NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी पार्टी में टूटती चुप्पियां
वीरेन्द्र जैन
18 May 2015
2014 के पहले छह महीने तक दुनिया में किसी को यह भरोसा नहीं था कि श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं और उस कुर्सी के अधिकारी बन सकते हैं जिस को कभी जवाहरलाल नेहरू जैसे  वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न धर्मनिर्पेक्ष स्वतंत्रता सेनानी ने सुशोभित किया था। इस अविश्वास के अनेक कारण थे। 2002 में गुजरात में हुये मुसलमानों के नरसंहार के बाद मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित तो हो गये थे किंतु वह चर्चा अच्छे अर्थों में नहीं होती थी। कोई नहीं सोचता था कि भारत में गठबन्धन सरकार की जगह एक पार्टी की सरकार का युग लौट सकेगा और एनडीए के सहयोगी दल मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के रूप में स्वीकार कर लेंगे। भाजपा में भी गुजरात के बाहर उनके समर्थक नहीं के बराबर थे और अनेक लोगों की यह धारणा थी कि 2004 का लोकसभा चुनाव एनडीए मोदीजी के कारनामों के कारण ही हारी थी। जिन नीतियों के कारण राम विलास पासवान की लोजपा, बंगाल की तृणमूल काँग्रेस कश्मीर की नैशनल कांफ्रेंस, आदि ने एनडीए से समर्थन वापिस लिया था, तथा तेलगुदेशम ने बाहर से समर्थन देकर भी एनडीए सरकार में शामिल होने से साफ इंकार कर दिया था व बालयोगी के असमय निधन के बाद लोकसभा के स्पीकर का पद भी नहीं स्वीकारा था, वे नीतियां ही मोदी की भी पहचान बनाती थीं। अमेरिका और ब्रिट्रेन जैसे देशों ने उन्हें वीसा देने से इंकार कर दिया था और मीडिया में कार्टूनिस्ट उनका कैरीकैचर बनाते समय उनके हाथ में खड़ग और कसाइयों जैसी लुंगी पहिने हुए दिखाते थे। यही कारण था कि गठबन्धन सरकारों को देश की नियति मान चुके लोगों को लगता था कि आवश्यकता पड़ने पर मोदी के नाम पर कोई दूसरा दल समर्थन नहीं देगा।
 
बाद में अचानक ही कुछ ऐसा हुआ कि अज्ञात कारणों से संघ ने तय कर लिया कि वह स्वाभाविक, वरिष्ठ, स्वस्थ, और सुयोग्य नेता लाल कृष्ण अडवाणी को फिर से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नहीं बनायेगी और विकल्प के रूप में उनके द्वारा सुझाये गये व बाल ठाकरे द्वारा समर्थित सुषमा स्वराज के नाम पर भी विचार नहीं करेगी। ऐसे फैसले से भाजपा में काँग्रेस जैसा संकट पैदा हो गया जहाँ गाँधी-नेहरू परिवार का नेतृत्व न मिलने पर ढेर सारे नेता सर्वोच्च पद प्राप्त करने के लिए आपस में ही लड़ने लगते हैं। अडवाणी के बाद भाजपा के पास ऐसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं था जिसे सहजता से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी बनाया जा सकता हो, इसका परिणाम यह हुआ कि अपनी बदनामी के कारण सर्वाधिक चर्चित नेता को ही यह पद सौंपना पड़ा क्योंकि मोदी से उपकृत उद्योग जगत पहले से ही अपना समर्थन उन्हें दे चुका था। मोदी के नाम की सम्भावना सूंघ कर ही जेडी-यू ने गठबन्धन तोड़ दिया था और बीजू जनता दल, तृणमूल काँग्रेस, डीएमके, एआईडीएमके आदि ने गठबन्धन से साफ इंकर कर दिया था। पहले भाजपा में कई कोनों से मोदी के नाम का मुखर विरोध हो रहा था, अडवाणी ने स्तीफा लिख भेजा था और मुम्बई से सुषमा स्वराज के साथ बिना भाषण दिये ही लौट आये थे। अपनी मुखरता के लिए चर्चित शत्रुघ्न सिन्हा उनके नाम का खुला विरोध कर रहे थे। जहाँ जहाँ भाजपा की सरकारें थीं उनमें गुजरात को छोड़ कर सभी सरकारों के प्रमुख अडवाणी के पक्षधर थे। शिवसेना बाल ठाकरे के बयान से बँधी थी। नितिन गडकरी मोदी के विरोध के कारण ही संघ के समर्थन के बाबजूद दुबारा से अध्यक्ष नहीं बन सके थे। वैंक्य्या नायडू तो खुद को अडवाणी का हनुमान बताते हुए कभी अटलजी को भी नाराज कर चुके थे। शांता कुमार मोदी के विरोधी थे। अरुण जैटली कह रहे थे कि भाजपा में दस से अधिक लोग प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं।
 
