NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान
पाकिस्तान ने फिर छेड़ा पश्तून का मसला
पाकिस्तान के द्वारा शनिवार को पूर्वी अफगानिस्तान के प्रांतों कुनार और खोस्त पर किये गये हवाई हमलों में दर्जनों लोगों की हत्या के पीछे एक जानबूझकर की गई कोशिश नजर आती है।

एम के भद्रकुमार
20 Apr 2022
pakistan

पूर्वी अफगानिस्तान के प्रांत कुनार और खोस्त पर शनिवार को हुए पाकिस्तानी हवाई हमले में दर्जनों लोग मारे गए थे। पहली नजर में देखने में ऐसा लग सकता है कि यह उत्तरी वजीरिस्तान में पिछले दिन घात लगाकर किये गये हमले जिसमें सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे के विरोध में एक हड़बड़ाहट में की गई जवाबी प्रतिक्रिया है। लेकिन जो कुछ भी घटित हुआ है इसमें कुछ न कुछ जानबूझकर किया गया लगता है।

पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व इस बात से पूरी तरह से बेखबर है कि इस प्रकार की अवांछित हत्या से कुछ भी ठोस लाभ नहीं मिलने जा रहा है, जबकि इसके अप्रत्याशित स्तरों पर दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं। निश्चित तौर पर, अच्छी बात यह है कि न तो वाशिंगटन ही और न ही किसी अन्य क्षेत्रीय राजधानी - या इस्लामाबाद के नए प्रधानमंत्री ने ही इस पर कोई अस्वीकृति व्यक्त की है।

लेकिन जैसा कि अनुमान था, तालिबान की अंतरिम सरकार ने इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह वास्तव में तालिबान के लिए उसके पूर्व आकाओं कि ओर से मिली अपमानजक फटकार है। एक सुपर पावर को परास्त कर देने का आभामंडल तब अचानक से गुम हो जाता है जब यह बात खुलकर सामने आ जाती है कि तालिबान सरकार तो असल में विदेशी हमले के खिलाफ अपने नागरिकों तक की रक्षा कर पाने में असमर्थ है।

यह तालिबान सरकार के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने के अभियान के लिए एक झटके से कम नहीं है। अभी हाल तक रूस के साथ-साथ कुछ अन्य क्षेत्रीय राज्यों के द्वारा अपनी-अपनी राजधानियों में अफगान मिशनों को चलाने के लिए तालिबान को आधिकारिक मान्यता प्रदान करने का काम सुचारू रूप से आगे बढ़ रहा था, जो कि औपचारिक मान्यता से कुछ कम, लेकिन वास्तव में देखें तो यह मान्यता देना ही है।

इसी प्रकार से अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की चीन के टुन्क्सी में हुई हाल की बैठक से जो आवेग पैदा हुआ था, उसे भी एक झटका लगा है। विडंबना यह है कि चीन ने इस आवेग को उत्पन्न करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। इसके साथ ही, यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि के खिलाफ, रूस पूरी तरह से इस बात पर जोर देने के लिए राजी था कि क्षेत्रीय राज्यों को तालिबान सरकार के लिए एक मार्ग पर चलने के लिए पहलकदमी लेनी चाहिए।

इस सिलसिले में राज्य सलाहकार एवं विदेश मंत्री वांग यी ने काबुल का दौरान भी किया था।  लेकिन अब ऐसा पता चल रहा है कि बीजिंग के आयरन ब्रदर ने एक ही झटके में सब कुछ खत्म कर दिया है। शनिवार को हुए पाकिस्तानी हवाई हमले को लेकर चीन ने चुप्पी साध रखी है,  जो कि अफगानिस्तान की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का खुला उल्लंघन है। 

यह अंतिम हिस्सा महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजिंग ने एक सुसंगत सिद्धांत का अनुमोदन किया है जो यह अफगानिस्तान को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में मदद पहुंचाता है। वास्तव में देखे तो, हाल ही में 31 मार्च को, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक विशेष संदेश में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के शीर्षस्थ राजनयिकों के समक्ष इस बात को  रेखांकित किया था कि अफगानिस्तान “अराजकता से अनुशासन की ओर संक्रमण के एक महत्वपूर्ण बिंदु” पर आ चुका है। उन्होंने कहा:

“सभी भाग लेने वाले देशों के साथ अफगानिस्तान एक साझा पड़ोसी देश है। हम समान पहाड़ों और नदियों से जुड़े साझा भविष्य के साथ एक समुदाय का निर्माण करते हैं जो एक साथ उठेंगे और गिरेंगे…चीन हमेशा अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है और वह इसकी शांति, स्थिरता और विकास की चाहत को समर्थन देने के प्रति प्रतिबद्ध है।”

