NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मॉब लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख़्त, जारी किए दिशा निर्देश
ये दिशानिर्देश सांप्रदायिक रूप से प्रेरित लिंचिंग की घटना को रोकने में मदद कर सकता है, लेकिन ग़ैर सांप्रदायिक दुर्भावनापूर्ण संदेशों के बारे में अस्पष्ट है।

विवान एबन
19 Jul 2018
mob lynching

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए निरोधक, दंडात्मक और उपचारात्मक उपाय करने का निर्देश दिया है। इसे लागू करने के लिए शीर्ष अदालत ने इन तीन बिंदुओं के तहत निर्देश जारी किया है। हालांकि यहां प्रासंगिक प्रश्न यह है कि क्या हिंसा करने वाली भीड़ को वास्तव में रोका जा सकता है? जिस याचिका की सुनावई करते हुए अदालत ने निर्देश दिया है उन याचिकाओं में न्यायालय के दायरे की सीमा यह है कि इन याचिकाओं में केवल गौरक्षकों द्वारा की जाने वाली हत्याओं की चर्चा है; हाल में बच्चे की चोरी वाली अफवाहों के चलते हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं को इसमें शामिल नहीं किया गया। यह सीमा न्यायालय के आदेश के बाद स्पष्ट हो जाती है।

अदालत ने कहा: "एक कट्टर मानसिकता से उत्पन्न असहिष्णुता उथल-पुथल के बीज बोती है और विचार तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक डरावना प्रभाव डालती है। इसलिए, सहिष्णुता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और अपनाया जाना चाहिए तथा किसी भी तरह से बर्बाद करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।" साथ ही यह देखते हुए कि" हर किसी को लगातार खुद याद करना चाहिए कि विकृत असहिष्णुता की मनोदृष्टि पूरी तरह असहिष्णु और आक्रामक रूप से दर्दनाक होता है।"यह स्पष्ट है कि शीर्ष न्यायालय सांप्रदायिक रूप से प्रेरित लिंचिंग से पूरी तरह से चिंतित था।

निरोधक उपाय

'निरोधक उपाय' शीर्षक के तहत अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि प्रत्येक ज़िले में एक नोडल पुलिस अधिकारी (एनपीओ) तैनात करे जो पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद से नीचे का न हो। इस एनपीओ को लिंचिंग में शामिल होने वाले लोगों के साथ-साथ घृणित भाषण, उत्तेजक बयान और फ़र्ज़ी खबरें फैलाने वाले लोगों पर खुफिया रिपोर्ट इकट्ठा करने के लिए एक विशेष कार्य बल का गठन करना होगा। राज्य सरकारों को उन क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहां पिछले पांच वर्षों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं।

प्रत्येक राज्य के गृह विभाग के सचिव को संबंधित एनपीओ से संवाद करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहचाने गए क्षेत्रों की स्थानीय पुलिस को भी सूचित कर दिया गया है। एनपीओ को महीने में एक बार स्थानीय खुफिया इकाइयों के साथ सतर्कता और घृणित बयान के फैलाने की दिशा में ऐसी किसी भी प्रवृत्ति की पहचान करने के लिए बैठक करना होगा। हर तीन महीने पर एनपीओ को समीक्षा के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) या गृह सचिव से मिलना होगा। अंतर-ज़िला समन्वय से संबंधित कोई भी मामला बैठक में शामिल किया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि हर पुलिस अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि लिंचिंग में शामिल होने की संभावना वाली भीड़ को तितर- बितर करे। डीजीपी को उन इलाकों के गश्त के संबंध में पुलिस अधीक्षक को एक सर्कुलर भी जारी करना होगा जहां पहले लिंचिंग की घटनाएं हुई थी।

संघ और राज्य सरकारों को इस संदेश को प्रसारित करना चाहिए कि किसी भी तरह की लिंचिंग और हिंसा का परिणाम गंभीर होगा। सरकार के इन दो स्तरों को भी भड़काऊ संदेशों को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए जो भीड़ को किसी भी तरह की हिंसा शामिल कर सकते हैं। पुलिस को ऐसे संदेश प्रसारित करने वाले व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज करनी होगी। इस स्थिति की गंभीरता और प्रतिबिंबित करने वाले उपायों को दर्शाते हुए राज्य सरकारों को केंद्र सरकार द्वारा दिशानिर्देश जारी करना होगा और इसके उपाय किए जाएं।

