर मालिक और सरकार के नुमाइंदों को मिलाकर 15वीं इंडियन लेबर कांफ्रेंस (आई.एल.सी.) का गठन किया गया और आई.एल.सी. इस पर सहमत हुई कि निम्नलिखित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मज़दूर के चार सदसीय परिवार (जिसमें दो व्यसक और दो बच्चे हों) को आधार बनाकर न्यूनतम वेतन तय किया जाए.

  1. एक मज़दूर के परिवार के लिए कम-से-कम 2,700 कैलोरी का प्रति व्यक्ति भोजन जिसमें तीन इकाइयाँ शामिल हैं (2 व्यसक इकाई + 2 बच्चे 1 इकाई के बराबर होंगे).

  2. साल में प्रति व्यक्ति कपड़ा 18 ग़ज होना चाहिए

  3. कम आय वर्ग के लिए सरकारी औद्योगिक आवास योजना द्वारा तय न्यूनतम किराया के अनुसार आवास की व्यवस्था

  4. ऊपर के कुल योग का 20 प्रतिशत इंधन, रोशनी, और विविध व्यय के लिए जोड़ा जाएगा

1992 में सर्वोच्च न्यायलय ने शिक्षा, स्वास्थ्य खर्च, मनोरंजन और वृद्धावस्था एवं विवाह में होने वाले संभावित खर्च को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त आय का 25% को भी न्यूनतम वेतन में जोड़ा.

अगर उपरोक्त प्रावधानों के आधार पर हिसाब लगायें तो यह प्रति माह 20,000 रूपये बैठेगा. केन्द्रीय सरकार अपने कर्मचारियों को 18,000/- प्रति माह देने को राज़ी हुई है, जोकि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का हिस्सा है. अगर सरकारी कर्मचारियों को इस दर पर वेतन मिलता है तो फिर अन्य मजदूरों को कम क्यों? जब सरकारी कर्मचारी, औद्योगिक कर्मचारी या एक योजना कर्मचारी के लिए जीवन-यापन की लागत एक बराबर है, तो सबको एक सामान वेतन क्यों नहीं मिलता? वास्तव में, मज़दूर 18,000 रुपये प्रति माह न्यूनतम मज़दूरी की माँग कर रहे हैं.

दूसरी तरफ, देशी और विदेशी दोनों ही औद्योगिक घराने ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने में जुटे हुए हैं. सरकार, मजदूरों का वेतन बढ़ाने की बजाय अम्बानी, अडानी, टाटा और बिरला जैसे इज़ारेदार पूँजीपतियों से जुडी संस्थाओं सी.आई.आई. एवं फिक्की की धुन पर थिरक रही है. इनके सुपर मुनाफे को बनाए रखने के लिए मज़दूर की मज़दूरी को सूली पर चढ़ाया जाता है– और लागत कम करने के नाम पर या तो उनके वेतन में ठहराव ला दिया जाता है या फिर उन्हें कम कर दिया जाएगा ताकि वे स्थायी कर्मचारियों के मुकाबले ठेकाप्रथा को बढ़ावा दे सकें. एक अध्ययन से सामने आया है कि आज अमीर और गरीब के बीच असमानता 1922 के ब्रिटिश राज से भी ज़्यादा है.

इस न्यायसंगत माँग को मानकर न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में संशोधन करने के बावजूद भाजपा सरकार ने लोकसभा में मजदूरी संहिता,2017पेश कर दिया, इसमें न तो 15वीं आई.एल.सी. के फ़ार्मूले का ज़िक्र है न ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का. दरअसल ये कदम सिर्फ यह मजदूरी के निर्धारण को श्रम कानूनों के दायरे से पूरी तरह बहार करने का प्रयास है.

नवम्बर महापड़ाव
मज़दूर आन्दोलन
सीटू
न्यूनतम वेतन

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

5 सितम्बर : देश के लोकतांत्रिक आंदोलन के इतिहास में नया अध्याय

दिल्ली: 20 जुलाई को 20 लाख मज़दूर हड़ताल पर जायेंगे

मुंबई में हज़ारों मज़दूरों ने किया महाराष्ट्र सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन

भारत का मजदूर वर्ग बड़े आर्थिक और राजनितिक मुद्दों पर बड़ी लड़ाई की तैयारी में

श्रमिक अधिकार और इनके प्रति सरकारों का बर्ताव

सरकारों के लिए न्यूनतम मज़दूरी बस कागज़ी बातें हैं

आंध्र प्रदेशः बिजली विभाग के ठेका मज़दूरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल

अब भी जल रहा है बवाना

सरकार कब देगी मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा?


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License