NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
#MeTooके बहाने: कानून व्यवस्था में बदलाव की ज़रूरत
महिलाओं द्वारा व्यक्तिगत आधार पर उठाए गए कदम निश्चित तौर पर एक बहादुराना कदम है लेकिन जो महिलाएँ विशेषाधिकार प्राप्त तबके सेनहीं हैं, उन लाखों महिलाओं को न्याय दिलवाने के लिए एक बड़े सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है।

सुबोध वर्मा
17 Oct 2018
Translated by महेश कुमार
#MeToo

हाल के हफ्तों में, #मीटू अभियान के द्वारा किए विरोधों ने मीडिया और बॉलीवुड की दुनिया को हिलाकर रख दिया हैI एक मामला एमजे अकबर का भी है जो राजनीति के क्षेत्र में हलचल मचा रहा है क्योंकि कई महिलाओं द्वारा उन पर जो आरोप लग रहे हैं वे उस दौर के हैं जब वे संपादक थे लेकिन अब वे मंत्री बन मोदी सरकार की शान बढ़ा रहे है। जो महिलाएं अपने उत्पीड़कों का नाम उज़ागर करने के लिए आगे आई हैं वे निस्संदेह बहादुर हैं और उन्होंने सार्वजनिक हित में अपनी सेवाएँ प्रदान की है।

लेकिन इससे परे भी एक विशाल दुनिया है जहां महिलाएं इस तरह के हिंसक उत्पीड़न को चुपचाप सहती हैं और एक अधीनता का जीवन जीती हैं। यह दुनिया में जीवन के सभी क्षेत्रों, घरों से शैक्षणिक संस्थानों, कारखानों और अन्य काम के क्षेत्रों और कार्यालयों तक फैली हुई है। वे अधीन हैं इसलिए क्योंकि पितृसत्तात्मक विचार और व्यवस्था गहराई से समाज में व्यापत है और ऐसी जगह व्यक्तिगत विद्रोह लगभग असंभव है। वे अपने दुख, पीड़ा और निर्भरता की वजह से भयभीत और अकेली हैं।

यह मांग करना नितांत रुप से अनुचित और अमानवीय होगा कि वे व्यक्तिगत रूप से #मीटू के तरीके से आगे बढ़े। इसलिए एक सामाजिक दख़ल की जरूरत है जो सामूहिक रूप से इस तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा सके। और, इस तरह के विरोध में पुरुषों और महिलाओं दोनों की भागीदारी होनी चाहिए।

किसी भी सामूहिक विरोध का केंद्र शिकायत निवारण का तंत्र भी होना चाहिए जिसे वर्तमान में पुलिस और अदालतों के माध्यम से उपलब्ध करवाया जाता है। यह पहलू महिलाओं की अधीनता के पूरे मुद्दे का समाधान नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से न्याय के लिए लड़ाई में मदद कर सकता है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के प्रति हिंसा के बड़े परिप्रेक्ष्य के भीतर एक विशिष्ट श्रेणी है।

और, यहां पर जिस तरह से हमारी कानूनी न्याय व्यवस्था महिलाओं द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर काम करती है उसमें एक घातक कमजोरी मौजूद है। भारत में महिलाओं के आंदोलन ने बार-बार इस बात की ओर इशारा किया है, एक बेहतर व्यवस्था के लिए लड़ाई की है, लेकिन चीजेंजितनी बदलती हैं, उतनी ही पहले जैसी भी रहती हैं। आइए नीचे एक नज़र डालें।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून

2012 में निर्भया मामले के बाद, जब बड़ा प्रतिरोध होने के कारण, न्यायमूर्ति वर्मा आयोग ने 2013 में प्रासंगिक कानूनों में कई बदलावों की सिफारिश की थी। सरकार ने धारा 354 (शारीरिक शोषण के इरादे से महिलाओं पर हमला करना) को विस्तारित किया जिसमें अन्य के साथ धारा354 ए को जोड़ दिया जिसके जरीए यौन उत्पीड़न की व्याख्या की जाती है। एनसीआरबी के अनुसार 2014 और 2016 के बीच इस धारा के तहत पंजीकृत मामलों में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

image 1_1.png

2014 से पहले, जेनेरिक एस.354 लागू था। इस धारा के तहत कुल मामलों (2014 से जोड़े गए उप-वर्गों सहित) 2010 और 2016 के बीच 100प्रतिशत से अधिक बढ़ गए हैं। अन्य प्रावधान, s.509 (महीला की इज्ज़त का अपमान) ने मामूली डुबकी दिखाई है क्योंकि यौन उत्पीड़न के मामले अब धारा 354 ए के तहत दर्ज़ किए जा रहे है।

