NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
ग्रामीण भारत में कोरोना-32: आंध्र प्रदेश के गांव में लॉकडाउन से पड़ता प्रभाव
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि जब लॉकडाउन खुलेगा तो कितनी औद्योगिक ईकाइयाँ फिर से खुल सकेंगी, इसके साथ ही जो लोग कारखानों में कार्यरत थे वे लोग अपनी नौकरी से हाथ धोने की चिंता में घुले जा रहे हैं।
कार्तिक चंद्रन पिल्लई
08 May 2020
ग्रामीण भारत
लॉकडाउन के दौरान गांव में शाम के समय का दृश्य; एक उत्तरदाता द्वारा अपने घर की छत से खींची गई तस्वीर।

यह उस श्रृंखला की 32वीं रिपोर्ट है जो ग्रामीण भारत के जीवन पर कोरोना वायरस से संबंधित नीतियों के प्रभावों की झलकियाँ प्रस्तुत करती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी इस श्रृंखला में विभिन्न विद्वानों की रिपोर्टों को शामिल किया गया है, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में गाँवों के अध्ययन को संचालित कर कर रहे हैं। यह रिपोर्ट गांव के कई उत्तरदाताओं के साथ लिए गए साक्षात्कारों पर आधारित है जिसमें एक महिला फैक्ट्री कर्मचारी, एक मिड-डे मील कर्मी, छोटे पैमाने पर खेतीबाड़ी करने वाले एक किसान, एक बड़ी जोत में खेतीबाड़ी कर रहे किसान और मुर्गीपालन व्यवसाय से जुड़े एक किसान को शामिल किया गया है। टेलीफोन के जरिये आयोजित किये गये इस इंटरव्यू को 15 अप्रैल से लेकर 18 अप्रैल 2020 के बीच आयोजित किया गया था।

मैत्तावलासा आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में विजयनगरम शहर के उत्तर में लगभग 57 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक गांव है। यहाँ से निकटतम कस्बा बोब्बिली पड़ता है, जो यहाँ से लगभग चार किमी की दूरी पर है।

2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की कुल जनसंख्या 3,748 की थी, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कहीं अधिक थी। उत्तरदाताओं की और से सूचित किया गया कि इस गांव में करीब 80% लोग पिछड़े वर्ग (बीसी) जिनमें कप्पू, यादव, कोप्पलावेलाम्लू, तेलगा, कुराक्कालू, पद्मासली और सेट्टीबल्जीलू समुदायों से आते हैं। इन समुदायों के पास गांव की कुल जमीन में से लगभग 70% हिस्से का मालिकाना है। कर्नालू, ब्राह्मण और कोमत्लू जैसी जातियाँ सामान्य वर्ग से सम्बद्ध हैं, और वे गांव की कुल आबादी के करीब 15% हैं और इनके हिस्से में कुल 5% जमीन है। बाकी के बचे 5% आबादी में माला और मदिका जैसी जातियां जहाँ अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में आती हैं वहीँ कोनियाडोरलू और रेलीवालु जातियाँ अनुसूचित जनजाति (एसटी) से सम्बद्ध हैं। इन परिवारों के पास ज्यादातर सरकारी डी-फॉर्म पट्टे वाली जमीनें हैं, जो गांव की कुल भूमि क्षेत्र के शेष 20% हिस्से के बराबर है। इसके आलावा 500 की संख्या में भूमिहीन परिवार ऐसे हैं जो या तो खेतिहर मजदूर हैं या कारखानों में कार्यरत मजदूर हैं।

खरीफ के मौसम में मैत्तावलासा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें धान, गन्ना, मक्का और कपास की हैं और रबी के सीजन के दौरान यहाँ पर धान और सब्जियों की खेती की जाती है। यह गांव आंध्र प्रदेश औद्योगिक विकास क्षेत्र के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र के समीप में स्थित है, जिसे स्थानीय तौर पर ’ग्रोथ सेंटर’ के रूप में जाना जाता है और जिसमें 30 से 40 के बीच औद्योगिक इकाइयाँ चल रही हैं। इन औद्योगिक इकाइयों में गांव के कई श्रमिक कार्यरत हैं।

मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से ही गांव के पास के औद्योगिक इलाके में जो भी कल-कारखाने चल रहे थे, उन्हें बंद कर दिया गया था। वहीँ दूसरी और खेतीबाड़ी का काम-काज भले ही पहले की तरह सुचारू रूप से न चल रहा हो लेकिन छोटे पैमाने पर इसमें काम-धाम बदस्तूर जारी है। गांव में किसानों ने लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही पिछले सीजन की कटाई का काम पूरा कर लिया था लेकिन उनमें से अधिकांश लोगों को अपनी फसल घर पर ही स्टोर करके रखनी पड़ी है। कई किसानों के पास अपने खुद के ट्रैक्टर होने के बावजूद भी वे इस हालत में नहीं थे कि अपनी उपज को बाजार ले जा सकें।

उत्तरदाताओं ने इस ओर भी इशारा किया कि कई किसान पहले से ही भांप चुके थे कि इस बार सरकारी बीज की आपूर्ति में देरी हो सकती है, इसलिए उन्होंने अन्य किसानों से बीज की खरीद कर ली थी या पिछले सीजन के बचाए हुए बीजों को इस्तेमाल में ला रहे हैं। वहीँ जब भी कोई काम होता है, स्थानीय खेत मजदूर उस काम को करने के लिए मौजूद रहते हैं, इसलिए हाल-फिलहाल मजदूरों की कोई कमी नहीं है। सिंचाई के लिए भी पानी यहाँ पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है क्योंकि गांव में तालाबों और बोरवेल के जरिये पानी की पर्याप्त आपूर्ति हो रही है। हरे चारे और मक्के जैसी फसलों से निकलने वाले फसल अवशेषों को पशुओं के चारे के रूप में उपयोग में लाया जाता है, लेकिन राइस ब्रान जैसे अन्य पशु आहार यहाँ पर उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि चावल मिलें बंद हैं। दुग्ध खरीद केन्द्रों से हर 15 दिनों में एक बार प्रत्येक किसान को एक बैग पशु आहार की आपूर्ति की जा रही है।

सबसे नजदीकी बाजार यहाँ का बोब्बिली है और इस लॉकडाउन के दौर में यह रोजाना सुबह 6 से लेकर 11 बजे तक खुला रहता है। हालांकि जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि कुछ किसान अपनी उपज को इस बाजार तक ले जा पाने में असमर्थ हैं, इसलिए स्थानीय स्तर वे अपनी उपज को सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर हैं। यहाँ तक कि एक किसान के बारे में मालूम चला कि वो अपने केले की फसल मुफ्त में बाँट रहा था। सरकार की और से धान की खरीद ग्रेड 1 के लिए 18.30 रुपये प्रति किलोग्राम और ग्रेड 2 के लिए 18.15 रुपये प्रति किलो निर्धारित की गई है। मुर्गियों की कीमतों में भी भारी गिरावट देखने को मिली है, खासकर ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में। अब चिकन 70 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रहा है, जबकि आम तौर पर ये 100-150 रूपये प्रति किलो की दर पर बिकता था। हालाँकि देशी मुर्गे की कीमत में कोई फर्क देखने को नहीं मिला है और उसकी बिक्री पहले की ही तरह 350 रुपये प्रति किलोग्राम पर की जा रही है। अब चूँकि बाहर से कोई चिकन का खरीदार नहीं आ पा रहा है इसलिए इसकी बिक्री घट गई है और पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े किसानों को इसे गांव के भीतर ही बेचना पड़ रहा है।

गांव में खेत मजदूरी की दर आमतौर पर महिलाओं के लिए 100 से 150 रुपये और पुरुषों के लिए 200 से 250 रुपये प्रतिदिन की तय है। वहीँ कारखानों में काम कर रहे श्रमिकों के लिए औसतन दैनिक मजदूरी की दर जहाँ अर्ध-कुशल और कुशल प्रवासी श्रमिकों के लिए 300 से 600 रुपये तय है वहीँ अकुशल स्थानीय श्रमिकों के लिए यह 300 से 350 रुपये रोजाना की है। प्रवासी श्रमिकों को भुगतान आम तौर पर महीने में एक बार, जिस प्रकार के कामों में वे लगे हैं और जिन कारखानों में कार्यरत हैं उसके हिसाब से किया जाता है। इसलिये जबसे लॉकडाउन की शुरुआत हुई है, उसके बाद से अधिकांश फैक्ट्री श्रमिकों को कोई भी भुगतान नहीं मिल सका है, और चेन्नई, विजयवाड़ा और उड़ीसा से आये कई प्रवासी श्रमिक (मेरे उत्तरदाताओं के अनुसार करीब 200 से 250 श्रमिक) यहां फँसे पड़े हैं। इनमें से अधिकांश मजदूर तो उन्हीं स्थानों में रह रहे हैं जहाँ पर इन्हें इनके फैक्ट्री मालिकों ने व्यवस्था करके रखा है, जबकि कुछ लोग ग्रोथ सेंटर के आस-पास के अपने किराए के घरों में रह रहे हैं। गांवों के आस-पास चल रहे सभी खनन कार्यों सहित सभी औद्योगिक कार्यकलापों पर रोक लगा दी गई है, जिसके चलते काफी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं।

