NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान - एक नाटक !
साल 2011 से लेकर 2016 तक किसानों की आय में 0.44 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई। मौजूदा समय में किसानों की मासिक आय 1700 रुपये है। तकरीबन 58 फीसदी किसान हर रात भूखे पेट सोने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसे हालात में कैसे अन्नदाता आय संरक्षण अभियान से बनी खरीद नीति किसानों के आय की भरपाई कर पाएगी ,यह समझ से परे है।
अजय कुमार
13 Sep 2018
farmers

किसान यानी अन्नदाता के पास जीने लायक आय नहीं है। मुश्किल से उसकी गुजर बसर हो पाती है। जब गुजर बसर नहीं हो पाती है तो वह आत्महत्या को गले लगा लेता है। जब वह आत्महत्या करता है तब किसानों की जिंदगी से उल्टा चल रहे आर्थिक मॉडल वाले सामज में उसके लिए कुछ आंसू बहाए जाते हैं। सरकार किसी भी तरह से आंसू पोंछने में लग जाती है ताकि वह खुद को किसानों की हितैषी बता सके। जब ऐसे नाटक रचे जाते हैं तब केंद्रीय कैबिनेट प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान ( PM -AASHA) जैसे लुभावने शबदवाली वाली योजना की घोषणा होती है। अब आप यह पूछेंगे कि आख़िरकार यह नाटक कैसे है? तो इसे ऐसे समझिये-

जब भी किसानों की जिंदगी के सुधार की सारी बातें न्यूनतम समर्थन मूल्य तक आकर सिमट जाएं तो यह समझिये कि किसानी की बदहाल हो चुकी अर्थव्यवस्था को सुधारने की बात नहीं की जा रही है बल्कि सुधार के नाम पर नाटक रचा जा रहा  है।  ऐसा इसलिए है क्योंकि शांता कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा का फायदा केवल 6 फीसदी किसान उठा पाते हैं। यानी तकरीबन 94 फीसदी किसानों पर कोई बातचीत नहीं होती है। इनके जीवन को सुधारने की कोशिश नहीं की जाती है। प्रधानमंत्री अन्नदाता संरक्षण अभियान भी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदायगी से जुड़ी घोषणा है। सरकार ने इस आय संरक्षण अभियान के तहत किसानों को 15053 करोड़ रुपये आबंटित करने की घोषणा की है। इसे आने वाले दो सालों में 6250 करोड़  सलाना के हिसाब से किसानों को दिया जाएगा। इसके साथ किसानों को कर्जा देने वाली एजेंसियों को 16550 करोड़ रुपये आबंटित करने की भी घोषणा की गयी  ताकि किसानों की आय में हुई कमी को इसके जरिये पूरा किया जा सके। दो सालों के लिए किसानों को दिया जाने वाला यह पूरा आबंटन किसानों के लिए जरूरी आबंटन का तकरीबन एक चौथाई से भी कम है। इससे ज्यादा इजाफा तो सरकारी मुलाजिमों की आय में सालाना किया जाता है। सरकारी मुलाजिमों को महंगाई भत्ते के लिए सालाना आबंटित होने वाली राशि  तकरीबन साढ़े चार लाख करोड़ होती है। यानी एक तरफ किसानों को अन्नदाता भी कहा जा रहा है, किसानों की आबादी सरकारी मुलाजिमों के 2.5फीसदी आबादी के मुकाबले तकरीबन 50 फीसदी है, लेकिन आय संरक्षण की लिहाज से किसानों को जो राशि आबंटित करने की घोषणा की गयी है, वह ढाई फीसदी आबादी को सलाना महंगाई से निपटने के लिए दी गयी राशि से भी कम है।  

यहां यह  ध्यान रखने की जरूरत है कि सरकार द्वारा घोषित किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य के अनुरूप नहीं है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री साल 2014 के चुनावी रैलियों में किया करते थे। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए उपज की लागत के तौर पर केवल किसानों द्वारा उपज के लिए किया गया खर्च और परिवार द्वारा लगया गया श्रम शामिल करती है। इसमें जमीन की लागत और जमीन का किराया शामिल नहीं किया जाता है,जिसकी घोषणा स्वामीनाथन आयोग ने की थी। यानी की एमएसपी के तौर पर किसानों को दिये जाने वाले ड्यौढ़ा दाम की लकीर ही छोटी कर दी गयी है।  एमएसपी  की  जमीनी हकीकत  इस छोटी लकीर को और भी छोटा कर देती है। केंद्र सरकार का तकरीबन 23 फसलों पर एमएसपी देने का मैंडेट है। लेकिन धान और गेहूं के सिवाय अन्य किसी भी फसल पर एमएसपी के तहत मूल्य बहुत मुश्किल से मिल पता है। धान और गेहूं के मामलें में भी पंजाब और हरियाणा को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में एमएसपी के तहत निर्धारित मूल्य की प्राप्ति नहीं हो पाती है। इन सबके बाद भी पंजाब से रोजाना किसानी की वजह से आत्महत्या करने वाले लोगों की खबर आती है। अभी भी देश के अधिकांश मंडियों में एमएसपी के तहत जो मूल्य दिया जा रहा है वह यूपीए के कार्यकाल में दिए जाने वाले मूल्य से भी कम है। 

