NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
निर्माण मज़दूर : शोषण-उत्पीड़न की अंतहीन कहानी
#श्रमिकहड़ताल : ट्रेड यूनियन का कहना है कि 1990 के दशक से जबसे नव उदारवाद की नीति आई तब से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है परन्तु पिछले चारसालों में जब से भाजपा की सरकर आई है, तब से इसमें और तेज़ी आई है।
मुकुंद झा
01 Jan 2019
#WorkersStrikeBack

यह कहना ग़लत न होगा कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था मज़दूरों की लूट और शोषण पर खड़ी है। मज़दूरों का ये शोषण आज़ादी के पहले से ही हो रहा है, उन्हें उम्मीद थी किशायद 1947 में देश की आज़ादी के साथ उन्हें भी शोषण से आज़ादी मिलेगी, लेकिन ऐसा हो न सका। मज़दूरों की स्थिति मे कोई सुधार नहीं आया, बल्कि दिन-प्रतिदिन स्थतिऔर ख़राब होती गई। लगातार मजदूरों के संघर्ष और कुर्बानियों के बाद मिले हक़ को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। ट्रेड यूनियन का कहना है कि 1990 के दशक सेजबसे नव उदारवाद की नीति आई तब से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है परन्तु पिछले चार सालों में जब से भाजपा की सरकर आई है, तब से इसमें और तेज़ी आई है।

एक मज़दूर अज़ीम एक निर्माण मजदूर थे, वो राज मिस्त्री का काम किया करते थे, इसी दौरान ठेकेदार की लापरवाही के कारण उन्हें बिजली से करंट लगा जिस कारणउनका हाथ पूरी तरह से बेकार हो गया और एक हाथ तो काट दिया गया। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि 2013 में उनके साथ ये हादसा हुआ जिसके बादउनके ठेकेदार ने उन्हें पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। अज़ीम ने कहा “ठेकेदार ने मेरी पत्नी को बुला दिया और उसे दस हज़ार रुपए देकर वो चला गया।उसके बाद उसने मुड़कर नही देखा कि हम किस हाल में हैं।”

उन्होंने बताया कि उनके दो बेटे जिनकी उम्र उस वक्त तकरीबन 13 और 11 वर्ष थी, वे तब क्रमश: कक्षा 8 और 6 में पढ़ रहे थे, लेकिन इस पूरे हादसे की वजह से हुईआर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई। कुछ समय तो हमने अपने जानने वालों से कर्ज लेकर गुजारा किया परन्तु अंत में मुश्किल बहुत बढ़ गई। तब हमारे दोनों बच्चों को पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ा। अभी उनका एक लड़का बैटरी रिक्शा चलता है तो दूसरा दर्जी का काम करता है।

ऐसी अनेक कहानियां आपको दिल्ली के निर्माण मजदूरों के बीच मिलेंगी और यह सब दिखता है जो शहर का निर्माण कर रहा है उनके खुद के परिवार बर्बाद हो रहे हैं।

दिल्ली के निर्माण मजदूर

 

दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक दस लाख निर्माण मजदूर कार्य करते हैं और अगर पूरे दिल्ली एनसीआर को देखे तो 12 से 14 लाख मजदूर इस क्षेत्र में काम करते हैं।लेकिन इनकी सबसे बड़ी समस्या है कि ये  क्षेत्र पूरी तरह से असंगठित हैं। दिल्ली में अधिकतर निर्माण मजदूर प्रवासी हैं। ये अधिकतर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से हैं। इनमें भी देखा गया है कि अधिकतर वो लोग होते हैं जो आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर हैं। उनके पास कोई जमीन नहीं होती है। इनमेंअनुसूचित जाति/जनजाति और अल्पसंख्यकों कि संख्या अधिक है।

ये भी पढ़े : दिल्ली में निर्माण मजदूर संकट में, मोदी और केजरीवाल दोनों सरकारें चुप

इन मजदूरों को औसतन 300 से 400 और एक मिस्त्री को 400 से 500 रुपये रोज़ाना मिलता है, वो भी 12 घंटे काम करने के बाद, जो बहुत ही कम है।

ऐसे ही निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों के एक समूह से जो आनंद विहार के क्षेत्र में काम करते हैं, से हमने बात की, तो उन्होंने बताया कि कैसे उनके ठेकेदार उनका शोषणकरते हैं। यहाँ तक कि उनके बैंक पास बुक और एटीएम भी ठेकेदार अपने पास ही रखते हैं।

ये सभी जहाँ काम करते हैं उसके एक हिस्से में खुद भी रहते हैं। वहीं इनका पूरा परिवार भी रहता है और जैसे ही काम खत्म होता है, उन्हें भी वह जगह छोड़ने पड़ती है इसीकारण उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी नहीं हो पाती।

दिल्ली में निर्माण मजदूरों को दो हिस्सों में देखना होगा इनमें एक एक वे हैं जो दिहाड़ी पर रोज़ाना काम करते हैं। देश के छोटे बड़े सभी शहरों में सुबह सुबह नाके/लेबर चौकपर सस्ते श्रम और श्रमिकों का बाजार लगता है। प्रतिदिन हजारों मज़दूर काम की तलाश में आते हैं जिनमें से कुछ लोगों को काम मिल पाता है और कुछ को नहीं मिलता है।

