NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी के चार साल के अच्छे दिनों की झलक
असमानता में आश्चर्यजनक वृद्धि, देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने और धार्मिक और जाति आधार पर सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देना मोदी सरकार की कुछ महत्वपूर्ण 'उपलब्धियां' हैं।
सुबोध वर्मा
29 May 2018
Translated by महेश कुमार
Narendra Modi

हाल ही में आरटीआई की पूछताछ से पता चला कि मोदी सरकार 2014-15 से 2017-18 तक, अपने चार वर्षों के शासन काल में अपनी उपलब्धियों के प्रचार पर 4806 करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं। यूपीए 2 सरकार द्वारा खर्च की गई राशि से यह दोगुनी से भी अधिक है। सभी मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रचार का यह बंधन भ्रम पैदा करने के लिए है कि मोदी सरकार ने 2014 के चुनावों में भारतीयों के लिए अच्छे दिन का वादा किया थे, और उसने अपने वादे पूरे किए हैं।

यह पहली पूर्ण अवधि वाली एनडीए सरकार द्वारा किए गए ‘शाइनिंग इंडिया’ अभियान की तरह लग रहा है। 1999-2004 के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में यह बहियाँ चला था। यदि आप (सरकार) उस अभियान में विश्वास करते थे कि भारत अचानक उन पांच वर्षों में बदल गया। हालांकि आम लोगों की अलग राय थी और उन्होंने वाजपेयी सरकार को 2004 में उखाड़ दिया।

मौजूदा मोदी सरकार के वादे पूरे न करने  की सूची लम्बी भी है और चौंकाने वाली भी। उनके वायदों में 1 करोड़ नौकरियां देने से लेकर किसानों को लगत 50 प्रतिशत लाभ, एक जीवंत लोकतंत्र का निर्माण करने के लिए और सबका साथ सबका विकास के लिए और स्वास्थ्य और शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए  महिलाओं के लिए संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण दने का वायदा किया। लेकिन इस महान विश्वासघात के परिणामों ने देश को हजारों तरीकों से क्षतिग्रस्त कर दिया है, जिसने लोगों को गरीबी और विनाश की तरफ धकेल दिया गया है, भले ही अमीरों के सुपर मुनाफे में वृद्धि हुई है। यहां मोदी सरकार की कुछ झलक हैं कि उन्होंने भारत के साथ क्या किया है।

बढ़ती असमानता

2017 में उत्पन्न धन का 73 प्रतिशत हिस्सा आबादी के सबसे अमीर एक प्रतिशत के पास गया, जबकि 67 करोड़ भारतीय जो जनसंख्या के सबसे गरीब आधे हिस्से से हैं की संपत्ति में मात्र एक प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी। पिछले 12 महीनों में इस कुलीन समूह की संपत्ति 20,913 अरब रुपये बढ़ी है। यह राशि 2017-18 में केंद्र सरकार के कुल बजट के बराबर है। भारतीय अरबपति - उनमें से 101 ने पिछले वर्ष में ही 4891 अरब डॉलर कमाए हैं।

मोदी के शासन के तहत, अमीर और अमीर बन गए जबकि गरीब ज्यादा गरीब हो गए हैं। 2014 में जब मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में पद संभाला, तो भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत घरों में सभी घरेलू संपत्ति का 49 प्रतिशत  हिस्सा था। 2017 तक, यह आंकड़ा 58 प्रतिशत तक बढ़ गया था।

2013-14 में, मोदी के सत्ता में आने से पहले पिछले साल कॉरपोरेट मुनाफा 3.95 लाख करोड़ रुपये था। और 2016-17 तक कॉरपोरेट मुनाफा करीब 23 प्रतिशत बढ़कर 4.85 लाख करोड़ रुपये हो गया।

जाहिर है, मोदी कॉर्पोरेट घरों के प्रति बहुत दयालु हैं। मजदूरी करने वाले लोगों के बारे में क्या? एक श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि 67.5 प्रतिशत स्व-नियोजित श्रमिक प्रति माह 7500 रुपये तक कमाते हैं, नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों का 57.2 प्रतिशत 10,000 रुपये प्रति माह, ठेके श्रमिकों का 66.4 प्रतिशत और 84.3 प्रतिशत आकस्मिक श्रमिक प्रति माह 7500 रुपये तक कमाते हैं। इन औसत कमाई से पता चलता है कि अधिकांश कामकाजी लोग खुद को और अपने परिवारों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं कमा पा रहे हैं क्योंकि यहां तक कि सरकार के अपने पोषण और अन्य व्यय मानदंडों के अनुसार न्यूनतम मजदूरी प्रति माह 18,000 रुपये होने की आवश्यकता है।

सार्वजनिक संपत्ति का निजीकरण

नरेंद्र मोदी सरकार और उनकी पार्टी, बीजेपी गर्व से 'राष्ट्रवादी' और 'देशभक्ति' होने का दावा करती है, लेकिन साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय सार्वजनिक संपत्तियों को निजी टाइकूनों (पूंजीपतियों) को बिक्री के लिए रिकॉर्ड स्थापित किया है। चार साल में मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) के मुताबिक। मार्च 2018 के अंत तक 1.96 लाख करोड़ रुपये की सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को बेच दिया है। कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार के अपने दस साल के शासन में कुछ 1.18 लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को बेच गया था, यह दर्शाता है कि नव-उदारवादी नीतियाँ सभी मतभेदों के बावजूद सभी बुर्जुआ दलों की पसंदीदा हैं। लेकिन मोदी ने सिर्फ चार वर्षों में देश की अधिक संपत्ति को बेचकर कांग्रेस को हराया है। इस तरह की कमजोरी न केवल विदेशी कंपनियों को अत्यधिक लाभप्रद बनाने और सरकार के शेयरों को खरीदने की अनुमति देगी बल्कि ये कंपनियां भी नौकरी के नुकसान का कारण बनती हैं। मोदी सरकार खनिज संसाधनों, भूमि, नदियों और झीलों, जंगलों और यहां तक ​​कि स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों, यहां तक ​​कि निजी कंपनियों को ऐतिहासिक स्मारकों को बेचने की भी कोशिश कर रहा है। रक्षा उत्पादन से लेकर तेल उत्पादन तक, दवाइयों से स्कूल शिक्षा तक – सब निजी हाथों मकें चला जाएगा अगर यह सरकार जयादा दिन सत्ता में रही। पहले कभी भी किसी भी पार्टी/सरकार ने 'राष्ट्रवाद' और 'मातृभूमि' की इतनी ज्यादा बात नहीं की है, और उसके साथ ही बड़ी बेशर्मी से उसी मात्रभूमि को घरेलू और विदेशी दोनों ही मुनाफे के लिए उतनी ही बेदर्दी से बेचा है।

