NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अफ्रीका
नवउपनिवेशवाद को हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका की याद सता रही है 
हिंद महासागर को स्वेज नहर से जोड़ने वाले रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण लाल सागर पर अपने नियंत्रण को स्थापित करने की अमेरिकी रणनीति की पृष्ठभूमि में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की अफ्रीकी यात्रा काफी अहम मानी जा रही है।
एम. के. भद्रकुमार
07 Jan 2022
Tigray
इथियोपियाई सैनिकों ने अमेरिका समर्थित टाइग्रे विद्रोहियों को काबू में कर लिया (फाइल फोटो)

चीनी विदेश मंत्रियों के द्वारा पारंपरिक रूप से नए वर्ष की शुरुआत को अफ्रीकी महाद्वीप के दौरे से चिह्नित किया जाता है। वांग यी के 2022 का अफ्रीकी दौरे की शुरुआत इरीट्रिया के साथ हुई है, जो कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लाल सागर पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में अमेरिकी रणनीति की पृष्ठभूमि के खिलाफ है, जो हिन्द महासागर को स्वेज नहर से जोड़ती है।

इरीट्रिया और चीन आपस में घनिष्ठ मित्र हैं। इरीट्रियाई मुक्ति आंदोलन का चीन 1970 के दशक से समर्थक रहा है। स्वतन्त्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले वयोवृद्ध क्रांतिकारी इरीट्रियाई राष्ट्रपति इसैअस अफेवेर्की ने चीन में रहकर सैन्य प्रशिक्षण हासिल किया था। अभी हाल ही में, इरीट्रिया उन 54 देशों में एक था जिसने अक्टूबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन की हांगकांग नीति को अपना समर्थन दिया था (जबकि प्रतिद्वंदी पश्चिमी खेमे से 39 ने इसके खिलाफ चिंता व्यक्त की थी)।

पिछले साल नवंबर में, इरीट्रिया ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल होने के लिए चीन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। पड़ोसी जिबोटी पहले से ही बीआरआई में एक प्रमुख भागीदार है। इसी प्रकार से लाल सागर की समुद्र तटीय क्षेत्र में सूडान भी इसमें शामिल है। 

इथियोपिया और इरीट्रिया के बीच का संबंध हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में क्षेत्रीय सामंजस्य बनाये रखने के लिए बेहद अहम है। यह एक संघर्ष-ग्रस्त अशांत संबंध रहा है, लेकिन चीन जिसका इथियोपिया के साथ भी घनिष्ठ संबंध है, वह इसमें सुलह हेतु मध्यस्थता कराने के लिए सही स्थिति में है।

एक आम राय यह भी है कि इथियोपियाई प्रधानमंत्री अबीय अहमद ने जिस प्रकार से अमेरिका समर्थित टाइग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) के साथ संघर्ष में आश्चर्यजनक जीत हासिल की उसे संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और ईरान द्वारा भेजे गए सशस्त्र ड्रोन की मदद से हासिल किया जा सका है। लेकिन यह भी सच है कि गृह युद्ध जमीन पर जीते जाते हैं। और टीपीएलएफ का मुकाबला करने के लिए इथियोपिया और इरीट्रिया के बीच की राजनीतिक-सैन्य धुरी एक निर्णायक कारक साबित हुई है। चीन ने अदीस अबाबा और अस्मारा के बीच में मेल-मिलाप को प्रोत्साहन दिया था।

प्रभावी तौर पर, दोनों नेतृत्त्व ने इस बात को समझ लिया है कि टीपीएलएफ को विफल बनाने में उनके हितों की अनुरूपता है जो कि उनके देशों को अस्थिर करने और सत्ता परिवर्तन के उत्प्रेरक के काम में लगा हुआ एक अमेरिकी एजेंट है। (इस विश्लेषण को काउंटरपंच में इथियोपिया कंफ्लिक्ट बाई यूएस डिजाईन वाले शीर्षक में पढ़ा जा सकता है।)

वाशिंगटन इस बात से बेतरह नाराज है कि जिबोटी में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और वह इस बात से खफ़ा है कि इसैअस अफेवेर्की के मार्क्सवादी शासन ने अमेरिका से अपनी दूरी बना रखी है।

द हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका का सामरिक महत्व बेहद अधिक है, और इथियोपिया इसके केंद्र में स्थित है। इथियोपिया को अस्थिर करने का मतलब है समूचे क्षेत्र को प्रभावित करना; एक तानाशाही विस्तारवादी स्वजातीय-श्रेष्ठता वाले शासन (टीपीएलऍफ़) को स्थापित करने; इस क्षेत्र के भीतर निर्मित हो रही आपसी समझदारी और सहयोग के वातावरण में बंटवारे के बीज बोना और जहर घोलना – यह सब एक नव-औपनिवेशिक एजेंडा है। 