अन्नदाता संरक्षण योजना के तहत मध्य प्रदेश में लागू भावान्तर योजना को तिलहन से जुड़े उत्पादों के मामलें में देश भर में विकल्प के तौर पर अपनाने की भी बात की गयी है।  यानी तिलहन के मसले पर औसत थोक विक्रय मूल्य अगर एमएसपी से कम होगा तो कमी का भुगतान सरकार किसान के खाते में सीधे तौर पर करेगी। जबकि जमीनी धरातल पर मध्यप्रदेश में भावंतर योजना की हालत अच्छी नहीं है।  इस योजना के वजह से व्यापारी खरीद के मूल्य में हेरफेर करते रहते हैं।  मण्डियों में थोक विक्रय मूल्य को कम रखा जाता है और शेष राशि का भुगतान सरकार से ले लेने के लिए दबाव डाला जाता है। बाद में सरकार से बकाया राशि हासिल करने में भी बहुत दिक्कत आती है। आंकड़ें बताते है कि मध्यप्रदेश के सभी सोयाबीन किसानों में से केवल साढ़े 18 फीसदी किसानों को ही भावंतर  योजना के तहत भुगतान मिल पाया है। इसके साथ अन्नदाता संरक्षण योजना के तहत  अधिसूचित तिलहन के मामलें में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कमी की भरपाई के लिए प्राइवेट प्रोक्यूरेमेन्ट स्टॉकिस्ट जैसी योजना की भी बात की  गई है। यानी कि राज्य सरकारों को किसानों से उनकी उपज की खरीद में निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी जोड़ने की छूट होगी। अधिसूचित तिलहन फसलों के लिए एमएसपी का भुगतान करने के लिए निजी कंपनियों को एमएसपी का 15 सुविधा शुल्क के तौर पर दिया जाएगा। यानी सरकार किसान के बाजार को बर्बाद कर रही है। इसमें ऐसी संभावना पनपने का खतरा है कि निजी कंपनियां  उपज के स्टॉक को अपने हिसाब से कम और अधिक करते रहें और बाजार को बर्बाद करते रहें। एमएसपी से पिंड छुड़ाने के लिए सरकार, निजी कंपनियों की तरफ बढ़ रही है।  शायद इसका मतलब यह भी हो सकता है कि सरकार  किसानी पर विश्व व्यापार संगठन के नियम  के रुख को अपनाने की तरफ बढ़ रही है जहां भारत द्वारा किसानी पर अपनी कुल जीडीपी का दस फीसदी से अधिक खर्च करने की  नीति पर लगाम लगाने की बात कई सालों से चलती आ रही है। 

एमएसपी भुगतान की पूरी  जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर होती है। लेकिन इस खरीद नीति में केंद्र सरकार ने अपनी जिम्मेदारी केवल 25फीसदी तय की है।  यानी कि 75 फीसदी का भुगतान राज्यों द्वारा किया जाएगा। साल 2011 से लेकर 2016 तक किसानों की आय में0.44 फीसदी  के दर से बढ़ोतरी हुई। मौजूदा समय में किसानों की मासिक आय 1700 रुपये है। तकरीबन 58 फीसदी किसान हर रात भूखे पेट सोने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसे हालात में कैसे अन्नदाता आय संरक्षण अभियान से बनी खरीद नीति किसानों के आय की भरपाई कर पाएगी ,यह समझ से परे है। ऐसी घोषणाओं की लुभावनी शब्दावली किसानों के आंसू पोंछने का नाटक तो लिखती है लेकिन सही तरह से नाटक का मंचन भी नहीं कर पाती। अंतिम  सच्चाई यही है कि भारत के मौजूदा आर्थिक मॉडल में  अन्नदाता को भूख और गरीबी से बाहर निकल जीने का कोई तरीका नहीं मिल सकता है।  

farmers
farm loan
agrarian crises
Modi
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान

Related Stories

मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

किसानों, स्थानीय लोगों ने डीएमके पर कावेरी डेल्टा में अवैध रेत खनन की अनदेखी करने का लगाया आरोप

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License