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कोविड-19
भारत
राजनीति
ग्राउंड रिपोर्ट: गांव-देहात वाले आज भी नहीं मानते कि कोरोना जैसी कोई बीमारी है!
भारत के ग्रामीण इलाकों में कोरोना के प्रति जागरूकता का घनघोर अभाव है। बहुत बड़े स्तर पर कोरोना को लेकर ग्रामीण इलाके में जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है। बिहार के गांव से अजय कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट 
अजय कुमार
12 May 2021
village

बात बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के दौनहा पंचायत के निवासियों की है। कोरोना के बारे में इनकी रायशुमारी जानने से पहले यह जान लीजिए कि कोरोना को लेकर कोई समझदार और बेवकूफ नहीं होता बल्कि जिसकी जैसी समझ की पृष्ठभूमि होती है, वैसे ही उसकी इंसानी फितरत होती है, उसी आधार पर वह कोरोना के खिलाफ अपना रिश्ता बना रहा है। 

 इसीलिए यह संभावना भी बनती है कि बहुत बड़े झुंड में अगर यह सवाल दागा जाए कि कोरोना है या नहीं? तो उनमें से सभी  एक आवाज में कहे कि कोरोना है।  लेकिन जैसे ही उनसे यह पूछिए कि उन्हें क्यों लगता है कि कोरोना जैसी कोई बीमारी है? तब शायद उनमें से कईयों को लगता है कि पूछने वाला इंसान भी हमारी तरह संदेह में है इसलिए एकमत की आवाज दो मत में बदल जाती है कुछ लोग कहते हैं कि कोरोना की बीमारी है और कुछ लोग कहते हैं नहीं है।

इसके बाद अगर आगे बढ़ कर उनसे पूछा जाए कि उन्हें कैसे पता चला कि कोरोना जैसी बीमारी है? तो अधिकतर लोग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि उन्होंने टीवी पर देखा और सुना है। इसके आगे उनसे यह पूछिए कि अगर टीवी और अखबार उनकी जिंदगी में नहीं होता तो क्या होता? इस सवाल का जवाब वह यह नहीं देते कि उन्हें पता नहीं चलता कि दुनिया में क्या हो रहा है, बल्कि इस सवाल का जवाब वह यह देते हैं कि कोरोना जैसी कोई बीमारी नहीं है। उन्हें तो कुछ नहीं दिखता। कहां बिमारी है? सब झूठ हैं। वह अपना आपा खो देते हैं। गुस्से के हद से बाहर निकल जाते हैं।

इस तरह के सवाल जवाब को चाहे जैसे मर्जी वैसे आंका जा सकता है लेकिन इससे एक बात तो जगजाहिर होती है कि इन लोगों में वैज्ञानिक चेतना का घनघोर अभाव है।

चिलचिलाती हुई धूप में गांव की सड़क के किनारे मौजूद पेड़ के नीचे बैठकर एक दूसरे के साथ गप्पे लड़ा रहे चार लोगों से जब मैंने यह पूछा कि मैं आपसे कोरोना पर बात करना चाहता हूं तो उनकी बातें अचानक से बंद हो गई। उनमें से एक विनोद राम ने मुझे देखते हुए और अपने मास्क को ठीक से अपने चेहरे पर एडजस्ट करते हुए कहा कि सर, मास्क तो पहना है। हम कोरोना से जुड़े नियमों का पालन कर रहे हैं। धूप में गर्मी बहुत ज्यादा होती है, इसलिए पेड़ के नीचे बैठे हैं। अगर आप सरकारी अधिकारी हैं तो किसी से शिकायत मत कीजिएगा। मैं अंदर ही अंदर हंसा। मैंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं। मैं केवल मामूली पत्रकार हूं। आपसे कुछ सवाल जवाब होंगे ताकि समझ सकूं कि कोरोना को लेकर आप लोग क्या सोचते हैं? 

