सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सावंत ने तीस्ता सीतलवाड़ से बात करते हुए इस बात पर अपने विचार रखे कि न्यायपालिका को किस तरह धर्मनिर्पेक्ष, लोकतांत्रिक एवं नैतिक होना चाहिए। धर्मनिर्पेक्षता के मुद्दे पर जस्टिस सावंत ने कहा कि इसे संशोधन के जरिये संविधान के भूमिका में लाया गया था और अगर धर्मनिर्पेक्षता के प्रावधान को बदलने की कोशिश की गई तो इसका जोरदार विरोध किया जायेगा। जस्टिस सावंत के अनुसार हर धर्म में यह क्षमता होती है कि वह समाज और कानून, दोनों को प्रभावित कर सके। पर सत्ता में बैठे हुए लोगो को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे उस संविधान और धर्मनिर्पेक्ष देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जहाँ विविधता के बावजूद सभी को समान अधिकार हैं। उनके अनुसार संविधान के मूल ढांचे को बदलने की कोशिश की जा रही है।
