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भारत
राजनीति
पानी में डूबे पटना की आँखों देखी कहानी
कुछ दिनों बाद ये पानी नहीं रहेगा लेकिन गंभीर सवाल ज़रूर छोड़ जाएगा कि करोड़ों खर्च करके सिर्फ नगर को सुंदर -दिखाऊ बनाने और मेट्रो रेल दौड़ाने जैसे काम प्राथमिक है या थोड़ी सी बारिश होने से जल -जमाव से उत्पन्न बाढ़-संकट जैसे बुनियादी नागरिक सवालों के समाधान का समय रहते कारगर उपाय किया जा सकता है।  
अनिल अंशुमन
01 Oct 2019
bihar flood

लगभग पूरे तीन दिन, हर पल  सचमुच में बिहार की राजधानी पटना में रहने का गौरव हासिल करने वाले मुझे समेत हर खासो-आम के लिए दहशत भरे रहे। बेलगाम बारिश के कहर ने किसी को भी नहीं छोड़ा। हाई कोर्ट के माननीय जज, जिला जज, उपमुख्य मंत्री, मंत्री, डीसी जैसों से लेकर सभी रिहायशी इलाकों और तंग-संकरी गलियों वाले मुहल्लों समेत हर जगह सिर्फ पानी ही पानी नज़र आया। पहली बार नगरवासियों को पानी में डूबी सड़कों पर घड़ियाल महाशय के साक्षात दर्शन ने तो सभी इष्ट देवी-देवताओं का स्मरण भी भुला दिया।

अलबत्ता कुछ स्थानों पर युवाओं,बच्चों व लोगों को सड़क पर मछलियाँ पकड़ने का सुयोग ज़रूर ही हासिल हुआ। लेकिन सबसे बुरा हाल बुरा झेलने वालों में अबकी बार सर्वसुविधा सम्पन्न व एडवांस कहे जाने वाले पॉश - रिहायशी इलाके के भद्रजन भी पानी–पीड़ित रहे। जो हमेशा इसी यकीन में जी रहे थे कि नगर का हाल जैसा भी रहे उनका कुछ नहीं बिगड़नेवाला। उनके बेसमेंट कि शोभा बढ़ानेवाली लखटकिया शानदार गाड़ियाँ पानी में डूबी बिसूरती रहीं हैं। पानी, बिजली और मोबाइल नेटवर्क संकट के अंधेरे ने उन्हें भी आतंकित किए रखा । वहीं दूसरी ओर, राजधानी की शान कहा जानेवाला ऐतिहासिक गांधी मैदान तो सबकी आँखों के सामने विशाल झील में तब्दील हो गया।

पटना बढ़ 14.jpg

नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के पूरे परिसर और वार्डों में बढ़ती पानी की धार ने तो वहाँ भर्ती मरीजों व उनके परिजनों के लिए किसी जल प्रलय जैसी लगी। बढ़ते पानी के जल स्तर के बीच जान बचाने की आफत ने सबको उसी हाल में जहां-तहां भागने को विवश कर दिया। कुल मिलाकर यही कहा जाएगा कि हाल के दशकों में यह पहली बार हुआ है जब पूरा पटना सचमुच में ‘सब पानी - पानी‘ नज़र आया। रेडियो–टीवी सेंटर, नालंदा मेडिकल अस्पताल, पटना रेलवे स्टेशन और बस अड्डे के अलावे  कई महत्वपूर्ण कार्यालयों समेत खुद नगर निगम कार्यालय तक में पानी भर गया ।  
       
सनद रहे कि निरंतर भारी बारिश एक प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति ज़रूर कही जा सकती है, लेकिन इस सच को नहीं झुठलाया जा सकता है कि राजधानी पटना में जल निकासी का संकट वर्षों से बना हुआ है। जिसने अबकी बार अपने रौद्र रूप का नज़ारा दिखला ही दिया। हर गली-मुहल्ले, कॉलनी में फैले मल-मूत्र, कचड़ा युक्त पानी ने प्रदेश की सुशासन कुमार जी के साथ साथ प्रदेश नगर विकास मंत्री, स्थानीय सांसद व सभी विधायक तथा नगर निगम महापौर ( सभी भाजपा के ) और संबन्धित विभागीय आला अफसरों के नकारेपन को सबकी आँखों में उंगली डालकर दिखला दिया।

पटना बाढ़ 13.PNG

ईश वंदना के पात्र वे सभी जागरूक और समझदार मतदाता भी हैं जिन्हें पानी ने अपने भँवर में फंसाया तो नगर के नालों की सफाई का महत्व समझ में आया।वर्ना अबतक  लाईलाज रहे भीषण जल-जमाव और उसकी निकासी के महासंकट को कभी भी ज़रूरी मुद्दा नहीं माना। इससे होनेवाले जल -उत्पात के खतरे को दूसरों की बला मानकर वोट देकर नगर निगम वार्ड पार्ष, मेयर से लेकर विधायक और सांसद चुनते समय इसे कोई बड़ा मसला नहीं समझा।

