NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
एमएसपी कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ को रोकेगी और घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी
एक गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली सार्वजनिक भंडारण लागत/अपव्यय को भी कम करेगी बशर्ते इसे एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा पूरक बनाया जाए।
नवप्रीत कौर, सी सरतचंद
29 Dec 2021
Translated by महेश कुमार
एमएसपी कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ को रोकेगी और घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी
घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी एमएसपी

किसानों और मज़दूरों के साल भर चले आंदोलन ने केंद्र सरकार को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर कर दिया, जिन्हें 29 नवंबर को कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ को सुगम बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। 11 दिसंबर को, आंदोलन स्थगित कर दिया गया, और इसके साथ ही आन्दोलकारी किसानों ने अपनी मांग फिर से दोहराई कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानूनी गारंटी देनी होगी। 

अभी तक, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) 23 वस्तुओं पर एमएसपी की सिफ़ारिश करता है। एमएसपी की घोषणा फसलों की बुवाई से पहले सीएसीपी द्वारा खेती की लागत को ध्यान में रखकर की जाती है। हालांकि, एमएसपी मुख्य रूप से भुगतान किए गए मूल्य (आई लागत) और आर्थिक लागत के बजाय पारिवारिक श्रम की मजदूरी पर आधारित है (जिसमें हुई लागत प्लस पारिवारिक श्रम की मजदूरी, उस पर लगा किराया और पूंजी पर ब्याज शामिल है)।

कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) बाज़ार, जो एमएसपी पर कृषि उपज की खरीद की जगह है, की स्थापना 1960 के दशक में निजी खरीददारों की शिकारी प्रथाओं के खिलाफ किसानों को उनसे बचाने की कोशिश करने और उनकी रक्षा करने के लिए की गई थी। यह परिकल्पना की गई थी कि बाज़ार किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य हासिल करने में भी सहायता करेंगे। लेकिन उनका भौगोलिक दायरा सीमित है।

इसके अलावा, नवउदारवादी नीतियों के चलते कृषि नीतियों में आए बदलाव के परिणामस्वरूप बीज, उर्वरक, कृषि मशीनों आदि के लिए सब्सिडी में गिरावट या कमी आई है, जिससे खेती की लागत में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, कृषि विस्तार सेवाओं के साथ-साथ अनुसंधान और विकास पर सरकारी खर्च में बड़े पैमाने पर आई गिरावट ने पारंपरिक खेती के पारिस्थितिक तंत्र को  अव्यवहार्य बना दिया है और कृषि उत्पादन के स्तर को बनाए रखने के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य रसायनों के बड़े इस्तेमाल को प्रेरित किया है। इससे खेती की लागत भी बढ़ गई है।

द इंडियन एक्सप्रेस में 29 नवंबर को प्रकाशित एक कॉलम में, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक वरिष्ठ फ़ेलो, और एक पत्रकार हरीश दामोदरन ने अनुमान लगाया कि गारंटीशुदा एमएसपी (मुख्य रूप से कृषि में आई लागत पर आधारित) पर सार्वजनिक खरीद की लागत 2020-21 में 9 लाख करोड़ रुपये से कम रही होगी। यह अनुमान इस धारणा पर आधारित है कि 75 प्रतिशत उपज को बाजार में लाया जाता है।

दामोदरन ने आगे तर्क दिया कि कृषि उपज की गारंटीशुदा सार्वजनिक खरीद से राजकोषीय घाटे में वृद्धि होगी। राजकोषीय घाटे में इस वृद्धि का परिमाण सार्वजनिक रूप से खरीदे गए कृषि उत्पाद के उस हिस्से पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा जो निजी क्षेत्र को बेचा जाता है और सकारात्मक रूप से उस हिस्से पर प्रभाव डालेगा जो निर्गम कीमतों पर वितरित किया जाता है (जो कि सार्वजनिक खरीद कीमतों से नीचे है) यानि एक (लक्षित) सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

दामोदरन ने किसानों को सरकार द्वारा "अपूर्ण भुगतान" के माध्यम से एमएसपी के बराबर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए एक और तंत्र का सुझाव दिया है, जहां निजी खरीदार एमएसपी को निजी क्षेत्र के लिए बाध्यकारी मूल्य पर खरीदने के बजाय कम कीमतों पर खरीद सकते हैं। 3 फरवरी, 2018 को उसी अखबार में प्रकाशित एक पिछले कॉलम में, उन्होंने यह भी उल्लेख किया था कि स्वामीनाथन आयोग ने एमएसपी की गणना के लिए खर्च की जाने वाली लागत को स्पष्ट नहीं किया था। उन्होंने 29 नवंबर के कॉलम में आगे तर्क दिया कि सार्वजनिक खरीद "बोझिल" है क्योंकि भारतीय खाद्य निगम के पास अनाज का बड़ा भंडार है।

