NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रमोशन में आरक्षण : फैसले के बाद भी मसले का अंत नहीं
सुप्रीम कोर्ट का फैसला अनुसूचित जाति और जनजाति के सरकारी नौकरी में प्रोमोशन में आरक्षण के मसले पर एक कदम आगे तो जाता है लेकिन इस मसले से जुड़े विवादों का पूरी तरह अंत नहीं करता है।  
अजय कुमार
28 Sep 2018
प्रमोशन में आरक्षण

अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) से संबंधित सरकारी नौकरियों के प्रोमोशन के मसले पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, कुरियन जोसफ, संजय किशन कौल और इंदु मल्होत्रा की  संवैधानिक बेंच ने एकमत से फैसला किया। अभी तक एससी और एसटी के सरकारी नौकरियों में प्रोमोशन के लिए साल 2006 में  एम नागराज बनाम भारत सरकार के केस से निकले फैसले का संदर्भ लिया जाता था। जिसके तहत अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को  प्रोमोशन  में आरक्षण पाने के लिए चार शर्तें लगाई गयी थी:-

  1. पिछड़ापन
  2. उन आंकड़ों की जरूरत जिनसे यह पता चल पाए कि सरकारी नौकरी में एससी-एसटी की भागीदारी कम है।
  3. क्रीमी लेयर के आधार पर पात्र योग्य लोगों का निर्धारण।
  4. अनुच्छेद 335 के आधार पर प्रशासनिक कार्यकुशलता। 

 

इन शर्तों के आधार पर प्रमोशन में आरक्षण दिया गया। लेकिन ऐसी शर्तों से दिए गए अधिकांश मामले कोर्ट में लंबित हो जाते थे। केंद्र सरकार भी इससे परेशान थी।  इसलिए कई कर्मचारी संगठन और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर याचिका दायर की। 

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि इसे एक मान्यता के तौर पर स्वीकार किया जाता है कि एससी/एसटी समुदाय पिछड़े हुए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनसे अछूत जैसी प्रथाएं जुडी हुई हैं और यह समुदाय  सामाजिक तौर पर बहुत अधिक पिछड़ा है। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट से  एससी-एसटी को सरकारी नौकरी में प्रोमोशन के लिए आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन को साबित करने के आधार को खारिज कर दिया है। अब प्रमोशन में आरक्षण के लिए नागराज द्वारा बताई गयी केवल तीन शर्तों  के आधार पर फैसला किया जाएगा। यह आधार है क्रीमी लेयर, प्रशासनिक कार्यकुशलता और नौकरी में प्रतिनिधित्व।  

इस फैसले के बाद एससी/एसटी पिछड़ें तो हैं  और इनके प्रोमोशन के लिए इन समुदायों के भीतर क्रीमी लेयर का निर्धारण करना भी जरूरी हो गया है।  क्रीमी लेयर के निर्धारण के लिए नए नियम बनाने की जरूरत होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि क्रीमी लेयर के लिए चला आ रहा नियम अन्य पिछड़े वर्ग से जुड़ा हुआ है, पहली बार इसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए लागू करने की बात की जा रही है। इसके लिए कोर्ट या सरकार कोई भी नियम बना सकता है। लेकिन क्रीमी लेयर का यह नियम पिछड़े हुए तबके के भीतर अगड़े और पिछड़े का बंटवारा करेगा। साथ में  सरकारी नौकरी में काडर के आधार पर सरकारी नौकरी में प्रतिनिधत्व और प्रशासनिक कार्यकुशलता का निर्धरण करना भी मुश्किल काम है।  इस वजह से कई कानून सलाहकरों का मानना है कि इस फैसले की वजह से भी कई स्थितियां स्पष्ट तो हुई हैं लेकिन अभी भी किसी को प्रोमोशन देने के नियम अस्पष्ट हैं।  इस वजह से अभी भी प्रोमोशन में आरक्षण से जुड़े कई मामलें  कोर्ट में सुनवाई के लिए आएंगे।

अंततः सुप्रीम कोर्ट का यह  फैसला अनुसूचित जाति और जनजाति के सरकारी नौकरी में प्रोमोशन में आरक्षण के मसले पर एक कदम आगे तो जाता है लेकिन इस मसले से जुड़े विवादों का पूरी तरह अंत नहीं करता है।  

Supreme Court
SC/ST
PROMOTION
Reservation

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License