NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मुंबई किसान लॉन्ग मार्च: AIKS के नेतृत्व में संगठित विरोध से किसानों की बढ़ी उम्मीद
पिछले दो वर्षों में घोर कृषि संकट और सरकार की अनदेखी ने क़रीब 50,000 किसानों को इस ऐतिहासिक मार्च में इकट्ठा होने पर मजबूर किया।
सुबोध वर्मा
13 Mar 2018
farmers' long march

पिछले छह दिनों में ऐसा लग रहा है कि भारत धीरे-धीरे किसानों के संकट और उनके प्रतिरोध के बाद कुछ जागरूक हुआ है। 6 मार्च को महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से लगभग 20,000 किसान सीपीआई (एम) से संबद्ध अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर 200 किलोमीटर के मुंबई मार्च के लिए उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र के नासिक में इकट्ठा हुए। किसानों की योजना चल रहे बजट सत्र के दौरान राज्य के विधानसभा को अनिश्चित काल के लिए घेराव करना था और माँग करना था कि ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे किसानों की समस्याओं का तत्काल समाधान निकाला जाए। पदयात्रा कर रहे किसान 12 मार्च की सुबह मुंबई में प्रवेश कर गए। मुंबई पहुंचने तक इस मार्च में किसानों की संख्या क़रीब 50,000 तक पहुंच गई। राज्य सरकार लाल रंग के इस लहर से समझौता करने की कोशिश कर रही था। राजनीतिक दल अपना समर्थन दिखाने के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे थे। भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई के निवासी किसानों के इस मार्च को लेकर हैरान थें।

आखिर किसान इतने नाराज़ और परेशान क्यों हैं? उनकी परेशानी क्या है? उन्होंने इस तरह के मार्च का आयोजन कैसे किया? और, अब क्या होगा? इन सभी सवालों के संक्षिप्त जवाब यहां हैं जो हर किसी के दिमाग़ में उपज रहे हैं।

कृषि संकट क्या है

भारत के हर क्षेत्रों की तरह महाराष्ट्र के किसान भी कम होती आय और बढ़ते क़र्ज़ की दोहरी मार लागातार झेल रहे हैं। 9 मार्च को विधानसभा में पेश किए गए राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2017-18 में राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था में 8.3% की कमी आई थी। सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि चालू वर्ष के ख़रीफ सीज़न में अनाज के उत्पादन में 4% , दाल46%, तिलहन 15% और कपास के उत्पादन में 44% तक की कमी होगा। राज्य में कपास प्रमुख फसल है लेकिन कपास के खड़े फसल में पिंक बॉलवर्म के हमलों ने क़रीब 15,000करोड़ रूपए के फसल को बर्बाद कर दिया। ये फसल लगभग 20.36 लाख हेक्टेयर में था जो कपास के कृषि क्षेत्र का क़रीब 50% क्षेत्र है। रबी फसल को लेकर भी आर्थिक सर्वेक्षण की एक भयानक भविष्यवाणी है। रकबा 31% तक कम हो गया है और ऐसी आशंका है कि अनाज का उत्पादन 39%, दाल का 6% और तिलहन का 60% तक कम हो सकता है।

ये सभी सिर्फ वर्तमान के संकट हैं। किसानों की परेशानियां सालों से बढ़ती रही हैं क्योंकि बढ़ती लागत और कम होते फायदे के कारण वे बेहतर क़ीमत हासिल करने में नाकाम रहे हैं। दूसरी तरफ क़र्ज़ इसी समस्या का एक अन्य पहलू है। पिछले साल बीजेपी सरकार ने क़रीब 70 लाख किसानों को लाभान्वित करने के लिए 34,022 करोड़ रुपए के कृषि ऋण छूट की घोषणा की थी। लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में स्वीकार किया कि वास्तव में 46.4 लाख कृषक परिवारों के लिए 23,102.19 करोड़ रुपए मंज़ूर किए गए हैं, और 13,782 करोड़ रुपए वास्तव में 35.7 लाख किसानों के खाते में वितरित किए गए हैं।