image 2.png

यहां तक कि जब इतना अधिक महिलाएं यौन उत्पीड़न के बारे में अपनी शिकायत दर्ज कर रही हैं, पुलिस केस के पंजीकरण के मामले में और जांच कर (जिसके लिए स्पष्ट रूप से कोई आधिकारिक डेटा नहीं है) उन्हे आगे अदालतों में भेजने में काफी पीछे है। कई #मीटू शिकायतकर्ताओं की कहानियों से पता चलता है कि उन्हे  पुलिस का सामना करने कितनी कठिनाई हो रही हैं। जैसा कि नीचे दिखाया गया है, पुलिस स्टेशन पर प्रत्येक वर्ष इस तरह की मामलों का भार बढ़ रहा है जबकि दायर चार्ज शीट की संख्या 2016 में  मात्र 67 प्रतिशत (34816 मामलों में से 23416) है।

image 3.png

जब अदालतों की बात आती है, तो स्थिति बेहद निराशाजनक है। जैसा कि नीचे तालिका में दिखाया गया है, 2016 में अदालतों में धारा 354 ए के तहत 73,774 मामले लंबित थे जोकि 2014 के 47,844 के आंकडे से ऊपर थे। इसमें पिछ्ले तीन वर्षों में 54 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुयी है।

जांच समय पर पूरी होना और भी कम स्तर पर है। 2016 में, 73,744 में से 7665 लंबित मामलों में से केवल 10 प्रतिशत में जांच पूरी की गई थी। इस तरह के खराब और निराशजनक रिकॉर्ड के साथ यह आश्चर्य की बात नही है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं को न्याय पाने के लिए कानूनी व्यवस्था में ज्यादा विश्वास नहीं है।

image 4.png

और, इस देरी के परिणामस्वरूप, और शायद लापरवाही भरी जांच (इसलिए कमजोर अभियोजन पक्ष है), की वजह से सजा दर कम हो रही है – यह दुख की बात है कि पिछ्ले तीन वर्षों में यह पहले से भी कम यानि 34.5 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत हो गई है। दूसरे शब्दों में, यौन उत्पीड़न के मामलों में तीन में से दो आरोपी आज़ाद घुम रहे गए हैं।

image 5.png

यह सब क्या दिखाता है कि कानून लोगों को विफल कर रहा है, यह समाधान नहीं कर रहा है, यह अपने दायरे में बहुत सीमित है और इसका कार्यान्वयन बहुत निराशाजनक है, यहां तक कि यह द्वेषपूर्ण है। मज़बूर  महिलाओं को #मीटू अभियान के जरीए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना बेहतर लगता हैं। लेकिन बाकी महिलाओं के लिए, ऐसा कोई विकल्प नहीं है।

बद्लाव आ सकता है लेकिन शर्त यह है कि सामूहिक सामाजिक गठबंधन यौन हिंसा और शोषण की शिकार महिलाओं की रक्षा में खड़ा हो। इसकी मांग बेहतर कानून और उन्हे अधिक मुस्तैदी से लागू करने की होगी। लेकिन इस सामाजिक आंदोलन को हिंसा के मुद्दे के साथ-साथ महिलाओं के रोजगार, समान वेतन और अन्य अधिकारों के बड़े सवालों से जोड़ना जरूरी है केवल तभी काम करने वाले लोगों के हिस्से के रूप में महिलाओं का असली सशक्तिकरण हो सकता है।

#metoo
#MeToo Moment In India
#MeToo India
#MeToo Movement
#MeTooIndia
sexual harassment
Conviction Rate
Indian Legal System

Related Stories

भारत को अपने पहले मुस्लिम न्यायविद को क्यों याद करना चाहिए 

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

जेएनयू में छात्रा से छेड़छाड़, छात्र संगठनों ने निकाला विरोध मार्च

यौन शोषण के आरोप में गोवा के मंत्री मिलिंद नाइक का इस्तीफ़ा

निर्भया कांड के नौ साल : कितनी बदली देश में महिला सुरक्षा की तस्वीर?

यूपी: मुज़फ़्फ़रनगर में स्कूली छात्राओं के यौन शोषण के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

जजों की भारी कमी के बीच भारतीय अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित, कैदियों से खचाखच भरी जेलें

यूपी: ललितपुर बलात्कार मामले में कई गिरफ्तार, लेकिन कानून व्यवस्था पर सवाल अब भी बरकरार!

यूपी: आज़मगढ़ में पीड़ित महिला ने आत्महत्या नहीं की, सिस्टम की लापरवाही ने उसकी जान ले ली!

केरल में वाममोर्चे की ऐतिहासिक जीत से विपक्ष में अफरा-तफरी


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License