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भारत
राजनीति
नौकरियां और जलवायु परिवर्तन इस साल के सबसे बड़े मुद्दे होंगेः WEF रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार इस साल अलोचनीयता (vulnerabilities) काफ़ी ज़्यादा है और प्रणालीगत ( systemic) चुनौतियों से संबद्ध है।
टिकेंदर सिंह पंवार
20 Jan 2018
jobs and climate change

महज़ तीन सप्ताह पहले नए साल की शुभकामनाओं के संदेश मोबाइल फोन, ईमेल, कार्ड आदि से भेजे गए। सभी संदेशों में नए साल 2018 के लिए शांति, समृद्धि और खुशहाली इच्छाएं व्यक्त की जा रही थीं। लेकिन वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की रिपोर्ट ने इन ख़ुशियों को करवा कर दिया। 2018 में नौकरियां और जलवायु परिवर्तन बड़े मुद्दे रहेंगे।

वैश्विक जोखिमों पर डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट उन चुनौतियों के बारे में बताती है जिनका लोग पिछले साल के मुक़ाबले गंभीर रूप से सामना करने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस साल अलोचनीयता (vulnerabilities) काफ़ी ज़्यादा है और प्रणालीगत ( systemic) चुनौतियों से संबद्ध है। अनिश्चितता (uncertainty), अस्थिरता(instability) और भंगुरता (fragility) के लक्षणों में वृद्धि के बीच पिछले कुछ साल में यह तेज़ हो गया है। ये विशेषताएं पूरे विश्व में लोगों की इच्छाओं और उनकी पीढ़ियों के सुरक्षित, विश्वसनीय और भयरहित भविष्य के ठीक विपरीत हैं।

ग्लोबल रिस्क पर्सेंप्शन सर्वे (जीआरपीएस) के अनुसार 7% उत्तरदाताओं (respondents) को जोख़िम में कमी की उम्मीद है जबकि 59% की बढ़ोतरी की उम्मीद है। भू-राजनीतिक चिंताओं पर जोख़िम को मापने के लिए तैयार मैट्रिक्स में राजनीतिक और आर्थिक टकराव शामिल हैं। प्रभाव के अपने क्षमता की श्रेणी के अनुसार सबसे बड़ी चिंताओं के पांच जोखिम हैं:

 

क्रम संख्या

जोख़िम

रैंक

1.

बेरोज़गारी (Unemployement)

पहला

2.

वित्तीय संकट (Fiscal Crisis)

दूसरा

3.

केंद्र सरकार की विफलता (Failure of National Government)

तीसरा

4.

ऊर्जा मूल्य आघात (Energy Price Shock)

चौथा

5.

गंभीर सामाजिक अस्थिरता (Profound Social Instability)

पांचवां

(Source: Global Risks Perception Survey 2017-18, WEF)

एग्ज़क्यूटिव ओपिनियन सर्वे 2017 में कुछ अन्य खुलासा हुआ है। लगभग 73% उत्तरदाताओं ने कहा कि साल 2018 में बहुपक्षीय व्यापार नियमों और समझौतों के क्षरण से जुड़े जोखिम के बढ़ने की उन्हें उम्मीद है।

अगले 10 वर्षों में होने वाले पांच जोख़िम निम्नानुसार हैं: -

1. मौसमी घटनाओं की अधिकता

2. प्राकृतिक आपदाएं

3. साइबर हमले

4. डाटा की चोरी या धोखाधड़ी

5. जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण और अनुकूलन रणनीति की विफलता

ये जोखिम जिसे होने की संभावना है विकास की रणनीतियों की दिशा की व्याख्या करते हैं। मौसम के प्रभाव सभी के लिए साक्षी हैं, लेकिन अनुकूलनशीलता की अपर्याप्तता एक गंभीर चुनौती है। 'साइलेंट क्राइसिस की एनाटॉमी' बताती है कि चुनौतियों से निपटने के लिए किस तरह शांति की रणनीतियां अपर्याप्त हैं। जलवायु परिवर्तन प्रभावों के अनुकूलन के लिए न तो कोई पर्याप्त संसाधन है और न ही क्षमता है। हाल ही में यूआईडीएआई लीक में साइबर हमले और डाटा धोखाधड़ी का मामला सामने आया जिसका ख़़ुलासा चंडीगढ़ स्थित ट्रिब्यून द्वारा एक रिपोर्ट में किया गया था। बायोमेट्रिक डाटा कितना असुरक्षित है ये कहने की ज़रूरत नहीं है। फिलिप के डिक की कहानी पर आधारित हॉलीवुड फिल्म 'माइनॉरिटी रिपोर्ट' में यह दिखाया गया है कि निगरानी (surveillance) केवल सरकार ही नहीं बल्कि व्यावसायिक संगठनों द्वारा भी किया जाता है। डाटा का इस्तेमाल कॉर्पोरेटों द्वारा अपने व्यापारिक हितों के लिए सदा इस्तेमाल किया जाता है।