मेरी बातों पर उनको भरोसा नहीं हुआ। लेकिन धीरे-धीरे बात चली तो वह सहज होते चले गए। विनोद राम ने कहा कि मैं सच बताऊं तो मुझे नहीं लगता कि कोरोना है। मैं झारखंड में 18000 रुपये महीने पर वेल्डिंग का काम कर रहा था। पिछले कई महीने से घर पर बैठा हुआ हूं। मुझे नहीं पता कि कोरोना है या नहीं। वह आप जैसे बड़े लोग जाने। लेकिन अगर सरकार हमें घर में कैद कर रही है तो उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि हमें वह जिंदगी भी दे जो हम आज से कुछ महीने पहले जी रहे थे।

सरकार हम लोगों पर लाठी भांजकर दिन भर हम लोगों को भगाने के फिराक में लगे रहती है। पांच किलो अनाज से कुछ नहीं होता आज के जमाने में। आप ही बताइए आप क्या चुनेंगे? 18000 रुपये में महीने भर का काम या 5 किलो अनाज। तो मैंने कहा कि अगर जान बचाने की बात आएगी तो 5 किलो अनाज तो चुनना ही पड़ेगा। तो विनोद राम ने झल्लाते हुए कहा कि कहां है कोरोना? आपको कहीं दिख रहा है कोरोना। पैसे वालों के पास पैसा है। वह दिन भर ताश खेलते हैं। शाम को ताड़ी पीते हैं। हम जैसों का क्या? सरकार हमें पैसा दे। हमसे नहीं बर्दाश्त हो रहा। पता नहीं कब तक चलेगा। 

वहीं नूर आलम बैठे थे। नूर आलम ने कहा सरकार अपना 5 किलो अनाज वापस ले ले। लेकिन इन पुलिस वालों से कह दे कि वह इतनी बेरहमी से ना मारें। बड़ी बेरहमी से मार रहे हैं। मुझे तो आज तक यही लगा है कि हम जैसों के लिए सरकार नहीं होती। कोरोना पर शंका है। पता नहीं क्या है यह? 

कमलेश्वर दुबे कहने लगे कि टीका नहीं लगाएंगे। टीका लगवाने पर लोग मर जा रहे हैं। इनकी बातों पर सब ने हां में हां मिलाई। वहीं खड़े एक जन तो यह कहने लगे कि टीका लगवाने के बाद बच्चा नहीं होगा, ऐसा बताया जा रहा है। लोग नपुंसक हो जाएंगे। नपुंसकता का डर भी पिछड़े समाज के बड़े डरों में शामिल है। यह डर इससे पैदा होता है कि कोई अनजानी सी चीज उनका पुरुषत्व न खत्म कर दे।आगे उनका कहना था कि हम टीका नहीं लगवाएंगे। फलाने टीका लगवाए और मर गए। मैंने पूछा कौन फलाने?  कहां पर रहते हैं? उन्होंने कहा नहीं पता मेरे साले ने मुझे फोन पर बताया था। वहीं पर मंदिर के पुजारी भी थे। उन्होंने कहा सब ठाकुर जी की कृपा है। वह जब चाहे तब बुला लें, उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। 

उनसे बात कर ही रहा था कि तपती धूप में गायों के चरवाहे श्याम नारायण यादव पहुंचे। उन्होंने अपने माथे का पसीना अपने गमछा से साफ करते हुए कहा कि इतना पसीना रोज निकलता है। इतने पसीने में डूबे लोगों को कोई कोरोना नहीं होता। जब हाथ पैर में चोट लगती है, तब हम डॉक्टर के पास जाते हैं। नहीं तो पता नहीं किसी बीमारी के इलाज में कभी डॉक्टर के पास गए भी थे या नहीं। पहले भी तो लोग मरते ही थे। इतना हो हल्ला नहीं होता था। पता नहीं अब क्यों हो रहा है? अमीरों का रोग है, हमें नहीं होने वाला। जब भगवान जी बुलाएंगे तब चाहे जो मर्जी सो कर ले हम  चले जाएंगे। इतना फुर्सत नहीं है कि हम जा कर के टीका लगवाएं। वह अपने कांधे पर छाता लगाए हुए थे। मैंने बस इतना कहा कि अगर आपको बीमार और मरने का खौफ नहीं है तो आप इतनी धूप में छाता क्यों लेकर चल रहे हैं, सड़क के बीचो-बीच क्यों नहीं चलते हैं, सड़क के किनारे क्यों चलते हैं? उन्होंने कहा कि चार किताब पढ़ लेने से कोई भगवान नहीं हो जाता। सब उनकी कृपा है। वह चाहें तो मार दे और चाहे तो जिंदा रखें।

