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यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर गंभीर गेहूं संकट का सामना करता मध्य पूर्व
मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी देश रूस और यूक्रेन से किये जाने वाले गेहूं के आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं। पहले से ही दबाव में रह रहे इस क्षेत्र में मौजूदा युद्ध से और भी गंभीर खाद्य संकट पैदा हो सकता है।
डैरियो सबाघी
11 Mar 2022
wheat
मध्य पूर्व की खाद्य सुरक्षा के लिहाज़ से अहम रहे हैं यूक्रेनी और रूसी गेहूं

यूक्रेन पर रूसी हमले और रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों ने यूरोप के देशों को उस रूसी गैस तक उनकी पहुंच को लेकर चिंता में डाल दिया है, जिस पर वे लंबे समय से निर्भर रहे हैं। इस संघर्ष ने ऊर्जा संसाधनों पर दबाव भी बढ़ा दिया है, जिससे तेल, गैस, कोयला और दूसरी चीज़ों की क़ीमतें बढ़ गयी हैं।

लेकिन,यूक्रेन में चल रहे इस युद्ध से ऊर्जा आपूर्ति से कहीं ज़्यादा कुछ प्रभावित हो सकता है। वैश्विक खाद्य सुरक्षा भी ख़तरे में पड़ सकता है। ख़ासकर कई मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देशों में गेहूं की आपूर्ति श्रृंखला इससे बाधित हो सकती है।

रूस दुनिया का शीर्ष गेहूं निर्यातक देश है और चीन और भारत के बाद सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यूक्रेन दुनिया भर के शीर्ष पांच गेहूं निर्यातक देशों में से एक है।

कई मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देशों के क्षेत्रीय आहार में गेहूं की अहम भूमिका है।इस कारण से ये देश इन निर्यातों पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं।

मसलन,लेबनान अपने गेहूं की ज़रूरतों का 60% यूक्रेन से आयात करता है। मिस्र दुनिया का शीर्ष गेहूं आयातक देश है, जिसका तक़रीबन 70% गेहूं रूस और यूक्रेन से आता है। तुर्की के आधा गेहूं का आयात और ट्यूनीशिया का 80% अनाज भी इन्हीं दोनों देशों से आता है।

समय की दुविधा

इस समय यूक्रेन के कुछ ऐसे हिस्से रूसी सैनिकों की ओर से की जा रही गोलाबारी की चपेट में हैं,जो यूक्रेन के गेहूं उत्पादन और निर्यात में अहम भूमिका निभाते हैं। अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के मुताबिक़, यूक्रेन की ज़्यादतर गेहूं की फसलें दक्षिण-पूर्व में केंद्रित हैं। काला सागर तक पहुंच को अवरुद्ध कर देने से मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) क्षेत्र में गेहूं की आपूर्ति बाधित हो सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) के एक सीनियर रिसर्च फेलो डेविड लेबोर्डे ने डीडब्ल्यू को बताया कि यूक्रेन की गेहूं आपूर्ति श्रृंखला के लिहाज़ से काला सागर रणनीतिक अहमियत रखता है, क्योंकि मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) क्षेत्र को गेहूं का निर्यात ख़ास तौर पर समुद्र के रास्ते ही किया जाता है।

लैबोर्डे ने बताया,"जिस गेहूं का लोग इस समय कारोबार कर रहे हैं, वह जुलाई 2021 की फ़सल से किया गया था। यह फ़सल हमले से पहले की है। अगले तीन महीनों में क़रीब एक चौथाई फ़सल अब भी उपलब्ध है।" लेकिन, हक़ीक़त यही है कि लोग इस समय इस बंदरगाह में काम नहीं कर सकते,इससे मिस्र और लेबनान जैसे देशों में  गेहूं की कमी पैदा कर सकती है।"

इस युद्ध से मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा किस तरह प्रभावित होगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि संघर्ष कितने समय तक चलता है।

अगर यूक्रेन के किसान जुलाई, 2022 तक गेहूं की फ़सल की खेती और कटाई नहीं कर पाते हैं, तो आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो जायेगी। लेकिन, अगर वे ऐसा कर भी लेते हैं, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे बंदरगाहों तक अनाज को ले जाने के लिए किसी बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर भी पायेंगे या नहीं।

यूक्रेनियन और रूसी गेहूं पर निर्भरता

इस मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) क्षेत्र के गरीब देशों के लिए गेहूं का बाज़ार मूल्य एक व्यवस्थागत समस्या बन सकता है। यूक्रेन पर रूसी सेना के हमले के बाद से यह मूल्य पहले ही 35% बढ़ चुका है।

लेबनान के वित्त मंत्री अमीन सलाम ने इस हमले के बाद रॉयटर को बताया कि नक़दी की कमी से जूझ रहे लेबनान के पास बस एक महीने का गेहूं का भंडार बच गया है और वह विभिन्न देशों से वैकल्पिक आयात समझौतों की तलाश में है।

