NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
नाविकों की आप बीतीः पोत उद्योग में ख़ून चूस लिया जाता है
कम वेतन और नौकरी की असुरक्षा को लेकर संघर्षरत असहाय नाविकों को छोड़कर सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया है। इस क्षेत्र में प्रशिक्षित बेरोज़गारों की संख्या भी बहुत ज़्यादा है।

सुबोध वर्मा
08 Mar 2018
शिप

मर्चेंट नेवी भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत कम दिखाई देने वाला क्षेत्र है। भारत के विभिन्न बंदरगाहों से पोत दुनिया के लगभग सभी देशों में माल ले जाते हैं। कई लोग यह जानकर चकित होंगे कि परिमाण के अनुसार विदेशों से व्यापार का क़रीब 95% (और मान के आधार पर 68%) इसी मर्चेंट नेवी के माध्यम से होता है। वर्तमान में इस मर्चेंट नेवी के क़रीब 1376 पोत हैं। यद्यपि इन पोतों (लगभग 69%) का एक बड़ा हिस्सा भारतीय तटीय मार्गों पर कार्यशील है, इसके शेष 31%पोत कुल माल का लगभग 86% विदेशी तटों पर लेकर जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को 'नवरत्न' कंपनी का दर्जा प्राप्त है। यह केवल 67 मालवाहक पोत का संचालन करता है। पोत परिवहन मंत्रालय का कुल बजट 1818 करोड़ रुपए, और भारत की तटीय लंबाई क़रीब 1750 किमी है इस तट पर कई बंदरगाह हैं।

इस महत्वपूर्ण रणनीतिक उद्योग में सबसे कम दिखाई देने वाले तत्व इस क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी हैं। क़रीब 150,000 कर्मचारी हैं जिस पर यह विभाग निर्भर है। उन्हें नाविक या मल्लाह और अन्य विभिन्न नामों से जाना जाता है। इनका काम बेहद ही मुश्किल और ख़तरनाक होता है। वे लंबे समय तक अपने परिवार से दूर रहते हैं। अगर पोत लंबे विदेशी दौरे पर होता है तो उन्हें 9 महीने तक का भी समय लग जाता है। जब कोई घर लौटता है तो उसे छुट्टी के दौरान मूल वेतन ही मिल पाता है। वेतन बेहद कम है, काम का समय लंबा और कठिन है, ख़तरों से भरा काम है, नौकरी सुरक्षित भी नहीं है और सेवानिवृत्ति के बाद भी कोई सुरक्षा नहीं है। इतना ही नहीं स्थिति और बदतर होती जा रही हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए नाविकों ने कहा कि वे जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं उनमें से एक वेतन भी है। भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समुद्री श्रम समझौते से सहमत है और 29 फरवरी 2016 को प्रकाशित गजट एक्सट्राऑर्डिनरी की अधिसूचना में घोषणा किया है। अधिसूचना की धारा 9 (5) में स्पष्ट रूप से व्यक्त है कि 'कॉलेक्टिव बार्गेनिंग एग्रीमेंट या सीफेरर्स एम्प्लायमेंट एग्रीमेंट में मौजूद वेतन मैरिटाइम लेबर कॉन्वेंशन में समाहित दिशानिर्देश के अनुसार होगा।' 21 नवंबर 2016 को फॉरवर्ड सीमैन्स यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा प्रधानमंत्री को सौंपे गए एक ज्ञापन में नाविकों ने आग्रह किया था कि चूंकि आईएलओ के क़रार में $ 614 (लगभग 44,500) प्रति महीने के मूल वेतन की सिफारिश की गई है तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नाविक इस वेतन को प्राप्त कर सकें।

वर्तमान में नाविकों को अतिरिक्त भत्ते और पूर्व अनुग्रह राशि के साथ 7,000 रूपए ही मूल वेतन मिलते हैं जो भिन्न हो सकते हैं। ध्यान रहे कि जब कोई नाविक वापस घरेलू तट पर आता है तो वह छुट्टी पर चला जाता है और तब तक दोबार काम पर नहीं रखा जा सकता है जब तक पोत उद्योग ऐसा करने के लिए सहमत न हो।

इससे पहले सीमेन एम्प्लॉयमेंट ऑफिस होता था जिसमें रोटेशन द्वारा नाविकों को ड्यूटी देने वाला रोस्टर सिस्टम था। इसे 1994 में ख़त्म कर दिया गया और इसके बदले नाविकों को काम देने या न देने के लिए पोत के मालिकों को अधिकार दे दिया गया।

1990 के दशक में भी अन्य परिवर्तन भी देखे गए। इस दौरान पोत जानबूझकर अपनी ज़िम्मेदारी से सरकार द्वारा हाथ खींचने और परिवहन उद्योग में निजी कंपनियों की बढ़ोतरी देखी गई। सरकार द्वारा संचालित नाविक प्रशिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए और तब से 144 निजी संस्थान मशरूम की तरह पैदा हो गए और हर छह महीने में 10-15 हजार नए नाविकों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में प्रशिक्षण प्राप्त नए प्रशिक्षुओं की निजी पोत परिवहन उद्योग में नौकरी देने के लिए भर्ती और प्लेसमेंट एजेंसियों की तादाद लगभग 529 हो गई।

लेकिन निजी पोत कंपनियों के मामले में सरकार ने मानव शक्ति (सुमद्री सफर के दौरान प्रति पोत पर नाविकों की संख्या) को 60-70 से कम करके 8-12 प्रति पोत कर दिया। विडंबना यह है कि इसे 'सुरक्षित मानव शक्ति' का मानक कहा जाता था। इस परिवर्तन ने न केवल पोत पर प्रत्येक नाविक पर काम का बोझ बढ़ाया बल्कि इसने नए भर्तियों की मांग को भी कम कर दिया - ऐसे समय में जबकि हजारों नए प्रशिक्षित नाविक रोज़गार के लिए सड़कों पर भटक रहे हैं!