 

इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कंफेडरेशन (आईटीयूसी) रिपोर्ट की एक अन्य दिलचस्प विशेषता है जो बताता है कि विश्व के कर्मचारियों की संख्या का 85% वैश्विक अर्थव्यवस्था के नियमों को फिर से लिखवाना चाहता है। फ्रांसीसी इतिहासकार और विद्वान पियरे रोसनवल्लन के अनुसार असमानता सबसे तेज़ी से महसूस की जाती है जब नागरिक मानते हैं कि नियम अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग तरीके से लागू किए जाते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कुछ लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता राष्ट्रीय पलायन में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, लोकतांत्रिक स्थान को बंद कर रहे हैं और/या सुरक्षा में काम की गरिमा की मांग करने वाले हताश लोगों को सीमाएं बंद कर रहे हैं।

यह विश्व में 2018 में उभरता हुआ परिदृश्य है जो न तो ख़़ुशी देने वाला, शांतिमय, सुखद और यहां तक कि स्थिर भी नहीं है। यह 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से एक प्रणाली के रूप में पूंजीवाद की स्थिरता के संबंध में दिलचस्प चर्चा की तरफ़ आकर्षित करता है। एक सिद्धांत के रूप में ऐतिहासिक संकट की स्थिति के चरण के तौर पर 'पूंजीवाद के सामान्य संकट' की वकालत की गई। यह अधिक प्रासंगिक हो जाती है जिसमें संकट को अर्थव्यवस्था के लिए सीमित नहीं किया जाता है,लेकिन राजनीति, विचारधारा और जीवन के सभी पहलुओं को अपनाया जाता है। हालांकि, पूंजीवाद के लेखकों द्वारा इसे ज़्यादातर नकार दिया गया था कि यह(पूंजीवाद) सभ्यता का अंत है।

विख्यात अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने पूंजीवाद के समकालीन संकट के बारे में बताते हुए कहा कि "जैसे पूंजीवाद अंतर्वर्धित काल में एक गतिरोध पर पहुंच गया,अब यह अंतिम छोड़ तक आ गया है"। पूंजीवाद के लिए ऐसा कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है जो उस संकट से बाहर निकलने के लिए उपलब्ध हो जो भीतर होता है। प्रभात आगे ज़ोर देते हुए कहते हैं "इस तरह इस समय पूंजीवाद विकल्पों से निकल चुका है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि यह कैसे इस से बाहर आ जाएगा। यह बहुत बेहतर अवसर प्रदान करता है। यह एक बार फिर किसी तरह की क्रांतिकारी संभावनाएं प्रदान करता है।"

डब्ल्यूईएफ इस तरह की संभावनाओं के बारे में चर्चा नहीं कर सकता है लेकिन इस प्रणाली में अंतर्निहित संकट के लिए आधुनिक शब्दावली के रूप में जोखिम के प्रकार में संकट बहुत स्पष्ट रूप से प्रकट हुआ है। जोखिम की वृद्धि प्रणालीगत है जिसका उल्लेख डब्ल्यूईएफ रिपोर्ट में गंभीरता से किया गया है। संकट से बाहर निकलने के तरीकों का सुझाव संकट को कम करने के लिए नहीं लगता है बल्कि ये संकट को बल देगा। अवसर चाहे प्रगतिशील, लोकतांत्रिक ताकतों या नव-उदारवादी सांप्रदायिकता का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा फिर भी विश्व की आपदाओं को रोका नहीं जा सकेगा।

unemployment
climate change
UIDAI
world economic forum

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