दामोदरन की टिप्पणियों और निष्कर्षों की आलोचनात्मक समीक्षा की जानी चाहिए और कुछ मामलों में इसका विस्तार से वर्णन किया जाना चाहिए। सबसे पहले, स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाई गई एमएसपी गणना लेखांकन लागत के बजाय आर्थिक लागत पर आधारित है। इसके अलावा, सार्वजनिक खरीद के कामकाज में कुछ जटिलताएं हैं जो निजी खरीद से अलग हैं। पंजाब, हरियाणा आदि में चावल और गेहूं के अलावा अन्य फसलों के साथ-साथ भारत के अन्य क्षेत्रों में लगभग सभी फसलों के मामले में, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी का किसानों के बिक्री मूल्य पर केवल सीमित प्रभाव पड़ता है।

किसानों को उनकी उपज के लिए वह मूल्य नहीं मिलता है जो एमएसपी के बराबर होता है जो देश के अधिकांश हिस्सों में एमएसपी से अधिक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य सरकारों द्वारा कृषि खरीद काफी सीमित है क्योंकि केंद्र-राज्य वित्तीय संसाधनों का वितरण केंद्र सरकार के पक्ष में निर्णायक रूप से झुका हुआ है। केंद्र भी कुछ चयनित राज्यों के अलावा कृषि उपज की महत्वपूर्ण खरीद में संलग्न नहीं है।

कई छोटे और सीमांत किसान निम्नलिखित कारणों से अपनी उपज को एमएसपी पर बेचने में असमर्थ हैं। सबसे पहले, सार्वजनिक खरीद के लिए भुगतान में देरी होती है और ये स्थिति कई किसानों को एमएसपी से नीचे निजी खरीददारों को बेचने के लिए मजबूर करती है। इस देरी को स्वीकार करने का अर्थ यह होगा कि ऐसे किसान अगली बुवाई तक समय पर इनपुट प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। न ही वे समय पर ऋण भुगतान कर पाएंगे।

दूसरा, उनकी जगह पर किसानों से सार्वजनिक रूप से फसल खरीदने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए, दूर स्थित एपीएमसी बाजारों में परिवहन की ऊंची लागत के कारण छोटे और सीमांत किसानों के लिए सार्वजनिक बिक्री लागत बढ़ जाती है। सार्वजनिक खरीद इंतज़ार करते समय उनकी उपज के लिए किफायती भंडारण सुविधाओं तक पहुंचने में असमर्थता के कारण सार्वजनिक बिक्री की लागत भी बढ़ जाती है। नतीजतन, ये किसान एमएसपी से कम कीमत पर निजी खरीददारों को बेचने को मजबूर हो जाते हैं।

तीसरा, ई-एनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) संस्था की तरफ से, पर्याप्त दस्तावेज की सापेक्ष अनुपस्थिति के कारण छोटे और सीमांत किसानों से सार्वजनिक खरीद कम होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें से कई पंजीकृत अनुबंधों के बिना किराए की जमीन पर खेती करते हैं। इसके अलावा राज्य में एमएसपी पर प्रति एकड़ बिक्री सीमा (निजी खरीददारों द्वारा कृषि उपज के अंतरराज्यीय मध्यस्थता को हतोत्साहित करने के लिए) छोटे और सीमांत किसानों से सार्वजनिक खरीद को कम करती है। 

राजस्थान में हमारा हालिया फील्डवर्क ई-एनएएम और छोटे और सीमांत किसानों से सार्वजनिक खरीद में कमी के बीच की कड़ी को साबित करता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए यह जरूरी है कि सार्वजनिक खरीद के लिए भुगतान में होने वाली देरी को समाप्त किया जाए और एपीएमसी-आधारित खरीद के देशव्यापी कवरेज का विस्तार करके किसानों के लिए सार्वजनिक बिक्री लागत में गिरावट की एक सार्वजनिक नेतृत्व वाली प्रक्रिया की स्थापना की जाए।

