NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी का कश्मीर दांव और उत्तर प्रदेश चुनाव
मोदी सरकार के लिए, कश्मीर उसके हिंदुत्व के शस्त्रागार में एक और हथियार के रूप में है। इसलिए, उनकी जम्मू-कश्मीर नीति को 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश चुनावों की रोशनी में देखा जाना चाहिए।
पार्थ एस घोष
29 Jun 2021
Translated by महेश कुमार
मोदी का कश्मीर दांव और उत्तर प्रदेश चुनाव

भारत की कश्मीर नीति आंशिक रूप से विदेश मामलों गृह मंत्रालय के मामलों में बंटी हुई है। दिल्ली की सत्ता में बैठे व्यक्ति की पसंद के आधार पर, यह ज़िम्मेदारी अलग-अलग मंत्रालयों में वक़्त के साथ बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, पंडित नेहरू के समय में, जब विदेश नीति अधिक मायने रखती थी, तो इसे मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के चश्मे से देखा जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय में, चूंकि हिंदुत्व की राजनीति का राज कायम है, उनकी कश्मीर नीति और कुछ नहीं बल्कि उनके हिंदुत्व के वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का रास्ता  है।

कश्मीर के मामले में उठाए जा रहे हर कदम के पीछे, मोदी सरकार को यह देखने की जरूरत पड़ती है कि उनका कदम काऊ-बेल्ट या हिन्दी भाषी राज्यों में हिंदू मतदाताओं को कैसे रिझाएगा या उनके बीच क्या गुल खिलाएगा। जब तक कोई इस परिप्रेक्ष्य से वर्तमान घटनाक्रम का विश्लेषण नहीं करेगा, तब तक चल रही घटनाओं को समझने का हमारा नज़रिया सही नहीं होगा और हम कुछ नहीं बस, कश्मीर के लिए स्वायत्तता, कश्मीरियों को भारतीय 'मुख्यधारा' में वापस लाना, आदि की बात करते रहेंगे।

इसलिए, मुझे यहाँ उस बात का जिक्र करने की जरूरत है जिसे बिल क्लिंटन के सलाहकार ने 1992 में अपने चुनाव अभियान के दौरान प्रसिद्ध रूप से कहा था, "यह अर्थव्यवस्था है, बेवकूफ।" मैं कहूंगा: यह यूपी का चुनाव है, बेवकूफ।

लेकिन यहां एक समस्या है। चुनौती यह है कि कश्मीर पर मोदी के बदले रुख को उनके हिंदुत्व के मार्च के बढ़ते कदम के रूप में व्याख्यायित किया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश का चुनाव नजदीक आता जाएगा (संभवतः मार्च 2022 में), भाजपा अपने हिंदू कार्ड को अधिक उत्साह के साथ इस्तेमाल करने पर मजबूर होती जाएगी क्योंकि उत्तर उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास पेश करने के लिए और कुछ है ही नहीं। मोदी-योगी (उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) का राजनीतिक टकराव, हालांकि हर प्रकार के छल में लिपटा हुआ हैं, जो अब खुल कर सामने आ गया हैं। मोदी, कोविड-19 के संकट का मुकाबला करने में आदित्यनाथ शासन की निराशाजनक विफलता का आसानी से इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन मोदी का खुद का रिकॉर्ड उस हिसाब से कोई शानदार नहीं है। डर यह है कि आदित्यनाथ को जितना कोने में धकेला जाएगा, मोदी की नाकामियों को गिनाते हुए वे उतना ही उसे शर्मिंदा करेंगे.

सीधे शब्दों में कहा जाए तो मोदी और आदित्यनाथ के बीच एकमात्र आपसी मिलन का बिंदु हिंदुत्व का मंच है, हालांकि इनमें से प्रत्येक मतदाता के बड़े हिस्से को प्रभावित करने की कोशिश करेगा। इसलिए हार-जीत वाले मेलोड्रामा को आखरी सीन की तरफ धकेल दिया गया है, मानो कि चुनावी परिणाम तक स्थगित रहेगा, उनके लिए सबसे अच्छा दांव यही होगा। इस वास्तविकता को देखते हुए, उत्तर प्रदेश के चुनाव अभियान में अपने कश्मीर के दांव को कैसे फिट किया जाए, यह मोदी के इम्तिहान की सबसे बड़ी घड़ी है। दरअसल, विपक्ष इस मामले में बीजेपी की बेचैनी का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा.