उपचारात्मक उपाय

अदालत ने स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया कि ऐसी घटना जहां मॉब लिंचिंग होती है देर किए बिना एफआईआर दर्ज करे। स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) को फिर इस एफआईआर के बारे में एनपीओ को सूचित करना होगा। एनपीओ को यह सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ितों के परिवार के सदस्यों का किसी तरह से और उत्पीड़न न हो। इसके बाद एनपीओ व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी करेगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि आरोपपत्र समय पर दायर किया जाए। राज्य सरकारों को एक महीने के भीतर पीड़ितों की क्षतिपूर्ति करने के लिए लिंचिंग या भीड़ हिंसा योजना तैयार करनी चाहिए। प्रत्येक ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट भी स्थापित किए जाएंगे। ये अदालतें रोज़ाना कार्यवाही करेंगी और संज्ञान लेने की तारीख़ से छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी करेंगी। न्यायालय ने राज्य सरकारों और एनपीओ को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अभियोजन एजेंसी मुक़दमे से समझौता नहीं करेगी। ट्रायल कोर्ट को भी अपराधों के लिए निर्धारित अधिकतम सजा देने का निर्देश दिया गया है। ट्रायल कोर्ट को गवाहों की पहचान और पते की भी रक्षा करनी चाहिए। आरोपियों द्वारा ज़मानत, मुक्ति, रिहाई या पैरोल के लिए आवेदन करने की स्थिति में पीड़ितों के परिवार को सूचना देने और सुनवाई का अधिकार है। परिवार को दोषसिद्धि, दोषमुक्ति या सजा पर लिखित रूप से देने का अधिकार भी है। पीड़ितों या उनके रिश्तेदारों को नि: शुल्क क़ानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है यदि वे कोई वकील रखना चाहते हैं।

दंडात्मक उपाय

प्रिवेंटिव या रिमेडियल निर्देशों का अनुपालन करने में विफल रहे ज़िला प्रशासन में किसी पुलिस अधिकारी या किसी भी अधिकारी की विफलता को जानबूझकर लापरवाही का कार्य माना जाएगा और उपयुक्त विभागीय कार्रवाई छह महीने के भीतर समाप्त की जानी चाहिए।

यहां एक कमी यह है कि लिंचिंग की घटना के इऱादे के बिना अगर झूठे संदेश को फैलाया जाता है तो क्या यही आरोप लगेंगे। कुछ मामलों में संदेश प्रसारित करने वाले व्यक्ति की लोगों से केवल मजाक करने की इच्छा हो सकती है जैसे कि मशहूर फिल्म स्टार के लिए शोक संदेश। एक और कमी यह है कि क्या झूठी सूचना सांप्रदायिकता प्रेरित सूचना के दायरे में आती है। गैर-सांप्रदायिक रूप से प्रेरित झूठ के परिणामस्वरूप इस मॉब लिंचिंग के परिणामस्वरूप भीड़ के ख़िलाफ़ आरोप दायर किए जाएंगे, हालांकि, इस झूठ फैलाने वाले व्यक्तियों के लिए कौन से प्रावधान लगाए जा सकते हैं? दुर्भावनापूर्ण झूठ की पहचान करने के मामले में कोई व्यक्ति कहां पर लाइन खींच सकता है?

mob lynching
mob voilence
Supreme Court
India

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 
    24 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में 20 फ़ीसदी से ज़्यादा की कमी आयी है, लेकिन पिछले एक सप्ताह के भीतर स्ट्रेन BA.4 और BA.5 के दो-दो मामले सामने आ चुके है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?
    24 May 2022
    डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक द्वारा आशा कार्यकर्ताओं को ‘ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’ से रविवार को सम्मानित किया। यूनियन ने अंतरष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड मिलने पर ख़ुशी जताई तो वही केंद्र सरकार पर शोषण का आरोप…
  • भाषा
    बग्गा मामला: उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पंजाब पुलिस की याचिका पर जवाब मांगा
    24 May 2022
    पंजाब में साहिबजादा अजित सिंह नगर (एसएएस नगर) के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) मनप्रीत सिंह की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार और बग्गा को नोटिस जारी किया है। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    CSTO को यूक्रेन युद्ध में शामिल नहीं किया जाएगा
    24 May 2022
    मध्य एशिया के किसी भी नेता ने सार्वजनिक रूप से नहीं क़बूला है कि यूक्रेन युद्ध के बारे में सीएसटीओ कोई तत्काल चिंता का विषय है।
  • एस.के. पांडे
    किसकी मीडिया आज़ादी?  किसका मीडिया फ़रमान?
    24 May 2022
    जिस तरह भारत प्रेस की आज़ादी की रैंकिंग में फ़िसलता जा रहा है, वैसे में डराने-धमकाने और अधिकारों के हनन के बढ़ते मामलों के साथ मीडिया की आज़ादी के साथ-साथ यूनियनों के गठन की स्वतंत्रता को बचाने की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License