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शिक्षा
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मंडल कमीशन लागू होने के 30 साल बाद भी खाली हैं ओबीसी प्रोफ़ेसर के 90 फ़ीसदी से ज़्यादा पद
एक आरटीआई का जवाब देते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बताया है कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 09 ओबीसी प्रोफ़ेसर हैं, जबकि अभी भी प्रोफ़ेसर पद के लिए 304 ओबीसी सीट खाली हैं।
गौरव गुलमोहर
21 Aug 2020
UGC RTI

नई शिक्षा नीति में आरक्षण का जिक्र न होने पर लगातार केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठ ही रहे थे, इसी बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि भारत के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल मिलाकर ओबीसी कैटेगरी में मात्र 09 प्रोफेसर नियुक्त हैं। आरटीआई का जवाब आते ही सोशल मीडिया पर आरक्षण की बहस खासी तेज हो चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने जुलाई महीने के अंत में नई शिक्षा नीति-2020 को मंजूरी दी। नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। वहीं चौंतीस साल के लंबे अंतराल के बाद जारी शिक्षा नीति में कहीं भी आरक्षण शब्द का जिक्र नहीं है।

नई शिक्षा नीति में आरक्षण शब्द का जिक्र न होने पर कई सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय के पैरोकार संगठन यह सवाल उठाते रहे हैं कि नई शिक्षा नीति में आरक्षण का जिक्र न करना आरक्षण की बहस को ही खत्म करने की एक साजिश है।

जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई शिक्षा नीति कॉन्क्लेव में कहा कि "राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद देश के किसी भी क्षेत्र से, किसी भी वर्ग से यह बात नहीं उठी कि इसमें किसी तरह का बायस (पक्षपात) है या किसी एक तरफा कोई झुकाव है। यह एक इंडिकेटर भी है कि लोग वर्षों से चली आ रही एजुकेशन सिस्टम में जो बदलाव चाहते थे वह उन्हें देखने को मिले।"

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चालीस विश्वविद्यालयों में ओबीसी के महज नौ प्रोफ़ेसर

आल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईओबीसीएसए) के अध्यक्ष गोड किरन कुमार द्वारा आरटीआई के तहत पूछे गए पांच सवालों में से मात्र एक सवाल का जवाब देते हुए यूजीसी ने बताया है कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 09 ओबीसी प्रोफेसर हैं, जबकि अभी भी प्रोफेसर पद के लिए 304 ओबीसी सीट खाली है। जबकि आरटीआई में शामिल अन्य चार सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया गया।

केंद्र सरकार के जन सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए जवाब में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि देश के कुल 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुल प्रोफेसरों की अनुमोदित संख्या 2498, एसोसिएट प्रोफेसरों की अनुमोदित संख्या 5011 और असिस्टेंट प्रोफेसरों की अनुमोदित संख्या 10830 हैं। इसमें प्रोफ़ेसर पद पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले अभ्यर्थियों के लिए 313 सीटें अनुमोदित हैं, जिसमें वर्तमान में मात्र 09 सीटों पर ही ओबीसी कैटगरी के प्रोफेसर नियुक्त हैं। जबकि अभी भी 304 सीटें खाली हैं।

अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले अभ्यर्थियों के लिए एसोसिएट प्रोफ़ेसर पद के लिए कुल 735 सीटें हैं जिसमें से 38 ओबीसी एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त हैं, जबकि अभी भी 697 सीटें खाली हैं।

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अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले अभ्यर्थियों के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर पद की कुल सीटें 2232 हैं, जिसमें से 1327 ओबीसी असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त हैं, जबकि अभी भी 905 सीटें खाली हैं।

हालांकि प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए सीटों का आवंटन संविधान के तहत प्राप्त 15 प्रतिशत एससी, 7.5 प्रतिशत एसटी और 27 प्रतिशत ओबीसी के तहत सीटें आरक्षित हैं लेकिन उन सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है।
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आरटीआई के तहत प्राप्त आरक्षित रिक्त सीटों की संख्या के बाद एआईओबीसीएसए ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर रिक्त सीटों की भरने की मांग की है। राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री भगवान लाल साहनी को संबोधित पत्र में एआईओबीसीएसए के अध्यक्ष किरन कुमार ने यह आरोप लगाया है कि यूजीसी द्वारा प्रोफ़ेसर, एसोसिएट प्रोफ़ेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर अनुमोदित कुल सीटों में 27 फीसदी ओबीसी संवैधानिक आरक्षण का पालन नहीं किया गया है।