तुर्की का कहना है कि उसे अभी अनाज की कमी इसलिए नहीं होगी, क्योंकि उसने पिछले साल अपने ज़्यादतर हिस्से का आयात कर लिया था। लेकिन, तुर्की ने बढ़ती क़ीमतों को देखते हुए गेहूं की ख़रीद में और कटौती करना शुरू कर दिया है।

ट्यूनीशियाई सरकार ने कथित तौर पर सरकारी अधिकारियों को गेहूं के आयात पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से रोक लगा दी है। यह आयात इस देश के गेहूं के भंडार का तक़रीबन 80% हिस्सा है।

गेहूं के शीर्ष आयातक देश-मिस्र के पास अब भी भंडार है, लेकिन वह पहले से ही अन्य देशों से आयत का विकल्प तलाश रहा है।

इस हमले से सीरिया गेहूं की राशन व्यवस्था शुरू करने के लिए मजबूर है। इसके अलावा, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने यूक्रेन में चल रहे युद्ध को उस यमन के लिए "तबाही की शुरुआत" कहा है, जो कि अनाज के आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भर है।

मध्य पूर्व में गेहूं की आपूर्ति के जानकार और फ़सलों से भूसे को अलग करने वाले उपकरणों की बिक्री पर केंद्रित लेबनान की कंपनी एडको के सीईओ मुनीर ख़ामिस के मुताबिक़, यह संघर्ष इस पूरे क्षेत्र को प्रभावित करेगा। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि उत्तर या दक्षिण अमेरिका से गेहूं और दूसरे अनाज के आयात में समय लगता है और नौपरिवहन लागत के चलते यह बेहद महंगा पड़ता है।

उन्होंने बताया,"रोमानिया, रूस और यूक्रेन काला सागर की सीमा पर स्थित हैं। इसलिए, लेबनान और अन्य मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देशों में जहाजों को लोड कर पाना आसान होता है।"

हालांकि, मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देश पश्चिमी कंपनियों के साथ व्यापार करके अलग-अलग देशों से अनाजों की आपूर्ति ज़रूर कर सकते हैं, लेकिन परिवहन में होने वाली देरी से इसमें भारी कमी पैदा हो सकती है। कुछ मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देश ख़ुद ही गेहूं उगाते हैं, लेकिन उनका घरेलू उत्पादन उनकी समग्र मांग को पूरी तरह पूरा नहीं कर पाता है।

ख़ामिस का कहना है, "मसलन, लेबनान में बेका घाटी एकलौता ऐसा इलाक़ा है, जहां गेहूं की खेती की जाती है। इसके अलावा, यहां के किसान केवल कड़क गेहूं ही उगाते हैं, जो कि रोटी बनाने के हिसाब से सही नहीं है।"

इस गेहूं संकट के नतीजे

खाद्य नीति विशेषज्ञ लैबर्डे ने डीडब्ल्यू को बताया कि लोग गेहूं की इस बढ़ती क़ीमत को तुरंत इसलिए महसूस नहीं करेंगे, क्योंकि कई मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देशों में सब्सिडी मौजूद है। लेकिन, सरकारें किसी स्तर पर गेहूं से जुड़ी वस्तुओं की राशनिंग करना या उसकी लागत को बढ़ाने की शुरुआत कर सकती हैं। इस तरह के क़दमों से उन देशों में सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है, जो पहले से ही आर्थिक तंगी का अनुभव कर रहे हैं।

जहां मिस्र संभवतः यूक्रेन में रूसी हमले के नतीजों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाला मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देश है, वहीं बाक़ी उत्तरी अफ़्रीकी देशों के लिए भी यह संकट एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। भूमध्य सागर तक पहुंच रखने वाले ये देश अन्य देशों से अनाज आयात करने की कोशिश कर सकते थे। लेकिन, इस तरह के विकल्प रूस और यूक्रेन से होने वाले गेहूं के आयात की जगह पूरी तरह नहीं ले सकते।

मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ़्रीकी (MENA) देशों के लिए वैकल्पिक गेहूं के आपूर्तिकर्ताओं की तलाश इतना आसान नहीं

यह पूछे जाने पर कि क्या रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध से गेहूं के बाज़ार प्रभावित हो सकते हैं, लैबोर्डे का कहना था कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कैसे लागू किया जाता है और इससे रूस से जुड़ी गेहूं कंपनियां कितनी प्रभावित होती हैं।

लेबोर्डे का कहना था कि इस संघर्ष के पहले ही वैश्विक खाद्य सुरक्षा ख़तरे में थी। दुनिया में पिछले सालों से कई संकट आये हैं और कोविड-19 महामारी ने कई लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित किया है, ख़ासकर विकासशील देशों की आय में कमी आयी है।

लेबोर्डे ने बताया,"रूस-यूक्रेन संघर्ष हमारे लिए एक निराशाजनक स्थिति पैदा  कर रहा है, क्योंकि हम यह नहीं जानते कि गेहूं की अगली फ़सल और रोपण के मौसम तक क्या होना वाला है। दुनिया उत्पादन और व्यापार के लिहाज़ से अब एक और बाधा का सामना करने की हालत में नहीं है।"

संपादन: क्रिस्टी प्लाडसन

साभार: डीडब्ल्यू

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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