NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
LAC पर भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने से लद्दाख में घुमन्तु चरवाहों को ‘निष्कासन’ भुगतना पड़ रहा है
स्थानीय लोगों के अनुसार ताजा घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गये कारगिल युद्ध की यादें ताज़ा करा रहा है।
अनीस ज़रगर
06 Jun 2020
LAC

श्रीनगर: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत-चीन सीमा विवाद के बढ़ते जाने से लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्रों से खानाबदोश पशुपालकों का भारी मात्रा में पलायन होना शुरू हो चुका है। यह क्षेत्र पश्मीना बकरियों के लिए चारागाह के तौर पर इस्तेमाल में आती है और इस क्षेत्र को दुनिया की बेहतरीन कश्मीरी ऊन के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता के रूप में जाना जाता है।

इस बीच भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के विवादित सीमा क्षेत्र में तनाव अचानक से बढ़ चुका है,  जिसमें मई के महीने में चीनी सेना की ओर से काफी अंदर तक घुसपैठ के बाद से इन दोनों परमाणु सशस्त्र देशों के बीच संभावित तनाव के भड़कने की आशंका व्यक्त की गई थी। इसके बाद से ही दोनों देश आक्रामक मुद्रा में एक दूसरे के सामने खड़े नज़र आ रहे हैं और विशेषज्ञों के हिसाब से एलएसी के आस-पास की ये घटनाएं वर्षों बाद अभूतपूर्व वृद्धि के तौर पर देखी जा रही हैं।

वैसे तो इस तरह की घुसपैठ की घटनाएं अतीत में भी देखने को मिला करती थीं, और इसका मकसद केवल आक्रामक तेवर दिखाने तक ही सीमित रहा करता था। लेकिन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा दर्शनीय पंगोंग त्सो (झील) और गैलवान वैली के पास के इलाकों में की गई ताजा घुसपैठ ने लद्दाख के स्थानीय लोगों में भय का वातावरण बना दिया है। उनके अनुसार ताजातरीन घटनाक्रम 1999 में लड़े गये भारत-पाकिस्तान युद्ध की यादें ताजा करा रही है।

लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के पूर्व मुख्य कार्यकारी पार्षद, रिगजिन स्पाल्बर ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में कहा है कि “भारी पैमाने पर सैन्य टुकड़ी की तैनाती की गई है और इसे देखकर कारगिल युद्ध की यादें ताजा हो रही हैं। लेकिन स्थिति हमारे लिए जटिल इसलिए बनी हुई है क्योंकि वास्तव में आखिर चल क्या रहा है, इसका हमें कोई अंदाजा नहीं लग पा रहा है। जमीन पर कोई हलचल नहीं है और क्या कदम उठाये जा रहे हैं इसके बारे में हमें कोई भी सूचना नहीं दी जा रही है।”

स्पाल्बर के अनुसार सीमा पर तनाव की वजह से सबसे बुरी तरह से इससे प्रभावित होने वाले लोगों में यहाँ के घुमन्तु पशुपालक क्षेत्र के लोग हैं। वे बताते हैं कि इन खानाबदोश लोगों को इन अग्रिम क्षेत्रों से, जो कि उनके पशुओं के लिए चारागाह स्थल के तौर पर थे, से पीछे धकेला जा रहा है।

स्पाल्बर के अनुसार "ये खानाबदोश लोग जो आम तौर पर इन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तम्बुओं में रहा करते थे, अब शहर और कस्बाई क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। इस अनिश्चितता के माहौल में उनके लिए खुद को जिंदा रख पाना काफी मुश्किल हो रहा है।”

चांगपास खानाबदोश लोगों को याक और बकरियों को पालने के लिए जाना जाता है। ये लोग चांगथान्गी नामक बकरियों की एक लद्दाखी नस्ल, जिन्हें पश्मीना बकरियों के तौर पर भी जाना जाता है, से बेहतरीन कश्मीरी ऊन की आपूर्ति करते आये हैं।

एलएसी पर निगाह रखने वालों ने भारत और चीन के बीच संघर्ष के सैन्य और भू-राजनीतिक असर से दोनों प्रकार के खतरों की चेतावनी दी है, लेकिन यदि विवाद गहराता है तो चांग्पा घुमंतुओं के लिए इसका परिणाम इन क्षेत्रों से उनके स्थायी निष्कासन के तौर पर ही होना तय है। ताजा घुसपैठ की सूचना गलवान घाटी के क्षेत्रों से प्राप्त हुई थी, जो कुछ नहीं तो स्थानीय लोगों के अनुमान के हिसाब से 5,000 से अधिक चांगपास के लिए सर्दियों में चारागाह की जमीन के तौर पर इस्तेमाल में आती रही है।

चीन सीमा के निकट के अग्रिम इलाके कोर्जोक क्षेत्र के काउंसिलर ग्युर्मेट दोर्जी ने न्यूज़क्लिक को बताया "चारागाह वाली जमीनों की कमी की वजह से पशुधन के बीच मौत की दर में भी वृद्धि देखने को मिल रही है, इनमें से ज्यादातर नवजात बच्चे हैं जिनकी मौत हो रही है। पशुओं के लिए चारागाह वाली जमीनों के नुकसान का सीधा असर 70,000 से एक लाख के बीच पश्मीना बकरियों पर पड़ सकता है।"

