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ओबीसी से जुड़े विधेयक का सभी दलों ने किया समर्थन, 50 फ़ीसद आरक्षण की सीमा हटाने की भी मांग  
ओबीसी से जुड़ा संविधान (127वां संशोधन) विधेयक शून्य के मुकाबले 187 मतों से राज्यसभा में पारित, साथ ही संसद से मिली मंज़ूरी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
11 Aug 2021
rajya sabha

नयी दिल्ली: राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार बहाल करने वाले ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ पर बुधवार को राज्यसभा में चर्चा शांति से हुई और इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने कोई विरोध नहीं किया। इस विधेयक को मंगलवार को लोकसभा की मंजूरी मिल चुकी है।


संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होने के बाद बुधवार को उच्च सदन में ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ पर चर्चा के दौरान, दूसरी बार विपक्ष का विरोध या हंगामा नहीं हुआ और चर्चा शांति से आगे बढ़ी। इससे पहले राज्यसभा में कोविड-19 महामारी के प्रबंधन पर 19 जुलाई को हुई अल्पकालिक चर्चा के दौरान शांति थी और विपक्ष का हंगामा नहीं हुआ था।


उच्च सदन में यह विधेयक चर्चा करने और पारित करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने पेश किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार बहाल करेगा जिसे उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया था।

उन्होंने प्रधानमंत्री और विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों का, इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा करने के लिए सहमति बनाने को लेकर आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से , देश भर में कुल ओबीसी आबादी में करीब बीस फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले 671 समुदायों के लिए मददगार होगा। इससे उन्हें शैक्षिक संस्थानों और रोजगार में आरक्षण मिल सकेगा।

ओबीसी के कल्याण के लिए कई कदम उठाने और ओबीसी की केंद्रीय सूची को संवैधानिक दर्जा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए मंत्री ने कहा कि यह संविधान संशोधन विधेयक इसी दिशा में अगला कदम है।

 

ओबीसी में क्रीमी लेयर के निर्धारण के लिए आय मानदंड में संशोधन का प्रस्ताव विचाराधीन: सरकार

केंद्र सरकार ने बुधवार को संसद को अवगत कराया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर का निर्धारण करने के लिए आय मानदंड में संशोधन का एक प्रस्ताव उसके पास विचाराधीन है।

राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में सामाजिक व अधिकारिता राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने यह जानकारी दी।

तेलंगाना राष्ट्र समिति के सदस्य प्रकाश बांदा ने केंद्र सरकार से जानना चाहा था कि क्या अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भी ओबीसी क्रीमी लेयर की आयसीमा को बढ़ाने के लिए सिफारिश की है।

इसके जवाब में भौमिक ने कहा, ‘‘जी हां। ओबीसी के मध्य क्रीमी लेयर का निर्धारण करने के लिए आय मानदंड में संशोधन हेतु एक प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन है।’’

ज्ञात हो कि ‘क्रीमी लेयर’ में ओबीसी के सामाजिक और आर्थिक रूप से तरक्की कर चुके सदस्य शामिल किए जाते हैं।

 

कांग्रेस ने की 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा हटाने की मांग, भाजपा ने कहा- राज्यों के अधिकार यथावत

कांग्रेस ने राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार बहाल करने वाले ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ का समर्थन किया और 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को खत्म करने की वकालत की। वहीं भाजपा ने कहा कि खुद को ओबीसी का हितैषी बताने वाली कांग्रेस ने इस वर्ग के लिए कभी कुछ नहीं किया और हर आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना से दूर भागने का आरोप लगाया और कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी इसका समर्थन किया है, ऐसे में केंद्र सरकार इस पर चुप क्यों बैठी है।

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची बनाने से जुड़े राज्यों के अधिकारों को बहाल करने का प्रावधान करने वाले विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सिंघवी ने सवाल किया ‘‘आप जातीय जनगणना से दूर क्यों भाग रहे हैं? क्यों कतरा रहे हैं? बिहार के मुख्यमंत्री और ओड़िसा के मुख्यमंत्री भी इसके पक्ष में हैं। कल तो आपकी एक सांसद ने भी इसके समर्थन में बात कही है। फिर सरकार चुप क्यों बैठी है। सरकार ने अभी तक स्पष्ट क्यों नहीं किया ? आप नहीं करना चाहते तो भी स्पष्ट कर दीजिए।’’

उन्होंने कहा कि शायद सरकार इसलिए ऐसा नहीं कर रही है क्योंकि उसे पता है कि ओबीसी का असली आंकड़ा 42 से 45 प्रतिशत के करीब है।

