NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी युग की नई योग मुद्रा 
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2021 के अवसर पर, भारतीयों ने योग में नव-धर्मान्तरित लोगों का कहीं अधिक फोटो-खिंचाऊ दृश्य देखा, जबकि सरकर यह दिखावा करने की कोशिश में लगी रही कि बदतर तरीके से प्रबंधित महामारी से कोई मुश्किलें उत्पन्न नहीं हुई हैं।
स्मृति कोप्पिकर
24 Jun 2021
योग
चित्र साभार: पिक्साबे

मुंबई की यात्रियों से खचाखच भरी हुई उपनगरीय लोकल ट्रेनों में शास्त्रीय योग आसनों को कर पाना नामुमकिन है, क्योंकि इसके यात्रियों को कई अन्य प्रकार की शारीरिक ऐंठनों के बीच से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है। लेकिन अब इक्का-दुक्का लोगों से आबाद ट्रेनों में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 21 जून को आयोजित योग सत्र का यह आदर्श स्थल बन गईं थीं। लेकिन प्राचीन पारलौकिक स्व-अभ्यास का यह अपने-आप में कोई एकमात्र स्थल नहीं था। दिन भर सोशल मीडिया की टाइमलाइनों और व्हाट्सएप ग्रुपों पर तस्वीरें वायरल होती रहीं, जिनमें भारतीयों को विभिन्न यौगिक मुद्राओं में प्रदर्शित करने का क्रम बना हुआ था।

मुंबई के कान्हेरी में हेरिटेज बौद्ध गुफाओं से लेकर वाराणसी में गंगा के तट तक, जहाँ हाल के दिनों में कोरोना के शिकार शव तैरते पाए गए थे, से लेकर लद्दाख में पैंगोंग त्सो के उबड़-खाबड़ इलाके से नोयडा के गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज तक, जिसके कर्मचारियों ने पीपीई-फिट सूट में वृक्षासन या एक पैर पर खड़े होकर पेड़ वाली मुद्रा में हर कोई तल्लीन था। इससे भी कई और विचित्र दृश्य देखने को मिले जैसे कि अरुणाचल प्रदेश में लोहितपुर में घोड़ों के उपर योगाभ्यास करते भारत-तिब्बत सीमाकर्मियों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों का ऊँटों की पीठ पर योगिक मुद्राओं में बैठना, जो उनके मुद्रा में बैठे हुए थे, जो उनके पैरों के साथ बंधे हुए थे (यह असहाय ऊँटों के लिए किसी यातना की तरह है)।

योग, मानव शरीर और मस्तिष्क को स्व-अनुभूति के लिए प्रशिक्षित करने, विवेक और समता को विकसित करने और चेतना के एक उच्च स्वरुप तक पहुँचने के लिए भारत की प्राचीन विधा रही है, जिसे पूर्ण रूप से और वास्तविक तौर पर फोटो-खिंचाऊ अवसरों में तब्दील करके रख दिया गया है। इन तस्वीरों को देखकर निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिल बाग़-बाग़ हो गया होगा। क्या पता, उनके कार्यालय में हो सकता है कोई टीम भी हो, जो इन एक-दिवसीय-अद्भुत योग सत्रों पर नजर बनाए हुए हो और मालिक की सेवा में इनके विभिन्न फोल्डर्स तैयार करने में तल्लीन हो।

2014 में चुने जाने के फौरन बाद ही मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित करने के लिए राजी करा लिया था। पिछले सात वर्षों के दौरान हमने देखा है कि मोदी की गुड बुक्स में खुद को शामिल कराने की जोड़-तोड़ में शामिल लोगों का योग से कोई लेना-देना नहीं है। इस साल तो घोड़ों और ऊँटों तक को इसमें शामिल कर लिया गया था। मोदी हर चीज को एक तमाशे में तब्दील कर देने में सिद्धहस्त हैं। योग, एक विचारमग्न अभ्यास है, अब पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी है।

योग के व्यवसायीकरण के लिए एकमात्र मोदी को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए दशकों पीछे जाना होगा, जब पश्चिम के फूलों के बच्चों ने भारत, उसके साधुओं और योग की “खोज” की थी। हालाँकि, तब तक यह ग्रहणशील बना रहा। 1991 में भारत के उदारीकरण एवं वैश्वीकरण ने सभी गूढ़ या अनोखी चीजों के प्रति रूचि को उव्व स्तर पर पहुंचा दिया था। योग भी उनमें से एक था। योगा बुटीक और योगा स्पा की दीवानगी जितनी मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु के छोटे हिस्सों में देखी जा रही थी, उतना ही यह न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को मे लोकप्रिय हो गया था। योग के दर्शन को शारीरिक व्यायाम या आसनों तक सीमित कर दिया गया था, जिसे आगे चलकर पॉवर योगा, जैज योगा, हॉट योगा और इसी तरह के तोड़-मोड़ वाले फ्यूज़न संस्करणों में तब्दील कर दिया गया था।