लेकिन कृषि संकट का मुख्य कारण यह है कि किसानों की आमदनी उनकी फसलों पर किए गए ख़र्च से ज़्यादा नहीं है। नीति आयोग के एक पत्र में स्वीकार किया गया है कि कृषि कीमतों पर सरकारी समिति के अनुसार 2011-12 और 2015-16 के बीच कृषि उत्पादन की कीमतों में 6.88% की बढ़ोतरी हुई है, जबकि वस्तु और सेवाओं के लिए कीमतों में 10.52%की वृद्धि हुई।

एक अन्य कारक साल दर साल भूमि के अधिग्रहण क्षेत्र में लगातार गिरावट है। वर्ष 1971 में महाराष्ट्र में भूमि का औसत अधिग्रहण क्षेत्र 4.28 हेक्टेयर था जो 49 लाख भूस्वामियों के पास था। यह 1.44 हेक्टेयर तक घट गया जो 137 लाख भूस्वामी किसानों के पास चला गया। इनमें से क़रीब 78% किसान "छोटे और सीमांत" हैं अर्थात् वे 2 हेक्टेयर भूमि से कम के स्वामी हैं।

एक उन्नत और समृद्ध राज्य माना जाने के बावजूद महाराष्ट्र में सिंचाई के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का सिर्फ 25% हिस्सा ही है। इस प्रकार, तीन चौथाई कृषि वाले क्षेत्र बारिश पर निर्भर है,और तेजी से अनियमित मानसून के चलते किसान लगातार जल संकट का सामना कर रहे हैं जो उनके बजट को नष्ट कर देता है। इस संकट की एक विचित्र विशेषता यह है कि राज्य के बोए गए कुल क्षेत्र के सिर्फ 4% क्षेत्र पर गन्ने की कृषि होती है लेकिन यह सिंचाई का 71.5% लेता है।

कृषि संकट को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख कारक राज्य सरकार का वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) को शीघ्रता से लागू करने से इनकार करना है जो कि आदिवासी किसानों को वनों पर भूमि अधिकार देता है जिस पर वे वर्षों से कृषि करते रहे हैं। ऐसे भूमि अधिकार (पट्टों) के वितरण के मामले में महाराष्ट्र कई अन्य राज्यों से पीछे है। इसने उत्तर-पश्चिम महाराष्ट्र में ठाणे क्षेत्र और विदर्भ क्षेत्र के आदिवासियों को नाराज़ किया है।

किसानों का बढ़ता विरोध

इसी गहरे संकट का सामना करते हुए महाराष्ट्र के किसानों ने पिछले कुछ सालों में आत्महत्या कीं। पिछले साल राज्य सरकार के क़र्ज़ माफी के बावजूद 2414 किसानों ने आत्महत्या की। क़र्ज़ समेत अन मुश्किलों में फंसे किसानों को मजबूरन आत्महत्या करना पड़ता है और वे अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं। वाम संगठन एआईकेएस के नेतृत्व में किए गए संगठित विरोध से राज्य भर के हजारों किसानों को नई ताकत मिली है और उन्हें नई उम्मीद नज़र आ रही है।

ठीक दो साल पहले 29 मार्च 2016 को एआईकेएस ने नासिक के सेंट्रल सीबीएस चौक पर दो दिन और दो रातों तक अभूतपूर्व एक लाख किसानों की घेराबंदी का नेतृत्व किया था जिसने शहर को पूरी तरह स्थिर कर दिया था। बीजेपी के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने एआईकेएस को आश्वासन दिया था लेकिन ये पूरा नहीं हुआ तो मई 2016 में किसानों के आत्महत्या के मुद्दे पर एआईकेएस ने ठाणे शहर में एक 10,000 किसानों के कॉफिन मार्च का नेतृत्व किया।

फिर अक्टूबर 2016 में 50,000 से अधिक आदिवासी किसानों ने दो दिन और रात तक पालघर ज़िले के वाडा में आदिवासी विकास मंत्री के घर का घेराव किया था। एफआरए और आदिवासी बच्चों के कुपोषण से संबंधित मौत जैसे मुद्दों पर लिखित आश्वासन दिया गया। इस बीच मई 2016 में मराठवाड़ा क्षेत्र के औरंगाबाद और मई 2017 में विदर्भ क्षेत्र के खामगांव मेघाड क्षेत्र में सूखे, क़र्ज़ माफी और लाभकारी क़ीमतों के मुद्दों पर एआईकेएस ने विरोध प्रदर्शन किया।