इसने पोत उद्योग में वेतन को नियंत्रित करने, काम का बोझ बढ़ाने में मदद किया है। न्यूज़क्लिक को नाविक उदाहरण देते हैं कि जिन नाविकों ने विरोध किया कंपनियां उन्हें निकाल दी।

एक और प्रमुख कारण यह है कि नाविक पेंशन सुविधा की कमी को लेकर बेहद नाराज़ और बेचैन हैं। प्रत्येक सेवानिवृत्त (और पंजीकृत) नाविक भारत के संपूर्ण संगठित क्षेत्र में शायद सबसे कम ही मासिक पेंशन पाते हैं। नाविकों का आरोप है कि विभिन्न कल्याणकारी निधियों में 5000 करोड़ रुपए हैं लेकिन दरिद्रता के कगार पर मौजूद सेवानिवृत्त नाविकों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। हालांकि भविष्य निधि सुविधा नाविकों (यद्यपि बहुत कम बुनियादी वेतन के आधार पर) के लिए उपलब्ध है, और जब वे काम पर तैनात होते हैं तो वे व्यक्तिगत बीमा द्वारा कवर किए जाते हैं, साथ ही परिवार के लिए चिकित्सा बीमा या कवरेज का कोई प्रावधान भी नहीं होता है।

इस तरह कई मायनों में नाविक संगठित क्षेत्र में मज़दूरों और कर्मचारियों के सबसे निचले स्तर पर हैं - वास्तव में उन्हें अनौपचारिक / असंगठित क्षेत्र का कर्मचारी कहना अधिक उपयुक्त होगा। यह सब 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद से हुआ है।

असहाय नाविक अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़ते आ रहे है - वे पत्र लिखते रहे, ज्ञापन भेजते रहे, पोत मालिक के कार्यालय या पोत मुख्यालय पर छोटा-मोटा प्रदर्शन भी करते रहे हैं। साल 2012 में उन्होंने पोत पर अचानक काम करना भी बंद कर दिया था। हाल ही में उनके यूनियनों ने राहत के लिए सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे हाई कोर्ट दोनों का दरवाज़ा खटखटाया है।

लेकिन निजी उद्योग बेहद ही शक्तिशाली है और सरकार कमज़ोर है। इसलिए संघर्ष होता है।


बाकी खबरें

  • उपेंद्र स्वामी
    अंतरिक्ष: हमारी पृथ्वी जितने बड़े टेलीस्कोप से खींची गई आकाशगंगा के ब्लैक होल की पहली तस्वीर
    13 May 2022
    दुनिया भर की: ब्लैक होल हमारे अंतरिक्ष के प्रमुख रहस्यों में से एक है। इन्हें समझना भी अंतरिक्ष के बड़े रोमांच में से एक है। इस अध्ययन के जरिये अंतरिक्ष की कई अबूझ पहेलियों को समझने में मदद
  • परमजीत सिंह जज
    त्रासदी और पाखंड के बीच फंसी पटियाला टकराव और बाद की घटनाएं
    13 May 2022
    मुख्यधारा के मीडिया, राजनीतिक दल और उसके नेताओं का यह भूल जाना कि सिख जनता ने आखिरकार पंजाब में आतंकवाद को खारिज कर दिया था, पंजाबियों के प्रति उनकी सरासर ज्यादती है। 
  • ज़ाहिद खान
    बादल सरकार : रंगमंच की तीसरी धारा के जनक
    13 May 2022
    बादल सरकार का थिएटर, सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का थिएटर है। प्रतिरोध की संस्कृति को ज़िंदा रखने में उनके थर्ड थिएटर ने अहम रोल अदा किया। सत्ता की संस्कृति के बरअक्स जन संस्कृति को स्थापित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    असम : विरोध के बीच हवाई अड्डे के निर्माण के लिए 3 मिलियन चाय के पौधे उखाड़ने का काम शुरू
    13 May 2022
    असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस साल फ़रवरी में कछार में दालू चाय बाग़ान के कुछ हिस्से का इस्तेमाल करके एक ग्रीनफ़ील्ड हवाई अड्डे के निर्माण की घोषणा की थी।
  • पीपल्स डिस्पैच
    इज़रायल को फिलिस्तीनी पत्रकारों और लोगों पर जानलेवा हमले बंद करने होंगे
    13 May 2022
    टेली एसयूआर और पान अफ्रीकन टीवी समेत 20 से ज़्यादा प्रगतिशील मीडिया संस्थानों ने वक्तव्य जारी कर फिलिस्तीनी पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की हत्या की निंदा की है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License