NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सबसे बड़ा घोटाला : पी. साईनाथ
डॉ. अजय खरे स्मृति व्याख्यानमाला में वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने कृषि संकट के लिए देश की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार बताया।
राजु कुमार
05 Mar 2019
p sainath
भोपाल में डॉ. अजय खरे स्मृति व्याख्यानमाला में वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ

देश के मौजूदा कृषि संकट को असमानता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। 1991 से लगातार अपनाई जा रही आर्थिक नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। कृषि क्षेत्र को सहारा देने के नाम पर जोर-शोर से शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना रफ़ाल से भी बड़ा घोटाला है। भोपाल में आयोजित डॉ. अजय खरे स्मृति व्याख्यानमाला में ‘‘कृषि संकट : खाद्यान सुरक्षा एवं स्वास्थ्य’’ विषय पर बोलते हुए ये बातें वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने कही। उन्होंने यह भी कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों द्वारा भी कर्ज देते समय किसानों को रिलायंस इंश्योरेंस के लिए बाध्य किया जाता है।

पी. साईनाथ का कहना है कि 1991 में नई आर्थिक नीतियों को लागू करने के बाद देश में एक ओर अरबपतियों की संख्या बढ़ी है, तो दूसरी ओर मानव विकास सूचकांक में देश का रैकिंग गिरकर 130वें स्थान पर पहुंच गया। 2018 में देश के 121 डॉलर अरबपतियों के पास भारत के कुल जीडीपी का 22 फीसदी धन था। साल 2017 में इन 121 में से सिर्फ मुकेश अंबानी ने एक लाख 5 हजार करोड़ रुपये मुनाफा कमाया। यह मुनाफा मेहनत का नहीं, बल्कि आर्थिक नीतियों का पूंजीपतियों के पक्ष में बनाने से हुआ है। रिलायंस जीयो के विज्ञापन में प्रधानमंत्री का फोटो प्रकाशित हुआ था। यदि वह बिना अनुमति था, तो कानून के उल्लंघन को लेकर केस होना चाहिए था। लेकिन कोई केस नहीं किया गया, तो इसका क्या अर्थ निकाला जाए। यानी प्रधानमंत्री की अनुमति थी।

इसी समय में दूसरी ओर सबसे नीचले पायदान की 10 फीसदी का कुल धन निगेटिव में चला गया। यानी कमजोर वर्ग के कर्ज में भारी बढ़ोतरी हुई। ग्रामीण भारत के महज 8 फीसदी परिवार की मासिक आय 10 हजार से ज्यादा है। यह आंकड़ें दिखाते हैं कि नीतियां किनके पक्ष में हैं और उसके कारण ग्रामीण भारत की बड़ी आबादी संकट से जूझ रही है। इनमें कृषक परिवारों की स्थिति ज्यादा खराब है। 2013-14 के एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार देश में किसान परिवार की औसत आय 6424 रुपये है। लेकिन मध्यप्रदेश के कुछ हिस्से, छत्तीसगढ़, ओडिसा के किसान परिवारों की आय 3 हजार से भी कम है।

Dr. Ajay Khare memorial lecture.JPG

पी. साईनाथ कहते हैं कि कृषि संकट का मसला कृषि से आगे का हो गया है। यह समाज एवं सभ्यता का संकट बन गया है। देश में 3 लाख 10 हजार किसानों की आत्महत्या के बावजूद इसे लेकर आक्रोश नहीं है। अकेले महाराष्ट्र में 65 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। देश में कृषि को कारपोरेट ने हाईजैक कर लिया है। 1991 के बाद देश में हर दिन 2 हजार से ज्यादा किसान कम हो रहे हैं, लेकिन खेत मजदूरों की संख्या बढ़ रही है। इसका मतलब है कि कारपोरेट के पक्ष में नीतियां बनने के बाद किसान अब खेत मजदूर बनने को विवश हैं। देश में किसानों के नाम पर एग्री बिजनेस करने वाली बड़ी कारपोरेट कंपनियों को फाइनेंस किया जा रहा है।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य के निजीकरण करने के बाद किसानों पर संकट ज्यादा गहरा गया है। खेती में नुकसान और स्वास्थ्य को लेकर किसानों के खर्च में बढ़ोतरी ने उन्हें खतरनाक स्थिति में ला दिया है। किसानों के पास अब किसानी के लिए कुछ बचा नहीं है। वे पूरी तरह से कारपोरेट पर निर्भर हो गए हैं। बीज, खाद, कीटनाशक जैसी सामग्रियों के लिए वे कंपनियों पर आश्रित हैं। कृषि लागत चार गुना बढ़ गया है और उत्पादों की कीमतों को दोगुना करने की बात की जा रही है। ऐसे में किसान की हालात कैसे सुधरेगी।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर करोड़ों रुपये निजी बीमा कंपनियों को दे दिए गए। किसान यदि लोन चाहता है, तो उसे बीमा के बिना कर्ज नहीं मिलता। आश्चर्य है कि उसके पास बीमा कंपनी चुनने का विकल्प नहीं है। एसबीआई तक रिलायंस इंश्योरेंस करवाने के लिए दबाव डालती है। इसमें सबसे बड़ा घपला यह है कि बीमा व्यक्तिगत होता है, लेकिन दावा बड़े क्षेत्र के आधार पर मिलता है, जिसमें छोटे-बड़े कई किसानों के खेत होते हैं। इसमें छोटे किसानों का सबकुछ बर्बाद हो जाता है, लेकिन उन्हें बीमा क्लेम बहुत ही कम मिलता है। फसल बीमा में निजी कंपनियां हजारों करोड़ कमा रही है। सरकार ने बीमा के नाम पर उन्हें 66 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा दे दिया। इसे अब ‘‘स्कीम इज स्कैम’’ कहा जा रहा है।