वहां से अपनी गाड़ी आगे बढ़ी  और जाकर के पेड़ के चबूतरे के नीचे दौनाह पंचायत के दूसरे गांव में उतरी। यहां पर कुछ महिलाएं और बड़े बूढ़े उम्र के लोग थे। बात का सिलसिला शुरू हुआ। 

मैंने फिर से अपना सवाल दुहाराया कि आपको क्या लगता है? कोरोना जैसी कोई बीमारी है या नहीं? मैंने सवाल पूछने के बाद कहा कि कोई दबाव नहीं है। जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप कहिए। यह कहने के बाद केवल एक बूढ़े व्यक्ति को छोड़कर सब ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कोरोना जैसे कोई बीमारी है। यह सब झूठ है। हमारे साथ राजनीति हो रही है। उनके यह कहते ही मैंने किसी सज्जन से पूछा कि आपका शुभ नाम क्या है? यह सुनते ही मर्दाना रौब के नशे में डूबे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति आए और मुझे गाली देने लगे कि तुम होते कौन हो? सबसे शुभ नाम पूछने वाले? तुम्हें दिखता नहीं कि यहां औरतें बैठी हैं? मैंने कहा माफ कीजिए। अगर आप सबको मेरी बातों का बुरा लगा हो तो मैं यहां से चला जाऊंगा? मेरे थोड़ा नरम होते ही सब लोग उस व्यक्ति के खिलाफ हो गए। उसे चुप कराने लगे। कहने लगे कि वह अपना काम करने आए हैं आप चुप हो जाइए। ( सारी बातें भोजपुरी में हो रही थी, मैं उसका हिंदी तर्जुमा कह रहा था) आप सोच रहे होंगे कि मैंने इस घटना का जिक्र यहां पर क्यों किया? इसके पीछे केवल एक मकसद है कि आप समझ सके कि हमारे गांव देहात के इलाके में आज भी औरतों की सार्वजनिक जीवन में क्या हैसियत है? 

लोगों के कहने पर मैंने उनसे अगला सवाल यह पूछा कि अगर कोरोना जैसी बीमारी नहीं है तो सरकार ने आपको घरों में क्यों कैद किया है? आपको बाहर क्यों नहीं निकलने दे रही? इस सवाल पर ज्यादातर वैसे लोग चुप रहे जो यह कह रहे थे कि कोरोना जैसी बीमारी नहीं है? लेकिन उन्हें में से एक बूढ़े व्यक्ति बोले कि सरकार गरीबों को मारना चाहती है। इसलिए उसने लॉकडाउन लगाया है। अगर बीमारी होती तो वह चुनाव में क्यों जाते? चुनाव क्यों करवाते? यह सारा हथकंडा हम जैसे गरीबों को मारने के लिए है। तभी दूसरे ने कहा कि यह सब जनसंख्या नियंत्रण के लिए किया जा रह है। देश की आबादी बहुत अधिक हो गई है। कम करने के लिए हम जैसे बूढों को मारा जा रहा है। जब टीके लगवाने वाला सवाल पूछा तो सब ने सिरे से मना कर दिया। सबने कहा कि उस गांव में किसी ने लगाया तो वह मर गए। हम टीका नहीं लगवाएंगे। मैंने पूछा वह कौन है? जो मर गए तो सब ने कहा कि कहीं सुना था लेकिन पता नहीं है कि वह कौन है। मैंने कहा वह तो वही बात हो गई कि उस पेड़ के नीचे भूत रहता है जिस भूत को किसी ने नहीं देखा। मेरी यह बात सुनते ही एक बुढ़िया अम्मा बैठी थी उन्होंने कहा कि हम दो बूढ़े लोग ही यहां पर रहते हैं। अगर टीका लगवा लेंगे और हम दोनों में से कोई एक भी मर जाएगा तो क्या होगा? यह बात थी बहुत आसान लेकिन जरा ऐसे सोच जाए देखिए कि जिसकी जिंदगी में विज्ञान ने कभी दखल ना दिया हो, वह ऐसी परिस्थिति में कैसे फैसले लेगा।

