NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
स्कॉटिश जनमत संग्रह: एक अनिच्छुक राष्ट्रवादी का चिंतन
फिंटन ओ टूल
20 Sep 2014

मतदाताओं ने पहले से ही एक संदेश भेजा दिया है: कि मजबूत कुलीनतंत्र और कमजोर लोकतंत्र का वर्तमान राजनीतिक समाधान बर्दाश्त नहीं  किया जायेगा।

मैंने कभी नहीं सोचा था कि में राष्ट्रवाद के बचाव में खड़ा रहूँगा। राजनितिक विचारधारा के नाते, एक आयरिश बदमाश अंग्रेजी संत के मुकाबले मेरे ज्यादा करीब होना चाहिए, का प्रस्ताव थोड़ा कम आकर्षित लगता है। लेकिन अगर मुझे स्कॉटलैंड में स्वतंत्रता के लिए नागरिक और नागरिक आंदोलन के बीच चुनाव करना होता और ब्रिटिश और अंतरराष्ट्रीय कुलीन जो मात्र एटाविज्म के रूप में इसका उपहास उड़ाते हैं, में जानता हूँ मुझे किस तरफ खड़ा होना चाहिए। राष्ट्रवाद के खिलाफ बहुत सी बातें कह सकते हैं लेकिन तकनीकतंत्र वादी कुलीन लोग जो यूरोप पर हावी हैं वे इस हालत में नहीं हैं।

क्या हमने पिछले छह वर्षों में यूरोपीय संघ में राष्ट्रवाद के सबसे चरम संस्करण को देखा है? यह यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा प्रख्यापित संस्करण है। यूरोप ने व्यापक बैंकिंग संकट का जो  सामना किया, उसे काफी हद तक यूरोपीय संघ द्वारा पैदा किया गया है (पूँजी के मुक्त आवगमन केलिए बहुत खराब ढंग से यूरो को बनाना शमिल है), यूरोपीय अभिजात वर्ग ने बहुत जल्दी राष्ट्रवाद की केन्द्रीयता कोपुनः खोज कर उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया।

राजा के स्कॉट्स रॉबर्ट ब्रूस सोसायटी के सदस्य, वे स्कॉटलैंड के झंडे को थामे हुए लोच लोमोंड  में स्कॉटिश स्वतंत्रता जनमत संग्रह के लिए में वोट करने के लिए तैयार हैं। “ स्कॉट ने पहले से ही सन्देश दे दिया है : कि मजबूत कुलीनतंत्र और कमजोर लोकतंत्र का वर्तमान राजनीतिक समाधान बर्दाश्त नहीं है।”(चित्र: जेफ्फ जे मिचेल)

अचानक, यूरोपीय नीतियों के परिणाम स्वरुप ही राष्ट्र, राज्यों और उनके नागरिकों की जिम्मेदारी था। एंग्लो आयरिश बैंक या एलाइड आयरिश बैंक का कोई वजूद नहीं था क्योंकि वे प्रभावी रूप से, यूरोपीयन बैंक ही बन गए थे – जबकि वे शत-प्रतिशत आयरिश थे। तो - वास्तव में क्या हुआ - एक ब्रिटिश संपत्ति कंपनी, जिसने एंग्लो आयरिश बैंक से उधार लिया था बर्बाद हो गयी, जिसने कि इसके एवज में जर्मनी के लैंड्स बैंक से उधार लिया था, जो उसे भुगतान करना था? इसमें  आयरिश नागरिकों की इस सौदे में कोई भूमिका नहीं थी। क्यों? क्योंकि एंग्लो एक आयरिश बैंक था और आयरिश होना एक केंद्रीय सिद्धांत था जिसने सबको मात दे दी।

पिछले छह वर्षों में बहुत से यूरोपीय नागरिकों का यह एक अनुभव रहा है। सबसे दर्दनाक बात जो पता चली कि हम उन संस्थानों के लिए जवाबदेह थे जिनकी हमारे प्रति कोई जवाबदेही नहीं थी। हमें हमारी ही राष्ट्रीयता के आधार पर दोषी ठहराया गया और तदनुसार दंडित किया गया। बड़ा पाखंड है: राष्ट्रवाद मूर्खतापूर्ण और तर्कहीन कालभ्रम है जब तक कि कुलीन वर्ग यह सूट नहीं करता कि राष्ट्रवाद एक मौलिक और अटल सिद्धांत है।

अगर ये कुलीन यूरोपीय पहचान को एक शक्तिशाली पूर्व- राष्ट्रीय स्थापित करना चाहते हैं तो उनके सामने इस बात के महान अवसर है कि वे बैंकिंग संकट को एक साझा यूरोपीय जिम्मेदारी बना दे। इसके बजाय वे सख्ती से इसे राष्ट्रीय आपदाओं की एक श्रृंखला के रूप में परिभाषित करते रहे,  जिसे की सृजित किया गया था- और यूनानी, आयरिश, पुर्तगाली और स्पेनिश नेशनल पात्रों में यह कमजोरी थी जो इसमें निहित थी।