केन्या के राष्ट्रपति उहुरू ने इथियोपियाई प्रधानमंत्री अबिय अहमद के उद्घाटन भाषण पर बोलते हुए कहा था, “इथियोपिया अफ्रीकी स्वतंत्रता की जननी है.... इस महाद्वीप में हम सभी के लिए, इथियोपिया हमारी माँ है...। जैसा कि हम सबको पता है, यदि माँ चैन से न हो तो परिवार में भी शांति नहीं हो सकती है।”

अमेरिका उत्तर-औपनिवेशिक अफ्रीका की माँ के गले की नसों की फिराक में है। इसी प्रकार का सादृश्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र को नियंत्रण में रखने के लिए भारत को अस्थिर करने में किया जा रहा होगा, फर्क सिर्फ इतना है कि इथियोपिया एकमात्र अफ्रीकी देश है जो कभी भी उपनिवेश नहीं रहा।

सभी महाद्वीप में अफगानों के बीच व्यापक विद्रोह इथियोपिया को अस्थिर करने के के लिए अपने टीपीएलएफ जैसे प्रॉक्सी का इस्तेमाल करने वाले अमेरिका के मामले में स्पष्ट है। उनकी सामूहिक पुकार है “अब और नहीं” – कोई और उपनिवेशवाद नहीं चाहिए, कोई और प्रतिबन्ध नहीं चाहिए, कोई और दुष्प्रचार नहीं चाहिए, सीएनएन, बीबीसी आदि से और अधिक झूठ नहीं चाहिए। यह पुकार इथियोपियाई, एरिट्रियाई, सूडानी, सोमाली, केन्याई और इथियोपिया के मित्र देशों के बीच में व्यापक तौर से प्रतिध्वनित हो रहा है।

विरोधाभास यह है कि इथियोपिया में आज कई दशकों तक टीपीएलएफ के तहत चली गुंडागर्दी, जिसे अमेरिकी समर्थन से 30 वर्षों से भी अधिक वर्षों तक लौह पंजे के साथ शासन किया गया था, आज वहां पर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार स्थापित है। टाइग्रे के लोग असल में इथियोपिया की कुल आबादी का मात्र 5% हिस्सा हैं, लेकिन वाशिंगटन के लिए इस प्रकार के विवरण कोई मायने नहीं रखते, जब तक कि अदीस अबाबा में सरकार उनके हुक्म का पालन करती रहती है।

इसमें एक धार्मिक उप-पाठ भी है। टाइग्रे के लोग ईसाई हैं जबकि इथियोपिया में सबसे बड़ा जातीय समूह ओरोमो का है, जो कि इथियोपिया और केन्या क्षेत्र के मूल निवासी हैं। वे एक कुशिटिक लोग हैं जिन्होंने कम से कम पहली सहस्राब्दी की शुरुआत में पूर्वी और पूर्वोत्तर अफ्रीका को अपना आवास स्थान बनाया था। ओरोमो लोगों का जबरन धार्मिक रूपांतरण के प्रतिरोध का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसे मुख्य रूप से यूरोपीय खोजकर्ताओं, कैथोलिक ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित किया गया था।

मोटे तौर पर कहें तो, प्रतिरोध की विचारधारा ओरोमो की सामूहिक स्मृति में पूरी तरह से रची-बसी हुई है। अबिय अहमद वे पहले जातीय ओरोमो हैं जो प्रधानमंत्री बने हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता अबिय अहमद एक असाधारण राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ दूरदर्शी और अपने देश की बहुल पहचान वाली राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध इंसान हैं।

भू-राजनीतिक दृष्टि में, इथियोपिया को अस्थिर करने में वाशिंगटन को कई फायदे नजर आ सकते हैं क्योंकि इससे बहु-रोगी क्षेत्रीय टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जैसा कि तब देखने को मिलता है जब बहु-जातीय राष्ट्रों की परत खुलती है -  जैसा कि पूर्व युगोस्लाविया या आज के भारत या रूस के संदर्भ में। और पड़ोसी देशों जैसे कि सूडान, इरीट्रिया, जिबोटी, सोमालिया और केन्या – और यहाँ तक कि मिश्र और फारस की खाड़ी के राज्यों को भी अंततः अनिवार्य तौर पर जातीय युद्धों खींच लिया जायेगा। 

वास्तविकता यह है कि यूएई, तुर्की और ईरान जो कि असंभव सहयोगी रहे हैं, आज इथियोपिया की संप्रभुता और राष्ट्रीय एकजुटता को बरकरार रखने के लिए अबिय के अंधाधुंध प्रयासों का समर्थन कर रहे हैं और एक और बार सत्ता पर कब्जा जमाने के अमेरिका समर्थित टीपीएलएफ के प्रयास को विफल बनाने के लिए उनके सैन्य अभियान को बढ़ावा देने में मदद कर रहे हैं।

इस मैट्रिक्स में, जहाँ अमेरिका का लक्ष्य रणनीतिक रूप से बेहद अहम हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका पर हावी होने का है, वहीँ “प्लान बी” में इस क्षेत्र में उथल-पुथल पैदा कर एक खेल बिगाड़ने वाली भूमिका अपनाई जा सकती है ताकि चीन को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़े। मुद्दा यह है कि पश्चिमी दुनिया के पास चीन के बीआरआई का कोई जवाब नहीं है। 

