NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री मोदी के दावों की पड़ताल : अन्य राज्यों से कई मामलों में बेहतर है जम्मू-कश्मीर
प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ में जम्मू-कश्मीर के पिछड़ेपन को लेकर जिस तरह के दावे किए हैं। क्या वह सही हैं? आइए तथ्यों की रोशनी में इसकी पड़ताल करते हैं।
अजय कुमार
09 Aug 2019
rashtra ke naam sandesh
image courtesy:NDTV

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद गुरुवार रात राष्ट्र के नाम संदेश में जम्मू-कश्मीर के पिछड़ेपन को लेकर जिस तरह के दावे किए, क्या वह सही हैं। क्या वाकई जम्मू-कश्मीर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार के क्षेत्र में इतना पिछड़ा है कि उससे उसे निकालने के लिए अनुच्छेद 370 का हटाया जाना और सीधे केंद्र के अधीन किया जाना ज़रूरी था। आइए तथ्यों की रोशनी में इसकी पड़ताल करते हैं।   

प्रधानमंत्री के टेलीविजन पर दिए गए भाषण का सार-संक्षेप यही था कि आर्टिकल 370 की वजह से कश्मीर में वैसा विकास नहीं पाया जो भारत के दूसरे राज्यों में हुआ। आर्टिकल 370 की वजह से भारत के कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो रहे थे, इसलिए जम्मू कश्मीर का विकास नहीं हो रहा था। जम्मू कश्मीर में अलगाववादी धड़ा पनप रहा था, भ्रष्टाचार हावी था और परिवारवाद हावी हो रहा था।  

प्रधानमंत्री ने यहां सही तथ्य नहीं रखे। इसे हम तीन कसौटियों पर कस सकते हैं, पहला संवैधानिक स्तर, दूसरा कश्मीर के विकास का स्तर पर और तीसरा निष्कर्ष का स्तर। 

संवैधानिक स्तर पर झूठ का खुलासा इस तरह से होता है कि केवल जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि भारत के और भी दूसरे राज्य हैं, जहां पर कानून और नियमों की प्रकृति अलग है। और सभी अलग तरह से लागू होते हैं।
इनका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 371 में किया गया है।

महाराष्ट्र व गुजरात, नगालैंड, असम, सिक्किम, मणिपुर, मिजोरम,आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश ऐसे राज्य है। इसके साथ संविधान की अनुसूची पांच कुछ क्षत्रों की पंचायतों की इतनी शक्ति देता है कि उस क्षेत्र में किसी भी तरह का कानून बिना पंचायतों की अनुमति से लागू नहीं हो सकता है। अभी तरह राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भारत की केंद्रीय सूची के 97 विषयों में से 94 विषय जम्मू कश्मीर पर लागू हैं। 12 अनुसूचियों में से 7 अनुसूची जम्मू कश्मीर पर लागू हैं। यानी आर्टिकल 370 के रहने के बाद भी जम्मू कश्मीर में केंद्र का मजबूत हस्तक्षेप रहा है। उदाहरण के तौर पर ऐसे कुछ महत्वपूर्ण उपबंध जो भारत के संविधान और जम्मू कश्मीर दोनों जगहों पर लागू हैं।

 - भारत के संविधान की प्रस्तावना जम्मू कश्मीर में भी लागू है। इसका मतलब है कि जम्मू कश्मीर के संविधान की भाषा में कभी भी कुछ भी बदलाव हो लेकिन उनके मूल्य भारतीय संविधान के प्रस्तावना वाले ही होंगे 

- भारतीय संविधान का भाग-1 संघ और उसका राज्यक्षेत्र जम्मू कश्मीर पर भी लागू होता है। केवल अपवाद यह है कि अनुच्छेद 3 के राज्य की सीमा में किसी भी तरह का घटाना, बढ़ाना बिना राज्य की विधानसभा की अनुमति से नहीं किया जा सकता है।   

- भारत के संविधान में उल्लेखित नागरिकता के उपबंध भी जम्मू कश्मीर में लागू होते हैं। 
 
- 
जम्मू कश्मीर पर भारत के संविधान में उल्लेखित मूल अधिकार पूरी तरह से लागू होता है। इसके केवल दो अपवाद हैं - पहला,  निवारक निरोध यानी बिना बताये गिरफ्तारी की शक्तियां संसद के पास न होकर राज्य के विधानमंडल के पास हैं। और दूसरा, राज्य को यह अधिकार है कि राज्य अपने स्थायी नागरिकों के लिए राज्य की सरकारी नौकरी, राज्य की अचल सम्पत्तियों के मालिकाना हक, राज्य में स्थायी निवास और राज्य सरकार द्वारा छात्रवृत्ति सहित अन्य सहायताओं की व्यवस्था कर सकती है।  

इस तरह से प्रधान मंत्री की यह बात सही नहीं है कि राज्य के दलितों की आरक्षण की व्यवस्था आर्टिकल 370 की वजह से नहीं हो पा रही थी। साल 2004 से जम्मू कश्मीर रिजर्वेशन एक्ट लागू है। जिसके तहत आर्थिक तौर पर कमजोर और पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों को आरक्षण मिलता है। अनुच्छेद 340 , 341 और 342 भी वहां लागू है। यानी केंद्र की पिछड़ा वर्ग नियुक्ति, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के निर्धारण की शक्ति भी वहां लागू है। और जम्मू कश्मीर में दलितों की स्थिति यह है कि इस राज्य में दलितों की संख्या उत्तर भारत से बहुत कम है। क्योंकि यहां हिन्दू धर्म की जातियों में पंडितों की बहुलता है।