                                                                                                                          
 
पता नहीं कि फिर ऐसा क्या हुआ कि संघ ने संजय जोशी जैसे संघ के प्रमुख प्रचारक को बाहर करने की मोदी की माँग के आगे घुटने टेक दिये, गडकरी मामले में हुयी अपनी अवमानना को भुला दिया और मोदी को पहले चुनाव प्रभारी घोषित करने के बाद प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने भाजपा के प्रत्येक नेता को पूरी तरह मुँह सिलने और श्रीमती इन्दिरा गाँधी की तरह पार्टी का इकलौता नेता मानने का फरमान जारी कर दिया। मोदी को प्रत्याशी चयन के लिए फ्री हैंड दे दिया गया तो अपने पिछले बयान के दो दिन बाद ही जैटली कहने लगे थे कि हिट विकेट हो जाने से पहले ही भाजपा को तुरंत ही नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित कर देना चाहिए। मोदी, अमित शाह ग्रुप के कुशल प्रबन्धन और कार्पोरेट प्रदत्त संसाधनों के साथ भाजपा के लोगों के निर्विरोध समर्थन ने मोदी को इकतीस प्रतिशत मतों में ही स्पष्ट बहुमत दिला दिया तो मोदी ने पार्टी के अध्यक्ष पद पर भी उनके पैर छूने वाले अमित शाह के नाम से अधिकार कर लिया। यह तय है कि यदि भाजपा में अध्यक्ष पद के लिए स्वतंत्र चुनाव हुये होते तो अमित शाह को सबसे कम वोट मिले होते। चुनावी रणनीति के अन्तर्गत पार्टी में जो चुप्पी ओढ ली गयी थी वह अनुमान से भी अधिक विजय मिलने के बाद सन्नाटे में बदल गयी।
 
