NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
बहुराष्ट्रीय कंपनियां और तेल कंपनियां मोज़ाम्बिक के लोगों पर थोप रही हैं अपना लालच 
फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के इस तरह के हस्तक्षेप से उत्तरी मोज़ाम्बिक की समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा। लेकिन वे निश्चित रूप से पश्चिमी देशों को इस महाद्वीप पर अपने सैन्य पांव जमाने का कारण बन जाएंगे।
विजय प्रसाद
12 Sep 2020
Translated by महेश कुमार
बहुराष्ट्रीय कंपनियां और तेल कंपनियां मोज़ाम्बिक के लोगों पर थोप रही हैं अपना लालच 

तीन साल पहले, 5 अक्टूबर 2017 को, अल सुन्नह वा जमाअत (ASWJ) के लड़ाकों ने उत्तरी मोजाम्बिक के मोकिमबो दा प्रिया शहर में प्रवेश किया था। उन्होंने तीन पुलिस स्टेशनों पर हमला किया, और फिर हमला रोक दिया। तब से, इस समूह ने- जिसने इस्लामिक स्टेट के प्रति अपनी वफा की घोषणा की थी- ने अपनी लड़ाई जारी रखी है, जिसमें उनके द्वारा अगस्त 2020 में मोकिम्बो दा प्रिया के बंदरगाह पर कब्जा करना शामिल है।

मोजाम्बिक की सेना असफल रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में, मोजाम्बिक की सरकार ने सेना सहित सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कटौती की है। अब यह बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा किराए पर ली जाने वाली निजी सुरक्षा कंपनियों पर निर्भर है ताकि वे अपनी लड़ाई लड़ सकें; आईएमएफ और धनी लेनदारों ने रक्षा की इस आउटसोर्सिंग की अनुमति दे दी है। यही कारण है कि मोज़ाम्बिक के गृह मंत्रालय ने दक्षिण अफ्रीकी डाइक सलाहकार समूह (डीएजी), रूसी वैगनर समूह और एरिक प्रिंस के फ्रंटियर सर्विसेज ग्रुप को काम पर रखा है। डाइक ग्रुप के प्रमुख कर्नल लियोनेल डाइक ने हाल ही में हेंस वेसल्स को बताया कि "मोजाम्बिक रक्षा बल तैयार नहीं हैं और संसाधन की कमी हैं।"

डाइक, वैगनर, और फ्रंटियर सर्विसेज ग्रुप को उत्तरी मोजाम्बिक में फ्रांसीसी ऊर्जा कंपनी टोटल और यू.एस. एनर्जी एक्सॉनमोबिल द्वारा किराए पर ली गई अन्य भाड़े के सुरक्षा बलों (जैसे आर्कह रिस्क सॉल्यूशंस और गार्डवॉर्ड) की श्रेणी में शामिल हैं। दोनों फर्मों को मोजाम्बिक के रोवुमा बेसिन के क्षेत्र 1 और क्षेत्र 4  की गैस में रुचि है, जो देश के प्राकृतिक गैस भंडार को 100 ट्रिलियन क्यूबिक फीट (केवल अफ्रीका में नाइजीरिया और अल्जीरिया के लिए तीसरा) बढ़ाता है। इन फर्मों द्वारा प्राकृतिक गैस की निकासी और उसके लिए द्रवीकरण संयंत्रों के निर्माण में करीब 55 अरब डॉलर से अधिक का निवेश करना है।

कुल मिलाकर, फ्रांसीसी फर्म टोटल और मोज़ाम्बिक की सरकार ने इन गैस क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक संयुक्त बल बनाने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए है। मोज़ाम्बिक के खनिज संसाधन और ऊर्जा मंत्री मैक्स टोनेला ने कहा कि यह सौदा "टोटल जैसे पार्टनर्स के प्रति एक सुरक्षित काम का वातावरण बनाने में सुरक्षा उपायों और प्रयासों को मजबूत करता है।"