निश्चित ही, अमेरिका को ध्यान में रखते हुए बीजिंग ने अपने लिए इस प्रकार का उच्च मानदंड रखा है। वहीँ दूसरी तरफ पाकिस्तानी हमलों ने एक मिसाल स्थापित कर दी है। अब आगे, वास्तव में क्या अमेरिका को अफगानिस्तान में सैन्य अभियान चलाने से क्या चीज रोक सकती है? बाजवा को यह ख्याल नहीं आया कि इस समय अफगानिस्तान अपनी संप्रभुता को हासिल करने के लिए जूझ रहा है, और इस मौके पर ठोकर मारना उसे घातक रूप से चोटिल कर सकता है।

लेकिन तब इस बात में कोई शक नहीं है कि बाजवा ने ठंडे दिमाग से इस बात का आकलन किया होगा कि तालिबान को अनुशासित करने के प्रति वाशिंगटन सहानुभूति रखेगा। वास्तव में, इस एकल कार्यवाही के साथ उसने प्रदर्शित कर दिया है कि पाकिस्तानी सेना के पास अब तालिबान के बारे में कोई भावनात्मक लगाव नहीं बचा है, भले ही अतीत में उनके बीच दशकों तक सहजीवी संबंध रहे हों।

निश्चित रूप से, पाकिस्तान पश्चिमी खेमे के करीब आ रहा है, भले ही चीन और रूस के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय राज्य पश्चिमी अपवाद को खत्म करने में जुटे हुए हैं और एक मजबूत क्षेत्रीय प्रक्रिया में तालिबान को रचनात्मक रूप से शामिल कर रहे हैं। (वैसे, व्हाईट हाउस ने टुन्क्सी में तथाकथित विस्तारित तिकड़ी की हालिया बैठक में चीन, रूस और पाकिस्तान के संयुक्त बयान से आखिरी मिनट में अलग होने का फैसला किया।)

यह एक बेहद उच्च-दांव वाला खेल है, क्योंकि वांग यी ने औपचारिक रूप से काबुल में तालिबान सरकार के नेतृत्व को अफगानिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को विस्तारित करने का प्रस्ताव दिया है और कार्यवाहक उप-प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने वास्तव में इस विचार का स्वागत किया है।

पीछे मुड़कर देखें तो यह बाजवा द्वारा पिछले अक्टूबर में आईएसआई प्रमुख के पद से लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हमीद को पद से हटाना (पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के प्रतिरोध पर काबू पाना) था, जो रावलपिंडी और तालिबान के बीच में जीएचक्यू के बीच के समीकरण को एक बार फिर से परिभाषित करने के लिए निर्णायक क्षण साबित हुआ। हमीद का तालिबान नेतृत्व के साथ अच्छा तालमेल और उनका भरोसा हासिल था। संक्षेप में कहें तो तालिबान ने बाजवा के अड़ियल रवैये -  व्यक्तिगत, राजनीतिक और भू-राजनीतिक हितों के पीछे की भारी मजबूरियों को सटीक ढंग से महसूस किया - हमीद को आईएसआई प्रमुख के पद से अपदस्थ करने के लिए, यहां तक कि इमरान खान के साथ गतिरोध को जोखिम में डालते हुए भी।

अमित को हटाए जाने के बाद से, तालिबान और रावलपिंडी के बीच चीजें फिर कभी वैसी नहीं रह गई हैं। जैसे ही इमरान खान का प्रभाव घटना शुरू हुआ, तालिबान जो कि पाकिस्तान की बीजान्टिन राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है, ने उचित निष्कर्ष निकाले। यूरोपीय शक्तियों, अमेरिका, भारत आदि के प्रति तालिबान के रुख को अब बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। अफगान सहज रूप से पाकिस्तानी दबाव को संतुलित करना चाहता है। लेकिन, इस मामले में तालिबान ने गलत अनुमान लगा दिया, क्योंकि बाजवा वाशिंगटन के लिए बहुत काम के हैं - कम से कम, तात्कालिक संदर्भ में तो अवश्य है ।

सभी अफगानी हलकों ने व्यापक रूप से पाकिस्तानी हमले के निंदा की है, जिसमें तालिबान के कट्टर विरोधी के रूप में विख्यात राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ)  तक इसमें शामिल है। इसके साथ ही, हालाँकि, एनआरएफ के द्वारा (जिसने काबुल में प्राचीन शासन के सुरक्षा प्रतिष्ठान से बड़े पैमाने पर तालिबान विरोधी प्रतिरोध समूहों को निकालकर इसका गठन किया है) तालिबान पर कटाक्ष करना भी जारी रखा है।

