NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पितृसत्ता से प्रेम, हिंदू राष्ट्र का जयकार !
हिंदू कोड बिल से लेकर रूप कंवर के सती होने और अब सबरीमाला तक, हर जगह महिलाओं को धर्म की आड़ में पराजित किया गया।

सुभाष गाताडे
27 Oct 2018
sati system

1980 के दशक के मध्य की घटना है जब 18 वर्षीय रूप कंवर अपने पति की चिता पर विवादास्पद परिस्थितियों में जल रही थी। उस समय की ये घटना सुर्खियों में रही। इस घटना को लेकर पूरे देश में आवाज़ उठी क्योंकि इस प्रथा- सती प्रथा- पर प्रतिबंध लगने के 150 वर्षों के बाद फिर से इस तरह की घटना सुनी गई। कोई भी व्यक्ति स्मरण कर सकता है कि किस तरह उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में हजारों महिलाएं परंपरा के नाम पर इस कृत्य की महिमा करते हुए सड़कों पर आ गई थीं।

महिलाएं अपने पति की चिता पर एक महिला के आत्म-बलिदान का जश्न मना रही थीं और सरकार के हस्तक्षेप का विरोध कर रही थीं जो उनकी स्वायत्तता, उनकी वैयक्तिकता को दबाना चाहती थीं!

यह आज अजीब लग सकता है, लेकिन सत्य था!

भारत में 'रूप कंवर' का किस्सा था। यद्यपि इससे थोड़ा अलग, एक बार फिर हाल ही में जब केरल की हजारों महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के कार्यान्वयन के विरोध में बाहर आ गईं, जिसमें 'सबरीमाला में अयप्पा मंदिर में 10-15 वर्ष की आयु या मासिक धर्म' वाली महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया गया था।

इस प्रथा की संवैधानिकता का आकलन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किस तरह महिलाओं के ख़िलाफ़ 'द्विपक्षीय दृष्टिकोण महिलाओं की प्रतिष्ठा को अपमानित करती है' और कहा कि यह 'असंवैधानिक है और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता' है। याद रहे, हिंदू धर्म के तहत मासिक धर्म वाली महिला को अशुद्ध माना जाता है और सामान्य जीवन में हिस्सा लेने से मना किया जाता है और उसे अपने परिवार में लौटने की अनुमति से पहले "शुद्ध"होना चाहिए।

ये मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में वापस चला गया है क्योंकि इसके पहले के फैसले अप्रभावी साबित हुए थे और इसके पहले के आदेश को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दाखिल की गई है।

ध्यान देने योग्य यह है कि दोनों ही मामलों में जिसमें 30 वर्षों से अधिक की अवधि का अंतर है, परंपरा की आड़ में हिंदुत्व के सर्वोच्च नेता को इस प्रथा का सहयोग करने में कोई पछतावा नहीं था कि चाहे वह प्राकृतिक रूप से 'बर्बर' और / या 'भेदभाव' करने वाला था।

हिंदुत्व के सर्वोच्च नेता ने सती का बचाव किया

कौन भूल सकता है कि बीजेपी के तत्कालीन एक वरिष्ठ नेता विजयराजे सिंधिया ने सार्वजनिक रूप से 'हमारी' सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में सती परंपरा का बचाव किया था और तर्क दिया था कि सती करना सभी हिंदू महिलाओं का मौलिक अधिकार था। (पृष्ठ 104, वीमेन एंड द हिंदू राइट, एड.तनिका सरकार और उर्वशी बुचलिया, 1996, काली फॉर वीमेन।)

या फिर हिंदुत्व के सर्वोच्च नेता ने सती का विरोध करने वाली महिलाओं को इस तरह कहा था कि 'बाज़ारी अौरतें' अविवाहित थी और ऐसी ही रहेगी: "इन महिलाओं को 'पतिव्रता' की जानकारी या 'सती' करने की इच्छा कैसे हो सकती है?"

इस बार भी ऐसी खबर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और इससे संबद्ध संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन को चुनौती देने वाले विरोध प्रदर्शनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हम जानते हैं कि महिला पत्रकारों को किस तरह परेशान किया गया, उनके वाहन में तोड़ फोड़ किया गया; युवती भक्त वापस लौट गईं 'क्योंकि हिंदू अधिकार कार्यकर्ताओं की भीड़ ने पहाड़ी पर स्थित मंदिर की ओर जाने वाली सड़क जो भगवान अयप्पा का गृह है उसे घेर लिया था।'

बीजेपी के समर्थक माने जाने वाले एक मलयालम अभिनेता ने 'सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ धमकी भी दिया था, जिसमें कहा गया था कि मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करने वाली महिला को "काट दिया जाएगा"।

कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी ने मासिक धर्म वाली महिलाओं के बारे में प्रचलित धारणा को समर्थन दिया था, और अप्रत्यक्ष तरीके से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया था। एक चर्चा के दौरान उनका निर्दोष दिखने वाला बयान जिसमें कहा गया था, 'क्या आप दोस्त के घर में खून से सना सैनिटरी नैपकिन ले जाएंगे?'इसकी सोशल मीडिया पर की आलोचना की गई थी।

 

माना जाता है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इन विरोधों को वैचारिक वैधता दी, जब उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि किस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समाज द्वारा स्वीकार किए गए परंपरा की प्रकृति और आधार पर विचार नहीं किया है और इसने समाज में "भेदभाव" को जन्म दिया है। और वह इस फैसले को यह कह कर सांप्रदायिक रंग देना नहीं भूलते कि "क्यों सिर्फ हिंदू समाज को आस्था के प्रतीकों पर इस तरह के निरंतर और स्पष्ट हमले का सामना करना पड़ता है, जाहिर है लोगों के जेहन में उपजता है और अशांति का कारण बनता है"।

 

 

हजी अली दरगाह में प्रवेश को लेकर साल 2016 के अदालत के आदेश के बारे में भागवत को कौन याद दिला सकता है कि महिलाओं को मकबरे के करीब तक जाने की अनुमति दी गई? या वह इसी अदालत के फैसले के बारे में कितनी जल्दी भूल गए जिसने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया? एक तरफ, कोई भी यह भी याद रख सकता है कि हिंदुत्व संगठन के प्रत्येक कार्यकर्ता अचानक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के बचाव करने वाले बन जाते हैं, लेकिन अब जब वही अदालत हिंदुओं के मामले में परंपरा को लेकर लिंग समानता पर फैसला सुनाती है तो उनको सुर बदलने में कोई हिचक नहीं होती।

 

 

आरएसएस और उसके संबद्ध संगठनों और संबंधित व्यक्तियों को नजदीक से जानने वाले किसी भी व्यक्ति को इस तरह के बयानों और ऐसे पक्ष में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं लगेगा।

 

हाल ही में, कन्याकुमारी से सांसद और मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर फाइनांस एंड शिपिंग पोन राधाकृष्णन ने # मीटू आंदोलन को "कुछ विकृत दिमाग" के लोगों द्वारा की गई एक शुरूआत बताया। इससे बीजेपी की छवि खराब हुई।

जिस तरह कठुआ में एक नाबालिग लड़की के रेप के मामले में सरकार ने कदम उठाया वह अभी भी लोगों की स्मृति में मौजूद है। इसके नेताओं ने न केवल बलात्कारियों की रक्षा की बल्कि इसके निर्वाचित सदस्यों और मंत्रियों ने भी यौन उत्पीड़न करने वाले गिरोह की रक्षा करने वाली रैलियों में हिस्सा लिया।

हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए उनके दावों का जो भी हो, - ऐसे सभी अन्य संरचनाओं की तरह जो विशेष धर्म और राजनीति को प्राथमिकता देने के मिलान के आसपास हैं - महिलाओं की स्वायत्तता, उनकी वैयक्तिकता उनका दावा और पितृसत्ता और लिंग उत्पीड़न का उनका विरोध एक 'असंभव' क्षेत्र है।

अपने पहले प्रमुख डॉ हेडगेवार के समय से आरएसएस ने हमेशा पदानुक्रमों में महिलाओं को रखा है, उन्हें दोयम दर्जे में डाल दिया है, इतना ही नहीं अभीमहिलाओं को आरएसएस में प्रवेश करना बाकी है। आरएसएस के दूसरे प्रमुख गोलवलकर ने अपनी पुस्तक 'बंच ऑफ थॉट्स' में लिखा है कि 'महिलाएं मुख्य रूप से माताएं हैं जिन्हें अपने बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए। महिलाओं को खुद को 'राष्ट्र सेविका समिति' नामक एक अलग संगठन बनाने के लिए कहा गया था, जो80 से अधिक वर्षों के अस्तित्व के बाद भी बच्चों को संस्कार (मूल्य) प्रदान करने और समाज, और राष्ट्र को मजबूत बनाने पर केंद्रित है।"

नए रूप में आरएसएस, जो माना जाता है कि भागवत महिलाओं के साथ-साथ यथास्थिति को बदलना चाहते हैं, अपने पहले रूप जैसा ही है। दरअसल, आरएसएस अभी भी महिलाओं के दोयम दर्जे में विश्वास कैसे करता है, हाल ही में दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला में प्रश्न-उत्तर सत्र में भी किसी ने महिलाओं को बाहर रखने के बारे में सवाल किया तो आरएसएस प्रमुख को यह कहते हुए कोई हिचकिचाहट नहीं हुआ कि संगठन सिर्फ उन चीजों का पालन कर रहा है जो उनके संस्थापकों ने तब की स्थिति के अनुसार अनुबद्ध किया है और उन्हें इस स्थिति में अभी भी कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं दिखता है।