सरकार की आर्थिक नीतियों की लगातार मार झेल रहे किसानों ने अब आंदोलन की राह पकड़ ली है। महाराष्ट्र में 40 हजार किसानों की रैली और उसके बाद दिल्ली में 21 राज्यों के लाखों किसानों की किसान मुक्ति मोर्चा के बैनर तले हुई रैली ने विश्वास दिलाया है कि किसान अब अपने अधिकार के लिए आंदोलन की राह पर बढ़ चुका है। इन रैलियों में मध्यम वर्ग के युवाओं ने जिस तरह आगे बढ़कर सहयोग किया और किसानों के मुद्दे को समझने में दिलचस्पी दिखाई, जो कि आशाजनक तस्वीर है। अब नए-नए फोरम बन रहे हैं, जिनमें डॉक्टर्स फॉर फार्मर्स, राइटर्स फॉर फार्मर्स और नेशन फॉर फार्मर्स। इन फोरम के माध्यम से सरकार से यह मांग की जा रही है कि लोकसभा का कम से कम 3 हफ्ते का किसानों पर विशेष सत्र आयोजित किया जाना चाहिए। सरकार को किसानी पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।

agricultural crises
farmer crises
farmer suicide
farmers protest
kisan andolan
p sainath
Bhopal
Dr. Ajay Khare memorial lecture

Related Stories

विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

मध्य प्रदेश : खरगोन हिंसा के एक महीने बाद नीमच में दो समुदायों के बीच टकराव

केवल विरोध करना ही काफ़ी नहीं, हमें निर्माण भी करना होगा: कोर्बिन

लखीमपुर खीरी हत्याकांड: आशीष मिश्रा के साथियों की ज़मानत ख़ारिज, मंत्री टेनी के आचरण पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी

युद्ध, खाद्यान्न और औपनिवेशीकरण

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

मध्य प्रदेश : मुस्लिम साथी के घर और दुकानों को प्रशासन द्वारा ध्वस्त किए जाने के बाद अंतर्धार्मिक जोड़े को हाईकोर्ट ने उपलब्ध कराई सुरक्षा

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?


बाकी खबरें

  • जितेन्द्र कुमार
    मुद्दा: बिखरती हुई सामाजिक न्याय की राजनीति
    11 Apr 2022
    कई टिप्पणीकारों के अनुसार राजनीति का यह ऐसा दौर है जिसमें राष्ट्रवाद, आर्थिकी और देश-समाज की बदहाली पर राज करेगा। लेकिन विभिन्न तरह की टिप्पणियों के बीच इतना तो तय है कि वर्तमान दौर की राजनीति ने…
  • एम.ओबैद
    नक्शे का पेचः भागलपुर कैंसर अस्पताल का सपना अब भी अधूरा, दूर जाने को मजबूर 13 ज़िलों के लोग
    11 Apr 2022
    बिहार के भागलपुर समेत पूर्वी बिहार और कोसी-सीमांचल के 13 ज़िलों के लोग आज भी कैंसर के इलाज के लिए मुज़फ़्फ़रपुर और प्रदेश की राजधानी पटना या देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों का चक्कर काट…
  • रवि शंकर दुबे
    दुर्भाग्य! रामनवमी और रमज़ान भी सियासत की ज़द में आ गए
    11 Apr 2022
    रामनवमी और रमज़ान जैसे पर्व को बदनाम करने के लिए अराजक तत्व अपनी पूरी ताक़त झोंक रहे हैं, सियासत के शह में पल रहे कुछ लोग गंगा-जमुनी तहज़ीब को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगे हैं।
  • सुबोध वर्मा
    अमृत काल: बेरोज़गारी और कम भत्ते से परेशान जनता
    11 Apr 2022
    सीएमआईए के मुताबिक़, श्रम भागीदारी में तेज़ गिरावट आई है, बेरोज़गारी दर भी 7 फ़ीसदी या इससे ज़्यादा ही बनी हुई है। साथ ही 2020-21 में औसत वार्षिक आय भी एक लाख सत्तर हजार रुपये के बेहद निचले स्तर पर…
  • JNU
    न्यूज़क्लिक टीम
    JNU: मांस परोसने को लेकर बवाल, ABVP कठघरे में !
    11 Apr 2022
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दो साल बाद फिर हिंसा देखने को मिली जब कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबद्ध छात्रों ने राम नवमी के अवसर कैम्पस में मांसाहार परोसे जाने का विरोध किया. जब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License