ज्यादातर बौद्ध, चांगपास के पास उनके पशुधन में भेड़ और याक भी पाये जाते हैं और ये लोग पूरी तरह से इन पर ही निर्भर हैं। इस तनाव के चलते वर्तमान में अग्रिम क्षेत्रों के करीब आठ गाँव सीधे तौर पर इससे प्रभावित हैं। पशुपालन के अलावा इनमें से कई लोग खेतीबाड़ी से भी अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

चीनी घुसपैठ और उसके बाद की निर्माण गतिविधि जो कि "फिंगर 4" के तौर पर नामित एक विवादित क्षेत्र के आसपास चल रही है जिसे स्थानीय तौर पर रिथर नागा के नाम से जाना जाता है, इस ताजा तनाव के मूल में है।

चीनी सेना की ओर से की गई इस घुसपैठ ने स्थानीय जन की आजीविका के लिए आवश्यक पश्मीना बकरियों की सदियों पुरानी घुमंतू शैली को बाधित करके रख दिया है। कश्मीर घाटी के सैकड़ों परिवार भी यहाँ से उत्पादित होने वाली पश्मीना ऊन पर आश्रित हैं, जहां इन्हें बाजारों में आपूर्ति से पहले हस्तशिल्प के माध्यम से संसाधित किया जाता है।

एक संवाद के लिए प्रस्तुत पेपर द चांगथांग बॉर्डरलैंड्स ऑफ़ लद्दाख: अ प्रेलिमिनरी इन्क्वायरी जिसे प्रो. सिद्दीक वाहिद ने लिखा है, जो कि खुद लद्दाख के रहने वाले हैं के अनुसार एलएसी के साथ चांगथांग के पास चल रहे भारत-चीन टकराव की वजह से दोनों तरफ बसे लोगों, चरवाहों और खानाबदोश आबादी के लिए इसके मायने बाकियों से कहीं अधिक महत्व के हैं।

"खासतौर पर देखें तो बड़ी जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया था कि दिल्ली में सत्तासीन होने वाली तमाम सरकारों ने भारत की सीमाओं पर बसे लोगों के स्थानों और हितों के प्रबंधन के लिए गहराई से विचार करने को कभी तवज्जो नहीं दी, जो यहाँ की स्थानीय आबादी के लिए हताशा का कारण बनी हुई है और  जिसके चलते उनमें अलगाव की भावना तेजी से बढ़ रही है।" आज इस प्रवृत्ति को सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर रोके जाने की ही जरूरत नहीं है बल्कि सर्वप्रथम लद्दाख के लोगों की खातिर इसे किये जाने की आवश्यकता है" उन्होंने लिखा है।

यहां तक कि पार्षद ग्युर्मेट का कहना है कि उन्होंने विभिन्न सरकारों को चारागाहों की भूमि विवाद के सिलसिले में कई पत्र लिखे थे और हाल ही में इस साल फरवरी में भी इस बाबत पत्र लिखा था, लेकिन दुःख की बात है कि इस सम्बंध में कोई प्रगति नहीं हुई है।

दोर्जी कहते हैं "कई वर्षों से मैं चारागाह भूमि के मुद्दे को प्रशासन के ध्यान में लाने के काम में लगा हूँ, लेकिन इस सम्बन्ध में कोई प्रगति देखने को नहीं मिली है। मैंने इस सम्बंध में पहला पत्र 2017 के साल में लिखा था।”

स्थानीय लोगों का कहना है कि हालिया तनाव की घटना ने उनमें "असहाय" होने का एहसास कराया है, लेकिन लेह के भाजपा पार्षद मुहम्मद नासिर कहते हैं कि इस गतिरोध के बावजूद नवगठित केंद्र शासित प्रदेश की राजधानी लेह में लोग आश्वस्त हैं और उन्हें उम्मीद है कि भारत सरकार इसका “मुहँतोड़ जवाब" जल्द ही देगी।

नसीर कहते हैं  "हमारी सेना चीनी सेना से किसी बात में कम नहीं है और यह कोई 1962 नहीं है। यहां लोग आश्वस्त हैं और तनाव के बावजूद अपने दैनिक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं।"

वहीं अग्रिम इलाके चुशुल के मौजूदा कार्यकारी पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन, जो कि उप मंत्री के समकक्ष हैं, ने बताया है कि सेना की “तैनाती अभूतपूर्व रही है"। कोंचोक ने न्यूज़क्लिक को बताया "अभी तक तो यहाँ सब शांत है लेकिन हम चाहते हैं कि सामान्य स्थिति बहाल हो जाए।"

सप्लबार और दोर्जी दोनों कोंचोक की तरह ही इस बात को दोहराते हैं कि इस इलाके से खानाबदोशों के निष्कासन का प्रश्न सामान्य हो जाता है या यह स्थिति अब हमेशा के लिए स्थायी होने जा रही है, से पहले इस मुद्दे को सभी के लिए हमेशा के लिए सुलझाने की आवश्यकता है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Nomadic Pastoralists in Ladakh Face ‘Exodus’ as Indo-China Tension Spikes Along LAC

Jammu and Kashmir
ladakh
India-China LAC
Chinese Incursion
Pashmina
Cashmere Wool
Nomadic Pastoralists
BJP
PLA

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License