सांप्रदायिक हिंसा

2014 और 2017 के बीच सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (जिसके लिए आधिकारिक डेटा उपलब्ध है)। इन तीन वर्षों में, लगभग 3000 सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने लगभग 400 लोगों की जान ली है और लगभग 9000 लोग घायल हो गए हैं। सांप्रदायिक हिंसा को उकसाने के आधिकारिक तौर पर पंजीकृत मामले 2014 में 366 से बढ़कर 2017 में 475 हो गए हैं। पिछले 4 वर्षों में अनुमानित 700 हमलों हुए जो चर्च, पादरी, कैरोल गायक, क्रिसमस और ईस्टर कार्यक्रमों और देश भर में मिशनरियों पर हुए हैं।

चार साल पहले सत्ता में आने के बाद से, भाजपा और संघ परिवार के सहयोगियों ने नेताओंद्वरा घृणा से पूर्ण  बयान, कानूनी कार्रवाई से अपराधियों की रक्षा करना, और झूठ और घृणा के जहरीले अभियान के बीच अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा करने की लहर को उजागर किया है। हिंदू त्योहारों को सशस्त्र उत्सव में बदल दिया गया है जो दुर्भाग्य से अल्पसंख्यक समुदायों को लक्षित करते हैं। मुसलमानों और दलितों पर हमला करने के बहाने के रूप में हिंदू कट्टरपंथी तत्वों ने 'गाय संरक्षण' का इस्तेमाल किया है। सार्वजनिक चुनाव में और नफरत से भरे सोशल मीडिया मैसेजिंग के माध्यम से दोनों देशों में सांप्रदायिक प्रचार से सभी चुनाव प्रभावित हो जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के कथुआ में 8 वर्षीय बकरवाल लड़की के अपहरण, बलात्कार और हत्या से स्पष्ट है  कि इस जहरीले एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए बलात्कार का इस्तेमाल भी किया गया है, क्योंकि यह गुजरात (2002) और अन्य जगहों पर पहले हो चुका है।

दलितों और आदिवासियों

नवंबर 2017 में जारी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में देश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के कुल 40,801 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2015 में 38,670 मामले, जो 5.5 प्रतिशत की वृद्धि थी। इसी तरह, 2015 में 6276 की तुलना में, आदिवासी के खिलाफ अत्याचार 2016 में 6568 पर दर्ज किया गया था, जो 4.6 प्रतिशत की वृद्धि थी। समाज के ये दो सबसे उत्पीड़ित वर्ग भारत की आबादी का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। इन वर्गों के लिए संघ परिवार की मनुवादी और ब्राह्मणवादी सोच ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है कि मोदी शासन में उनकी स्थिति और ज्यादा हाशिए पर गयी है। इन हालात ने 2 अप्रैल के देशव्यापी बंद के विस्फोट के रूप से व्यक्त असंतोष और क्रोध को जन्म दिया है, जो दलितों और आदिवासियों को अत्याचारों से बचाने वाले कानूनों को कम करने के विरोध में विरोध प्रदर्शनों हुए थे।

बढ़ते धार्मिक विभाजन के साथ-साथ, बढ़ती जाति की हिंसा और उत्पीड़ित जातियों/जनजातियों और ऊपरी जातियों के बीच चौंकाने वाली बढ़ता टकराव भविष्य में एक बड़ी चिंता का सबब है, यदि वर्तमान विवाद जारी रहता है तो। बढ़ती असमानता और आर्थिक संकट के खिलाफ किसानों और श्रमिकों द्वारा संघर्ष की बढ़ती ज्वार से,आप देखेंगे कि क्यों मोदी ज्वालामुखी पर बैठे हैं।

Narendra modi
Achche Din
RTI
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • समीना खान
    विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई
    31 May 2022
    आख़िरकार चौथाई सदी की मेहनत रंग लायी और  वैज्ञानिक उस अणु (molecule) को तलाशने में कामयाब  हुए जिससे कैंसर पर जीत हासिल करने में मदद मिल सकेगी।
  • cartoon
    रवि शंकर दुबे
    राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास
    31 May 2022
    10 जून को देश की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी पार्टियों ने अपने बेस्ट उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। हालांकि कुछ दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने से वे नाराज़ भी हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 
    31 May 2022
    रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाना, पहले की कल्पना से कहीं अधिक जटिल कार्य साबित हुआ है।
  • अब्दुल रहमान
    पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन
    31 May 2022
    फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर एकतरफा प्रतिबंध लगाए हैं। इन देशों ने रूस पर यूक्रेन से खाद्यान्न और उर्वरक के निर्यात को रोकने का भी आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट
    31 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,338 नए मामले सामने आए हैं। जबकि 30 मई को कोरोना के 2,706 मामले सामने आए थे। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License