3_16.JPG

गांव के अंदरूनी हिस्सों को जाती एक सडक; कुछ गांव वालों को अपने घरों के सामने बैठे हुए देख सकते हैं

लॉकडाउन के दौरान मनरेगा का काम भी बंद पड़ा है। गांव में जो लोग शारीरिक तौर पर अपंग हैं उन्हें मनरेगा के तहत रोजगार में प्राथमिकता दी जाती है, और 13 अप्रैल से इसका काम शुरू होना था, लेकिन इसे फ़िलहाल स्थगित कर दिया गया था। एक उत्तरदाता से पता चला है कि जिन श्रमिकों ने जनवरी-फरवरी माह के दौरान इस स्कीम में काम किया था, उनमें से अधिकांश को इसका भुगतान मिल चुका है।

डीजल पेट्रोल पंप चालू हैं, और खेतीबाड़ी में काम आने वाले ट्रैक्टर और अन्य वाहनों के लिए तेल की आपूर्ति बनी हुई है। बैंक एवं एटीएम सुविधाएं भी पास के बोब्बिली में उपलब्ध हैं। एक उत्तरदाता ने सूचित किया है कि हालाँकि नकदी की आपूर्ति में कमी बनी हुई है लेकिन अधिकतर विक्रेता मोबाइल वॉलेट और यूपीआई भुगतान को लेने से इंकार नहीं कर रहे हैं। लेकिन यदि लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाता है तो जिन लोगों के हाथों में पैसे कम रह गए हैं उनके लिए मुसीबत बढ़ने वाली है। गांव में 150 से 200 तक की संख्या में गाय पाली जा रही हैं। इस लॉकडाउन के दौरान भी कासिपेट स्थित डेयरी प्लांट द्वारा दूध की खरीद का काम जारी रहा है। लॉकडाउन के दौरान दूध की कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि देखने को मिली है। पहले जहाँ दाम  35 रुपये प्रति लीटर था, अब 40 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है [किसान जहाँ पहले 25-30 रुपये प्रति लीटर दूध बेचते थे, लेकिन अब 30-35 रुपये प्रति लीटर के भाव में बेच रहे हैं]। वहीँ स्थानीय दुकानों में चावल और दाल जैसी वस्तुओं की कीमतें सामान्य बनी हुई हैं।

गांव के भीतर सब्जियों की कोई कमी नहीं है क्योंकि वे स्थानीय स्तर पर ही उगाई जाती हैं और लॉकडाउन शुरू होने से ठीक पहले ही फसल काटी गई थी। हालाँकि स्थानीय पुलिस की और से कीमतों पर नजर रखी जा रही है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि कीमतों में बढ़ोतरी और जमाखोरी न हो, लेकिन इसके बावजूद स्थानीय बाजार में सब्जियों और फलों के दामों में असर पड़ा है। एक ओर जहाँ गांव में पैदा होने वाली सभी सब्जियों जिनमें बैंगन, भिंडी, प्याज और केला शामिल हैं, की कीमतें गांव के भीतर अतिरिक्त आपूर्ति के चलते गिर गई हैं, लेकिन वहीँ दूसरी ओर गांव के बाहर से आने वाली फल और सब्जियों के दामों में तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है (तालिका 1)।