इन मज़दूरों का दूसरा हिस्सा वो है जो बड़ी बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनियों में काम करता है, जैसे मेट्रो, बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल, बड़ी बड़ी रिहायशी और सरकारी इमारतों का निर्माण। बढ़ते-विकास करते शहरों में ऐसे हज़ारों-लाखों की संख्या में मजदूर काम करते हैं। 

ये दोनों ही मजदूर वर्ग लगातार काम करते हुए देश के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भागीदारी करते हैं, लेकिन निर्माण मजदूर के न तो काम की और न ही जान की कोई सुरक्षा है। ये मज़दूर अपनी जान को खतरे में डालकर ऊँची इमारतों पर बिना किसी सुरक्षा उपकरण के कार्य करते हैं। इस दौरान कई बार हादसे होते हैं जिनमें मजदूरों कीमौत हो जाती है, कई बार गंभीर चोटें आती हैं, जिसके बाद मजदूर विकलांग तक हो जाता है लेकिन आपको हैरानी होगी कि कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतरमामलों में इन मजदूरों को किसी भी तरह की कोई भी मदद नियोक्ता द्वारा नहीं दी जाती है।

 

इसे भी पढ़ें : 8-9 जनवरी की श्रमिक हड़ताल को वाम दलों का सक्रिय समर्थन

इन क्षेत्र में मजदूरों के लिए सरकारों के पास भी किसी तरह की कोई नीति नहीं है, कि कैसे इनका उत्थान होगा, बल्कि सरकारों के लिए सबसे आसान निशाना यही होते हैं। जब-जब दिल्ली में हम टीवी पर देखते हैं कि दिल्ली शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है तब हमारी सरकार सबसे पहले दिल्ली में निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाती है, येबिना सोचे कि इन मजदूरों का क्या होगा। इनके घर का चूल्हा कैसे जलेगा।

राजधानी भवन निर्माण कामगार यूनियन के अध्यक्ष व सीटू के राज्य सचिव सिद्धेश्वर शुक्ला ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर अपनीविफलता को छिपाने के लिए निर्माण कार्यों पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है बिना किसी अध्ययन के, जबकि निर्माण कार्य में कई ऐसे काम भी होते हैं जिसमें कोई भीप्रदूषण नहीं होता है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था और अगर वो ये नहीं कर सकी तो उसे मजदूरों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। पहली मांगसरकार से ये है कि सरकार अगर कामबंदी करती है तो इसके बदले वो निर्माण भवन के ठेकेदारों को यह आदेश दे कि जब तक काम बंद रहता है तब तक वो अपने मजदूरों को मजदूरी का भुगतान करे। बिल्कुल उसी तरह जैसे अन्य कर्मचारियों को कामबंदी या छुट्टी के दौरान का भी वेतन दिया जाता है।

आगे वो कहते है अगर ये संभव नहीं है तो दिल्ली में निर्माण मजदूर कल्याण वेलफेयर बोर्ड है जिसके पास मजदूर के कल्याण के लिए एक मोटा बजट है। सरकार इस बोर्डको निर्देशित करे कि वो मजदूरों को जब तक दिल्ली में निर्माण कार्य बंद रहता है तब तक न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे। जो वो दे सकते हैं परन्तुसरकार की नीयत ठीक नहीं है, वो मजदूरों के हक़ के पैसों से अपनी वाहवाही कराना चाहती है, इनके पैसे से वो खेलकूद के मैदान बनाना चाहती है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि मजदूर कल्याण बोर्ड का बजट 29सौ करोड़ है। इसका अधिकतर खर्च विभागीय खर्च है जबकि वो मजदूरों के लिए है।

भवन निर्माण क्षेत्र में कार्य करने वाली यूनियनों का कहना था कि इन क्षेत्रों के मजदूरों को संगठित कर एक आंदोलन करना बहुत मुश्किल है, परन्तु सरकारों द्वारा लगातारकिये जा रहे हमलों के बाद चाहे वो नोटबंदी हो या फिर प्रदूषण के नाम पर कामबंदी, इसके बाद से मजदूर यूनियन के तहत संगठित हो रहे हैं और लड़ भी रहे हैं। कुछ माहपूर्व जब दिल्ली सरकार ने मज़दूर कल्याण बोर्ड के 14सौ करोड़ का प्रयोग अन्य योजनाओं में करने का फैसला लिया था तो मजदूरों के आंदोलन के बाद सरकार को अपने फैसले को वापस लेना पड़ा।

भवन निर्माण यूनियनों का कहना है कि दिल्ली के निर्माण मज़दूर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 8-9 जनवरी की देशव्यापी हड़ताल में शामिल होंगे और अपने हक़ केलिए लड़ेंगे।

 

ये भी पढ़ें : #श्रमिकहड़ताल : दिल्ली की स्टील रोलिंग इकाइयों में औद्योगिक श्रमिकों का जीवन

 

 

#WorkersStrikeBack
Workers Strike
workers protest
constructions workers
nirman mazdoor
labor welfare board
labor
BJP
minimum wage
Workers in Delhi’s
CITU

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License