मोदी की उत्तर प्रदेश की रणनीति वास्तव में कैसी होगी, अभी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसके लिए सर्दियों तक का इंतजार करना होगा, जब बदलते मौसम के कारणों से, कश्मीर की राजनीति ठंडे बस्ते में चली जाएगी, जबकि उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान पूरे जोश में होगा। इसलिए अगले साल की शुरुआत में मोदी की कश्मीर नीति का असली चेहरा सामने आ जाएगा। वह न केवल अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने की अपनी मर्दाना छवि को अभियान के जारी भुनाने की कोशिश करेंगे और इस बात के लिए भी प्रतिबद्धता जताएँगे कि हिंदू-बहुल जम्मू की राजनीतिक, मुस्लिम-बहुल घाटी से अधिक बेहतर स्थिति में हो। और ऐसा केवल विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन से ही संभव हो सकता है। प्रस्तावित परिसीमन पहले से ही एजेंडे पर है। उन्होंने कश्मीरी नेताओं को भी स्पष्ट कर दिया है: पहले परिसीमन, फिर चुनाव और फिर राज्य का दर्जा बहाल करने का क्रम चलेगा।

इस पृष्ठभूमि में, किसी को भी यह याद करने की सलाह दी जाएगी कि कैसे अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के बाद काऊ-बेल्ट यानि हिन्दी भाषी राज्यों में खुशी की लहर दौड़ गई थी, और प्रचारित किया गया कि अब कश्मीर के सुरम्य घास के मैदानों को उत्तर भारत के रियल एस्टेट टाइकून खरीद सकेंगे और आधे-अधूरे पढ़े-लिखे उत्तर भारतीय हिंदू दूल्हे कश्मीर की गोरी-चमड़ी वाली महिलाओं से शादी कर सकेंगे। याद है, हरियाणा के भाजपा के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने की जुर्रत की थी। हिंदू राष्ट्र (राष्ट्र) के निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए कुछ हिंदू कट्टरपंथियों ने कश्मीरी मुस्लिम सड़क किनारे सामान बेचने वाले विक्रेताओं और छोटे व्यापारियों को बेरहमी से पीटा जैसे कि ये वही लोग हैं जो उनके सपनों की परियोजना के रास्ते में आ रहे थे।

हालाँकि, हिंदुत्व कट्टरपंथियों द्वारा इसे अब दोहराया नहीं जा सकता, क्योंकि उनके हिंदू हृदय सम्राट मोदी ने खुद कश्मीरी मुस्लिम 'गैंगस्टर' के साथ बातचीत शुरू कर दी है। तथाकथित "गुप्कर गैंग" का नाम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जो कि मोदी के विश्वासपात्र हैं ने गढ़ा था। वो अलग बात है कि इस वाक्यांश के अधिक प्रयोग से यह अब अपनी चमक खो चुका है। और काफी समय से हम टुकड़े-टुकड़े गैंग, खान मार्केट गैंग, लुटीयन गैंग के बारे में सुन ही रहे हैं।

इसलिए, उत्तर प्रदेश के चुनाव में, हिंदुत्व का नया मंच ही है जो मोदी की मर्दाना कश्मीर नीति से पीछे हटने की तस्वीर का खामियाज़ा भर पाएगा, वह उस संकट की भरपाई के रूप में होगा जो जम्मू हिंदुओं को कथित रूप से झेलना पड़ रहा है। बंगाल में ममता बनर्जी की रैलियों में अपने राजनीतिक दांव लगाने वाले आंदोलनकारी किसान भाजपा को जितना अधिक कोने में धकेलेंगे उतना ही वे जम्मू-समर्थक कार्ड को खेलने की कोशिश करेनेग, जो जम्मू और कश्मीर के विधानसभा क्षेत्रों का असंगत रूप से परिसीमन जम्मू के हिंदुओं और घाटी के मुसलमानों को अधिक ताक़त देने की बात करता है। आगे के समय में क्या होगा, मुद्दा यह नहीं है, मुद्दा तो अभियान के दौरान हिन्दू संवेदनाओं को शांत करना है।