चीन और इथियोपिया के बीच में एक मजबूत राजनीतिक संबंध और गहरे आर्थिक रिश्ते हैं, और इथियोपिया अफ्रीकी महाद्वीप में चीन के शीर्ष पांच निवेश स्थलों में से एक है। निवेश के अलावा भी, ये संबंध व्यापार, बुनियादी ढांचे के वित्त और अन्य क्षेत्रों तक फैले हुए हैं। चीन के साथ आर्थिक जुड़ाव ने इथियोपिया को अनेकों अवसर प्रदान किये हैं।

मजेदार तथ्य यह है कि, बीआरआई के आगमन से पहले ही चीन इथियोपिया के बुनियादी ढाँचे का एक प्रमुख वित्तपोषक रहा था। विनिर्माण क्षेत्र में चीनी निवेश, संयोगवश मौजूदा समय में अबिय सरकार के केंद्र-बिंदु वाले क्षेत्रों में से एक है, और इसने देश के आर्थिक बदलाव और विविधिकरण एवं रोजगार सृजन में योगदान दिया है।

एक विख्यात लंदन आधारित ग्लोबल थिंक टैंक ओडीआई शीर्षक द बेल्ट एंड रोड एंड चायनीज इंटरप्राइजेज इन इथियोपिया की एक हालिया रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक चीन के बीआरआई से “बुनियादी ढाँचे के विकास, निवेश और रोजगार सृजन के माध्यम से नए विकास की राह खुलने की संभावना है... बीआरआई वृद्धि और विकास के लिए एक इंजन का काम कर सकता है। हालाँकि, यह एक दी हुई स्थिति नहीं है...”

अगस्त 2021 की इस ओडीआई रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में लिखा है, “चीनी निवेशक इथियोपिया में आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता को लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक अनिश्चितता का संबंध घरेलू संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता से है, जो न सिर्फ निवेशकों की लाभप्रदता को प्रभावित कर सकता है, बल्कि उनकी निजी सुरक्षा और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए भी जोखिमों को उत्पन्न कर सकता है। आर्थिक चुनौतियाँ का संबंध उच्च उत्पादन और परिवहन लागत एवं विदेशी मुद्रा को हासिल करने में होने वाली कठिनाइयों से संबंधित है, जो कि देश में लगभग सभी चीनी व्यसायों के लिए एक समस्या है। चीनी निवेशकों के द्वारा जिन चुनौतियों की पहचान की गई है वे चीन-इथियोपिया आर्थिक सहयोग के सतत विकास के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं।”

साफ़ शब्दों में कहें तो यदि इथियोपिया में तबाही की स्थिति उत्पन्न होती है, तो हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका के विशाल क्षेत्रों में चीन के बीआरआई का स्वचालित वाष्प इंजन यदि पटरी से न भी उतरा तो संभावित रूप से धीमा अवश्य किया जा सकता है। अमेरिका कम से कम इतना तो कर ही सकता है, जिसके समक्ष यह विकट संभावना मुहँ बाए खड़ी है कि बीआरआई का मुकाबला रने के लिए उसके पास अफ्रीकी देशों को देने के लिए कोई वैकल्पिक प्रस्ताव नहीं है। 

यदि बीआरआई वाष्प चालित इंजन बिना रुके इसी प्रकार से चलता रहा, तो 21वीं सदी में अफ्रीका में संपूर्ण पश्चिमी नव-औपनिवेशिक परियोजना के वजूद के लुप्तप्राय हो जाने का खतरा है। नव वर्ष की पूर्व संध्या पर बिडेन प्रशासन की घोषणा में यह अस्तित्ववादी गुस्सा दिखाता है कि अमेरिकी अफ्रीकी विकास एवं अवसर अधिनियम (एजीओए “उत्तरी इथियोपिया में व्यापक होते संघर्ष के बीच” के तहत अमेरिकी ड्यूटी-फ्री व्यापार कार्यक्रम तक इथियोपिया की पहुँच को समाप्त किया जाता है।

राष्ट्रपति बिडेन ने पहले ही नवंबर में धमकी दे दी थी कि टाइग्रे क्षेत्र में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन को देखते हुए इथियोपिया को एजीओए से हटा दिया जायेगा। 1 दिसंबर को वांग यी की इथियोपिया की संभावित कामकाजी यात्रा का पूर्वानुमान लगाते हुए बिडेन ने बेहद निराशा में यह बात कही थी! 

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजदूत रहे हैं। उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Neocolonialism Haunts Horn of Africa

Ethiopia
Neoliberalism
China
US in Africa
Eritrea
Belt and Road Initiative
US
US Neoliberalism

Related Stories

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

कांग्रेस का संकट लोगों से जुड़ाव का नुक़सान भर नहीं, संगठनात्मक भी है

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License