NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नोटबन्दी का फुस्स धमाका,सवाल दूसरे हैं और गहरे हैं
इस तबाही, विनाश और मौतों का जिम्मा भी कोई लेगा क्या ? या इसे भी एक जुमला - इस मर्तबा जानलेवा जुमला - करार दे दिया जाएगा। 
बादल सरोज
30 Aug 2018
RBI

कल रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की वार्षिक रिपोर्ट के बाद अंतत: देश ने  इत्मीनान की सांस ली कि भले पूरे पौने दो साल लगे, मगर आखिरकार वापस लौटे नोटों की गिनती पूरी हो गई । हालांकि रिपोर्ट से पहले ही रिज़र्व बैंक के सूत्रों से छनकर यह जानकारी बाहर आ चुकी थी - यह अलग बात है कि वास्तविक गिनती उस लीक सूचना से भी कहीं अधिक निकली । अब स्थिति यह है कि 8 नवम्बर 2016 को प्रतिबंधित किये गए 1000 और 500 के 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपयों के मूल्य वाले नोटों में से 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपयों की कीमत वाले नोट वापस बैंकों में आकर जमा हो चुके हैं । मतलब इन नोटों का 99.3 प्रतिशत साबुत सलामत लौट आया ।

काला धन दफनाने, आतंकवाद की कमर तोड़ने , नकली नोटों का प्रचलन रुक जाने, भ्रष्टाचार के निर्मूलन और 50 दिन में सफलता न दिखने पर फांसी पर लटका देने जैसे लोकप्रिय जुमलों को -एक के साथ एक मुश्किल फ्री मानकर- छोड़ भी दिया जाये तो भी यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है । इससे कुछ सवाल उठते हैं और ये सवाल गहरे हैं ।

जैसे, मुद्रा के प्रचलन के बाद से ही अर्थशास्त्रियों का अध्ययन इस बात पर एकमत है कि जितनी मुद्रा जारी होती है उसका 2.5 से 3.5 प्रतिशत व्यवहार के दौरान खराब हो जाता है । यहां इसका मतलब है कि वह वापसी योग्य नही रहता । इसी तरह भारत के हर तीसरे परिवार में हजार-पांच सौ के कुछ न कुछ नोट्स आज भी पड़े हुए हैं जिन्हें वे या तो समय पर लौटा नही पाये या उन्हें वे कपड़ों, किताबों, बक्सों में सफाई के दौरान तब मिले जब जमा कराने की अवधि बीत चुकी थी । (इन पंक्तियों के लेखक के विस्तारित परिवार में -अब तक- 25 हजार रुपये मूल्य के ऐसे नोट्स मिल चुके हैं। ) फिर प्रधानमंत्री ने जापान में दावा किया था कि उनके डर के मारे लोग नोटों को नदियों मे बहा रहे हैं, भट्टी में जला रहे हैं, लुगदी बना रहे हैं । इन सबको बहुत ही कम - कोई 2 प्रतिशत - मान लेते हैं । अब इनमे पड़ोसी देशों से छपकर आने वाले नकली  नोटों को भी जोड़ और उनकी तादाद उतनी -10 से 15 प्रतिशत- ही माने जितनी विपक्ष में रहते भाजपा सांसद लोकसभा राज्य सभा मे बताते रहे हैं तो कुल होते हैं 15 से 20 प्रतिशत । 

सवाल यह उठता है कि ये 15 - 20 प्रतिशत नोट कहां गए ? 
इसके दो ही जवाब हो सकते हैं एक : भारतीय जनता नोटों के रखरखाव में इतनी सजग हो गई है कि बाढ़ हो या आग खुद डूबे या जले नोट को सलामत रखती है और जो बचे पड़े हैं वे आंखों का भरम हैं । दो : यह वे नकली नोट हैं जिन्हे हमारी मेहरबान सरकार ने असली बना दिया । अगर ऐसा है तो इसे राष्ट्रद्रोही मूर्खत्व के सिवा और भला क्या कहा सकता है !!

दूसरा सवाल काले धन का है । प्रायः हरेक अनुमान के हिसाब से काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था आकार और परिमाण में वास्तविक अर्थव्यवस्था के लगभग बराबर होती है । चलिये मान लिया कि यह कुछ अतिरंजना है । मगर इतना तय है कि ये मात्र 0.7 प्रतिशत 10720 हजार करोड़ रूपये तो नही ही है । सवाल यह उठता है कि क्या यह सारी कवायद काले धन को सफेद करने के लिए ही तो नही थी । नोटबन्दी के बाद गुजरात की अमितशाह से जुड़ी कुछ सहकारी बैंकों और कुछ व्यक्तियों के हजारों हजार करोड़ रुपयों के पुराने के बदले नए नोटों के लेन देन की सार्वजनिक हुई जानकारी के बाद यह कयास सिर्फ आशंका भर नही रह जाता ।

एक और सवाल है और वह कि नकदी में कालेधन की जमाखोरी के लिए प्रचलन में अधिक मुद्रा और बड़े नोट जरूरी होते हैं । 1977 में हुई नोटबन्दी ने एक और दस हजार के नोट बन्द किये थे । फिर उतने बड़े छापे नही थे । नवम्बर 16 की नोटबन्दी के बाद 2000 के नोट जारी किए गए और कुल मुद्रा बढ़कर पहले से अधिक हो गई । यह किस तरह की आर्थिक बुध्दिमत्ता है ?

एक और इसी से जुड़ा जरूरी सवाल है और वह यह कि नोटबन्दी के बाद डिजिटल लेनदेन की मजबूरी का फायदा उठाकर पेटीएम, वीसा और मास्टर कार्ड जैसी विदेशी कम्पनियों ने कितने हजार करोड़ रुपये कमीशन में कमाये ? आखिर ये उनके बाबा जी की कमाई तो नही थी - भारत की जनता द्वारा हाड़तोड़ मेहनत से जुटाया गया धन था । इस सवाल की जवाबदेही सीधे उनकी बनती है जिन्होंने नोटबन्दी के अगले ही दिन चीन के धनकुबेर जैक मा की पेटीएम के विज्ञापन पर अपना फ़ोटो चिपकाया था ।

इन सवालों के जवाब जरूरी हैं क्योंकि इस नोटबन्दी के  तुगलकी फैसले ने भारतीय अर्थव्यवस्था को जो धक्का दिया था उससे वह 21 महीने बाद भी उबर नही पाई है । कोई 15 करोड़ दिहाड़ी मजदूर महीनों तक बेरोजगार रहे, कुछ लाख छोटे संस्थान , औद्योगिक तथा उत्पादन इकाइयां बन्द हो गईं जो फिर खुली ही नही , किसानों की दो फसलों को उनकी कीमत नही मिली । न जाने कितनी शादियों के कार्ड छपे रह गए । लाखों लोगों के - असल मे करोड़ों - मानव दिवस दो महीनों तक बैंक की लाइनों में खड़े खड़े खर्च हो गए जिनमे एक सौ से अधिक लोग मर भी गये ।

इस तबाही, विनाश और मौतों का जिम्मा भी कोई लेगा क्या ? या इसे भी एक जुमला - इस मर्तबा जानलेवा जुमला - करार दे दिया जाएगा। 

RBI
Modi government
notebandi
demonitisation
demonitisation a failure

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License