अंत में, मैं इस बात को रेखांकित कर दूं कि हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा 'धर्मनिरपेक्षता' को गुमनामी में धकेलने के सभी प्रयासों के बावजूद, इसका भूत अभी तक इनके भीतर से नहीं निकला है, जो कि 2024 के चुनाव में सामने आ सकता है। इसी तरह, शेख अब्दुल्ला का भूत अभी भी दिल्ली में उन मंदारिनों को सताता है, जो एक छोर पर कसी हुई रस्सी पर चलने को मजबूर हैं, जिसके एक छोर पर कश्मीर की "स्वायत्तता" का सवाल है, जबकि दूसरे छोर पर किसी नए समाधान ढूँको ढने की चुनौती है ताकि दिल्ली और श्रीनगर के बीच व्यावहारिक संतुलन बना रहे। कभी न खत्म होने वाले इस खेल में कश्मीर अपना संतुलन खोने के तनाव से हमेशा पीड़ित रहता है, जो केवल इस बात को साबित करता है, कि दिल्ली उनके रास्ते में कितने भी रोड़े अटकाए लेकिन उसे फिर भी डटें रहना आता है।

1953 और 1975 के बीच, कश्मीर के महान नेता शेख अब्दुल्ला को अपना अधिकतर समय जेल में बिताना पड़ा था - जिनमें से 11 साल नेहरू शासन के दौरान बिताए गए थे। इन वर्षों के दौरान, दिल्ली की सरकार ने श्रीनगर की राजनीतिक सीट पर अपने पिछलग्गुओं के माध्यम से कश्मीर पर अपनी कहानी गढ़ने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन स्वायत्तता के मुद्दे ने मरने से इनकार कर दिया। हाल के एक अखबार के कॉलम में, कश्मीर की सबसे विचारशील आवाजों में से एक, हसीब द्राबू, जम्मू और कश्मीर के पूर्व वित्तमंत्री थे ने अब्दुल्ला को उद्दत करते हुए लिखा कि नई दिल्ली ने कश्मीर के साथ हमेशा सियासी आवारागर्दी की है, जिसका अर्थ है कि नई दिल्ली उस वक़्त भी किसी भी कीमत पर कश्मीर को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी और जिसे वह बहुत ही सीमित सी सफलता के साथ कर पाई। क्या मोदी सरकार भी ऐसे ही एक सियासी आवारागर्दी के चरण में प्रवेश कर रही है? धर्मनिरपेक्षता हो या हिंदुत्व, कश्मीर हमेशा कश्मीर ही रहेगा।

लेखक इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोश्ल साइसेंज़, नई दिल्ली में सीनियर फ़ेलो हैं और आईसीएसएसआर के नेशनल फ़ेलो रह चुके हैं और जेएनयू में साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Modi’s Kashmir Gamble and Uttar Pradesh Election

Kashmir
J&K
Modi government
Hindutva
Jammu
J&K Delimitation
politics
Valley politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग


बाकी खबरें

  • भाषा
    कांग्रेस की ‘‘महंगाई मैराथन’’ : विजेताओं को पेट्रोल, सोयाबीन तेल और नींबू दिए गए
    30 Apr 2022
    “दौड़ के विजेताओं को ये अनूठे पुरस्कार इसलिए दिए गए ताकि कमरतोड़ महंगाई को लेकर जनता की पीड़ा सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं तक पहुंच सके”।
  • भाषा
    मप्र : बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद दो छात्राओं ने ख़ुदकुशी की
    30 Apr 2022
    मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम शुक्रवार को घोषित किया गया था।
  • भाषा
    पटियाला में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला
    30 Apr 2022
    पटियाला में काली माता मंदिर के बाहर शुक्रवार को दो समूहों के बीच झड़प के दौरान एक-दूसरे पर पथराव किया गया और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ी।
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बर्बादी बेहाली मे भी दंगा दमन का हथकंडा!
    30 Apr 2022
    महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक विभाजन जैसे मसले अपने मुल्क की स्थायी समस्या हो गये हैं. ऐसे गहन संकट में अयोध्या जैसी नगरी को दंगा-फसाद में झोकने की साजिश खतरे का बड़ा संकेत है. बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे…
  • राजा मुज़फ़्फ़र भट
    जम्मू-कश्मीर: बढ़ रहे हैं जबरन भूमि अधिग्रहण के मामले, नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा
    30 Apr 2022
    जम्मू कश्मीर में आम लोग नौकरशाहों के रहमोकरम पर जी रहे हैं। ग्राम स्तर तक के पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर जिला विकास परिषद सदस्य अपने अधिकारों का निर्वहन कर पाने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License