NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पकौड़े बेचने के लिए किसी भी बेरोजगार को मोदी सरकार की जरूरत नहीं
बेरोजगारी की स्थिति भयंकर है और बिना उचित नीति के किसी भी पार्टी की सरकार इतने शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे सकती स्टार्ट-अप, स्किल इंडिया, आदि के प्रयोग फलदायी नहीं हो रहे। ...
वीरेंद्र जैन
07 Feb 2018
pakuada modi

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावों के दौरान ऐसे भाषण दिये और चुनावी वादे किये थे जो अव्याहारिक थे और किसी भी तरह से चुनाव जीतने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये थे। उन्होंने मुहल्ले के बाहुबलियों जैसा 56 इंची सीना वाला बयान दिया था जो लगातार मजाक का विषय बना रहा। हर खाते में 15 लाख आने की बात को तो उनके व्यक्तित्व के अटूट हिस्से अमित शाह ने जुमला बता कर दुहरे मजाक का विषय बना दिया और उनके हर वादे को जुमले होने या न होने से तौला जाने लगा। पाकिस्तान के सैनिकों के दस सिर लाने वाली शेखी और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वास्तविक दबाव में सम्भव सैनिक कार्यवाही में बहुत फर्क होता है जो प्रकट होकर मजाक बनता रहा। इसी तरह के अन्य ढेर सारे बयान और वादों के बीच रोजगार पैदा करने वाली अर्थ व्यवस्था न बना पाने के कारण प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार देने के वादे का भी हुआ, जिसे बाद में उन्होंने एक करोड़ कर दिया था और इस बजट में उसे सत्तर लाख तक ले आये। जब शिक्षित बेरोजगारों को नौकरी न मिलने से जनित असंतोष के व्यापक होते जाने की सूचनाएं उन तक पहुंचीं तो उन्होंने किसी भी मीडिया को साक्षात्कार न देने के संकल्प को बदलते हुए ऐसे चैनल से साक्षात्कार के बहाने अपने मन की बात कही जो उन्हीं के द्वारा बतायी जाने वाली बात को सवालों की तरह पूछने के लिए सहमत हो सकता था। इसमें उन्होंने रोजगार सम्बन्धी अपने वादे को सरकारी नौकरियों से अलग करते हुए कहा कि स्वरोजगार भी तो रोजगार है जैसे आपके टीवी चैनल के आगे पकौड़े की दुकान भी कोई खोलता है तो वह भी तो रोजगार है। उनके इस बयान को नौकरी की आस में मोदी-मोदी चिल्लाने वाले शिक्षित बेरोजगारों ने तो एक विश्वासघात की तरह लिया ही, सोशल मीडिया और विपक्ष ने भी खूब जम कर मजाक बनाया। यह मजाक अब न केवल सत्तारूढ दल को अपितु स्वयं मोदी-शाह जोड़ी को भी खूब अखर रहा है। राज्यसभा में दूसरे वरिष्ठ सदस्यों का समय काट कर विश्वसनीय अमित शाह को समय दिया गया, जिन्होंने पकौड़े के प्रतीक को मूल विषय मान कर उसी तरह बचाव किया जैसे कि मणि शंकर अय्यर के चाय वाले बयान को चाय बेचने वालों पर आक्षेप बना कर चाय पर चर्चा करा डाली थी।

सच तो यह है कि पकौड़े के रूप में जो कटाक्ष किये गये वे पकौड़े बेचने या उस जैसे दूसरे श्रमजीवी काम को निम्नतर मानने के कटाक्ष नहीं थे।

पकौड़े बेचने के लिए किसी भी बेरोजगार को मोदी सरकार की जरूरत नहीं थी, वह तो काँग्रेस या दूसरे गठबन्धनों की सरकार में किया जा सकता था या लोग करते चले आ रहे थे। एक कहावत है कि ‘ बासी रोटी में खुदा के बाप का क्या!’ उसी तरह पकौड़े बेचने के लिए सरकार बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। एक आम बेरोजगार ने मोदी सरकार से यह उम्मीद लगायी थी कि दो करोड़ रोजगार में उसे भी उसकी क्षमतानुसार नौकरी मिल सकेगी। पकौड़े बनाने जैसी सलाह से उसका विश्वास टूटा है।

किसी भी कटाक्ष का पसन्द किया जाना समाज की दशा और दिशा का संकेतक भी होता है। यही कारण था कि न मुस्काराने के लिए जाने जाने वाले अमित शाह की भाव भंगिमा और भी तीखी थी। हो सकता है उसके कुछ अन्य कारण भी रहे हों।