एक ऐतिहासिक संयुक्त किसान धरना 1 से 11 जून 2017 से किसानों के संगठनों की समन्वय समिति की अगुवाई में हुई थी। 11 जून को राज्य सरकार को समन्वय समिति के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर किया गया था और किसानों को पूरी तरह ऋण छूट देने पर सहमति हुई थी। लेकिन 34,000 करोड़ रुपए की कपटपूर्ण क़र्ज़ माफी पैकेज की घोषणा की गई थी लेकिन इसके लिए कई कठोर शर्त लगाए गए ये किसानों की बड़ी आबादी को कोई राहत मिलने से रोकेगा। इस विश्वासघात ने बड़े पैमाने पर संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन को उकसाया। जुलाई में 15 बड़े ज़िला सम्मेलनों में 40,000 से अधिक किसानों ने हिस्सा लिया था, जिसके बाद 14 अगस्त को राज्यव्यापी चक्का जाम किया गया जिसमें दो लाख से अधिक किसानों ने राज्य के 31 जिलों में 200 से अधिक जगहों पर राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग अवरुद्ध किया था। अंत में 16 फरवरी 2018 को सांगली में एआईकेएस महाराष्ट्र स्टेट काउंसिल की एक बैठक में 25 जिलों के 150 से अधिक प्रमुख कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया इसमें 6 से 12 मार्च तक लाँग मार्च आयोजित करने का निर्णय लिया गया। पूरे राज्य में ज़ोरदार अभियान चलाया गया और इसे उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया मिली।

CPI(M)
AIKS
Protest
Maharashtra
Long March to Mumbai

Related Stories

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

केरल उप-चुनाव: एलडीएफ़ की नज़र 100वीं सीट पर, यूडीएफ़ के लिए चुनौती 

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

डीवाईएफ़आई ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया

महाराष्ट्र : एएसआई ने औरंगज़ेब के मक़बरे को पांच दिन के लिए बंद किया

महाराष्ट्र में गन्ने की बम्पर फसल, बावजूद किसान ने कुप्रबंधन के चलते खुदकुशी की

बिहार : सातवें चरण की बहाली शुरू करने की मांग करते हुए अभ्यर्थियों ने सिर मुंडन करवाया


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    जम्मू-कश्मीर परिसीमन से नाराज़गी, प्रशांत की राजनीतिक आकांक्षा, चंदौली मे दमन
    07 May 2022
    हफ़्ते की बात के इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के परिसीमन की। साथ ही वे नज़र डाल रहे हैं प्रशांत किशोर की राजनीतिक सियासत की।
  • रवि शंकर दुबे
    तीन राज्यों में उपचुनाव 31 मई को: उत्तराखंड में तय होगा मुख्यमंत्री धामी का भविष्य!
    07 May 2022
    चुनाव आयोग ने तीन राज्यों की तीन सीटों पर विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित कर दी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की चंपावत सीट को माना जा रहा है। क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी…
  • पीपुल्स डिस्पैच
    पाकिस्तान में बलूच छात्रों पर बढ़ता उत्पीड़न, बार-बार जबरिया अपहरण के विरोध में हुआ प्रदर्शन
    07 May 2022
    राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद में पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) के परिसर से दिन दहाड़े एक बलूच छात्र बेबाग इमदाद को उठाए जाने के बाद कई छात्र समूहों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया।
  • राहुल कुमार गौरव
    पिता के यौन शोषण का शिकार हुई बिटिया, शुरुआत में पुलिस ने नहीं की कोई मदद, ख़ुद बनाना पड़ा वीडियो
    07 May 2022
    पीड़ित बेटी ने खुद अपने पिता की गंदी करतूत का वीडियो बनाया और फिर उसे लेकर थाने पहुंची। पीड़ित की शिकायत के बाद पुलिस ने गुरुवार को 50 वर्षीय आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन पीड़िता को अपने…
  • सुबोध वर्मा
    ओडिशा: अयोग्य शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे शिक्षक
    07 May 2022
    शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध 8 कॉलेजों में 62 फैकल्टी हैं, जिनमें से सिर्फ 20 रेगुलेटरी बॉडी की योग्यता के मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License