बात यहां से आगे बढ़ी। 12वीं क्लास में पढ़ रही  बच्ची ने कहा कि कोरोना की वजह से हमारी पूरी पढ़ाई चौपट हो गई है। यह सरकार अब आगे नहीं आएगी। कहां है कोरोना? मुझे विश्वास नहीं है कि कोरोना जैसे कोई बीमारी है? यह छोटे-छोटे बच्चे इस समय स्कूल में होते। लेकिन सरकार की राजनीति की वजह से ऐसा नहीं हो रहा है। अगली बार यह सरकार जरूर नहीं आएगी। तभी उस बूढ़ी अम्मा ने टोक दिया। और कहा कि हमारे पेट की तो सारी बात जान ली। अब अपनी पेट की बताइए। क्या कोरोना जैसी कोई बीमारी है? पत्रकार के साथ एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैंने अपना कर्तव्य निभाया। अपनी समझ से कुछ बातें कहीं। उनकी आंखों को देख कर लग रहा था कि उन्हें मेरी बात पर थोड़ा सा भरोसा हो रहा है लेकिन उनकी देहभंगिमा बता रही थी कि उन्हें मुझ पर तनिक भी यकीन नहीं है। वह मुझे सरकारी आदमी मान रहे हैं। अपनी सामाजिक समझ और ईश्वरीय समझदारी के सामने मेरी बातों को कोई भाव नहीं दे रहे। 

इस जगह को छोड़ कर आगे बढ़ने पर मुलाकात राजबलम सिंह से हुई। राजबलम सिंह बड़े ही शान से बता रहे थे कि वह राजपूत हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना नाम की बीमारी है,इससे इंकार नहीं है। सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। मोदी जी अब क्या करें? 5 किलो अनाज तो दे रहे हैं। टीका सब लगवाएंगे। इसे ऐसे समझिए कि जैसे ही किसी का बच्चा बीमार होता है तो लोग मोटरसाइकिल से भागते हैं। वैसे ही लोग मरने लगेंगे तो सब भागेंगे। टीका सब लगाएंगे। लेकिन सरकारी अस्पताल की हालत बहुत खराब है। यहां कुछ भी नहीं है। मोदी जी क्या करें? अकेले वह यह सब नहीं संभाल सकते। ऊपर से बात करते होंगे लेकिन नीचे नहीं पहुंचता होगा। नीचे बहुत भ्रष्टाचार है। मैं पेशे से घर में टाइल्स लगाने का काम करता हूं। कुछ दिन पहले मैं एक मुस्लिम घर में टाइल्स लगवा रहा था। उन्होंने कहा कि वह टीका नहीं लगवाएंगे। यह राजनीति हो रही है। मुझे उस मुस्लिम व्यक्ति के बात पर बहुत गुस्सा आया मैंने कहा कि आप देशद्रोही हैं खुद को तो बीमार करेंगे। साथ में दूसरे को भी बीमार करेंगे। राजबलम सिंह की यह बात सुनकर मैंने उनसे पूछा कि अगर यही बात किसी हिंदू व्यक्ति ने की होती तब आप क्या कहते? तो राजबलम सिंह ने कहा कि तब भी मैं उसे देशद्रोही कहता। इसी बात को पकड़ कर मैंने राज बलम सिंह से यह पूछा कि आप कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अकेले क्या-क्या करेंगे? इसका मतलब है आप यह भी मान रहे होंगे कि प्रधानमंत्री वैज्ञानिक नहीं है। अगर देश के वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री मोदी से यह बात कही हो कि कोरोना की वजह से देश की स्थिति बहुत खराब होने वाली है, इसके लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री ने उनकी बातों को अनसुना कर खुद को चुनाव प्रचार में झोंक दिया तो इस पर आपकी क्या राय होगी? क्या आप प्रधानमंत्री को देशद्रोही कहेंगे। यह बात सुनते ही राज बलम सिंह सिरे से पलट गए। भौचक रह गए। कहने लगे कि यह बात मत छापिएगा। मैंने कहा कि इस दौर में आपने कोई नई बात नहीं की है। आप उसी नशे के मारे नागरिक बन गए हैं, जिस नशे में यह पूरा देश डूबा हुआ है। 

इन सारे उदाहरणों का यहां पर इसलिए दर्ज किया गया क्योंकि इस बात के महत्व को भी समझा जाए कि भारत के ग्रामीण इलाकों में कोरोना के प्रति जागरूकता का घनघोर अभाव है। बहुत बड़े स्तर पर कोरोना को लेकर ग्रामीण इलाके में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। 

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