पकौड़े के प्रसंग से एक घटना याद आ गयी। मैं कुछ वर्ष पहले बैंक में अधिकारी था और बैंक के लीड बैंक आफिस में पदस्थ था। यह कार्यालय बैंक ऋण के माध्यम से लागू होने वाली सरकारी योजनाओं के लिए बैंक शाखाओं और सरकारी कार्यालयों के बीच समन्वय का काम करता है। उन दिनों आई आर डी पी नाम से एक योजना चल रही थी जो गाँव के ग्रामीणों को पलायन से रोकने के लिए उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के प्रयास की योजना थी। इस योजना में सरकार की ओर से अनुदान उपलब्ध था जो अनुसूचित जाति- जनजाति के लिए 50% तक था। कलैक्टर के पास एक शिकायत पहुंची कि एक हितग्राही को बैंक मैनेजर ऋण देने में हीला हवाली कर रहा है। इस शिकायत को देखने के लिए उन्होंने उसे हमारे कार्यालय को भेज दिया। सम्बन्धित बैंक मैनेजर से बात करने पर उसने बताया कि उक्त आवेदन मिठाई की दुकान के लिए था और हितग्राही दलित [बिहारी भाषा में कहें तो महादलित] था। उसका कहना था कि उसकी दुकान से उस छोटे से गाँव में मिठाई कोई नहीं खरीदेगा, इसलिए योजना व्यावहारिक नहीं है। पकौड़ा योजना भी दलितों के हित में नहीं होगी क्योंकि इसमें कोई आरक्षण नहीं चलता।

इसी तरह अगर पकौड़ा बेचने तक केन्द्रित रहा जाये तो गाँवों और कस्बों में इस तरह की दुकानें आज भी इन जाति वर्गों की नहीं मिलतीं। आचार्य रजनीश ने गाँधी जन्म शताब्दी में गाँधीवाद की समीक्षा करते हुए कहा था कि गाँधीजी जाति प्रथा और बड़े उद्योगों के एक साथ खिलाफ थे, किंतु जाति प्रथा तो बड़े उद्योगों के आने से ही टूटेगी। बाटा के कारखाने में काम करने वाला मजदूर होता है जबकि गाँव में जूता बनाने वाला अछूत जाति में गिना जाता है। जातिवाद की समाप्ति के लिए कोई भी राजनीतिक सामाजिक दल कुछ नहीं कर रहा अपितु इसके उलट वोटों की राजनीति के चक्कर में सभी और ज्यादा जातिवादी संगठनों को मजबूत बनाने में सहयोगी हो रहे हैं। दुष्यंत ने लिखा है -

जले जो रेत में तलुवे तो हमने यह देखा

बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गये 

बेरोजगारी की स्थिति भयंकर है और बिना उचित नीति के किसी भी पार्टी की सरकार इतने शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे सकती स्टार्ट-अप, स्किल इंडिया, आदि के प्रयोग फलदायी नहीं हो रहे। इसके उलट सत्तारूढ दल चुनावी सोच से आगे नहीं निकल पाता, मोदीजी हमेशा चुनावी मूड में रहते हैं जिसे अभी हाल ही में हमने आसियान सम्मेलन के दौरन असम में दिये उद्बोधन के दौरान देखा। दावोस और बैंग्लुरु में तो वो बहुत ही गलत आंकड़े बोल गये जिससे पद की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची। वोटों की राजनीति पारम्परिक कुरीतियों को मिटाने की जगह उन्हें सहेजने का काम कर रही है। यह अच्छा संकेत नहीं है। 

Courtesy: हस्तक्षेप
बेरोज़गारी
नरेंद्र मोदी
मोदी सरकार
पकौड़े
शिक्षित बेरोज़गार

Related Stories

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां

सत्ता का मन्त्र: बाँटो और नफ़रत फैलाओ!

जी.डी.पी. बढ़ोतरी दर: एक काँटों का ताज

5 सितम्बर मज़दूर-किसान रैली: सबको काम दो!

रोज़गार में तेज़ गिरावट जारी है

लातेहार लिंचिंगः राजनीतिक संबंध, पुलिसिया लापरवाही और तथ्य छिपाने की एक दुखद दास्तां

माब लिंचिंगः पूरे समाज को अमानवीय और बर्बर बनाती है

अविश्वास प्रस्ताव: दो बड़े सवालों पर फँसी सरकार!

क्यों बिफरी मोदी सरकार राफेल सौदे के नाम पर?

अविश्वास प्रस्ताव: विपक्षी दलों ने उजागर कीं बीजेपी की असफलताएँ


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License