NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पहले सेब और अब आलूः बर्फबारी से लाहौल के आदिवासी किसान पूरी तरह बर्बाद
कृषि पर निर्भर इस क्षेत्र में, खेत से आलू निकाले जाने ठीक पहले, सिर्फ चार दिनों में आलू की क़ीमत प्रति क्विंटल 1,000 रुपए से अधिक गिर गई है।
मालविका सिंह
19 Nov 2018
Potato farmers in himachal pradesh

ऐसा लगता है कि लाहौल स्पीति के किसानों की परेशानी ख़त्म होने वाली नहीं है। पहले तो उन्होंने 22 सितंबर से 24 सितंबर तक समय से पहले हुई बर्फबारी के चलते अपनी सेब फसल पूरी तरह गँवा दी। अब गुरुवार को फिर हुई बर्फबारी ने आलू की फसल को चौपट कर दिया जो कि खेत से निकाले जाने को पूरी तरह तैयार था। कुछ दिन पहले कुछ किसानों ने आलू निकालना शुरू कर दिया था, लेकिन ख़राब मौसम ने उन्हें यह प्रक्रिया रोकने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हें नहीं पता था कि वे इसे भी पूरी तरह गँवा सकते हैं।

लाहौल में त्रिलोकनाथ के रहने वाले बुद्धि चंद कहते हैं कि, "ख़राब मौसम उनके काम में बाधा डाल रहा है। हम पहले ही बर्फबारी के कारण बहुत कुछ खो चुके हैं और अब चीज़ें बेहतर होती नहीं दिख रही हैं। लाहौल में सेब बगानों को 100 फीसदी नुकसान का सामना करना पड़ा।"

हालांकि पूरे इलाक़े में आलू निकालने की प्रक्रिया पूरी तरह से शुरू नहीं हुई है, आलू की नई फसल की क़ीमत चार दिनों में 1,000 रुपए प्रति क्विंटल तक गिर गई है। इससे किसानों को भारी नुकसान होगा। आलू की क़ीमत बाजार में 3,500 रुपए से सीधे 2,300 रुपए तक पहुँच गई है।

हर साल लाहौल स्पीति घाटी का संपर्क विश्व के बाक़ी हिस्सों से लगभग 6 महीने तक कटा रहता है और यहाँ के 99 प्रतिशत आबादी के लिए कृषि आय का मुख्य स्रोत है। भारी बर्फबारी के चलते वे एक समय में केवल ही फसल उगा सकते हैं और इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली मुख्य दो फसलें आलू और सेब हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सेब की खेती हाल ही में शुरू हुई है, लेकिन लंबे समय से इस क्षेत्र में आलू की खेती की जाती रही है।

भ्रष्टाचार और निजी व्यापारी का किसानों को कठिन स्थिति में डालना

आलू से सेब की खेती तरफ अधिक तेज़ी से हुए बदलाव में कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिनमें मुख्य रूप से आदिवासी ज़िले के किसानों के प्रति सरकार की उदासीनता शामिल है। मिसाल के तौर पर लाहौल के शांशा इलाक़े के एक स्थानीय किसान राजू ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमारे पास मंडी नहीं है। हम अपनी फसल का उत्पादन करते हैं और बाहर से व्यापारी आते हैं और हमारी फसलों को सीधे हमसे खरीदते हैं। अगर वे नहीं आते हैं, तो हम इसे आस पास की जगहों पर बेचते हैं, कुछ अपने लिए रखते हैं और बाकी को फेंक देते हैं।"

लाहौल किसान घाटी मंच के संयोजक सुदर्शन जस्पा न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहते हैं, "कोई सरकारी व्यापारिक सोसायटी नहीं है। लंबे समय से लाहौल पोटैटो सोसाइटी (एलपीएस) एकमात्र सोसायटी था जिसे सरकार द्वारा गठित किया गया था और यही वह जगह है जहां हम अपनी फसलों को बेचते थे। गुज़रते वर्षों में एलपीएस की स्थिति ख़राब हो गई है। एलपीएस के अधिकारियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों ने किसानों को कठिन स्थिति में छोड़ दिया।"

प्राइवेट सोसायटी स्थानीय लोगों द्वारा बनाए गए हैं जो किसानों से फसलें ख़रीदते हैं और उन्हें बेचने के लिए अलग-अलग बाजारों में ले जाते हैं। ज़गतार सिंह, पवन सैनी, शशि कुमार, दरबार सिंह और प्रकाश चंद जैसे स्थानीय किसानों ने कहा कि आलू की क़ीमतों में गिरावट के चलते उन्हें लाखों रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ेगा और इसके कारण किसान चिंतित हैं।

सिर्फ यही नहीं, हाल ही में, पोटैटो सिस्ट नेमाटोड की मौजूदगी के चलते हिमाचल प्रदेश से "सीड पोटैटो" (इस ज़िले में उगाई जाने वाली दो किस्मों में से एक) के प्रतिबंध को बताते हुए किसानों को सरकारी अधिसूचना का सामना करना पड़ा। ये अधिसूचना तब आई जब खेत से आलू निकाले जाने को तैयार था। परेशान किसानों ने इसके लिए कृषि मंत्री राम लाल मर्कांडा से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा जिसके बाद लाहौल स्पीति का नाम इस अधिसूचना से हटा दिया गया।

'न सरकार और न ही प्रकृति ने किसानों को बख्शा'

