NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नौकरियों के सम्बन्ध में जेटली का भ्रम

एक फेसबुक पोस्ट में भारत के वित्त मंत्री ने दावा किया कि नौकरियाँ आने वाली हैं और अर्थव्यवस्था में सब-कुछ ठीक है।
सुबोध वर्मा
20 Jun 2018
Translated by महेश कुमार
अरुण जेटली

स्कॉटिश लोकगीतकार एंड्रयू लैंग ने एक बार कहा था कि कुछ लोग खुद को समर्थन देने के लिए एक शराबी आदमी की तरह आँकड़ों का लैंपपोस्ट की तरह उपयोग करते हैं, बजाय इसके कि वे आगे के रास्ते को रौशन करें। ऐसा लगता है कि पेशे से वकील अरुण जेटली अपने फेसबुक पेज पर अपने नवीनतम पोस्ट में वही कर रहे हैं जो एक वकील करता है। उनका दावा है कि पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था 7.7 प्रतिशत बढ़ी है और यह प्रवृत्ति "अगले कुछ वर्षों तक जारी रहने की संभावना है"। एफडीआई, घरेलू निवेश, सामाजिक क्षेत्र के खर्च आदि जैसे विभिन्न संकेतक बढ़ रहे हैं और “ये सभी ऊँची दर पर नये रोज़गार करने वाले क्षेत्र हैं"। राजस्व संग्रह तो बढ़ रहा है, लेकिन सरकार का फिस्कल (वित्त) विवेकपूर्ण और ज़िम्मेदार तरह से व्यव्हार कर रही है। कुल मिलाकर जेटली का यही कहना है – आखिर उनकी नौकरी का सवाल है। लेकिन, सच क्या है?

 

नौकरियाँ सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि या अधिक एफडीआई या बेहतर कर संग्रह नवउदार अर्थशास्त्री और वाशिंगटन को खुश कर सकते हैं, लेकिन 2019 चुनाव जीतने के लिए नौकरियाँ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। जेटली का कहना है कि निर्माण क्षेत्र में विस्तार हो रहा है, इससे नौकरियाँ मिलेंगी। सबसे पहले, निर्माण क्षेत्र आरबीआई द्वारा दिए गए केएलईएमएस डेटा के अनुसार श्रम बल का लगभग 14 प्रतिशत कार्यरत है। रोज़गार की तलाश में हर साल शामिल होने वाले 120 मिलियन लोगों को नौकरी देने में ही यह क्षेत्र सक्षम नहीं हैं पहले से नौकरी की ख़ोज कर रहे लोगों के बारे में तो भूल ही जाएँI दूसरा, यह प्रमुख नियोक्ताओं के बीच एकमात्र क्षेत्र है जहाँ उत्पादकता कम हो रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कम भुगतान, असुरक्षित नौकरी, मौसमी कड़वाहट है। आय या स्थिरता के मामले में पकोडा बेचने से भी बदतर है।

जेटली यह भी कहते हैं कि विदेशी और घरेलू दोनों तरफ से निवेश हो रहा है, जिसका अर्थ है कि यह रोज़गार को बढ़ावा देगा। राष्ट्रीय आय पर सबसे हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि 2017-18 में सकल नियत पूंजी निर्माण (निवेश का एक उपाय 9.8 प्रतिशत) 2016-17 में 11.2 प्रतिशत की तुलना में बढ़ गया। जेटली हमें विश्वास दिलाना चाहते हैं कि यह वास्तव में धीमा हुआ है बल्कि बढ़ा नहीं है। एक और उपाय - बैंकों द्वारा उधार - कई दशकों में विकास के न्यूनतम स्तरों को भी प्रभावित किया है। इसलिए, इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि आगामी वर्षों में उत्पादन में वृद्धि के ज़रिए नौकरियाँ बढेंगी क्योंकि जेटली ने इसका दावा किया है।