चुनावों के बाद जो सबसे बड़ा विपक्षी दल था वह इतनी सीटें भी नहीं जीत सका था कि उसे विपक्षी दल का दर्जा भी मिल सके भले ही गैर भाजपा दलों को उनहत्तर प्रतिशत मत मिले हों, पर वे राज्यवार क्षेत्रवार और आपस के प्रतिद्वन्दी थे। चुनाव परिणामों के विश्लेषण में यह निष्कर्ष सही था कि विपक्ष में कोई भी ऐसा नहीं है जो मोदी जनता पार्टी में बदल चुकी भाजपा को सदन में चुनौती दे सके। विश्लेषक एक मत थे कि भाजपा के पतन की कहानी अगर लिखी जायेगी तो वह उसके अन्दर से फूटे विरोध से ही लिखी जायेगी क्योंकि उनकी चुनावी एकजुटता में एक विरोध छुपा हुआ था जिसका दमन कर दिया गया है। पिछले दिनों संकेत मिल रहे हैं कि दमित लोग सिर उठाने की कोशिशें करने लगे हैं। अगर किसी वस्तु का आयतन गुब्बारे जैसा हो तो उसमें एक छेद ही हवा निकाल देने के लिए काफी होता है।
पिछले दिनों मोदी सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और संघ परिवार के नेताओं ने मोदी की सफाई, स्पष्टीकरण, और संकेतों के बाद भी एक के बाद दूसरे विवादास्पद बयान दिये उससे साफ हो गया था कि वे अपने स्वभाव के विपरीत आगे और घुटन सहन नहीं कर सकेंगे। शत्रुघ्न सिन्हा ने पटना क्षेत्र से सांसद होते हुए भी वहाँ के गाँधी मैदान में हुयी चुनाव की पूर्व पीठिका तैयार करने वाली रैली में भाग लेना जरूरी नहीं समझा और प्रैस से साफ साफ कहा कि पार्टी ने मुझे किसी जिम्मेवारी के लायक नहीं समझा। यह कहने वाले वे अकेले नजर आ रहे हों पर ऐसा सोचने वाले अनेक हैं। ज्यादातर सांसदों को शिकायत है कि उनकी सांसद निधि तक को एक गाँव तक सीमित करके उनके विवेक और जनसम्पर्क के इस साधन को सीमित किया गया है। मंत्रियों को स्वतंत्रता नहीं है जिसे सीमित करने के लिए मोदी ने शपथ ग्रहण के बाद पहला काम यही किया था कि सभी विभाग के सचिवों की बैठक बुला कर उन्हें उनसे सीधे सम्पर्क के लिए प्रोत्साहित किया था जो अब मंत्रियों को महत्व नहीं देते। परोक्ष धमकी देते हुए उन्होंने पिछले दिनों चेताया भी था कि उनका निजी सूचनातंत्र सरकारी सूचना तंत्र से भी अच्छा है। राजनाथ सिंह वाले प्रकरण के बाद से तो सभी मंत्री सतर्क हैं और जावेडकर जैसे मंत्री जींस पहिने हुए नजर नहीं आते। महिला मंत्रियों में केवल स्मृति ईरानी ही सदन में बोलती नजर आती हैं। सुषमा, उमा, निरंजन ज्योति  आदि चुप नहीं मौन साधे बैठी हैं। वी के सिंह दबाते दबाते भी बोल जाते हैं कि आर्म्स लाबी का दबाव काम कर रहा है जिसके इशारे पर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है जिस कारण उन्हें प्रैस को प्रैस्टीट्यूट कहना पड़ा था जबकि भाजपा प्रैस के साथ सबसे मधुर रिश्ते बनाने के लिए मशहूर है और कभी उसे नहीं छेड़ती।
 
भाजपा को दो सदस्य से दो सौ तक पहुँचाने की नीति बनाने वाले गोबिन्दाचार्य तो एकता परिषद के साथ मिल कर साफ साफ कह रहे हैं कि जमीन अधिग्रहण कानून लूट कानून है। वे अन्ना हजारे के साथ आन्दोलन में भाग ले रहे हैं जबकि मध्य प्रदेश भाजपा का मुखपत्र चरैवेति अन्ना को विदेशी एजेंट बताते हुए उन्हें देश के विकास में बाधा डालने वाले एनजीओ समूहों का मुखौटा बताता है। भाजपा के किसान और मजदूर संगठन बामपंथियों की भाषा बोल रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमण्डल में विनिवेश मंत्री जैसा दुनिया का इकलौता पद सुशोभित करने वाले पत्रकार राजनेता अरुण शौरी ने तो भाजपा के हजारों नेताओं की दबी आवाज को वाणी ही दे दी है कि पार्टी को मोदी शाह और जैटली की तिकड़ी चला रही है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी पराजय के पीछे किरन बेदी को थोपने का बदला पुराने भाजपाइयों ने गुपचुप ढंग से लिया और अब वे ही लोग आप पार्टी के मंत्रियों के वे मुद्दे उठा रहे हैं जिनकी प्रतिक्रिया में मोदी के प्रिय लोग भी घेरे में आ सकते हैं। यह बात भी अब भाजपा के नेता भी पूछने लगे हैं कि क्यों अब तक लोकपाल में नियुक्तियां नहीं हो सकीं जबकि पूरा चुनाव भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर लड़ा गया था। तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में दो पद खाली पड़े हैं। केन्द्रीय सतर्कता आयोग का काम नियुक्ति की उम्मीद में खाली पड़ा है जिसका असर सीबीआई की नियुक्तियों पर पड़ रहा है क्योंकि सतर्कता आयोग की सिफारिश के बाद ही सीबीआई में नियुक्तियां होती हैं। इसी तरह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन की प्रतीक्षा में न्यायाधीशों के सैकड़ों पद रिक्त पड़े हैं। यही हाल राज्यपालों की नियुक्तियों का भी है। संगठन में कार्यकारिणी की बैठक ही नहीं हो रही है।
 
