NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
पुस्तकें
कला
भारत
राजनीति
नामवर सिंह : एक युग का अवसान
अभी 25 जनवरी को हिन्दी ने अपनी एक अप्रतिम कथाकार कृष्णा सोबती को खो दिया और अब आलोचना के प्रतिमान नामवर सिंह चले गए।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
20 Feb 2019
Namwar Singh

अभी 25 जनवरी को हिन्दी ने अपनी एक अप्रतिम कथाकार कृष्णा सोबती को खो दिया और अब आलोचना के प्रतिमान नामवर सिंह चले गए। वे 92 वर्ष के थे। मंगलवार देर रात करीब साढ़े 11 बजे दिल्ली स्थित एम्स के ट्रॉमा सेंटर में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले काफी समय से बीमार थे।

नामवर सिंह का जन्म 1927 में उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के जीयनपुर में हुआ। वे अपना जन्मदिन 1 मई मज़दूर दिवस के दिन मनाते थे। हालांकि कवि मंगलेश डबराल बताते हैं कि उनका जन्म 26 जुलाई को हुआ था। बाद में वे 26 जुलाई को ही अपना जन्मदिन मनाने लगे। कार्यक्षेत्र मुख्यतौर पर बनारस और दिल्ली रहा। हिन्दी साहित्य में एमए और पीएचडी करने के बाद उन्होंने बीएचयू में अध्यापन किया। इस दौरान उन्होंने 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के उम्मीदवार रूप में चुनाव भी लड़ा लेकिन हारने के बाद उन्हें बीएचयू छोड़ना पड़ा। बीएचयू के बाद नामवर जी ने सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया, लेकिन बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से जुड़े और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने जेएनयू में हिन्दी विभाग की स्थापना की। रिटायरमेंट के बाद भी वे जेएनयू  विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे।

उनकी प्रमुख कृतियों में:- कहानी : नयी कहानी (1964), कविता के नये प्रतिमान (1968), दूसरी परम्परा की खोज (1982) और वाद विवाद संवाद (1989) काफी प्रमुख रहीं।

नामवर जी के निधन पर हिन्दी जगत में शोक की लहर है।
जनवादी लेखक संघ (जलेस) ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा है, “नामवर सिंह का देहावसान एक युग का अवसान है। 92 वर्ष से अधिक की अवस्था में भी, और साहित्यिक सक्रियता के अत्यंत सीमित हो जाने के बावजूद, वे हिन्दी में एक अनिवार्य उपस्थिति की तरह थे। भारत से लेकर विश्व के अन्य हिस्सों तक के साहित्य और सराहना-प्रणालियों का ऐसा विशद ज्ञान, ऐसी तलस्पर्शी विश्लेषण-क्षमता, ऐसी भाषा और प्रत्युत्पन्नमति और आलोचना का ऐसा लालित्य अब हमारे बीच दुर्लभ है। 70 वर्षों की साहित्यिक सक्रियता में नामवर जी ने कभी अपने को पुराना नहीं पड़ने दिया। अपने ज्ञान को हमेशा अद्यतन रखना, नयी-से-नयी चीज़ें पढ़ना और उन्हें अपनी व्याख्या तथा व्याख्यान का हिस्सा बनाना नामवर जी से ही सीखा जा सकता था।”

वरिष्ठ कवि और जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मंगलेश डबराल ने नामवर सिंह के निधन पर बीबीसी हिन्दी पर लिखे अपने एक लंबे लेख में उनके शख्सियत, उनके लेखन और उनके योगदान पर चर्चा करते हुए लिखा है कि नामवर सिंह व्यावहारिक आलोचना ही नहीं, कुछ व्यावहारिक विवादों के लिए भी जाने गए।

मंगलेश जी लिखते हैं “नामवर जी ने भी जीवन के उत्तरार्ध में 'वाचिक' शैली में ही काम किया जिसका कुछ उपहास भी हुआ। 'दूसरी परंपरा की खोज' के बाद उनकी करीब एक दर्ज़न किताबें आयीं जिनमें 'आलोचक के मुख से', 'कहना न होगा', 'कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता', 'बात बात में बात' आदि प्रमुख हैं, लेकिन वे ज़्यादातर 'लिखी हुई' नहीं, 'बोली हुई' हैं। लेकिन यह देखकर आश्चर्य होता है कि करीब तीन दशक तक वे कभी-कभार 'आलोचना' के संपादकीयों को छोड़कर बिना कुछ लिखे, सिर्फ इंटरव्यू, भाषण और व्याख्यान के ज़रिये प्रासंगिक बने रहे। इसकी एक वजह यह भी थी कि उनका गंभीर लेखन जिस तरह बोझिल विद्वता से मुक्त था, वैसे ही उनकी वाचिकता भी सरस थी हालांकि उसमें वह प्रामाणिकता कम थी जो उनके लेखन में पायी जाती है।