जेटली इस बात पर ज़ोर देना गलत है कि भारत में एफडीआई प्रवाह बढ़ रहा है क्योंकि जीडीपी का एफडीआई वाला हिस्सा वास्तव में 2016 में 2 प्रतिशत से घटकर 2017 में 1.6 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा, हालिया रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनफील्ड एफडीआई परियोजनाओं की संख्या 21 प्रतिशत गिर गई है। किसी भी मामले में, एफडीआई मुश्किल से भारत में कोई भी अतिरिक्त नौकरियाँ नहीं बना पाई है। सरकार का बहुत प्रचारित 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम विश्वजित धर और के.एस. चालापति राव के विश्लेषण के रूप में एक गैर-स्टार्टर प्रतीत होता है।

जेटली यह भी दावा करते है कि विनिर्माण क्षेत्र बढ़ रहा है और यह भी दर्शाता है कि नौकरियाँ भी बढ़ेंगी। वह 2017-18 की चौथी तिमाही में विकास पर खुद को आधार बनाता है जो 2016-17 की पहली तिमाही में हासिल किए गए स्तर (लगभग) तक पहुँचने के लिए 9.1 प्रतिशत पर था। लेकिन वार्षिक विकास आँकड़ों पर नज़र डालें: तो विनिर्माण वृद्धि 2016-17 में 10.1 प्रतिशत से घटकर 2017-18 में 8.6 प्रतिशत हो गई है। वित्त मंत्री का एक चौथाई के परिणाम के आधार पर ख़ुशी से इतना फूल जाना काफी अजीब सी बात हैI

जेटली जी मोदी जी का पसंदीदा तर्क (आरएसएस का आर्थिक दृष्टिकोण) दोहराते हैं कि सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं, विशेष रूप से वित्तीय समावेश कार्यक्रमों के कारण, में "स्व-रोजगार की लहर बह रही" है। वह शायद जन धन खातों और मुद्रा ऋण के प्रावधान के उद्घाटन का ज़िक्र कर रहे हैं। जैसा कि पहले दिखाया गया है, मुद्रा ऋण की औसत मात्रा प्रति व्यक्ति 47,000 रूपये है। यह शायद ही कोई ऐसी राशि है जो किसी नए व्यवहार्य स्व-रोजगार के अवसर को शुरू करने का जायज़ कारण बन सकती है। यह राशि पहले से ही काम कर रहे पूंजी के रूप में व्यवसाय चलाने के लिए सहायक हो सकती है लेकिन नए रोज़गार के लिए नहीं।

जेटली जानते हैं कि वे बड़ी फिसलन पर है। यही कारण है कि वह बार-बार इन झूठे दावों पर जोर दे रहे है। याद रखें, इस साल फरवरी में, अपने बजट भाषण में उन्होंने दावा किया था कि 70 लाख नौकरियां शामिल की जायेंगी। लेकिन डेटा देश में उग्र बेरोजगारी की आग को ठंडा नहीं कर पाएगा। विशेष रूप से नकली डाटा तो  नहीं कर पायेगा।

 

Arun Jaitley
FDI
नौकरी
GDP growth
Employment
रोज़गार

Related Stories

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 

जारी रहेगी पारंपरिक खुदरा की कीमत पर ई-कॉमर्स की विस्फोटक वृद्धि

क्यों आर्थिक विकास योजनाओं के बजट में कटौती कर रही है केंद्र सरकार, किस पर पड़ेगा असर? 

पिछले 5 साल में भारत में 2 करोड़ महिलाएं नौकरियों से हुईं अलग- रिपोर्ट

रिपोर्टर्स कलेक्टिव का खुलासा: कैसे उद्योगपतियों के फ़ायदे के लिए RBI के काम में हस्तक्षेप करती रही सरकार, बढ़ती गई महंगाई 

मध्य प्रदेश के जनजातीय प्रवासी मज़दूरों के शोषण और यौन उत्पीड़न की कहानी

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: क्या महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के संकटों पर नज़र डालता है  

हम भारत के लोग:  एक नई विचार श्रृंखला


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License