 

यह इतिहास का हिस्सा है जब नए स्वतंत्र भारत के नेता एक ऐसे संविधान के लिए संघर्ष कर रहे थे जो व्यक्तिगत अधिकारों की पवित्रता पर आधारित था,जिसमें लाखों भारतीयों के लिए सकारात्मक कार्य के विशेष प्रावधान थे, जिन्हें धार्मिक शास्त्रों को मानने वालों ने उनके मानवाधिकारों से नकार दिया था,आरएसएस अपने तत्कालीन प्रमुख गोलवलकर के अधीन मनुस्मृति को स्वतंत्र भारत के 'संविधान' के रूप में समर्थन किया था।

 

यह वही समय था जब हिंदू संहिता विधेयक को पारित करके हिंदू महिलाओं को संपत्ति और विरासत में सीमित अधिकार देने के प्रयास किए गए थे, जिसका विरोध गोलवलकर और उनके अनुयायियों ने किया था, इस तर्क के साथ कि यह कदम हिन्दू परम्पराओं और संस्कृति के प्रतिकूल था।

कांग्रेस के भीतर हिंदुत्व अधिकार और रूढ़िवादी वर्ग ने किस तरह भगवाधारी स्वामियों और साधु के साथ मिलकर हिंदू संहिता विधेयक के लागू करने का विरोध किया था जो एक प्रसिद्ध इतिहास है। वास्तव में, सुधारविरोधी तथा अवसरवादी तत्वों के इस विविधतापूर्ण संयोजन ने बयान जारी करने के लिए खुद को नहीं रोका। उन्होंने सड़कों पर इस विधेयक का भी विरोध किया और विधेयक के ख़िलाफ़ भारत भर में बड़े पैमाने पर आंदोलन की अगुवाई की। ऐसा समय था जब उन्होंने दिल्ली में डॉ अम्बेडकर के निवास को घेरने की भी कोशिश की थी।

अम्बेडकर के ख़िलाफ़ उनका मुख्य तर्क यह था कि यह विधेयक 'हिंदू धर्म और संस्कृति' पर हमला था। इस विधेयक का भारी प्रतिरोध रामचंद्र गुहा की पुस्तक के इस अंश से स्पष्ट होता है:

हिंदू कोड बिल विरोधी समिति ने पूरे भारत में सैकड़ों बैठकें की, जहां कई स्वामियों ने प्रस्तावित क़ानून की निंदा की। इस आंदोलन में प्रतिभागियों ने खुद को एक धार्मिक योद्धा की तरह पेश किया जो धर्मयुद्ध के लड़ रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आंदोलन को समर्थ दिया। 11 दिसंबर, 1949 को आरएसएस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित किया जहां वक्ताओं ने इस विधेयक की निंदा की। एक ने इसे 'हिंदू समाज पर परमाणु बम' कहा...। अगले दिन आरएसएस कार्यकर्ताओं के एक समूह ने 'हिंदू कोड बिल मुर्दाबाद' का नारा लगाते हुए विधानसभा भवन की तरफ मार्च किया...। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री और डॉ अम्बेडकर के पुतले को जलाया, और फिर शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़ फोड़ की।

बीजेपी की पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने घोषणा की कि ये विधेयक हिंदू संस्कृति की भव्य संरचना को नष्ट कर देगा।

इस विधेयक पर संसद में बहस के दौरान अम्बेडकर और हिंदू संहिता विधेयक के समर्थन में अपने हस्तक्षेप में आचार्य कृपलानी ने कहा:

हिंदू धर्म के ख़तरे में होने के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। मुझे डर है कि मैं इस स्थिति को नहीं देख सकता। हिन्दू धर्म ख़तरे में नहीं है जब हिंदू चोर,बदमाश, व्यभिचार करने वाले, काला बाजारी करने वाले या रिश्वत लेने वाले हैं! हिंदू धर्म इन लोगों द्वारा ख़तरे में नहीं है, लेकिन हिंदू धर्म उन लोगों द्वारा ख़तरे है जो एक विशेष क़ानून में सुधार करना चाहते हैं! हो सकता है कि वे अधिक उत्साही हों मगर भौतिक चीजों में भ्रष्ट होने की तुलना में आदर्शवादी चीजों में अति उत्साही होना बेहतर है।

sati pratha
BJP
Sabrimala Temple
BJP-RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License