मेत्तावलासा गांव में फल और सब्जियों के दाम

2_27.JPG

लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में वालंटियरों के जरिये मध्यान्ह भोजन को तैयार और वितरित किया जाता रहा था। लेकिन बाद के दिनों में इसे बंद कर दिया गया था, और इसके बजाय अब इस योजना के तहत 430 लाभार्थियों को चावल और अंडे जैसे कच्चे पदार्थों की आपूर्ति की जा रही है। आशा कार्यकर्ताएं भी नियमित तौर पर सभी घरों में जा-जाकर लोगों की जांच कर रही हैं और साफ़-सफाई और पोषक तत्वों के बारे में जागरूकता पैदा कर रही हैं। जो वालंटियर ग्राम सचिवालय से जुड़कर काम कर रहे हैं, वे अपने काम में जुटे हैं। एक सहायक नर्स दाई (एएनएम) को आपातकालीन चिकित्सा की स्थिति में देखभाल के लिए नियुक्त किया गया है। उत्तरदाताओं के अनुसार राज्य सरकार की और से प्रत्येक परिवार को 1,000 रुपये की आर्थिक सहायता मिल चुकी है, जबकि जन धन खाता धारकों को केंद्र सरकार की ओर से उनके खातों में 500 रुपये प्राप्त हुए हैं। वालंटियरों द्वारा चलाई जा रही सामुदायिक रसोई से जो प्रवासी मजदूर फँसे हुए हैं, उन्हें दिन में दो बार भोजन मुहैय्या कराया जा रहा है। इसके अलावा सत्य साईं सेवा समिति नाम के एक छोटे से संगठन की और से गांव के कई परिवारों में मास्क की आपूर्ति की गई है। कुछ उत्तरदाताओं ने सूचना दी है कि चूंकि शराब की दुकानें बंद पड़ी हैं, इसलिए गांव में बाहर से अवैध शराब की आपूर्ति होने लगी थी और इस सिलसिले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

वर्तमान में भले ही गांव में भोजन एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त भंडार बना हुआ है लेकिन गांव वालों के पास नकदी तेजी से खत्म होती जा रही है। अभी तक यह साफ़ नहीं हो पा रहा है कि एक बार जब लॉकडाउन हट जाएगा तो आस-पास की कितनी औद्योगिक इकाइयाँ फिर से शुरू हो पायेंगी और कारखानों में जो लोग कार्यरत थे उनमें से कई लोग अपनी नौकरी जाने को लेकर बेहद चिंता में हैं। वहीँ किसान इस बात को लेकर चिंताग्रस्त हैं कि यदि ट्रांसपोर्ट और बाजार के कार्यकलापों पर लगी रोक जल्द नहीं हटाई जाती तो वे अपनी फसल समय पर नहीं बेच पाएंगे। अभी तक विजयनगरम जिले में कोरोना वायरस से जुड़ा कोई मामला निकलकर सामने नहीं आया है, जिसे एक सकारात्मक निशानी के तौर पर गांव वाले इस बात की बाट जोह रहे हैं कि जल्द से जल्द उनके लिए लॉकडाउन को खोल दिया जाए।

1_28.JPG

छत से गांव का एक और नज़ारा।

(इस लेख के लेखक रायथू साधिकार संस्था (RySS) आंध्रप्रदेश सरकार के स्वामित्व वाली प्राकृतिक खेती से जुड़ी अलाभकारी संगठन से जुड़े एक युवा प्रोफेशनल हैं। सभी तस्वीरें मैत्तावलसा में एक किसान और मध्यान्ह भोजन कर्मी के रूप में कार्यरत लक्ष्मी और इस रिपोर्ट के लिए उत्तरदाताओं में से एक द्वारा मुहैय्या कराई गई हैं।)

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

COVID-19 in Rural India-XXXII: Impact of Lockdown on Mettavalasa Village in Andhra Pradesh

COVID-19 in Rural India
Mettavalasa village
Andhra pradesh
novel coronavirus
Vizianagaram district
Society for Social and Economic Research

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 58,077 नए मामले, 657 मरीज़ों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटे में 13,451 नए मामले, 585 मरीज़ों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 34,457 नए मामले, 375 मरीज़ों की मौत

कोविड-19: आईएमए ने केंद्र द्वारा आयुष उपचार को बढ़ावा देने पर उठाए सवाल

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटो में आए कोरोना के रिकॉर्ड 97 हज़ार से ज़्यादा नए मामले

उत्तराखंड: सरकारी अस्पताल से कोरोना-मुक्त होने के ‘फ़र्ज़ी’ प्रमाणपत्र जारी

ग्रामीण भारत में कोरोना-41: डूबते दामों से पश्चिम बंगाल के खौचंदपारा में किसानों की बर्बादी का सिलसिला जारी !

कोविड-19 के बाद के दौर पर चीन के बीआरआई की नज़र 

ग्रामीण भारत में कोरोना-40: बिहार के भर्री गाँव में श्रम-शक्ति पर पड़ रहे असर को लेकर एक अपडेट

कोविड-19 पालीगंज मामला: मृतक दूल्हे के पिता के ख़िलाफ़ मामला दर्ज


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License