NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
मज़दूर-किसान
समाज
भारत
राजनीति
पौड़ी, टिहरी, गैरसैंण की कैबिनेट बैठकों का क्या हासिल?
बंजर खेतों और सूने गांवों के बीच खड़े लोगों के लिए गढ़वाल मंडल का 50 बरस का उत्सव फीका रहा। क्योंकि उत्सव चंद दिनों का होता है और उनकी समस्याएं और मांगें वर्षों पुरानी हैं। जस की तस हैं।
वर्षा सिंह
03 Jul 2019
CM

गढ़वाल मंडल के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर को उत्तराखंड की भाजपा सरकार उत्सव की तरह मना रही है। लोकगीत-संगीत के कार्यक्रम आयोजित किये गये। मंडल मुख्यालय पौड़ी से पलायन की चिंता को लेकर गोष्ठी आयोजित की गई। विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। उत्सव के महत्वपूर्ण भाग के रूप में राज्य कैबिनेट की बैठक भी हुई। बैठक के बाद पौड़ी के लिए विकास योजनाओं की घोषणाएं भी हुईं। पौड़ी, गढ़वाल मंडल का मुख्यालय है। इतना सब कुछ होने पर पौड़ी की जनता को बेहद ख़ुश होना चाहिए। लेकिन बंजर खेतों और सूने गांवों के बीच खड़े लोगों के लिए ये उत्सव फीका रहा। क्योंकि उत्सव चंद दिनों का होता है और उनकी समस्याएं और मांगें वर्षों पुरानी हैं। जस की तस हैं।

CM Photo 10.. dt. 29 June, 2019.jpg

कैसे लौटें अपने गांव

पौड़ी के कल्जीखाल ब्लॉक के रहने वाले प्रगतिशील किसान हैं गरेश गरीब। वे चकबंदी को लेकर पिछले कई वर्षों से विभिन्न मंचों से अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। पौड़ी में पलायन पर हुई गोष्ठी में भी वे शामिल हुए। गणेश कहते हैं कि इस गोष्ठी में अधिकतर लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि चकबंदी के बिना लोग खेती से जुड़ नहीं सकते। खेती से नहीं जुड़ेंगे तो पलायन कैसे रुकेगा। वे निराश होकर कहते हैं कि सन् 88 से पहाड़ में ये मांग उठ रही है। हर सरकार चकबंदी की मांग को स्वीकार करती है। कागजों पर कुछ हाथ-पैर भी मारती है। लेकिन आज तक पौड़ी में चकबंदी नहीं लागू की गई। भूमि प्रबंधन नहीं हो रहा। फिर इस तरह की कैबिनेट बैठकें सिर्फ समय, शक्ति, बुद्धि और धन की बर्बादी ही साबित होती हैं। वे कहते हैं कि कैबिनेट बैठक को लेकर मेरे गांव के लोगों के यही भाव हैं। जितने लोग उस समारोह में आए, वहां से निराश होकर लौटे। गणेश गरीब कहते हैं कि किसानों को पहाड़ में बसाने के लिए पहले उन्हें भूमि तो उपलब्ध कराओ।

जबकि इसी समारोह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि प्रवासी उत्तराखण्डवासी राज्य के विकास में सहभागी बनें- लौटें अपने गाँव की ओर। गणेश गरीब का सवाल है कि कैसे लौटें, लौटने के रास्ते तो तैयार करो।

जब मंडल मुख्यालय वीरान, पौड़ी में बैठक करने का क्या काम

पौड़ी में कैबिनेट बैठक कर सरकार पर्वतीय जनता की भावनाओं को समझने और उन्हें ख़ुश करने का एक संकेत देना चाहती थी। इससे पहले गैरसैंण,टिहरी और हरिद्वार में भी कैबिनेट बैठकें की जा चुकी हैं। लेकिन जनता के बीच इस तरह की बैठकों से क्या संदेश जा रहा है।

प्रदेश भाजपा के ही नेता रविंद्र जुगरान कहते हैं कि कैबिनेट बैठक देहरादून में कीजिए या कहीं और कीजिए। उन बैठकों का क्या नतीजा निकला,लोग इसमें ज्यादा रुचि रखते हैं। वे कहते हैं कि यदि गैरसैंण राजधानी बनती तो उस जगह का, साथ ही समूचे पर्वतीय क्षेत्र का विकास होगा ही होगा। लेकिन साल-छह महीने के अंतराल पर इधर-उधर बैठकें करने से हमें हासिल क्या हुआ, ये जानना जरूरी है। फिर इस तरह पूरे मंत्रिमंडल को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने पर जो खर्च आता है, वो रकम उस क्षेत्र के विकास के लिए खर्च कर दिया जाता, तो ज्यादा बेहतर होता। पौड़ी में कैबिनेट बैठक कराने में ही लाखों रुपये खर्च हो गए होंगे। ये बैठकें इस तरह की धारणा बनाने का संकेत हैं कि हम पहाड़ के लिए चिंतित हैं।

रविंद्र जुगरान कहते हैं कि पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से ये राज्य बना था, लेकिन आज की तारीख तक पूरा पहाड़ पीछे ही खिसक रहा है। योजनाएं और घोषणाएं पहले भी थीं, आज भी हैं, आगे भी रहेंगी। लेकिन इन्प्लीमेंटेशन ज़ीरो है।