एमएसपी देने की कोशिश करने और उसकी गारंटी देने के लिए "अपूर्ण भुगतान" की प्रणाली में निम्नलिखित समस्याओं के होने की संभावना है। सबसे पहले, कई छोटे और सीमांत किसानों के लिए दस्तावेज़ीकरण की कमी के कारण उनमें से एक बड़े वर्ग को "अपूर्ण भुगतान" हासिल करने से वंचित रखा जाएगा। दूसरा, यदि सार्वजनिक खरीद बंद हो जाती है, तो एमएसपी और निजी खरीद मूल्य के बीच का अंतर इतना अधिक हो सकता है कि सार्वजनिक खरीद के साथ तुलना में "अपूर्ण भुगतान" पर राजकोषीय व्यय बड़ा हो सकता है।

तीसरा, "अपूर्ण भुगतान" में देरी सार्वजनिक खरीद के भुगतान में देरी की तुलना में अधिक प्रतिकूल होगी क्योंकि पूर्व वाली प्रणाली सभी किसानों को प्रभावित करेगी। अंत में, कम या कोई सार्वजनिक खरीद नहीं होने से, या तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली कम हो जाएगी या इसे बनाए रखने के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी।

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया है कि एक गारंटीशुदा एमएसपी से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। लेकिन इस वृद्धि का परिमाण संभवतः पहले के अनुमान से कम होगा। यह इसलिए होगा क्योंकि कानूनी रूप से गारंटीशुदा एमएसपी से ग्रामीण आय और व्यय में वृद्धि होगी, जो उत्पादन (अल्पावधि में) और निवेश (लंबे समय में) में वृद्धि से कर राजस्व में भी वृद्धि होगी।

इसके अलावा, यदि सार्वजनिक रूप से खरीदी गई कृषि उपज में से निजी क्षेत्र को बिक्री एमएसपी से अधिक कीमत पर होती है और यदि विदेशी व्यापार को विनियमित किया जाता है, तो निजी खरीददारों को किसानों से एमएसपी पर खरीद करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। यह कृषि उपज की सार्वजनिक खरीद की बड़ी मात्रा को कम करेगा - और इसलिए, एक गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली राजकोषीय घाटा को कम करेगी। 

एक गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली सार्वजनिक भंडारण लागत/अपव्यय को भी कम करेगी बशर्ते इसे एमएसपी द्वारा समर्थित फसलों से संबंधित वस्तुओं के मुद्दों की एक विस्तृत सूची के साथ एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दिशा में बढ़ाए कदम से पूरक बनाया जाता है।

गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ के खिलाफ एक निर्णायक कदम है। इसलिए, किसान और मज़दूर कानूनों के निरस्त होने के पूरक के रूप में देखते हैं। केंद्र ने एक समिति बनाने का वादा किया है जो गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली के विवरण पर काम करने के लिए किसानों और मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करेगी।

सार्वजनिक खरीद के साथ गारंटीशुदा एमएसपी की मांग के साथ यह भी सुनिश्चित करना जरूरी  है कि खेती के तहत क्षेत्र की फसल संरचना महानगरीय मांग को पूरा करने की तरफ न बढ़े जैसा कि औपनिवेशिक काल के दौरान हुआ था। यह अन्य खाद्य फसलों (जैसे कि बाजरा) के लिए खेती के तहत क्षेत्र में गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली कृषि-पारिस्थितिकीय विविधीकरण को रोकती नहीं है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रखेगा। एक गारंटीशुदा एमएसपी प्रणाली घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रतिज्ञापत्र भी है।

नवप्रीत कौर जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं और सी सरतचंद अर्थशास्त्र विभाग, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

farmer
Kissan Movement
corporate
India
MSP

Related Stories

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

2021ः कोरोना का तांडव, किसानों ने थमाई मशाल, नफ़रत ने किया लहूलुहान

भारतीय अंग्रेज़ी, क़ानूनी अंग्रेज़ी और क़ानूनी भारतीय अंग्रेज़ी

बिहार: बंपर फसल के बावजूद गेहूं की कम ख़रीद से किसान मायूस

पेटेंट बनाम जनता

काम की स्थिति और शर्तों पर नया कोड  : क्या कार्य सप्ताह में चार या छह दिन होने चाहिए?

मुनव्वर फ़ारूकी वाले मामले ने लोकतंत्र के विचार को भ्रामक बना डाला है 

क्यों सरकार झूठ बोल रही है कि खेती-किसानी को बाज़ार के हवाले कर देने पर किसानों को फ़ायदा होगा?  


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License