भाजपा की सबसे बड़ी ताकत मोदी को पार्टी का अन्ध समर्थन मिलता हुआ दिखाई देना था। अब यह समर्थन बिखरता दिखाई दे रहा है। उनके मुखर प्रवक्ता भी टीवी की बहसों में दाँएं बाँएं करते दिखाई देते है क्योंकि उनके पास भी कोई जबाब नहीं होता। उनका निरुत्तर हो जाना बड़े सवाल छोड़ जाता है जो सबकी समझ में आते हैं।
 
डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।
 
मोदी सरकार
अरुण शौरी
भाजपा
नरेन्द्र मोदी

Related Stories

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

सत्ता का मन्त्र: बाँटो और नफ़रत फैलाओ!

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

जी.डी.पी. बढ़ोतरी दर: एक काँटों का ताज

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

5 सितम्बर मज़दूर-किसान रैली: सबको काम दो!

रोज़गार में तेज़ गिरावट जारी है

लातेहार लिंचिंगः राजनीतिक संबंध, पुलिसिया लापरवाही और तथ्य छिपाने की एक दुखद दास्तां

माब लिंचिंगः पूरे समाज को अमानवीय और बर्बर बनाती है


बाकी खबरें

  • sc
    भाषा
    स्थानीय चुनावों में ओबीसी आरक्षण: न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रहा केंद्र
    21 Dec 2021
    महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए तय किए गए 27 प्रतिशत आरक्षण को खत्म करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद केन्द्र ने यह बात कही।
  • J&K delimitation
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जम्मू-कश्मीर परिसीमन : जम्मू में 6, कश्मीर में 1 विधानसभा सीट बढ़ाने के मसौदे पर राजनीतिक दलों का विरोध
    21 Dec 2021
    विपक्षी दलों ने आयोग पर आरोप लगाया कि वो बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे को उसकी सिफ़ारिशों के तहत तय करने की अनुमति दे रहा है।
  • data protection
    विकास भदौरिया
    डेटा संरक्षण विधेयक की ख़ामियां और जेपीसी रिपोर्ट की भ्रांतियां
    21 Dec 2021
    विधेयक और संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें कई समस्याओं से घिरी हुई हैं, और उनमें से कुछ सिफारिशें तो राज्य को निगरानी शक्ति के साथ  लैस कर रही हैं, जो गंभीर चिंताओं को विषय है।
  • sansad march
    भाषा
    गृह राज्यमंत्री टेनी की बर्ख़ास्तगी की मांग : विपक्ष ने निकाला मार्च 
    21 Dec 2021
    विपक्षी दलों के नेताओं एवं सांसदों ने यहां संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने से मार्च शुरू किया और विजय चौक तक गए। इस मार्च में राहुल गांधी, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन…
  • Growing economic inequality in India
    डॉ. राजू पाण्डेय
    भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता : जाति और लैंगिक आधार पर भी समझने की ज़रूरत
    21 Dec 2021
    जहाँ तक भारत का संबंध है यहाँ आर्थिक गैरबराबरी के लिए केवल वितरण की असमानता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। जाति प्रथा और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियां तथा श्रम बाजार में जातिगत भेदभाव वे कारक…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License