NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
बहुध्रुवीयता के इस दौर में मझोले और छोटे-छोटे देश
वेनेज़ुएला और इक्वाडोर जैसे छोटे-छोटे देश पश्चिमी गोलार्ध के बाहर के देशों के साथ भी अपने बाहरी रिश्ते बना रहे हैं।
एम. के. भद्रकुमार
08 Dec 2020
बहुध्रुवीयता के इस दौर में मझोले और छोटे-छोटे देश
रूस से मिले एस-400 वायु रक्षा प्रणाली 25 नवंबर, 2019 को तुर्की वायु सेना के मर्डेट एयर बेस पर परीक्षण के लिए सक्रिय।

इस हफ़्ते के तीन घटनाक्रम इस बात को रेखांकित करते हैं कि विश्व व्यवस्था में बढ़ती बहुध्रुवीयता में वह स्थापित गठबंधन लगातार कमज़ोर पड़ती जा रही है,जिसने पिछली सदी से संयुक्त राज्य अमेरिका के उसके वैश्विक आधिपत्य को बनाये रखने के पहले से उपलब्ध आधार थे।अमेरिका के घरेलू संकट की भयावहता को देखते हुए अमेरिका इन गठबंधनों पर अपने नियंत्रण को कमज़ोर होने से बचाने में सक्षम नहीं है।

पिछले मंगलवार को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक में अमेरिका और तुर्की के बीच का मनमुटाव एक ग़ैरमामूली घटनाक्रम था। नाटो के सदस्य देशों के बीच ख़ास मुद्दों पर मतभेद पहले भी रहे हैं। 2003 में इराक़ पर अमेरिकी हमले को लेकर जर्मनी और फ़्रांस का ऐतराज़ इसी तरह का एक मामला था। लेकिन,पिछले मंगलवार को यूएस-तुर्की के बीच का मनमुटाव गुणात्मक रूप से विशिष्ट,लेकिन संभावित रूप से दूरगामी है।

निवर्तमान अमेरिकी विदेश मंत्री,माइक पोम्पिओ ने तुर्की पर यह आरोप लगाते हुए ज़ोरदार प्रहार किया कि तुर्की ने भूमध्य सागर में अपने सहयोगियों के साथ तनाव को बढ़ाने के लिहाज़ से आग में घी का काम किया है और रूस-निर्मित विमान-रोधी प्रणाली ख़रीदकर क्रेमलिन को एक उपहार देने का काम किया है। फ़्रांसीसी विदेश मंत्री,जीन-यवेस ले ड्रियन ने पोम्पिओ का समर्थन करते हुए कहा कि अगर तुर्की रूस के आक्रामक हस्तक्षेप की नक़ल करता है,तो गठबंधन के भीतर एकजुटता को बनाये रखना नामुमकिन हो जायेगा।

निश्चित रूप से तुर्की के विदेश मंत्री,मेवुतोग्लू ने भी पोम्पिओ पर जवाबी हमले करते हुए आरोप लगाया कि पोम्पिओ ने यूरोपीय सहयोगियों को फ़ोन किया और तुर्की के ख़िलाफ़ गिरोहबाज़ी के लिए उकसाया, पोम्पिओ पर क्षेत्रीय संघर्षों में ग्रीस का आंख मुंद कर साथ देने का भी आरोप लगाया,अंकारा यूएस-निर्मित पैट्रियट विमान-रोधी हथियारों को बेचने से इनकार करने और सीरिया में कुर्द "आतंकवादी संगठनों" का समर्थन करने का भी आरोप लगाया। तुर्की के विदेश मंत्री,मेवुतोग्लू ने यह भी कहा कि अमेरिका और फ़्रांस ने नागोर्नो-कारबाख़ के एक युद्ध में अर्मेनिया का समर्थन करके संघर्ष को हवा दी है,जिसे अजरबैजान ने तुर्की के सैन्य समर्थन से जीत लिया है।