टोटल ने जो अफ़साना मोजांबिक की सरकार और निजी सुरक्षा फर्मों सुनाया है उसके अनुसार उत्तरी मोजाम्बिक में संघर्ष इस्लामवादियों के कारण से है, और इसलिए इस तीन साल पुराने उग्रवाद को विफल करने के सभी उपाय किए जाने चाहिए।

केप को भुला दिया

उत्तरी मोजाम्बिक का इलाका- काबो डेलगाडो- को आम तौर पर "भूले हुआ केप" या कैबो एस्क्विडो के नाम से जाना जाता है। सरकारी आँकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि मोजाम्बिक के इस हिस्से के लोग-जहाँ 25 सितंबर, 1964 को पुर्तगालियों के खिलाफ उपनिवेशवाद-विरोधी युद्ध छिड़ा था- ने सभी किस्म की गरीबी का अनुभव किया था: कम आय, उच्च निरक्षरता और कम मनोबल इस इलाके की पहचान है। सामाजिक आकांक्षाओं के साथ-साथ अवसरों की कमी के कारण अफगान हेरोइन की तस्करी के साथ माणिक की कारीगरी के खनन सहित आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न रूपों का उदय दक्षिण अफ्रीका की ओर हुआ है। और इसलिए इस्लामवाद के आगमन से आबादी के बड़े वर्गों में गहरी निराशा है।

इसे "भूला हुआ केप" कहा जाता है क्योंकि मोजाम्बिक की अधिकांश सामाजिक परिसंपत्ति समुदायों में वापस नहीं आई है; तेल और गैस कंपनियों को इस्स बात को भुलना नहीं चाहिए। इन कंपनियों- और उनके पूर्ववर्तियों जैसे कि टेक्सास स्थित अनादार्को-साथ ही अन्य बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जैसे कि मोंटेपुएज रूबी माइनिंग (यूके स्थित जेमफील्ड्स के स्वामित्व वाली कंपनी) ने हजारों लोगों की आजीविका को छीना और उन्हे घरों से बेदखल कर दिया था। मापुटों में सरकार ने माणिक और प्राकृतिक गैस को निकालने के लिए भूमि तय करने का की अनुमति देने को देखते हुए भी इन फर्मों ने उत्तर के लोगों को कुछ अधिक नही लौटाया है।

आईएसआईएस का प्रेत

पश्चिमी फ़र्मों द्वारा गरीबी को बढ़ाने में वे खुद की भूमिका को नहीं मानते हैं बल्कि वे इसके लिए आईएसआईएस के झंडे को फहराने वाले इस्लामी समूहों को जिम्मेदारे ठहराते हैं। सब कुछ आतंकवाद के ऊपर डाल दिया जाता है। जून 2019 में, दो मोजाम्बिक स्कॉलर- उच्चतर अंतर्राष्ट्रीय संबंध संस्थान (ISRI) के मोहम्मद यासीन और सईद हबीबे, जिन्होंने उत्तरी मोज़ाम्बिक में इस्लामी कट्टरपंथीकरण पर 2019 के एक अध्ययन का सह-लेखन किया- ने कहा कि आईएसआईएस को उत्तरी मोज़ाम्बिक में उपजाऊ जमीन नहीं मिल पाएगी। ऐसा बड़े पैमाने पर इसलाइए है क्योंकि उस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी छोटी सी है। हबीब के मुताबिक, इन तथाकथित इस्लामवादियों को इस्लामिक राष्ट्र के निर्माण के मुक़ाबले अवैध व्यापारों में उनकी भूमिका के बारे में लिए बेहतर जाना जाता है।

एक फ्रांसीसी एनजीओ- लेस एमिस डी ला टेरे फ्रांस- ने जून 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा था कि विद्रोह की जड़े "सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक तनावों की उलझन में बसा हुआ है, जो असमानता और मानव अधिकारों के उल्लंघन के व्यापक विस्फोट एवं गैस परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है। एनजीओ का तर्क है कि, गैस प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के संघर्ष का सैन्यीकरण करने से "तनावों को बढ़ावा मिलेगा।" वास्तव में, [इन] “समुदायों के खिलाफ मानव अधिकारों का उल्लंघन बढ़ रहा है, ये समुदाय विद्रोहियों, निजी सेना और अर्धसैनिक बलों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों या उनके उप-ठेकेदारों के बीच फंस गए है।"