हालांकि इस क़दम उनके दुख को ख़त्म नहीं किया। जसपा ने न्यूजक्लिक को बताया, "हालांकि भेजे गए हमारे नमूने को मंज़ूरी मिलने के बाद अधिसूचना से लाहौल का नाम हटा दिया गया था फिर भी बाज़ार में यह पता चल गया था कि हमारे आलू में वायरस है और ख़रीदारों ने उन आलू को खरीदने से इंकार कर दिया। व्यापारी यहां आते हैं और किसानों को कुछ पेशगी रक़म देते हैं, फसल लेते हैं और उन्हें बाजार में बेचते हैं। उसके बाद वे वापस आते हैं और बाकी रक़म का भुगतान करते हैं। ये निजी व्यापारी हैं और मुख्य रूप से पंजाब के हैं। अब बर्फबारी के कारण, सड़कें अवरुद्ध हैं और वे नहीं आ सकते हैं, इसलिए यह कोई विकल्प नहीं है। दूसरा विकल्प स्थानीय स्तर पर मनाली और कुल्लू में फसल को बेचना है लेकिन अब बदनामी हो गयी है, इसलिए कोई मांग नहीं है और इसलिए प्राइवेट सोसायटी भी इन आलू को नहीं ख़रीद रहे हैं। सरकार को इसके लिए मुआवज़ा देना चाहिए क्योंकि न तो स्थानीय व्यापारी का दोष है और न ही किसान का।"

हालांकि कुछ किसानों ने अपने आलू को खेत से निकाला और उन्हें उचित मूल्य पर बेच दिया, मुख्य रूप से मयाद घाटी और तोध घाटी के सुदूर क्षेत्र (पत्तन क्षेत्र) के किसानों ने अपना फसल खेत से नहीं निकाला है। किसानों ने बताया है कि असामयिक हिमपात के कारण उनकी फसल पहले ही ख़राब हो चुकी है। पूरा पत्तन बेल्ट राज्य में कुल आलू की फसल का 25-30 प्रतिशत उत्पादन करता है और उस क्षेत्र में उगाए जाने वाले आलू की क़िस्म सीड पोटैटो नहीं होती है।

जसपा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "इस बार किसानों को किसी ने नहीं बख्शा। न तो प्रकृति ने और न ही सरकार ने। सेब की खेती करने वाले किसानों को भी ऐसी ही चीज़ों का सामना करना पड़ा। सितंबर महीने में कम से कम 99 प्रतिशत सेब की फसल नष्ट हो गई थी और अब आलू के फसल के साथ भी यही बात हुई है। जिन लोगों ने पहले तैयार सीड पोटैटो खेत से निकाल लिया था उसे कोई भी ख़रीद नहीं रहा है, जो लोग अन्य किस्मों को खेती करते हैं उनके फसल नष्ट हो जाते हैं। सरकार इस तरह के एक बड़े ज़िले की उपेक्षा करती है जहां पूरे 5-6 महीनों तक ज़िंदा रहने के लिए पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं जब हम बाकी दुनिया से कट जाते हैं, ये किसी के भी समझ से परे है।"

Lahual-Spiti
Himachal Pradesh
potato farmers
farmers crises
agrarian crisis
apple orchards

Related Stories

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

हिमाचल: प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस वृद्धि के विरुद्ध अभिभावकों का ज़ोरदार प्रदर्शन, मिला आश्वासन 

बिहार: कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर आलू किसान

हिमाचल सरकार ने कर्मचारियों के धरना-प्रदर्शन, घेराव और हड़ताल पर लगाई रोक, विपक्ष ने बताया तानाशाही फ़ैसला

हिमाचल प्रदेश: नियमित करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरीं आंगनबाड़ी कर्मी

हिमाचल प्रदेश: फैक्ट्री में ब्लास्ट से 6 महिला मज़दूरों की मौत, दोषियों पर हत्या का मुक़दमा दर्ज करने की मांग

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार

यूपी चुनाव: आलू की कीमतों में भारी गिरावट ने उत्तर प्रदेश के किसानों की बढ़ाईं मुश्किलें


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?
    01 Jun 2022
    प्रधानमंत्री ने तमाम विपक्षी दलों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया और उन्हें खत्म करने का खुला ऐलान किया है। वे हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार करते हैं, जैसे…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    महाराष्ट्र में एक बार फिर कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। महाराष्ट्र में आज तीन महीने बाद कोरोना के 700 से ज्यादा 711 नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    चीन अपने स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बना रहा है
    01 Jun 2022
    अप्रैल 2021 में पहला मिशन भेजे जाने के बाद, यह तीसरा मिशन होगा।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी : मेरठ के 186 स्वास्थ्य कर्मचारियों की बिना नोटिस के छंटनी, दी व्यापक विरोध की चेतावनी
    01 Jun 2022
    प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बिना नोटिस के उन्हें निकाले जाने पर सरकार की निंदा की है।
  • EU
    पीपल्स डिस्पैच
    रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ
    01 Jun 2022
    ये प्रतिबंध जल्द ही उस दो-तिहाई रूसी कच्चे तेल के आयात को प्रभावित करेंगे, जो समुद्र के रास्ते ले जाये जाते हैं। हंगरी के विरोध के बाद, जो बाक़ी बचे एक तिहाई भाग ड्रुज़बा पाइपलाइन से आपूर्ति की जाती…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License