NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
निर्माण मज़दूरों के अधिकारों की बात कब होगी?
इण्डिया स्पेंड की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ निर्माण के काम में लगे निर्माण मज़दूरों की भलाई (वेलफ़ेयर) के नाम पर 1996 से अब तक 36,685 करोड़ रुपये सरकार ने इकट्ठा किए। परन्तु पिछले 23 सालों में सिर्फ़ एक चौथाई(25.8%) ही ख़र्च किया गया यानी कुल 9,967.61 करोड़ रुपये।
मुकुंद झा
25 Apr 2019
निर्माण मज़दूरों के अधिकारों की बात कब होगी?
तस्वीर सौजन्य: बीबीसी

देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले निर्माण मज़दूरों को सभी सरकारों ने अनदेखा ही नहीं किया बल्कि उनके अधिकारों को भी मारा है। ये किसी एक राज्य या शहर की नहीं पूरे देश के निर्माण मज़दूरों की कहानी है। इण्डिया स्पेंड की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ निर्माण के काम में लगे निर्माण मज़दूरों की भलाई (वेलफ़ेयर) के नाम पर 1996 से अब तक 36,685 करोड़ रुपये सरकार ने इकट्ठा किए। परन्तु पिछले 23 सालों में सिर्फ़ एक चौथाई(25.8%) ही ख़र्च किया गया यानी कुल 9,967.61 करोड़ रुपये।

सवाल उठता है 28,755 करोड़ रुपये कहाँ हैं? कई बार सरकारों पर यह भी आरोप लगता है कि वो मज़दूरों के पैसों को, जो उनकी जीवन के बेहतरी के लिए ख़र्च किए जाने होते हैं, उन्हें ऐसी स्कीम के तहत ख़र्च किया जाता है, जिससे उनके जीवन में सार्थक सुधार तो नहीं आता लेकिन इससे सरकार अपना महिमामंडन ज़रूर करती है। इस तरह की शिकायत हरियाणा के मज़दूरों ने बताई थी जहाँ सरकार वेलफ़ेयर बोर्ड के पैसों से सिलाई मशीन बाँटती है।
इसके ज़रिये नौकरशाह इन पैसो का बंदरबाँट करते हैं। यह सिर्फ़ हरियाणा की ही कहानी नहीं है। यही हाल देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के तमाम राज्यों का है। मज़दूरों के साथ हो रहे इस अन्याय पर केंद्र सहित सभी राज्य सरकारें चुप रहती हैं।

निर्माण मज़दूर कौन हैं?

हमें ये समझना होगा कि निर्माण मज़दूर कौन होता है और ये अन्य मज़दूरों से कैसे भिन्न हैं? जो मज़दूर निर्माण कार्यों जैसे भवन बनाने व मरम्मत करने सड़क\पुल, रेलवे बिजली का उत्पादन, टावर्स बांध/नहर/जलाशय, खुदाई, जल पाइप लाइन बिछाने, केबल बिछाने जैसे कार्यों से जुड़े होते हैं जैसे राजमिस्त्री, बढ़ई, वेल्डर, पॉलिश मैन, क्रेन ड्राईवर, बेलदार व चौकीदार, ये सभी निर्माण मज़दूर कहलाते हैं।

1983 से  2011-12 तक देश लगभग 5 करोड़ निर्माण मज़दूर थे। भवन या अन्य निर्माण मज़दूरों व अन्य ट्रेड यूनियनों के एक लंबे संघर्ष के बाद इन कामगारों के काम के दौरान व परिवार की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संसद में 1996 में क़ानून बना 'निर्माण श्रमिक अधिनियम' जिसके तहत यह तय हुआ कि इन मज़दूरों के कल्याण के लिए एक बोर्ड का गठन किया जाएगा।