जुगरान सवाल उठाते हैं कि जिस पौड़ी में गढ़वाल का मंडल मुख्यालय है, वहां न कमिश्नर स्थायी तौर पर बैठते हैं, न डीआईजी बैठते हैं, न ही कोई अन्य मंडलीय अधिकारी वहां परमानेंट बैठता है। तो फिर इस कमिश्नरी से पहाड़ को क्या लाभ मिल रहा है। यदि सरकार पर्वतीय जनता की भावनाओं को समझना चाहती है तो पौड़ी से ही ये नियम लागू कर देती कि जितने भी मंडलीय अधिकारी हैं, वे पौड़ी में बैठें और देहरादून में उनके कैंप कार्यालय बंद किये जाएं।

टिहरी, गैरसैंण का हिसाब दो

राज्य में विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि हमें ये बताइये जब पिछले वर्ष टिहरी झील में बैठक की थी, तो उसके क्या नतीजे निकले। वहां तय हुए एजेंडे पर क्या काम हुआ। कौन-कौन सी योजनाएं क्रियान्वित हुईं। फिर ये बताइये कि गैरसैंण की कैबिनेट बैठक से आज की तारीख में गैरसैंण को क्या लाभ मिल रहा है। क्या टिहरी और गैरसैंण के लोगों की अपेक्षाएं पूरी हुई हैं।

पहले ये बताते कि टिहरी में बैठक हुई तो हमने कितने प्रस्ताव पास किये और किन किन को क्रियान्वित किया। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र के किसानों के लिए, नौजवानों के लिए ये काम किया। गैरसैंण में कैबिनेट बैठक की, आज वहां जो संस्थान बनना था, वो सब कुछ भी अभी नहीं हुआ। बैठक कर रहे हैं वो अच्छा है लेकिन उसका आउटपुट क्या आ रहा है ये बताने में सरकार असफल रही है। पौड़ी से ही राज्य में सबसे अधिक पलायन हुआ है,जबकि पौड़ी से पांच मुख्यमंत्री रहे। ऐसे में इन बैठकों से क्या फायदा। लोगों को अच्छा तो लगता है, जन भावनाएं आशाएं होती हैं सरकार से। क्या टिहरी और गैरसैंण की भावनाओँ की जनता की अपेक्षा पूरी हुई।

मथुरा दत्त जोशी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि तबादला नीति ने पर्वतीय क्षेत्र के स्कूल खाली कर दिये। स्वास्थ्य नीति ऐसी है कि पर्वत के अस्पताल खाली हैं। वे पिथौरागढ़ के दुर्गम क्षेत्र देवलतल के एक शिक्षक का उदाहरण देते हैं, जिनका तबादला अपेक्षाकृत सुगम चौखुटिया कर दिया गया। जबकि वो शिक्षक देवलतल में ही रहना चाहते थे। उस दुर्गम इलाके में कोई और नहीं जाना चाहता। ऐसे ही किसी शिक्षक का तबादला उस जगह कर दिया गया, जहां के सरकारी स्कूल में एक भी बच्चा नहीं है। सरकार की अन्य नीतियों पर भी वे सवाल उठाते हैं। वर्षा जल संचय करने वाले लोगों को वाटर बोनस देने का प्रस्ताव था जिसे खत्म कर दिया गया। अब केंद्र ने जल शक्ति का नारा दिया है तो सरकार भी जल संरक्षण की बात करने लगी है।

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता कहते हैं कि आज तक पर्वतीय क्षेत्र की कृषि का न्यूनतम समर्थन मूल्य तक तय नहीं किया जा सका है। जबकि पिछली सरकार ने पर्वतीय कृषि उत्पादों पर 500 रुपये प्रति क्विंटल अतिरिक्त बोनस देने का प्रावधान किया था, उसे भी त्रिवेंद्र सरकार ने खत्म कर दिया।

पहाड़ की पहाड़ सरीखी मुश्किलें कायम

राज्य में मौजूदा स्थिति ये है कि सरकार के पास गिनाने को तमाम योजनाएं हैं, विपक्ष के पास सरकार की नीतियों को लेकर सवाल हैं और पर्वतीय क्षेत्र की जनता के पास समस्याओं की लंबी सूची। सब पहाड़ की तरह अपनी जगह अड़ी हुई। अब देहरादून से बाहर अगली कैबिनेट बैठक कहां होगी,इसका इंतज़ार कीजिए।

Trivendra Singh Rawat
Development of Uttarakhand
UTTARAKHAND
uttarakhand farmer
uttarakhand govt.
farmers

Related Stories

त्वरित टिप्पणी: जनता के मुद्दों पर राजनीति करना और जीतना होता जा रहा है मुश्किल

उत्तराखंड चुनाव: पहाड़ के अस्तित्व से जुड़े सवालों का नेपथ्य में चले जाना

पूंजीवाद के दौर में क्यों ज़रूरी है किसान-मज़दूरों का गठबंधन

पर्यावरणीय पहलुओं को अनदेखा कर, विकास के विनाश के बोझ तले दबती पहाड़ों की रानी मसूरी

उत्तराखंड में बेरोज़गारी मात्र एक चुनावी मुद्दा है

किसान आंदोलन: इस ग़ुस्से और असंतोष को समझने की ज़रूरत है

पौधरोपण हो या स्वच्छता; अभियान की नहीं, व्यवस्था की ज़रूरत


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License