किरन कुमार के अनुसार प्रोफेसर पद पर अनुमोदित 2498 सीटों में से 27 फीसदी सीटों की कुल संख्या 674 होती है लेकिन इस पद पर ओबीसी के लिए अनुमोदित सीटें मात्र 313 हैं। इसी तरह एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद पर भी ओबीसी आरक्षण का पालन करते हुए सीटों का अनुमोदन नहीं किया गया है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के शोधार्थी विकास सिंह मौर्य सीटों के रिक्त होने के पीछे मुख्य कारण पक्षपात मानते हैं। वे कहते हैं कि “असिस्टेंट प्रोफेसर का रास्ता पीएचडी से खुलता है और मेरे पास इस बात का तजुर्बा है कि पीएचडी के इंटरव्यू में ओबीसी छात्र/छात्राएं सबसे अधिक आते हैं लेकिन उन्हें सिर्फ आरक्षित सीट यानी 27 प्रतिशत के अंदर ही रखा जाता है जबकि उनकी संख्या इससे कहीं अधिक होती है। जो लोग जो पीएचडी में प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं वही लोग आगे चलकर प्रोफेसर नियुक्त करते हैं।”

हालांकि अप्रैल 2018 में द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा यूजीसी से आरटीआई के तहत आरक्षित सीटों पर नियुक्ति के संदर्भ में पूछे गए सवालों के जवाब में चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया था। तब 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर पद पर ओबीसी कैटगरी की संख्या शून्य थी, एससी कैटेगरी के प्रोफेसर 39, एसटी कैटेगरी के प्रोफ़ेसर 08 और सामान्य कैटेगरी के प्रोफेसरों की संख्या 1071 थी यानी कुल सामान्य कैटेगरी के प्रोफेसर 95.2 फीसद मौजूद थे।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी/एसटी प्रोफेसर की संख्या

केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों के पद ओबीसी कैटेगरी के अलावा एससी/एसटी कैटेगरी में भी बड़े स्तर पर खाली हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों, राज्य विश्वविद्यालयों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में मिलाकर अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के अध्यापक 19 फीसदी हैं, अनुसूचित जाति के 12 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के 4 फीसदी अध्यापक हैं।



केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्तर पर यह आँकड़ा और भी चिंताजनक है। यूजीसी द्वारा अप्रैल, 2018 में आरटीआई के तहत द इंडियन एक्सप्रेस को प्राप्त आंकड़े के अनुसार कुल एससी प्रोफेसर मात्र 3.47 फीसद हैं, एसटी प्रोफेसर मात्र 0.7 प्रतिशत हैं, ओबीसी प्रोफेसर शून्य फीसद और सामान्य कैटेगरी के प्रोफ़ेसर 95.2 फीसद हैं।

वहीं, एसोसिएट प्रोफेसर पद पर एससी 4.96 फीसद, एसटी 1.30 फीसद, ओबीसी शून्य और सामान्य 92.90 फीसद हैं। इसी तरह असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर एससी 12.02 फीसद, एसटी 5.46 फीसद, ओबीसी 14.38 फीसद और सामान्य 76.14 फीसद हैं।

इन आंकड़ों के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं कि मंडल कमीशन लागू हुए लगभग तीस साल हो चुके हैं फिर भी अभी तक ऐसी स्थिति क्यों बनी हुई है कि पहले तो ओबीसी कोटे की सीटें खाली हैं और दूसरे ओबीसी श्रेणी के पदों के सृजन में भी गड़बड़ियाँ की जा रही हैं।

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लक्ष्मण यादव दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक (अस्थाई) हैं, विश्वविद्यालयों में सामाजिक न्याय की लड़ाई को लेकर अग्रणी भूमिका में रहे हैं। वे कहते हैं कि “इसका मूल कारण है कि शिक्षण संस्थाओं में बैठे ऊंची जातियों के लोग स्थाई नियुक्तियां नहीं चाहते हैं, इसीलिए वे एक तरफ रिजर्वेशन रोस्टर को डिस्टर्व करते हैं दूसरी तरफ स्थाई नियुक्तियां जितना न्यूनतम कर सकते हैं उतना कम करते हैं। यही कारण है कि पिछले दस सालों में बमुश्किल 500 स्थाई न्युक्तियाँ हुईं। आरक्षण को खत्म करने के लिए ही विश्वविद्यालयों में कान्ट्रेक्ट सिस्टम लाया गया।”

 

(गौरव गुलमोहर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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