सिंघवी ने कहा कि इस विधेयक में आरक्षण की सीमा के बारे में एक शब्द भी नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘राज्य ओबीसी सूची बनाकर क्या करेंगे? वह जो सूची बनाएंगे, वह उस बर्तन जैसी है जो आवाज तो निकाल सकती है लेकिन उसमें खाना नहीं खा सकते। लगभग 75 प्रतिशत राज्य ऐसे हैं जो आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा से आगे निकल गए हैं...तो वह करेंगे क्या इसके साथ। आप उनको एक कागजी दस्तावेज दे रहे हैं और अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और एक झूठा वायदा दिखा रहे हैं। एक ऐसा सब्जबाग दिखा रहे हैं जो कानूनी और संवैधानिक रूप से क्रियान्वित कभी हो ही नहीं सकता।’’

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा तय करने के साथ ही अपवाद स्वरूप विकल्प दिए हैं, जो सामाजिक और भौगोलिक स्थिति पर आधारित है। उन्होंने कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा कोई ‘‘पत्थर की लकीर’’ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘...इस पर सोचना चाहिए...सोचना चाहिए था।’’


 

चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने मौजूदा विधेयक का समर्थन किया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह कानून बनाते समय जल्दबाजी में रहती है। उन्होंने इस क्रम में जीएसटी (उत्पाद एवं सेवा कर) कानून का जिक्र किया और कहा कि संसद से विधेयक के पारित होने और उसके कानून बनने के बाद इसमें तीन सौ से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं।

ब्रायन ने जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग करते हुए दावा किया कि अन्य समुदायों के आरक्षण में वृद्धि की गयी लेकिन एंग्लो-इंडियन समुदाय की सुविधाएं हटा दी गयीं जबकि इस समुदाय के सदस्यों की संख्या काफी कम है।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक राज्य को अधिकार देने वाला है लेकिन इससे पहले के 29 विधेयक देश के संघीय ढांचा के विरोधी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने राज्यों को उनके हिस्से की राशि नहीं दी है जो संघीय ढांचे का उल्लंघन है।


बीजू जनता दल (बीजद) के प्रसन्ना आचार्य ने आज के दिन को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों से राज्य को उनके अधिकार मिलेंगे। उन्होंने ओडिया भाषा में दिए गए अपने संबोधन में मांग की कि राज्यों से लिए गए उनके अधिकार उन्हें वापस मिलने चाहिए। आचार्य ने भी जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की और कहा कि इसे आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नेता टी शिवा ने भी विधेयक का समर्थन किया और कहा कि पहली बार इस विधेयक के जरिए राज्यों को उनके अधिकार दिए जा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे पहले के अधिकतर विधेयक संघीय ढांचे के खिलाफ थे। शिवा ने भी जाति आधारित जनगणना तथा आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की मांग की।

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सदस्य बंदा प्रकाश ने भी जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस संबंध में आश्वासन भी दिया था लेकिन उस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुयी। उन्होंने आरक्षण को उचित तरीके से लागू कराए जाने की भी मांग की।

बंदा प्रकाश ने ओबीसी समूह के लिए अलग मंत्रालय बनाए जाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार अल्पसंख्यक मामलों, महिला, अनुसूचित जाति व जनजाति मामलों के लिए अलग मंत्रालय हो सकता है, उसी प्रकार ओबीसी समुदाय के लिए भी अलग मंत्रालय होना चाहिए।

ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के नवनीत कृष्णन ने विधेयक का समर्थन करते हुए हुए कहा कि इससे राज्यों को शक्तियां मिलेंगी और वह ओबीसी सूची तैयार कर सकेंगी।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के इलामारम करीने ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि अपनी पिछली गलतियों को सुधारने के लिए सरकार को मजबूरन यह विधेयक लाना पड़ा। उन्होंने केरल में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की समीक्षा करने की मांग की।

समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने इस विधेयक का समर्थन करने में उन्हें कोई संशय या दुविधा नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके बाद राज्यों को ओबीसी सूची बनाने का अधिकार मिल जाएगा। लेकिन जब तक आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा रहेगी, तब तक इसका लाभ वंचित वर्गों को नहीं मिल सकेगा।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि नयी सूची में सात प्रतिशत ओबीसी और जुड़ जाते हैं तो उन्हें भी उसी 27 प्रतिशत की सीमा में आरक्षण देना होगा। इसलिए 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाना जरूरी है और इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में नयी सूची बनते ही कुर्मी और गूजर सहित कुछ जातियों को ओबीसी आरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि जब तक 127वें संविधान संशोधन का क्रियान्वयन तक तक सही तरीके से नहीं होगा जब तक जातीय जनगणना नहीं होती।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली पड़े विभिन्न पदों को हवाला देते हुए यादव ने कहा कि भाजपा में ओबीसी सांसद बहुसंख्यक में हैं लेकिन इसके बावजूद ओबीसी के लोग नजरअंदाज हैं और उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘कागज पर करते रहिए लेकिन जमीन पर नहीं उतारिए तो लाभ किसे होगा? ढपोरशंख बजाना बंद कीजिए...देना है दीजिए नहीं तो मूर्ख बनाना बंद कीजिए।’’