मंगलेश जी कहते हैं, “नामवर सिंह के अंतर्विरोधों की चर्चा भी हिंदी में एक प्रिय विषय रहा है। वे 'महाबली' माने गए और उनके 'पतन' पर भी बहुत लिखा गया। नामवर जी वाम-प्रगतिशील साहित्य के एक प्रमुख रणनीतिकार आलोचक थे और अपने जीवन के सबसे जीवंत दौर में हिंदी विमर्शों पर उनका गहरा प्रभाव रहा। यह भी उन्हीं की खूबी थी कि वे अपने समझौतों को एक वैचारिक औचित्य दे सकते थे। उनसे प्रभावित कई लोगों को मलाल रहा कि वे एक खुद एक सत्ताधारी, ताकतवर प्रतिष्ठान बन गए और आजीवन हिन्दुत्ववादी संघ परिवार का तीखा विरोध करने के बावजूद उसके द्वारा संचालित संस्थाओं से दूरी नहीं रख पाए। ऐसे विचलनों के कारण प्रगतिशील लेखक संघ को उन्हें हटाने को विवश होना पड़ा...।”

अंत में मंगलेश जी लिखते हैं “हाँ, नामवर के होने का अर्थ पर काफी विचार किया गया और अब उनके विदा लेने के बाद शायद नामवर के न होने का अर्थ पर उतने ही गंभीर विचार की दरकार होगी।”

वरिष्ठ कवि पंकज चतुर्वेदी नामवर जी के निधन पर लिखते हैं, “हिंदी के अभिमान की विदाई… आज सुबह यह मालूम होते ही कि डॉक्टर नामवर सिंह नहीं रहे, निराला के शब्द बेसाख़्ता याद आये और लगा कि उनकी विदाई 'हिंदी के अभिमान' के छिन जाने सरीखी है :

"तुमने जो दिया दान, दान वह,
हिन्दी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है--
यह सच है !"

लेखक व पत्रकार ओम थानवी ने कहा, "हिंदी साहित्य जगत अंधकार में डूब गया है। उल्लेखनीय विचारक और हिंदी साहित्य के एक अगुआ शख्सियत का निधन।" 
वरिष्ठ लेखक अरुण माहेश्वरी लिखते हैं, “डॉ. नामवर सिंह हमारे बीच नहीं रहे। हिंदी साहित्य के सूक्ष्मदर्शी, पहले आधुनिक प्रगतिशील आलोचक नहीं रहे। पिछले एक अर्से से उनकी अस्वस्थता की खबरें लगातार आया करती थी। कल रात उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। नामवर सिंह की उपस्थिति ही हिंदी आलोचना की चमक का जो उल्लसित अहसास देती थी, अब वह लौ भी बुझ गई। नामवर जी के कामों ने हिंदी आलोचना को कुछ ऐसे नये आयाम प्रदान किये थे, जिनसे परंपरा की बेड़ियों से मुक्त होकर आलोचना को नये पर मिले थे। पिछली सदी में ‘80 के दशक तक के अपने लेखन में आलोचना के सत्य को उन्होंने उसकी पुरातनपंथ की गहरी नींद में पड़ रही खलल के वक्त की दरारों में से निकाल कर प्रकाशित किया था। उन्होंने ही हिंदी के कथा साहित्य को कविता के निकष पर कस कर किसी भी साहित्यिक पाठ की काव्यात्मक अपरिहार्यता से हिंदी जगत को परिचित कराया था।”

साहित्यिक जगत में ही नहीं राजनीतिक जगत में भी नामवर सिंह के निधन पर शोक है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने नामवर सिंह के निधन पर शोक जताया। मोदी ने कहा, "उन्होंने अपनी आलोचना के साथ हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।"

केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने सिंह के निधन को निजी क्षति बताया। उन्होंने कहा, "असहमतियों के बावजूद भी..वह लोगों को सम्मान और स्थान देना जानते थे। उनका निधन हिंदी जगत और हमारे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।"

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सीताराम येचुरी ने कहा कि साहित्य की दुनिया में साहित्यकार और लेखक नामवर सिंह की हमेशा खास जगह रहेगी। उनका काम और योगदान आने वाले कई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि नामवर सिंह ने आलोचना और हिंदी भाषा को एक विशेष स्थान दिया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस नेता संजय निरूपम और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी उनके निधन पर शोक जताया।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

NAMWAR SINGH
hindi literature
progressive literary critic
academician
हिन्दी साहित्य
हिन्दी लेखक

Related Stories

समीक्षा: तीन किताबों पर संक्षेप में

इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में 9 से 11 जनवरी तक अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन

"खाऊंगा, और खूब खाऊंगा" और डकार भी नहीं लूंगा !

गोरख पाण्डेय : रौशनी के औजारों के जीवंत शिल्पी

कृष्णा सोबती : मध्यवर्गीय नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली कथाकार

"हमारी मनुष्यता को समृद्ध कर चली गईं कृष्णा सोबती"

आज़ादी हमारा पैदाइशी हक़ है : कृष्णा सोबती


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License