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ऑनलाइन व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए हरियाणा के लाखों मज़दूर
जबसे हरियाणा सरकार ने मज़दूरों को मिलने वाली सुविधाओं को ऑनलाइन करने का फैसला लिया है, मजदूर दर-दर भटक रहे हैं। किसी का ऑनलाइन डाटा नहीं चढ़ाया जा रहा है। मज़दूरों का कहना है कि दो साल से बेनीफिट के फार्म पेंडिग पड़े हैं, उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा।
मुकुंद झा
27 Feb 2019
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हरियाणा के लाखों निर्माण मज़दूर ऑनलाइन पंजीकरण के खिलाफ खड़े हो गए हैं। वे निर्माण मज़दूर कल्याण बोर्ड कानून को बचाने और कारीगर-मज़दूरों के रोजगार की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर भवन निर्माण कामगार यूनियन की राज्य कमेटी हरियाणा के सभी जिला मुख्यालयों पर 21 फरवरी से धरना-प्रदर्शन कर रही है। यह विरोध प्रदर्शन 6 मार्च तक यह जारी रहेगा।

दरअसल जबसे हरियाणा सरकार ने मज़दूरों को मिलने वाली सुविधाओं को ऑनलाइन करने का फैसला लिया है, मजदूर दर-दर भटक रहे हैं। किसी का ऑनलाइन डाटा नहीं चढ़ाया जा रहा है। मज़दूरों का कहना है कि दो साल से बेनीफिट के फार्म पेंडिग पड़े हैं,उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा। इस बीच सरकार ने ऑनलाइन पंजीकरण के नाम पर लाखों मज़दूरों का पंजीकरण ही रद्द कर दिया है, अधिकतर निर्माण मज़दूर अनपढ़ हैं या नाम मात्र पढ़े हैं। इसलिए उन्हें  ऑनलाइन के माध्यम से कैसे फार्म भरना और अपना पंजीकरण कैसे करना नहीं आ रहा है।

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मज़दूर पिछले कई महीनों से अपने अधिकार और मिलने वाले लाभ से वंचित है। कई मज़दूरों ने बताया कि ऑनलाइन पंजीकरण के नाम पर कई लोगों ने उनसे पैसे भी ले लिये लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

ऐसे ही एक मज़दूर  सूबे सिंह,जो जींद ज़िले के देवरड़ गाँव से हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी की है। आज उनकी बेटी-बच्चे भी हो गए है लेकिन उन्हें आजतक निर्माण मज़दूर को मिलने वाली कन्यादान राशि जो कि हरियाणा में एक लाख रुपये है, वो नहीं दी गई है। 

इसे भी पढ़े :- दिल्ली में निर्माण मजदूर संकट में, मोदी और केजरीवाल दोनों सरकारें चुप

सोचिए एक मज़दूर जो दैनिक 200 से 300 रुपये तक मज़दूरी करता है, उसके लिए एक लाख रुपये का कितना महत्व है। सूबे सिंह ने अपनी बेटी की शादी में इस उम्मीद में कहीं से पैसों का इंतज़ाम कर पैसे खर्च किए कि उन्हें बाद में रुपये मिल जाएंगे,जिससे वो अपनी देनदारी  खत्म कर लेंगे, लेकिन शादी के इतने समय बाद तक भी उन्हें अब तक कोई लाभ नहीं दिया गया है।

ये सिर्फ एक सूबे सिंह की कहानी नहीं ऐसे कई मज़दूर हैं जिन्हें ऐसे लाभ मिलने हैं चाहे वो मज़दूर के बच्चों को स्कूल में मिलने वाली छात्रवृति हो या दुर्घटना के बाद मिलने वाली सहायता राशि या फिर छोटे-मोटे काम के लिए मिलने वाला लोन हो। वो सरकार और प्रशासन तंत्र के गैरज़िम्मेदारना रैवये के कारण नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कल्याण बोर्ड के पास धन की कमी है। उसके पास आज भी सैकड़ों करोड़ का बजट है।  

भवन निर्माण कामगार यूनियन ने इन्हीं मांगों को लेकर हजारों की तादाद में जिला उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया। जिला उपायुक्त से यूनियन के पदाधिकारियों की और श्रम विभाग के अधिकारियों से भी बातचीत हुई। इस दौरान उन्हें आश्वासन दिया गया कि एक सप्ताह बाद श्रम विभाग से सम्बन्धित कार्य सुचारू रूप से तहसील वाइज सरल केंद्र पर किए जाएंगे और किसी भी वर्कर को किसी भी प्रकार कि दिक्कत नहीं होने दी जाएगी।

इसे भी पढ़े :- प्रदूषण के लिए सब ज़िम्मेदार, लेकिन मार सिर्फ निर्माण मज़दूरों पर, कामबंदी से रोज़ी-रोटी का संकट