हालांकि, अधिनियमों के पारित होने के 23 साल बाद भी हालत में अधिक बेहतरी नहीं आई क्योंकि इसका कार्यान्वयन ही ख़राब है। स्थति इतनी बदतर है कि ज़्यादातर राज्यों ने 2011 के अंत तक कल्याण बोर्ड का गठन नहीं किया था, यहाँ तक देश कि राजधानी दिल्ली में भी इसका गठन वर्ष 2003 में हुआ था। लेकिन यह भी मज़दूर कल्याण का कम और भ्र्ष्टाचार का बोर्ड अधिक बन गया है। कंस्ट्रक्शन लेबर (एनसीसी-सीएल) पर केंद्रीय विधान मंडल के लिए राष्ट्रीय अभियान समिति द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने 2016-17 में सबसे अधिक निर्माण श्रमिक (एक करोड़ बीस लाख) दर्ज किया गया था।

मज़दूर कल्याण के नाम पर सरकार सेस लेती है, लेकिन मज़दूर को देती नहीं?

सरकार 1996 के मज़दूर कल्याण बोर्ड नियम के तहत, मज़दूरों के कल्याण के लिए फ़ंड इकट्ठा करते हैं। इसके लिए 10 या अधिक मज़दूरों वाले या 10 लाख रुपये से अधिक बजट वाले निर्माण प्रोजेक्टों पर 1 से 2% का सेस यानी टैक्स लगाया जाता है। इसके बाद इन से एकत्रित धन को राज्य सरकार के कल्याणकारी बोर्ड को उसके साथ रजिस्टर्ड मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए ख़र्च करना होता है। इस बोर्ड में 18 से 60 साल के जो मज़दूर बिल्डिंग या किसी निर्माण कार्य में मौजूदा साल में 90 दिनों तक काम करते रहते हैं, वे राज्य सरकार के कल्याणकारी बोर्ड से रजिस्टर हो सकते हैं।

इसके तहत मज़दूरों को विभिन्न सामाजिक और आर्थिक लाभ मिलते हैं जैसे पेंशन, दुर्घटना की स्थिति में मदद, घर के लिए लोन, शिक्षा, सामूहिक बीमा का प्रिमियम, इलाज का ख़र्च, शादी के लिए पैसे, मातृत्व लाभ और अन्य लाभ मिलते हैं।

प्रति मज़दूर किस राज्य ने कितना धन एकत्रित किया

राज्य सरकार का रवैया इस धन को एकत्रित करने में बहुत ही नकारात्मक रहा है क्योंकि वो जानती है कि इस धन का प्रयोग मज़दूर के लिए होना है। इंडियन एक्सक्लूज़न रिपोर्ट 2017 के मुताबिक़, गुजरात और महाराष्ट्र  ऐसे राज्य हैं, जहाँ पिछले काफ़ी समय से औद्योगिकरण बहुत अधिक हुआ है। लेकिन मज़दूरों के वेलफ़ेयर टैक्स इकट्ठा करने और इसे वितरित करने में इन दोनों राज्यों ने बहुत बुरा प्रदर्शन किया है।
 

नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिस्लेशन ऑफ़ कंस्ट्रक्शन लेबर के मुताबिक़, केवल चार राज्यों ने प्रति वर्ष प्रति मज़दूर 2000 रुपये इकठ्ठा किए जबकि 20 राज्यों ने 1000 रुपये से भी कम इकट्ठा किए।

राज्यों के द्वारा कोर्ट में दाख़िल हलफ़नामे के मुताबिक़,पिछले साल सबसे अधिक दमन एवं दीव 20,525 रुपये, सिक्किम 3,853 रुपये और छत्तीसगढ़ 3,157 रुपये प्रति वर्कर इकट्ठा हुए। पिछले साल सबसे कम फ़ंड इकट्ठा करने वालों में मणिपुर 14 रुपये, झारखंड 135 रुपये और तमिलनाडु 136 रुपये शामिल हैं।

धन का एक चौथाई हिस्सा ही ख़र्च हुआ

जबकि इस दौरान एकत्रित धन को वितरित करने में जुलाई, 2018 में संसद में प्रस्तुत श्रम समिति की 38वीं रिपोर्ट के अनुसार, 38,685,23 करोड़ रुपये में से कल्याणकारी सेस के रूप में केवल 9,967.61 करोड़ रुपये वास्तव में ख़र्च किए गए हैं। सभी योजनाओं के माध्यम से वितरित किए जाने वाले उपकर का राष्ट्रीय औसत प्रति वर्ष प्रति श्रमिक सिर्फ़ 499 रुपये है।