तथ्य तो यही बताते हैं कि मेवुतोग्लू सच बोल रहे थे। अमेरिका के भीतर इस बात को लेकर तेज़ी से हताशा पैदा हो रही है कि तुर्की ने एक ऐसी स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने के लिहाज़ से अपनी चाल बदल ली है,जो वाशिंगटन की मध्य पूर्व रणनीतियों को ज़बरदस्त रूप से कमज़ोर करेगी। सचाई यही है कि अंकारा मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में बहुध्रुवीयता की संभावनाओं की तलाश करते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूती दे रहा है।

पोम्पिओ और ले ड्रियन इसके तीख़े आलोचक इसलिए रहे हैं,क्योंकि तुर्की भी उन्हीं नीतियों का अनुसरण कर रहा है,जिसके तरहत रूस क्षेत्रीय राजनीति में यूक्रेन और क्रीमिया, काला सागर से नागोर्नो-कारबाख़ और जॉर्जिया तक और पूर्वी भूमध्यसागर में लीबिया से लेकर सीरिया तक फैली उनकी नीतियों को उलट-पुलट दे रहा है। इस सिलसिले में विरोधाभासी रूप से तुर्की अमेरिकी हितों को भी आगे बढ़ा रहा है और काले सागर में नाटो को मज़बूत कर रहा है और अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र (जिसके लिए लीबिया एक प्रवेश द्वार है) में भविष्य के विस्तार की योजना भी बना रहा है 

पिछला सप्ताह ट्रांसअटलांटिक गठजोड़ के लिहाज़ से एक दूसरा अहम घटनाक्रम भी सामने आया,जब जर्मन शिपिंग अधिकारियों ने बाल्टिक सागर क्षेत्र के लिए जहाज़ों को चेतावनी देते हुए एक सीधी-सादी ऐडवाइज़री जारी करते हुए चेताया कि 5-31 दिसंबर तक एक ख़ास क्षेत्र में जाने से बचें।

इस बीच,जहाज़ों की आवाजाही पर नज़र रखने वाली वेबसाइट Marinetraffic.com ने रूसी पाइप-बिछाने वाली जहाज़ फ़ॉर्चुना और अकैडेमिक चेर्सिकी को उसी क्षेत्र की ओर बढ़ते हुए दिखाया था। स्पष्ट रूप बर्लिन के साथ परामर्श करते हुए मॉस्को नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन परियोजना पर काम फिर से शुरू करने के साथ आगे बढ़ रहा है,जिसे 2019 के अंत में अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण निलंबित कर दिया गया था,जिसके तहत इस परियोजना में लगी परिसंपत्ति को फ़्रीज करने और अंतर्राष्ट्रीय कंसोर्टियमों के लिए वीजा पर प्रतिबंधों की धमकी दी गयी थी (इस परियोजना में जर्मनी के विंटर्सहॉल और यूनीपर समूह, डच-ब्रिटिश दिग्गज शेल, फ़्रांस के एंजी और ऑस्ट्रिया के ओएमवी जैसे यूरोपीय खिलाड़ी शामिल हैं)।

अमेरिकी राष्ट्रपति,डोनाल्ड ट्रम्प ने जर्मनी पर उसकी ऊर्जा नीति को लेकर "रूस का बंदी" होने का आरोप लगाया था। जर्मनी में अमेरिकी दूत, रॉबिन क्विनविले ने शनिवार को बिजनेस दैनिक,हैंडलब्लैट से कहा,"अब जर्मनी और यूरोपीय संघ के लिए यही वक़्त है कि वे पाइपलाइन के निर्माण पर रोक लगाये," जिससे रूस को इस बात का संकेत मिले कि यूरोप “इसके (रूस के) जारी दुर्भावनापूर्ण रवैये को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है… यह पाइपलाइन न सिर्फ़ एक आर्थिक परियोजना है, बल्कि एक राजनीतिक परियोजना भी है,जिसे क्रेमलिन यूक्रेन को बायपास करने और यूरोप को विभाजित करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।”  