2014–2019 के चुनावों में मतदाता बने और देश का भविष्य कहे जानेवाले उन सभी युवा मतदाताओं को भी इस पानी ने पहली बार बाढ़ के प्रकोप का डरावना साक्षात्कार कराया। साथ ही यह भी पाठ पढ़ा दिया कि  सिर्फ मोबाइली हाइटेक और डिजिटली इंडियन बनने मात्र से जमीनी हालात और सवालात नहीं टाले जा सकते। वे कभी न कभी तो सबके हर पर चढ़ेंगे ही और जब ऐसा होगा तो ‘पानी–पानी' जैसा ही डरावना नज़ारा होगा। वंदे मातरम,जय श्रीराम, भारत माता कि जय और गोडसे ज़िंदाबाद जैसे नारे जितना भी लगाते रहें लेकिन जिस नगर में आप रहतें हैं वहाँ के मूलभूत नागरिक सवालों, संकटों से कोई मतलब नहीं रखेंगे तो ‘पानी–पानी’ जैसी नरकीय फजीहत झेलना ही नियति बनेगी।
पटना  बढ़  a.jpg
खबरों के अनुसार ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण माहौल पर भी प्रदेश मुख्यमंत्री जी सुशासनी वचन “नेचर किसी के हाथ में नहीं,लोगों का हौसला बुलंद रखना चाहिए!" जानलेवा स्थिति की गंभीरता का ही मज़ाक है। निरंतर दो दिनों से भी अधिक समय तक नगर के अधिकांश लोग पूरे परिवार के साथ पानी भरे कमरों और घर की छतों पर क़ैद रहे। पीने के पानी राशन - बिजली और संचार नेटवर्क से मोहताज और कटे रहें।  इसपर किसी की संवेदना नहीं ? दावा किया जाता रहा कि पानी निकासी के सभी ‘संप हाउस’ लगातार चालू हैं। खबरों में सच्चाई आई कि किसी संम्प का मोटर जल गया है, कोई रुक-रुक कर चल रहा है तो कोई जीर्ण–शीर्ण हालत में है। सरकार द्वारा घोषित विशेष हेल्प–लाइन पर मदद की गुहार पर संज्ञान लेने वाले अधिकांश अधिकारियों के नंबर स्विच ऑफ अथवा आउट ऑफ नेटवर्क की सूचना सोशल मीडिया में वायरल होती रही।

इसका मतलब ऐसा नहीं है कि शासन–प्रशासन तथा एसडीआरएफ–एनडीआरएफ ने कुछ नहीं किया। इनके द्वारा कई स्थानों पर लोगों को मदद पहुँचाने की खबरें भी आयीं हैं और वह दिखा भी। लेकिन भोगा हुआ कड़वा सच यही है कि स्थिति सबकी नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। उसपर से गोदी मीडिया के एक भक्त अखबार ने तो हद ही कर दी। इतनी भयावह स्थिति की कि ज़िम्मेवार सरकार - शासन के नकारेपन को उजागर करने की बजाय पटना में आए अतीत के बाढ़ की इतिहास गाथा प्रकाशित कर इस विपदा को भी ‘न्यूज़ एंटरटेनमेंट' का मसाला बना दिया। वहीं एक नवोदित सिने तारिका ने तो बाढ़ के पानी में भी फोटो शूट करवाकर सोशल मीडिया में वायरल करवाने से भी बाज़ नहीं आई।
पटना बाढ़ 10.jpg
बहरहाल खबर लिखे जाने तक फिलहाल प्रकृति की मेहरबानी से राजधानी में बारिश रुकी हुई है और कई इलाकों में जल जमाव घट रहा है। जिससे स्थिति की  विकारलता धीरे-धीरे कम होती जा रही है और जनजीवन थोड़ा सामान्य हो रहा है। तब भी कई इलाकों और सड़कें अभी भी पानी में डूबे हुए हैं और असंख्य घरों में पानी घुसा हुआ है। निस्संदेह कुछ दिनों बाद ये पानी नहीं रहेगा लेकिन जाते-जाते कई ऐसे गंभीर सवाल ज़रूर छोड़ जाएगा कि करोड़ों खर्च करके सिर्फ नगर को सुंदर -दिखाऊ बनाने और मेट्रो रेल दौड़ाने जैसे काम प्राथमिक है या थोड़ी सी बारिश होने से जल -जमाव से उत्पन्न बाढ़-संकट जैसे बुनियादी नागरिक सवालों के समाधान का समय रहते से कारगर उपाय किया जा सकता है।  

(गैर ज़रूरी नोट : मेरे बीमार पिता के घर के कई कमरों में अभी भी पानी की स्थिति कायम है। )

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Nitish Kumar
NDRF

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