वहीँ पुराने जमाने के योग स्कूलों में अपेक्षाकृत कम आकर्षक योग का चलन, चुपचाप जारी रहा, जैसा कि यह दसियों हजार भारतीयों को दशकों से पोषित एवं संवर्धित कर रहा था, जिनके लिए योग एक जीवन शैली थी। वे इस 2014 के बाद के कौतुक को समझ पाने में असमर्थ थे। वे मोदी के द्वारा व्यक्तिगत, ध्यानमग्न अभ्यास क्रियाओं को प्रदर्शनवाद और न्यूनतावाद में तब्दील कर दिए जाने से खफा थे। उन्हें पता है कि यह एक राजनीतिक चातुर्य है जिसने वैज्ञानिकों को पीपीई सूट और बीएसएफ के जवानों को लापरवाह ऊँटों पर फोटो-ऑप्स की खातिर आसन करने के लिए मजबूर कर दिया है। उनका कहना है कि यह योग नहीं है।

हालाँकि, मोदी की योग की सार्वजनिक वकालत कोई दीर्घ-कालीन और प्रतिबद्धता से भरे इरादे से नहीं है। योग उनकी राजनीति को चमकाने, उनकी सरकार के नैरेटिव प्रबंधन और आत्म-प्रचार के लिए एक वाहन के तौर पर है। पिछले सात वर्षों में एक भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ऐसा नहीं गुजरा होगा जिसमें मोदी की तस्वीरों या वीडियोज को प्रमुखता से प्रसारित न किया गया हो। अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में योग तक पहुँच को आसान बनाने के लिए 21 जून को जारी किये गए विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐप को संयोगवश एमयोगा कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में, मोदी ने कई नए “आसनों” को सामने लाने का काम किया है। पहला और सबसे आसान आसन, झूठासन को ही ले लीजिये। यह किसी की जीभ से निकलने वाले शब्दों को तोड़-मरोड़कर सच्चाई को विद्रूप बना देने का आह्वान करता है जिसका सत्य से कोई वास्ता न हो, ऐसे शब्द जिसमें सुननेवाले की मूल बुद्धि को आलस्य वाली स्थिति पहुंचा देने की आवश्यकता पडती है, ताकि हर बोला गया शब्द अंतिम सत्य जान पड़े। इसमें, किसी भी विषय पर झूठ बोलना संभव है - मोहनदास गाँधी इसमें मोहनलाल गाँधी बन जाते हैं, नोटबंदी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बेहतरीन कदम बन जाती है, लद्दाख में भूभाग को खोना चीन की कुटाई में तब्दील हो जाती है, भारत सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण पैदा कोविड-19 की विनाशकारी दूसरी लहर एक बेहद अच्छे ढंग से प्रबंधित महामारी साबित की जा सकती है, और टीकाकरण कार्यक्रम को सफल बताया जा सकता है।

झूठासन के कई रूप हैं जैसा कि मोदी के शासनकाल में एक त्वरित नजर में देखा जा सकता है। उदहारण के लिए सरकार के सालिसिटर जनरल ने तो इसका इस्तेमाल सर्वोच्च न्यायालय में यह तक कहने के लिए कर दिया था कि पिछले वर्ष सड़कों पर कोई प्रवासी श्रमिक नहीं पाया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस हफ्ते अपने बयान में कहा था कि मोदी ने “मुफ्त टीका प्रदान करने ऐतिहासिक फैसला लिया है ...” जबकि भारत का टीकाकरण कार्यक्रम कई दशकों से सार्वभौमिक और मुफ्त चलता चला आ रहा है।” इसलिए कह सकते हैं कि झूठासन एक उपयोगी कसरत है।

एक हगासन आसन भी है। यह एक पूरे शरीर का पोज है जिसमें अभ्यास करने वाले को खुद को बांके सजीले पोशाक में तैयार करना होता है और इसे सिर्फ बड़े लोगों या अन्य देशों के शासनाध्यक्षों की सोहबत में ही अभ्यास में लाना होता है। इसमें दोनों बाहों को चौड़ा करने, चेहरे पर चमकती मुस्कान, शांतचित्त ढंग से सकरात्मकता के साथ आगे बढ़कर गर्मजोशी के साथ दूसरे के पूरे शरीर को सामने से गले लगाना होता है। इसमें आधे-शरीर के साथ बगल से गले लगाने का भी प्रावधान है, लेकिन कैमरे कभी भी इन तस्वीरों को सही तरीके से कैद नहीं कर पाते हैं। मोदी ने सामने से हगासन क्रिया में लगभग पूर्ण दक्षता हासिल कर ली है, और इसकी सच्ची भावना को अंगीकार करते हुए उन्होंने इसे दुनिया के उच्च और शक्तिशाली लोगों के लिए सुरक्षित रख छोड़ा है, विशेष तौर पर पश्चिमी दुनिया या किसी अत्यधिक-धनी शेख की खातिर।

कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी भी हगासन का अभ्यास करते हैं, लेकिन उनके अभ्यास में एक फर्क है। उनके अभ्यास में, वे हर किसी को वो चाहे कॉलेज के विद्यार्थी हों से लेकर मछुआरों, बूढी महिलाओं से लेकर अपनी बहन प्रियंका तक को गले लगा लेते हैं। यह वह आलिंगन अभ्यास है जिसे औसत भारतीय अपने प्रियजनों के साथ साझा करता है, जो मोदी की तुलना में नीरस संस्करण है, लेकिन कहीं अधिक सच्चा है। जब राहुल गाँधी ने लोकसभा में मोदी पर हगासन का प्रयोग किया था, तो प्रधानमंत्री अवाक रह गए थे। संयोगवश, गाँधी परिवार के भाई-बहन बौद्ध ध्यान विपश्यना के लंबे समय से अभ्यासी रहे हैं, जिसे योग की तरह ही संवेदना और करुणा को पैदा करने के लिए जाना जाता है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि मोदी के योगाभ्यास ने अभी तक उनके भीतर संवेदना और करुणा का संचार किया है या नहीं।

फिर, मोदी ने क्लासिक क्रोनीयासन को एक बार फिर से पेश किया है। अपने पहले अवतार में, इसका अभ्यास गुप्त रूप से आंतरिक कक्षों में गोपनीय तरीके से किया जाता था। मोदी ने इसे एक खुले और निर्ल्लज अभ्यास के तौर पर विकसित कर दिया है। इसमें चुनिंदा अमीर उद्योगपतियों की पहचान करने का आह्वान किया जाता है जो आपको आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, आपकी खातिर अपने संसाधनों को झोंक सकते हैं और उर्जा विनिमय की सच्ची भावना को प्रदर्शित करते हुए, जो कि तत्वमीमांसा का अभिन्न हिस्सा है, आप सच्चाई और कानून को मोड़ देते हैं ताकि वे जमकर मुनाफा कमा सकें। सत्ता और लाभ पूरी तरह से तारतम्यता में आ जाते हैं, जैसा कि वे थे।

 क्रोनीयासन हर किसी के लिए नहीं है। आखिरकार, सत्ता और लाभ केवल दुर्लभ हलकों में ही आगे बढ़ते हैं।

इसके विपरीत जुमलासन सभी के लिए उपलब्ध है। यह अपेक्षाकृत एक आसान आसन भी है। इसके लिए सिर्फ एक लचीली और फिसलन भरी जबान की आवश्यकता होती है, जिससे झूठे वायदे किये जा सकें। इन वादों को कभी पूरा नहीं करने के लिए किया जाता है, इसलिए यदि कोई श्रोता इन पर भरोसा कर लेता है तो यह काफी बुरी बात है। मोदी और उनके कई मंत्रियों ने भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान जुमलासन में महारत हासिल कर ली है। हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपये डालने वाले जुमले से लेकर अर्थव्यवस्था से काले धन के खात्मे और पिछले वर्ष के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में फंसे प्रवासी मजदूरों की भलीभांति देखभाल करने वाले जुमलों को देखते और करते हुए भारत के लोग जुमलासन के अभ्यस्त हो चुके हैं। न्यू इंडिया में अब यह जीवन जीने की शैली बन चुका है।

किसी को भी यदि इन नए आसनों को लेकर किसी भी प्रकार का संदेह है कि इनसे अभ्यासकर्ता को लाभ नहीं पहुंचेगा तो वे एक बार मोदी जी पर भलीभांति निगाह डाल लें, जो पिछले कुछ महीनों में लगातार एक डिजाइनर सन्यासी की तरह नजर आने लगे हैं। आखिरकार, एमयोग संभवतः असंगत नाम नहीं था।

लेखिका मुंबई की एक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं एवं राजनीति, शहरों, मीडिया और लैंगिक विषयों पर लिखती हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

New Yoga Poses for the Age of Modi

yoga
Narendra modi
International Yoga Day
COVID
Photo-Ops
new india

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License