रूस की सरकारी ऊर्जा कंपनी,गज़प्रॉम की अगुवाई में 90% से ज़्यादा पूरी हो चुकी 11 बिलियन डॉलर की यह नॉर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना प्राकृतिक गैस की मात्रा को दोगुना कर देगी,जिससे जर्मनी रूस से प्राकृतिक गैस का आयात कर सकता है, एक बार इस परियोजना के पूरे होने पर रूस 55 बिलियन क्यूबिक मीटर तक का उत्पादन तक पहुंच सकता है। इस सस्ते रूसी गैस तक होने वाली जर्मनी की पहुंच उसके परमाणु ऊर्जा और कोयले के इस्तेमाल से बचने के लिहाज़ से जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए यह महत्वपूर्ण है।

जर्मन चांसलर,एंजेला मर्केल को इस बात को लेकर एक राजनीतिक आह्वान करना पड़ा है कि अमेरिकी धमकियों के आगे झुक जाया कि नहीं या जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए भारी आर्थिक क़ीमत चुकायी जाये या नहीं; अमेरिका के साथ शामिल हो जाय और रूस को एक ख़तरा माना जाय या नहीं।

उपरोक्त घटनाक्रम के मुक़ाबले 6 दिसंबर को वेनेज़ुएला में हुए संसदीय चुनाव एक अलग कोटि में आते हैं,लेकिन वे एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के दोषपूर्ण लक्षण को भी उजागर करते हैं। उस चुनाव की पृष्ठभूमि मार्मिक है। वेनेज़ुएला में "सत्ता परिवर्तन" को लेकर ट्रम्प प्रशासन का ज़ोरदार प्रयास नाकाम रहा है। इससे भी अहम बात यह है कि वाशिंगटन जिस नकली आदमी को वेनेज़ुएला के "राष्ट्रपति" के तौर पर मान्यता देता रहा है, वह जुआन गुआदो अपने ही देश में बुरी तरह बदनाम है।

रविवार का चुनाव राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सत्ता पर पकड़ को ही और मज़बूत करेगा और गुआदो को सियासी तौर पर बाहर कर देगा। मादुरो गुट नेशनल असेंबली पर नियंत्रण हासिल करने के लिए तैयार है, जिसके हाथ में यही एकमात्र संस्था है,जो अभी तक नहीं आयी है। आत्मविश्वास से भरे हुए मादुरो ने इस सप्ताह एक चुनावी रैली में कहा, “मुझे पता है कि हम एक बड़ी जीत हासिल करने जा रहे हैं। हां,मुझे यह मालूम है ! हम नयी नेशनल असेंबली के साथ आने वाली समस्याओं को हल करने जा रहे हैं। विपक्ष, उग्रवादी दक्षिणपंथियों के पास देश के लिए कोई योजना नहीं है।”

इसमें कोई संदेह नहीं है कि रविवार की हार शायद विपक्ष को राजनीतिक तौर पर बाहर कर दे। गुआदो ने अपनी ज़मीन खो दी है। विश्लेषकों का कहना है कि गुआदो के नेतृत्व वाले विपक्ष के पास दिशा की कमी थी और पश्चिमी समर्थन की तलाश पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देकर उसने बहुत बड़ी भूल कर दी थी। भले ही चुनावों में वेनेज़ुएला को एकदम विकलांग बना देने वाले प्रतिबंधों का 71 प्रतिशत लोगों ने विरोध किया हो,लेकिन इसके बावजूद गुआदो ने अमेरिका और यूरोपीय संघ से इन प्रतिबंधों को बढ़ाने का आह्वान किया है।

भू-राजनीतिक नज़रिये से देखा जाये,तो रविवार को मिली जीत मादुरो को उनके विदेशी सहयोगियों की नज़र में उनकी मान्यता को अहम तरीक़े से वैधता प्रदान करेगी,जिससे मादुरो की सरकार को अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को नाकाम करने में मदद मिलेगी। मादुरो चाहते हैं कि चीन यह महसूस करे कि वेनेज़ुएला के पास एक ऐसा संस्थागत ढांचा है,जिससे कि तेल या बुनियादी ढांचे जैसे समझौतों को लेकर आधार मिल सके; रूस, मैक्सिको, तुर्की और ईरान जैसे उनके अन्य सहयोगी इसी तरह आश्वस्त महसूस करेंगे।