लेकिन निश्चित रूप से राष्ट्रवाद तर्कहीन है? वास्तव में यह है - और वर्तमान में रूढ़िवादी विचारधारा क्या है? सबूत के आधार पर समझदारी का एक प्रतिद्वंद्वी? या बेवक़ूफ़ ज़ोंबी राजनीति जो मरने के बाद भी लंबे समय तक चलती रही? नव उदारवाद और पूँजी के मुक्त आवागमन ने बैंकिंग की तबाही में इसके नंगेपन का खुलासा किया, लेकिन जारी रहा।

विफल आत्मसंयम जारी

अत्याधिक बड़ी,  अधिक समझदार वैश्विक वित्त उद्योग,व्यापार में वापस आ गया है। पूरे यूरोप में आत्मसंयम शानदार रूपसे नाकाम रहा है –लेकिन यह फिर भी जारी रहा। सबूत निराधार है - ये मान्यतायें पवित्र शास्त्र हैं।

इस में पाखंड की एक और परत है। तथाकथित आम लोगों को कहा जाता है कि अगर वे वोट नहीं करते, तो वे खुद को ही अपमानित कर रहे होते है। लेकिन स्कॉटिश जनमत संग्रह अभियान के बारे में दिलचस्प बाते यह है कि इसमें उदासीनता को हारना पड़ा। लोगो की इस मामले में  भागेदारी ने दिखा दिया कि वे उदासीन नहीं हैं – वे केवल इस बात से परेशान हैं कि उनके वोट से भी उनके जीवनमें कोई सुधार नहीं होगा।

उन्हें निर्णय करने के लिए मौका दीजिए ताकि वे अपने भविष्य के विकल्पों को अधिक सार्थक ढंग से सोच सके। उदासीनता से भी बदतर चीजें मौजूद हैं - घृणित और खतरनाक जुनून। लेकिन उदासीनता से भी बेहतर बात हैं कि लोगों आपस में रचनात्मक बात कर रहे कि आखिर उन्हें क्या बुलाया जाना चाहिए “हम”, या उन्हें किस तरह की राजनीती बेहतर मौका दे सकती है ताकि वे फैसलों को प्रभावित कर सकें जो फैसलें उभे प्रभावित करते हैं।

बहस ने पहले से ही कुछ चौंकाने वाला हासिल किया है: हम जानते हैं कि इसने ब्रिटेन को मौत के घाट उतार दिया है।  अगर स्कॉट्स गुरुवार को हाँ में वोट करते हैं, तो मौत अचानक और चौंकाने वाली होगी। भले ही वे वोट न में करते हैं, यह स्कॉटिश संसद को व्यापक शक्तियां देने  के वादे के आधार पर होगा – यह संघीय ब्रिटेन की मौलिक बदलाव की शुरुआत होगी।  एक संघीय राज्य ब्रिटेन में बड़े बदलाव लाएगा – उदहारण के तौर पर एक लिखित संविधान और हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स की जगह वेस्टमिनिस्टर में दूसरा संघीय सदन। “इन द्वीपों" की राजनीतिक वास्तुकला मौलिक परिवर्तन की डगर पर है और इसे स्कॉट्स ही अंजाम देंगें, वे बहस में शामिल होंगें, जिन्होंने ने बदलाव को गति में ला दिया है। 

स्कॉट्स ने पहले से ही सन्देश दे दिया है: कि मजबूत कुलीनतंत्र और कमजोर लोकतंत्र का वर्तमान राजनीतिक समाधान बर्दाश्त नहीं है। यूरोप के सभी लोगो को बड़ी लड़ाइयों में शामिल करना है  - समानता के लिए, जवाबदेही के लिए, निजी मांगों के साथ सार्वजनिक जरूरत को कैसे बराबर रखना है। राष्ट्रवाद उनकी उस भाषा का हिस्सा हो सकता है जिसे वे बोलते हैं लेकिन मायने यह रखता है कि इसका इस्तेमाल क्या कहने के लिए कर रहे हैं।

सौजन्य:  irishtimes.com

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

यूरोप
ब्रिटिश
चुनाव
इंग्लिश
ग्रीक
आयरिश
स्कॉटलैंड
इंग्लैंड

Related Stories

सहभागिता का लोकतंत्र

शरणार्थी संकट और उन्नत पश्चिमी दुनिया

क्या अब हम सब चार्ली हेब्दो हैं?

एक और 'रामज़ादा'

स्कॉटलैंड: जोकि लगभग देश बन गया था

युक्रेन युद्धविराम: नाटो की योजना का पतन

रूसी 'आक्रमण' पर मार्केल को चेतावनी

‘लव जिहाद’ साम्प्रदायिक धुर्विकरण की नयी मुहीम

भाजपा और बदले की राजनीति


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License