पाकिस्तानी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए  एनआरएफ के बयान में यह भी कहा गया है, “इस आक्रमण और पाकिस्तानी बलों के द्वारा किये गए अंधाधुंध हमलों की कड़ी निंदा करते हुए, हमारा मानना है कि तालिबान का कब्जा वाला शासन ही अफगानिस्तान में विदेशी आक्रमण का मुख्य कारण है। हम अफगानिस्तान में कब्जाधारियों और छद्म समूहों का अंत किये जाने पर बल देते हैं।

पाकिस्तानी सेना और तालिबान के बीच  का मनमुटाव एनआरएफ को दुविधा की स्थिति में डाल रहा है, क्योंकि इसका मुख्य मुद्दा यह रहा है कि तालिबान आईएसआई का मात्र एक मोहरा भर है, जिसका एजेंडा अफ़गानिस्तान में पाकिस्तानी शक्ति को प्रोजेक्ट करने का है। यह तख्तेबंदी उस समय ढीली पड़ रही है जब एनआरएफ कथित रूप ताजीकिस्तान में अपने ठिकानों से अफगानिस्तान में छापामार युद्ध शुरू करने की तैयारी में जुटा हुआ है।

वाशिंगटन पोस्ट से सम्बद्ध फॉरेन पॉलिसी पत्रिका ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गर्मियों में गुरिल्ला युद्ध शुरू होने वाला है। रूसी रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि पश्चिमी राजनयिक ढीले सिरों को मजबूती से बाँधने के लिए गुपचुप तरीके से ताजिकिस्तान का दौरा कर रहे हैं। विरोधाभास यह है कि बाजवा और एनआरएफ नेता अब्दुल्लाह सालेह दोनों ही अब अमेरिकी संरक्षण का लुत्फ़ उठा रहे हैं!

इस सबके बावजूद, बाजवा का फैसला उतना ही जोखिम भरा है। उम्मीद है कि बाजवा अगला तार्किक कदम उठाने से परहेज करेंगे, जो कि तालिबान को विभाजित करने के लिए होगा - ऐसा कुछ जो अमेरिकियों को खुश कर दे। लेकिन वे कहीं न कहीं पश्तून जातीय-राष्ट्रवाद को चिढ़ा रहे हैं। यह सब एक ऐसे मोड़ पर अत्यंत संवेदनशील मसला है, जब पाकिस्तानी शक्ति संतुलन अपनेआप में ही पूरी तरह से पंजाबी अभिजात्य वर्ग का इतना अधिक वर्चस्व है। पश्तूनों के बीच में इमरान खान के लिए समर्थन का विशाल जमीनी आधार पेशावर और कराची में हो रहे विरोध रैलियों के आकार के लिहाज से स्पष्ट सिद्ध हो रहा है। 

निकट भविष्य के लिहाज से, तालिबान के पास जातीय-राष्ट्रवाद के लिए भी इसका उपयोग होगा, खास तौर पर सत्ता साझा करने और “समावेशी” सरकार के निर्माण में उसकी असमर्थता और अनिच्छा को देखते हुए। इन सभी संभावनाओं को देखते हुए, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (पाकिस्तानी तालिबान) के और अधिक कट्टरपंथ और उग्रवाद के रूप में प्रकट होने की संभावना नजर आ रही है। अमेरिकी मदद से पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद की इन उभरती परिस्थितियों में, यदि अफगान तालिबान ने टीटीपी पर लगान लगाने की कोशिश की तो उसके खुद के पंख क़तर दिए जाने की संभावना है।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें
https://www.newsclick.in/pakistan-stirs-up-pashtun-hornet-nest

Pakistan
Pashtun
Afghanistan
taliban in afghanistan

Related Stories

उथल-पुथल: राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझता विश्व  

भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी

पाकिस्तान में बलूच छात्रों पर बढ़ता उत्पीड़न, बार-बार जबरिया अपहरण के विरोध में हुआ प्रदर्शन

तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में स्कूल के निकट सीरियल ब्लास्ट, छात्रों समेत 6 की मौत

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

पाकिस्तान में नए प्रधानमंत्री का चयन सोमवार को होगा

कार्टून क्लिक: इमरान को हिन्दुस्तान पसंद है...

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?

पाकिस्तान: इमरान की कुर्सी बचाने की अंतिम कवायद, अमेरिका के प्रति अपनाया हमलावर रुख


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License