कुछ यूरोपीय देश पहले से ही गुआदो को अनंत समय तक के लिए दिये जाने वाले "पूर्ण अधिकार" की एक अंतरिम भूमिका को लेकर चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि यह बिना किसी चुनाव,बिना किसी मान्यता के किसी को राजा बनाने जैसा है। हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं कि बाइडेन वेनेज़ुएला को लेकर होने वाली अमेरिकी बयानबाज़ी को नरम करेंगे और ट्रम्प द्वारा शुरू किये गये कुछ आर्थिक प्रतिबंधों को भी कम करें।

दरअसल,मादुरो ने बाइडेन को बधाई दी है और कहा है कि वह अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। बाइडेन के व्हाइट हाउस कार्यकाल में अमेरिका-वेनेज़ुएला के बीच का तनाव कम हो सकता है और दोनों पक्ष बातचीत के लिए किसी मंच की तलाश शुरू कर सकते हैं। बुनियादी तौर पर स्थिति का सही आकलन करते हुए मादुरो ने ख़ुद को उखाड़ फेंकने की ट्रम्प प्रशासन की परियोजना को मात देने के लिए विश्व व्यवस्था की बहुध्रुवीयता का इस्तेमाल किया है।

चीन और रूस की तरफ़ से दी गयी वित्तीय सहायता उनकी जीवन रेखा बन गयी। क्रेमलिन ने उस समर्थन की अपनी तत्परता भी दिखायी। दो साल पहले 10 दिसंबर 2018 के किसी सोमवार को रूस ने संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास के एक हिस्से के रूप में काराकस के पास सिमोन बोलेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दो परमाणु-सक्षम "ब्लैकजैक" बमबर्षक को उतार दिया था। इसके पीछी का असली कारण मादुरो की स्थिति को मज़बूत करने वाले मास्को के इरादे को प्रदर्शित करना था।

इस प्रतीक का मतलब बहुत गहरा था और वह यह था कि मुनरो सिद्धांत बहुध्रुवीयता पर निर्मित इस नयी विश्व व्यवस्था के भीतर दफ़्न हो गया है। इन परिस्थितियों में मुनरो सिद्धांत का पुनरुत्थान नामुमकिन हो गया है। वेनेज़ुएला और इक्वाडोर जैसे छोटे-छोटे देश अपने बाहरी सम्बन्धों को पश्चिमी गोलार्ध के बाहर के देश के साथ भी बना रहे हैं।

जहां तक ट्रान्सअटलांटिक गठबंधन की बात है,तो बाइडेन ने इन ट्रान्सअटलांटिक रिश्तों को अपनी प्राथमिकता बतायी है,लेकिन इसे इन रिश्तों की शर्तों को नये सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत होगी। मर्केल ने हाल ही में कहा था, "हमें अपने यूरोपीय हितों को परिभाषित करना चाहिए, और इसमें विदेश नीति,आर्थिक नीति और डिजिटल नीति और इसी तरह की कई और चीज़ों के सामान्य आधार भी शामिल हैं।"

अगर फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के शब्दों को उधार लेकर कहा जाये,तो तुर्की नाटो को ''ब्रेन-डेड'' की तरह बकवास बताने की हद तक नहीं गया है। लेकिन,इसने साफ़ कर दिया है कि अन्य नाटो सहयोगियों के बीच सालों तक भयंकर मतभेद रहने वाला है और आज यह पश्चिमी गठबंधन का सबसे सैन्य रूप से मुखर सदस्य साबित हो रहा है, और ख़ास तौर पर यह सैन्य शक्ति के इस्तेमाल से अपने मक़सद को हासिल करने में माहिर है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Medium and Small States in the Time of Multipolarity

United States
NATO
Nord Stream 2 project
Joe Biden
Donald Trump
China and Russia
Venezuela
Turkey
germany

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन

फ़िनलैंड-स्वीडन का नेटो भर्ती का सपना हुआ फेल, फ़िलिस्तीनी पत्रकार शीरीन की शहादत के मायने

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License