जम्मू और कश्मीर में मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी कई भारतीय राज्यों की तुलना में अधिक है। लेकिन दलितों के साथ भेदभाव तो होता ही है। लेकिन कहने का मतलब यह है कि जब मूल अधिकार लागू हैं तो दलितों के आरक्षण करने की व्यवस्था का जुड़ाव आर्टिकल 370 से नहीं है। आर्टिकल 370 रहने के बाद भी केवल गवर्नर के परामर्श से वहां पर आधार एक्ट, पाक्सो एक्ट, फैमिली कोर्ट, डीसब्लिटी एक्ट जैसे 11 कानून लागू कर दिए गए। तो और भी कानून लागू किये जा सकते थे। इसके बीच आर्टिकल 370 नहीं आ रहा था। केवल वहां की जनता के नुमाइंदों से बातचीत कर कानून बनाने को यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी वजह से कुछ किया नहीं गया। 

-संविधान का नीति  निदेशक तत्व  और मूल कर्तव्य, जम्मू कश्मीर के साथ स्वतंत्र तरीके से व्यापार और वाणिज्य,जम्मू कश्मीर में भी अखिल भारतीय सेवाओं यानी आईएएस और आईपीएस की नियुक्ति,  विधनासभा में अनुसूचित जातियों और जनजातियों का आरक्षण जैसे कई विषय जम्मू कश्मीर में लागू होते हैं। 

अगर राज्य में विकास के स्तर पर बात करें तो कई मामलों में जम्मू कश्मीर की स्थिति देश के दूसरे राज्यों से बेहतर है। और देश के औसत प्रदर्शन से भी अच्छी है। 

- नीति आयोग की वेबसाइट पर मौजूद डेटा के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर ने ओवरऑल हेल्थ इंडेक्स में सुधार दिखाया है। 2014-15 में, कश्मीर का इस इंडेक्स में 11वां स्थान था, वहीं 2015-16 में ये 7वें नंबर पर पहुंच गया। इस इंडेक्स में सबसे कम रैंक बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की रही थी।

-  किसी देश के हेल्थ स्टेट को बताने वाला इंडिकेटर, शिशु मृत्यु दर (IMR) 2017 में 33 (प्रति 1,000 जन्में बच्चों पर) था। जम्मू-कश्मीर में शिशु मृत्यु दर 23 थी, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम है, और कई दूसरे भारतीय राज्यों के मुकाबले काफी बेहतर है।

- सेंसस ऑफ इंडिया के मुताबिक, जन्म के दौरान जीवन प्रत्याशा दर यानी किसी क्षेत्र विशेष में औसतन कितने साल की जिंदगी एक व्यक्ति जीता है  - जो भारत में 1970-75 के समय 49.7 साल था, वो 2011 -12  में 68.7 साल हो गया। जम्मू-कश्मीर में जन्म के दौरान जीवन प्रत्याशा दर 73.5 साल है, जो कि राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है।

- जम्मू और कश्मीर में 2016-17 के लिए पर कैपिटा नेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (वर्तमान रेट पर) 78,163 रुपये था, जो कि बाकी कई राज्यों से बेहतर है। जो कि बिहार और उत्तर प्रदेश से भी बेहतर है।  

- योजना आयोग के मुताबिक, 2011-2012 में भारत का गरीबी इंडेक्स 21.9 प्रतिशत था, जबकि जम्मू और कश्मीर में ये 10.35 प्रतिशत था.

- CMIE के मुताबिक, जुलाई 2019 महीने जम्मू-कश्मीर का बेरोजगारी डेटा 17.4 प्रतिशत रहा, जो हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से कम है। 

-RBI की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 2011 के लिए भारत में साक्षरता दर 72.99 प्रतिशत है, जबकि जम्मू और कश्मीर 67.16 प्रतिशत है। यह साक्षरता दर राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश से भी अच्छी है।

मानव विकास के ऐसे  सूचकांक से यह साफ़ है कि प्रधानमंत्री के दावे सही नहीं हैं। सालों अशांत रहने के बाद भी जम्मू-कश्मीर ने भारत के कई अन्य राज्यों से ज्यादा अच्छे परिणाम दिए हैं।  

इसलिए यह कहना कि आर्टिकल 370 की वजह से वहाँ का विकास नहीं हो रहा था यह बात तथ्यों के विपरीत है।

यही नहीं अभी पांच साल पहले ही भाजपा ने वहां दस हजार करोड़ का पैकेज देकर विकास करने की बात कही थी। इसकी जाँच परख से यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि केवल कश्मीर में ही नहीं भारत के दूसरे राज्यों में भ्रष्टाचार के क्या कारण हैं?  और परिवारवाद जैसी परेशानी केवल कश्मीर से ही नहीं जुड़ी है, यह पूरे भारत से जुड़ी है और भाजपा भी इसका शिकार है। 

कुल मिलाकर एक राज्य विकास के पैमाने पर कई राज्यों से बेहतर होते हुए भी अलगाववाद की परेशानी से जूझ रहा है तो इसका मतलब साफ़ है कश्मीर के अलगाववाद का मुख्य कारण विकास का अभाव तो नहीं है। इसके पीछे दूसरे कारण हैं, जिन्हें आर्टिकल 370  जैसे प्रावधानों के रहते हुए दूर किया जा सकता था। इसे हटाकर ऐसे कारणों के और बढ़ने की सम्भावना है। इस तरह से प्रधानमंत्री अपने निष्कर्ष में भी सही नहीं हैं कि आर्टिकल 370 की वजह से कश्मीर में भ्रष्टाचार है, विकास रुका हुआ है और अलगाववाद बढ़ रहा है।

Narendra modi
Article 35(A)
Article 370
development in jammu kashmir
human development in jammu kashmir
reservation in jammu kashmir
PM speech on article 370
comparison to jammu kashmir with other estate in India

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License