पीरियड/माहवारी, सेनेटरी नैपकिन या पैड की बात करना आज भी हमारे देश में सहज नहीं है। लेकिन इसी को लेकर हापुड़ के काठीखेड़ा की महिलाएं काम कर रही हैं। इन्हीं के जीवन और काम पर बनी है फिल्म ‘पीरियड,एंड ऑफ सेन्टेंस’ (Period. End of Sentence), जो सिनेमा के सबसे बड़े अवार्ड ऑस्कर के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में नामित हुई है। न्यूज़क्लिक ने इस फिल्म और काम से जुड़े मुख्य किरदारों से बात की।
पीरियड / माहवारी , सेनेटरी नैपकिन या पैड की बात करना आज भी हमारे देश में सहज नहीं है। गांवों में तो बिल्कुल नहीं। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में इसे लेकर आज भी बहुत सी बंदिशें और भ्रम हैं। आज भी हमारे देश में बड़ी महिला आबादी माहवारी के दिनों में कपड़े का ही इस्तेमाल करती है। जिससे उन्हें तमाम तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। इसी को लेकर तमिलनाडु के कोयम्बतूर के अरुणाचलम मुरुगनाथम ने एक सस्ती मशीन बनाने का सपना देखा था और उसे फिर साकार किया और आज उसी लड़ाई को आगे ले जा रही हैं देशभर की तमाम औरतें। इसी में शामिल है सामाजिक संस्था एक्शन इंडिया। जिसने हापुड़ की महिलाओं को जोड़कर सबला समिति बनाई और जेंडर इक्वलिटी का कार्यक्रम शुरू किया और फिर हापुड़ के गांव काठीखेड़ा में पैड बनाने की एक मशीन स्थापित कर महिलाओं को स्वरोजगार और सस्ता पैड उपलब्ध कराया। आज ये महिलाएं खुद पैड बनाकर उसे इस्तेमाल भी कर रही हैं और बेच भी रही हैं। रियल पैडमैन मुरुगनाथम की ज़िंदगी और काम पर फिल्म बनी पैडमैन और इन रियल पैड वुमन के काम पर फिल्म बनी है ‘ पीरियड , एंड ऑफ सेन्टेंस ’ ( Period. End of Sentence ) , जो सिनेमा के सबसे बड़े अवार्ड ऑस्कर के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में नामित हुई है। इस फिल्म की निर्माता गुनीत मोंगा और निर्देशक Rayka Zehtabch हैं। फिल्म को फेमिनिस्ट मेजॉरिटी फाउंडेशन ( Feminist Majority Foundation ) और गर्ल्स लर्न इंटरनेशनल (GLI- Girls Learn International) के सहयोग से बनाया गया है। अब इसी फिल्म के असल किरदार अमेरिका के लॉस एंजेलिस में होने वाले 91वें एकेडमी अवार्ड समारोह में शामिल होने जा रहे हैं। न्यूज़क्लिक ने इन्हीं मुख्य किरदारों से बात कर इस फिल्म और उनके असल जीवन की चुनौतियों और काम पर बात की।
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