दक्षिण अफ्रीका के सुरक्षा अध्ययन संस्थान ने अक्टूबर 2019 में "उत्तरी मोजाम्बिक में विद्रोह की उत्पत्ति" नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। सुरक्षा मुद्दों की बात करें तो इस संस्थान की उन मुद्दों पर काफी पकड़ है। लेकिन वास्तविकता से बचना बहुत मुश्किल है। इस रिपोर्ट में साफ चेतावनी दी गई है कि "काबो डेलगाडो में चरमपंथी हिंसा का स्थायी समाधान बल-शक्ति और सेना के माध्यम से नहीं लाया जा सकता है।" यहाँ की सामाजिक असमानता मुख्य समस्या है। संस्थान का कहना है कि लोगों में खुशहाली लाने के बजाय ऊर्जा फर्मों की शुरूआत "असंतोष तेज़ करने के वर्णन को सामने लाती है।"

हस्तक्षेप

मोज़ाम्बिक के तट के ठीक बाहर मायोटे नामक द्वीप है, जिस पर एक फ्रांसीसी सैन्य अड्डा बनाने के साथ (और जो अशांति का सामना कर रहा है) उस पर फ्रांसीसी कब्ज़ा है। फ्रांस और मोजाम्बिक की सरकारें उस समुद्री सहयोग समझौते पर विचार कर रही हैं, जो अंततः यहाँ लगे सारे निवेशों की रक्षा के मामले में प्रत्यक्ष फ्रांसीसी हस्तक्षेप की अनुमति दे सकता है।

अफ्रीका में मादक पदार्थों की तस्करी पर एक बयान में, यू.एस. उप सहायक सचिव हीथर मेरिट ने कहा कि हेरोइन व्यापार का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है, और यू.एस. किसी भी तरह से मोजाम्बिक में सरकार की सहायता करने के लिए तैयार है।

दक्षिण अफ्रीका के खुफिया प्रमुख अयांडा डियोडलो ने कहा है कि उनकी सरकार उत्तरी मोजाम्बिक में खतरे को बहुत गंभीरता से ले रही है। दक्षिण अफ्रीका एक सैन्य हस्तक्षेप पर विचार कर रहा है, आईएसआईएस की चेतावनी के बावजूद अगर ऐसा हुआ तो वह दक्षिण अफ्रीका के अंदर एक नया मोर्चा खोल देगा।

एक बात तो तय है कि फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश इस तरह के हस्तक्षेप से उत्तरी मोज़ाम्बिक की समस्या का समाधान तो नहीं कर पाएगे। लेकिन वे निश्चित रूप से पश्चिमी देशों को इस महाद्वीप पर अपने सैन्य पैर जमाने का कारण बन जाएगे।

इस बीच, मोकिम्बो दा प्रिया के लोगों के लिए, यह हमेशा की तरह एक सामान्य बात होगी।  

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे स्वतंत्र मीडिया संस्थान की परियोजना, ग्लोबट्रॉट्टर में एक लेखक और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। इस लेख को स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना, ग्लोबेट्रॉटर से लिया गया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Multinationals and Oil Companies Are Imposing Their Greed on the People of Mozambique

africa
Algeria
Mozambique
oil companies

Related Stories

क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां

दुनिया भर की: सोमालिया पर मानवीय संवेदनाओं की अकाल मौत

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

यूरोप धीरे धीरे एक और विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रहा है

2022 बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के ‘राजनयिक बहिष्कार’ के पीछे का पाखंड

इथियोपिया : फिर सशस्त्र संघर्ष, फिर महिलाएं सबसे आसान शिकार

अफ़्रीका : तानाशाह सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं

अमेरिका और ब्रिटेन के पास उपलब्ध अतिरिक्त वैक्सीन खुराकों से पूरे अफ़्रीका का टीकाकरण किया जा सकता है


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License