36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आधे से अधिक ने अपने एकत्रित धन का 25% से कम ख़र्च किया। केरल एकमात्र ऐसा राज्य था जिसने एकत्रित धन अधिक ख़र्च किया और गोवा के 90% से अधिक धनराशि ख़र्च की थी। मेघालय (2%), चंडीगढ़ (4.7%) और महाराष्ट्र (6.8%) के पास फ़ंड का सबसे कम ख़र्च किया था।

मज़दूरों को रजिस्टर करने में भारी दिक़्क़त ऑनलाइन सिस्टम से भी बढ़ी है

पूरे देश में मज़दूरों की एक शिकायत रहती है उन्हें वेलफ़ेयर बोर्ड के तहत रजिस्ट्रेशन करने में भरी दिक़्क़त का सामना करना पड़ता है। एक सच्चाई यह भी की वेलफ़ेयर बोर्ड भ्र्ष्टाचार का बड़ा अड्डा बन गया है। इंडिया स्पेंड की स्टोरी के मुताबिक़ गुजरात और महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्यों में भी अधिकांश बिल्डरों को इन क़ानूनों के बारे में पता नहीं है।

पिछले दिनों कई राज्यों ने मज़दूर वेलफ़ेयर बोर्ड की सुविधाएँ ऑनलाइन कर दीं जिससे मज़दूरों को और अधिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि अधिकतर मज़दूर पढ़े लिखे नहीं हैं, ऐसे में इन्हें सारी चीज़ें ऑनलाइन करना और मुश्किल हो गया था। इसको लेकर भवन निर्माण कामगार यूनियन की राज्य कमेटी ने हरियाणा के सभी ज़िला मुख्यालयों पर 21 फ़रवरी से धरना-प्रदर्शन किया था।

क्या सरकार मज़दूरों के कल्याण के फ़ंड को लूटना चाहती है?

वर्तमान मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने श्रम सुधार के नाम पर 2018 में सोशल सिक्युरिटी एंड वेलफ़ेयर बिल के तहत नए लेबर कोड्स प्रस्तावित किए हैं। जिसमें तक़रीबन 20 से अधिक श्रम क़ानूनों को एक करने की कोशिश की। जिसको लेकर मज़दूर संगठन ने कड़ा विरोध किया था, मज़दूर संगठनों का कहना था कि उन्होंने यह श्रम अधिकार अपने आंदोलन और क़ुरबानियों से हासिल किया है। इसे मोदी सरकार ख़त्म करना चाहती है।

हालांकि सरकार ने कल्याण के लिए वसूले जाने वाले टैक्स को जारी रखने का फ़ैसला किया है लेकिन असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी स्कीमों के लिए सिर्फ़ एक तंत्र बनाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो निर्माण मज़दूरों को कल्याणकारी स्कीम के तहत मिलने वाले लाभ प्राप्त करना और मुश्किल हो जाएगा।

निर्माण मज़दूर संगठनों का कहना है, "इससे निर्माण क्षेत्र में लगे करोड़ों मज़दूरों को मिलने वाली मदद छिन जाएगी, इसके साथ ही उन्होंने सरकार के न्याय पर भी सवाल उठाया और कहा कि सरकार इस बोर्ड के तहत एकत्रित धन को अपने क़ब्ज़े में लेना चाहती है, यह और कुछ नहीं सरकार द्वारा मज़दूरों के हज़ारों करोड़ फ़ंड को लूटने की एक साज़िश है।"

construction wokrers
Labour Laws
India Spend report
BJP
workers union
labour welfare board
government policies

Related Stories

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!

छत्तीसगढ़: भूपेश सरकार से नाराज़ विस्थापित किसानों का सत्याग्रह, कांग्रेस-भाजपा दोनों से नहीं मिला न्याय


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License