लेकिन सरकार के इन आश्वासनों पर मज़दूर यूनियनों का कहना है कि ऑनलाइन के नाम पर सरकार आम जनता को धोखा दे रही है। पहले राशन कार्ड ऑनलाइन, फिर मनरेगा और अब निर्माण मजदूरों का पंजीकरण ऑनलाइन। जिसमें कहीं अंगूठा का निशान न मिलने से तो कहीं नेटवर्क की दिक्कत होने की बात कहकर मजदूरों व गरीब लोगों को गुमराह किया जाता है। यूनियन के नेताओं ने कहा कि हमने फैसला लिया है कि जब तक मांगें नहीं मानी जाती तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे और न मज़दूरों का शोषण करने वाली सरकार को बैठने देंगे।

इसी प्रदर्शन क्रम में 25 फरवरी से भवन निर्माण कामगार यूनियन हरियाणा के आह्वान पर भिवानी-चरखी दादरी के हजारों निर्माण मजदूर कारीगरों ने ऑनलाईन के विरोध में व ऑफलाईन कार्य शुरू करने, पंजीकरण में तेजी लाने, समय पर सविधाएं जारी करने, बकाया सुविधा फार्मो की राशि जारी करने, सभी गांवों में मनरेगा का काम चालू करने आदि मांगों के समर्थन में जिला उपायुक्त कार्यालय भिवानी पर जोरदार प्रदर्शन किया व तहसीलदार के माध्यम से प्रधानमंत्री, मुख्ंयमंत्री व उपायुक्त भिवानी के नाम पर ज्ञापन सौंपा। इस विरोध को तहसील स्तर तक ले जाने का निर्णय किया है।

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अखिल भारतीय निर्माण मजदूर फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने 24 दिसम्बर को 427 सुविधाएं ऑनलाइन करने का निर्णय लिया था। जिसके चलते निर्माण मजदूरों के बोर्ड ने भी 26 दिसम्बर को पंजीकरण, नवीनीकरण, सुविधा फार्मों के कार्यों को बिना तैयारीयों के ऑनलाईन करने का निर्णय ले लिया जिसके बाद से पिछले दो माह से निर्माण मजदूर-कारीगर मारे-मारे फिर रहे हैं। सभी तरह के कार्य बन्द हो चुके हैं, मगर कोई भी अधिकारी इनकी सुध लेने वाला नहीं हैं। उन्होंने ने कहा कि हरियाणा सरकार व अधिकारी मजदूरों के पंजीकरण की बजाय पहले से पंजीकृत मजदूरों के पंजीकरण को रद्द कर रहे हैं। पिछले 8 माह से निर्माण मजदूर कारीगरों के 10 हजार से ज्यादा सुविधा फार्म जमा होने के बावजूद सुविधा राशि खातों में नही डाली जा रही हैं। और न ही नये निर्माण मजदूर कारीगरों के पंजीकरण किये जा रहे हैं। हरियाणा सरकार ने हरियाणा के निर्माण मजदूर कारीगरों को बाजार भरोसे छोड दिया हैं जहां पर दलाल इनका भारी आर्थिक शोषण कर रहे हैं। भाजपा सरकार महंगाई, भ्रष्टाचार, बेराजगारी पर लगाम लगाने मे पूरी तरह से विफल हुई है।

मज़दूर कल्याण बोर्ड के धन का दुरुपयोग?

मज़दूर कल्याण बोर्ड में कई सौ करोड़ रुपये हैं जो मज़दूरों के हैं और उनके कल्याण के लिए खर्च होने हैं।  परन्तु मज़दूरों के इस पैसे को किसी अन्य मद में खर्च करने का आरोप सरकार पर लगता रहा है। एक मज़दूर का कहना है कि हमारे हक के पैसे सरकार अन्य कार्य में खर्च कर रही है, परन्तु हमारे हक के पैसे नहीं दे रही है। इसका जवाब सरकार को देना पड़ेगा।

इसे भी पढ़े :-निर्माण मज़दूर : शोषण-उत्पीड़न की अंतहीन कहानी

इसके अलवा निर्माण मज़दूर यूनियन का कहना है कि मज़दूरों के हिस्से के पैसों को लगातार श्रम अधिकारयों के द्वारा आपस में बंदर बाट कर घपला  किया जा रहा है। इसके बारे में सुखबीर सिंह ने बताया कि सरकार मज़दूरों के पैसो से अपना गुणगान और प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रही है। हरियाणा में सरकार मज़दूरों को सिलाई मशीन देती है, उसे देने के लिए श्रम मन्त्री एक आयोजन करता है कुछ को मशीन दी भी जाती है परन्तु मशीन देने में लाखों रुपये गायब कर दिए जाते हैं। अगर कुछ देना है तो उनको पैसा दे मज़दूर को जो लेना है वो ले लेगा लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती है|

देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले निर्माण मज़दूरों को सभी सरकारों ने अनदेखा किया है। यह सिर्फ हरियाणा की ही कहानी नहीं है। यही हाल देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के तमाम राज्यों का है। मज़दूरों के साथ हो रहे इस अन्याय पर केंद्र सहित सभी राज्य सरकारें चुप हैं।

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