जनता दल यूनाइटेड के रामनाथ ठाकुर ने विधेयक का समर्थन किया लेकिन साथ ही जातीय जनगणना की पुरजोर वकालत की।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी मांग है जातीय जनगणना शुरू किया जाए। अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं के निदान का एकमात्र उपाय है जनगणना करना।’’

उन्होंने भी शिक्षा क्षेत्र में खाली पदों का मामला उठाया और उन्हें जल्द से जल्द भरने की रामगोपाल यादव की मांग का समर्थन किया।

राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा कि वह इस विधेयक के पक्ष में हैं। साथ ही उन्होंने भी जातीय जनगणना की मांग करते हुए कहा कि यह वक्त की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद आवश्यक है।’’

झा ने कहा कि इसकी मांग के लिए बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी मांगा है।

अन्य विपक्षी सदस्यों की तरह झा ने भी आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा, ‘‘यह अधिकारों की राह में रोड़ा है।

नामित सदस्य नरेंद्र जाधव ने भी विधेयक का समर्थन किया और कहा कि इससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सकी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक केंद्र सरकार के ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ के सिद्धांत के अनुकूल है और उसे आगे बढ़ाने वाला है।

चर्चा में भाग लेते हुए शिवसेना सदस्य संजय राउत ने इसे ऐतिहासिक और क्रांतिकारी विधेयक करार दिया औह कहा कि इससे राज्यों को अधिक अधिकार मिल सकेंगे तथा वे आरक्षण देने के लिए अपनी सूची तैयार कर सकेंगे। राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में मराठा समाज ने लंबी लड़ाई लड़ी है लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें आरक्षण के लिए अभी प्रतीक्षा करनी होगी।

उन्होंने कहा कि आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा तय किए हुए 30 साल हो गए। अगर उस सीमा को नहीं बढ़ाया गया तो कोई बदलाव नहीं होगा और यह विधेयक आधा-अधूरा ही रहेगा।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की वंदना चव्हाण ने विधेयक का समर्थन किया लेकिन कहा कि यह उचित प्रारूप में नहीं है और इसके प्रावधानों से अपेक्षित लाभ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार पहले ही सुधारात्मक कदम उठाती तो इसकी जरूरत ही नहीं आती। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अपनी सूची बना सकती है लेकिन आरक्षण मुहैया कराने की दिशा में कार्रवाई नहीं कर सकती।

टीएमसी (एम) सदस्य जी के वासन ने इसे समय से उठाया गया कदम बताया और कहा कि तमिलनाडु में पहले ही 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण की व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को भी इसी तरह से कोई तरीका खोजना चाहिए।

आम आदमी पार्टी (आप) के संजय सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है और वहां दलितों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को उचित हक नहीं मिल रहा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है और यह विधेयक आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर लाया गया है।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के विनय विश्चम ने भाजपा पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह विधेयक आगामी चुनाव को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किए जाने की मांग की।

कांग्रेस के राजमणि पटेल ने कहा कि यह सरकार की गलती सुधार विधेयक है और भाजपा किसी न किसी प्रकार से सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए प्रयासरत रहती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को व्यापक अधिकार दे दिया गया और राज्यों के अधिकार ले लिए गए।

पटेल ने दावा किया कि पहले राज्यों के अधिकार छीन लिए गए और पिछले तीन साल में ओबीसी समुदाय के लाखों सदस्यों का हक मारा गया। उन्होंने दावा किया कि सरकार दबाव में यह विधेयक लेकर आयी है। उन्होंने भाजपा पर दोहरा चरित्र अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह दोनों ओर से लाभ लेना चाहती है। वह कुछ करके भी और कुछ नहीं करके भी लाभ लेना चाहती है।

उन्होंने कहा कि देश में पशुओं की गिनती हो सकती है तो जाति आधारित गणना क्यों नहीं हो सकती? उन्होंने 50 प्रतिशत की मौजूदा आरक्षण सीमा को हटाने, निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने तथा ‘क्रीमी लेयर’ समाप्त करने की भी मांग की।

अपडेट: ओबीसी से जुड़ा संविधान (127वां संशोधन) विधेयक शून्य के मुकाबले 187 मतों से राज्यसभा में पारित, साथ ही संसद से मिली मंजूरी।

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